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कांग्रेस में हताशा,अविश्वास और गुटबाजी का माहौल

An atmosphere of frustration, distrust and factionalism in Congress

लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं। कांग्रेस अविश्वास और हताशा के माहौल से बाहर नहीं आ पा रही है। कांग्रेस की गुटबाजी लाइलाज है। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले जो उत्साह का माहौल था वह अब नजर नहीं आता है। जो नेता भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे,उनकी वापसी भी होने लगी है। प्रदेश भाजपा कार्यालय में हर दिन कोई न कोई नेता कांग्रेस छोड़कर पहुंच रहा है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी पूरी तरह से अलग-थलग पड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि उन्हें पार्टी के युवा नेतृत्व का समर्थन मिलता दिख रहा है। उमंग सिंघार प्रतिपक्ष के नेता हैं। हेमंत कटारे उप नेता। इन तीनों नेताओं की जुगलबंदी भाजपा से मुकाबला करती दिख नहीं रही। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ,दिग्विजय सिंह,सुरेश पचौरी,अजय सिंह और अरुण यादव जैसे नेताओं की उदासीनता कार्यकर्ता महसूस कर रहा है। क्या इन नेताओं का तालमेल जीतू पटवारी से नहीं बैठ रहा है या जीतू पटवारी एकला चलो की नीति अपनाए हुए हैं?


जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में चूक


विधानसभा चुनाव में कुछ जिला पंचायत के अध्यक्ष विधायक बन गए। जिन जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन होना था वें अशोकनगर,सीहोर,जबलपुर और खंडवा थे। इन चारों स्थानों पर सोमवार को निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी हो गई। सभी जगह भाजपा चुनाव जीती है। इन जिलों में पंचायत के आम चुनाव के समय कांग्रेस ने बहुमत के आधार पर अपना अध्यक्ष बनाने में सफलता पाई थी। बाद में विधानसभा चुनाव से पहले कुछ अध्यक्ष पाला बदलकर भाजपा में चले गए। सीहोर जिला इनमें महत्वपूर्ण है। यह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला है। सीहोर में जिला पंचायत अध्यक्ष गोपाल इंजीनियर थे। वे आष्टा से विधायक बन गए हैं। पहले कांग्रेस में थे। विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद कांग्रेस में उपजी हताशा का लाभ भारतीय जनता पार्टी ने उठाया। पार्टी ने कांग्रेस के कई जिला पंचायत सदस्य तोड लिए। नतीजा सोमवार को हुए चुनाव में भाजपा ने रचना सुरेन्द्र सिंह मेवाड़ा का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित करा लिया। जबलपुर में आशा मुकेश गोटिया निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हो गईं। कांग्रेस ने इन दोनों ही स्थानों पर अपने उम्मीदवार ही नहीं उतारे। जबलपुर में दलबदल के बाद कांग्रेस के चार जिला पंचायत सदस्य शेष बचे थे। अशोकनगर में मुकाबला भाजपा के नेताओं के बीच ही हुआ। राव अजय प्रताप यादव को नौ वोट और उनकी विरोधी बबीता मोहन यादव को मात्र दो ही वोट मिले। बबीता मोहन यादव बसपा से भाजपा में आईंथीं। राव अजय प्रताप यादव अपनी मां बाई साहब यादव के साथ हाल में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। रविवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सांसद केपी यादव के भाई अजय पाल यादव का दलबदल करा दिया। वे भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए। जिला पंचायत सदस्य थे। जिला पंचायत में सबसे ज्यादा सदस्य राव अजय प्रताप यादव के परिवार के ही थे।


भाजपा ने रणनीति से जीता चुनाव


भाजपा विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही जिला पंचायत हासिल करने की तैयारी लग गई थी। पहले चुनाव की तारीख आगे बढ़ाई,फिर जिला पंचायत सदस्यों को अपने पक्ष में किया। सीहोर में निर्विरोध निर्वाचन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कारण ही संभव हो पाया। भारतीय जनता पार्टी यहां दो गुटों में बंट गई थी। भाजपा में हाल ही में शामिल हुए राजू राजपूत का नाम पार्टी ने अध्यक्ष के लिए तय किया था। जिसके बाद रचना सुरेंद्र मेवाड़ा ने फार्म दाखिल करने की घोषणा कर दी। दोनों के समर्थक सक्रिय हो गए। लेकिन कुछ देर बाद भाजपा ने राजू राजपूत को मना लिया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इसमें बड़ी भूमिका रही। चौहान खुद बंगाल में है लेकिन, ध्यान सीहोर की राजनीति का भी रख रहे हैं। इसी कारण जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन निर्विरोध संपन्न हो गया। वहीं इस पूरी निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस समर्थित सदस्य विरोध की स्थिति में नहीं दिखाई दिए।


दूसरी और खंडवा में कांग्रेस की किस्मत ने साथ नहीं दिया। भाजपा प्रत्याशी पिंकी वानखेड़े जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लॉटरी से जीत गईं। दरअसल, जिला पंचायत में कुल सोलह सदस्य हैं। कांग्रेस नेता नानकराम बरवाहे ने अपने दम पर आठ वोट हासिल कर लिए। ऐसे में दोनों प्रत्याशियों को आठ-आठ वोट मिले। कलेक्टर अनूपसिंह ने पर्ची डालकर लॉटरी निकाली। लॉटरी में भाजपा प्रत्याशी पिंकी वानखेड़े का नाम खुला। इसके बाद कलेक्टर ने उन्हें जीत का सर्टिफिकेट दे दिया।


दलबदल के सिलसिले से उपजा अविश्वास


भाजपा का मुख्यालय हो या कांग्रेस का दोनों ही स्थानों पर एक चर्चा समान रूप से चल रही है। कांग्रेस में हताशा के बीच नेता एक-दूसरे से पूछते हैं कि अब कौन चल गया? भाजपा मुख्यालय में उत्साह के साथ बताया जाता है कि अभी तो और आने वाले हैं। बड़े-बड़े नेताओं की लाइन लगी है। पिछले दिनों खुद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था कि इतने लोग भाजपा में शामिल होना चाहते हैं कि हमें कहना पड़ रहा है कि अभी कुछ देर इंतजार करो। हर दिन कोई न कोई चेहरा भाजपा का गमछा पहनते दिखाई देता है। जब से यह चर्चा चल रही है कि कमलनाथ या उनका कोई परिजन भाजपा में शामिल हो सकता है तब से दलबदल भी तेज हुआ है। जबलपुर महापौर और डिंडोरी के जिला पंचायत अध्यक्ष के दलबदल को कमलनाथ से ही जोड़कर देखा गया। कमलनाथ के अलावा भी कई नेताओं के नाम भाजपा मुख्यालय में दल बदल की चर्चा के साथ जुड़े हुए हैं। कई नेताओं के नाम पर भाजपा के नेता पुष्टि या खंडन नहीं करते। सिर्फ चुप्पी के साथ मुस्कुरा देते हैं। कभी देश के अन्य राज्य से कांग्रेस के किसी बड़े चेहरे के भाजपा में शामिल होने की खबर आती है तो इसके साथ कई किस्से भी एक साथ सुनाई देने लगते हैं। सोमवार को ही महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कांग्रेस छोड दी। जब ऐसे लोग कांग्रेस छोड़ रहे हैं जिन्हें पार्टी ने सभी कुछ दिया फिर छोटे नेताओं की बात ही क्या?


कमलनाथ को मिलेगा विधायकों का साथ


वही मौसम है जो मार्च 2020 में था। राज्यसभा चुनाव का मौसम। राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को चार और कांग्रेस को एक सीट मिल रही है। एक सीट जीतने के लिए कुल 39 वोट चाहिए। कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 66 है। इस कारण वह ज्यादा चिंतित नजर नहीं आ रही। कांग्रेस नेतृत्व को लग रहा है कि जितनी बड़ी संख्या में विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चले गए थे,इतनी बड़ी संख्या में किसी और नेता के साथ नहीं जाएंगे? कमलनाथ के साथ भी नहीं। ऐसा ही कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व सोच रहा है। भाजपा में बात इससे उलट हो रही है। कमलनाथ को आना है तो सिंधिया से ज्यादा विधायक लेकर भाजपा में आना होगा। अन्यथा बड़े नेता सिंधिया ही कहलाएंगे?सिंधिया के साथ कुल 21 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी। भाजपा को कांग्रेस से उसके हिस्से की सीट छीनना है तो कम से कम 28 विधायक तोड़ना होंगें। यदि 35 विधायक छोड़ते हैं तो दलबदल की कार्यवाही से भी बच जाएंगे और उप चुनाव भी नहीं लड़ना होगा। इस तरह की कयासबाजी भी चल रही है। एक चर्चा यह भी चल रही है कि भाजपा इस शर्त पर कमलनाथ को शामिल करेगी कि वे खुद छिंदवाड़ा से चुनाव लड़े। नकुल नाथ के चुनाव लड़ने में भाजपा वह संदेश नहीं देख रही जो कमलनाथ के लड़ने से जाएगा। क्या कमलनाथ वाकई कांग्रेस छोड़ देंगे? यह एक ऐसा सवाल जिसके जवाब में कांग्रेस के भीतर बिखरा अविश्वास ही दिखाई देगा।


जीतू पटवारी ने क्यों खेला सोनिया कार्ड


मध्यप्रदेश में कांग्रेस को राज्यसभा की सिर्फ एक सीट मिल रही है। एक अनार,सौ बीमार वाली स्थिति बन रही है। जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है वह राज्यसभा सीट को टकटकी लगाए देख रहा है। दो दावेदार सबसे मजबूत माने जा रहे थे। अरुण यादव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी। जीतू पटवारी का दावा पार्टी अध्यक्ष के नाते मजबूत माना जा रहा था। सोनिया गांधी और कमलनाथ की मुलाकात से माहौल एक दम बदल गया। गांधी परिवार से अपने रिश्तों के कारण ही कमलनाथ इतनी लंबी राजनीति कर पाए। बेटे नकुल नाथ को भी अपनी विरासत सौंप दी। खुद विधायक हैं। बेटा लोकसभा चुनाव लड़ेगा। यह सीधी-सीधी राजनीति दिख रही थी। राजनीति में मोड़ सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही आया। कहा गया कि कमलनाथ राज्यसभा की टिकट चाहते हैं। राजनीति में असंभव कुछ नहीं होता। कमलनाथ को टिकट मिलते ही जीतू पटवारी का कद घट जाएगा। जीतू पटवारी कांग्रेस अध्यक्ष हैं। इसका लाभ उठाते हुए उन्होंने चुनाव लड़ने का आमंत्रण सोनिया गांधी को ही दे दिया। सोनिया गांधी को ही तय करना है कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना है या राज्यसभा में जाना है। अभी तक गांधी परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा में नहीं गया। क्या सोनिया गांधी राज्यसभा जाएंगी,यह बड़ा सवाल है। इसका जवाब उम्मीदवार की घोषणा में ही मिल पाएग।


सोनिया को आमंत्रण से मजबूत हुई भाजपा


जीतू पटवारी ने सोनिया गांधी को राज्यसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव सिर्फ कमलनाथ की राह में रोड़ा अटकाने के लिए ही दिया है। यह राजनीति आसानी से समझ आने वाली है। लेकिन, इस प्रस्ताव से नुकसान किसे होने वाला है? भारतीय जनता पार्टी तो कांग्रेस के नेताओं से इस तरह की गलती करने का इंतजार करती हे। सोनिया गांधी ने अब तक यह घोषणा नहीं की है कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहीं। राज्यसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिलने के बाद भाजपा यह प्रचारित करेगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर से सोनिया गांधी डर गईं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी में उतारा था। राहुल गांधी को परिणामों का अंदाजा पहले से लग गया था। इस कारण वायनाड से भी चुनाव लड़े। अब बारी रायबरेली की है। सोनिया गांधी का लोकसभा चुनाव न लड़ना ही भाजपा को चार सौ पार पहुंचा सकता है।


मध्यप्रदेश भी आएगी ईडी


कांग्रेस के कई नेताओं को आयकर विभाग के नोटिस मिले हैं। नोटिस मिलते ही हड़कंप मचना स्वाभाविक है। करीब 100 नेताओं को समन जारी किया गया है। इस समन के जरिए विधायकों और नेताओं को आय-व्यय से संबंधित दस्तावेजों के साथ दिल्ली बुलाया गया है। विधानसभा चुनाव के पहले इसी तरह का समन ईडी ने तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को दिया था। वे सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। उनसे पूछताछ नहीं हुई थी। इस बार भी समन पर चुनावी रंग चढ़ा हो सकता है। नेताओं को जारी नोटिस को लेकर प्रदेश में सियासी घमासान मच गया है। जिन नेताओं को आयकर विभाग ने तलब किया है इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया भी हैं। भूरिया झाबुआ से लोकसभा के उम्मीदवार हो सकते हैं। रविवार को झाबुआ में प्रधानमंत्री की बड़ी सभा हुई थी। भूरिया के विधायक पुत्र विक्रांत भूरिया को भी समन मिला है।
भिंड-दतिया लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहे देवाशीष जरारिया को भी समन किया गया। सभी नेताओं को पिछले सात सालों का हिसाब और दस्तावेज लेकर दिल्ली स्थित आयकर दफ्तर जाना होगा। समन में 2014 से 2021 तक के वित्तीय लेनदेन के दस्तावेज मंगाए गए हैं।

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जीतू बने प्रचार अभियान समिति के सह अध्यक्ष

Jeetu becomes co-chairman of campaign committee
Jeetu becomes co-chairman of campaign committee

मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को प्रदेश चुनाव प्रचार अभियान समिति का सह अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। प्रदेश कांग्रेस के अनुसार इस संबंध में आज केंद्रीय नेतृत्व ने आदेश जारी कर दिए।
श्री पटवारी इंदौर के पास राऊ विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे कमलनाथ सरकार में उच्च शिक्षा एवं खेल विभाग के मंत्री थे।

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सजा पड़ने के बाद एक बार फिर आंदोलन करने उतरे जीतू पटवारी

कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी पर 2009 में राजगढ़ किसान आंदोलन के दौरान दंगा करने और सरकारी काम में बाधा डालने के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी। जिसके चलते एमपी-एमएलए कोर्ट ने जीतू पटवारी समेत 4 लोगोें को 

एक साल की सजा सुनाई थी। साथ ही कोर्ट ने चारों आरोपियों पर 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था। इस केस में जीतू पटवारी समेत 17 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। 14 आरोपियों को अनुपस्थित देखते हुए कोर्ट ने नोटिस जारी किया है।

वहीं कोर्ट द्वारा सुनाए गए इस फैसले के बाद कांग्रेस नेता जीतू पटवारी एक बार फिर आंदोलन करने उतर चुके हैं। इस बार इंदौर में कांग्रेस द्वारा आयोजित नगर निगम घेराव में सम्मिलित होकर सरकार पर हमला बोला।

भाजपा पर हमाला बोलते हुए जीतू पटवारी ने कहा कि “नगर निगम चुनाव में BJP ने घोषणा की थी हम संपत्तिकर नहीं बढ़ाएँगे और बजट के दौरान भी यही दोहराया तो फिर 531 कालोनियों का संपत्तिकर चोरी से बड़ाकर जनता के साथ कुठाराघात क्यों किया जा रहा है। अवैध कालोनियों को एक साथ वैध न कर जनता को गुमराह किया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी यह अन्याय और अत्याचार सहन नहीं करेगी।”

फांसी पर लटका दो, लेकिन लड़ाई जारी रहेंगी: जीतू पटवारी  

फैसले पर जीतू पटवारी का कहना है कि कोर्ट के निर्णय का सम्मान करता हूं। राज्य सरकार ने किसानों आय दोगुनी करने का वादा किया था, वो आज तक पूरा नहीं हुआ। ये मामला किसानों के हक की लड़ाई का है। जब तक गेहूं की कीमत तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल नहीं होगी, लड़ाई जारी रहेगी। मैं किसानों का साथ नहीं छोडूंगा जेल भेजना चाहो भेज दो, फांसी पर लटका दो, लेकिन किसानों के हक की लड़ाई जारी रहेगी। उन्होंने कहा बीजेपी को आम जनता और किसानों से कोई मतलब नहीं। बीजेपी चुनिंदा उघोगपतियों की पार्टी हैं, कांग्रेस पार्टी हमेशा से ही किसानों के साथ हैं। 

विधायकी पर नहीं पड़ेगा असर, फैसले के खिलाफ अपील करेंगे: अजय गुप्ता, वकील (जीतू पटवारी)

कोर्ट में जीतू पटवारी के वकील के तौर पर आए अजय गुप्ता का कहना हैं कि फैसला अभी अक्षरश: पढ़ा नहीं है। कोर्ट से इस फैसले की आशा नहीं थी, हालाकि अभी जमानत हो गई है। वकील अजय का मानना है कि इस फैसले से जीतू पटवारी की विधायकी पर असर नहीं पड़ेगा।

भाजपा या कांग्रेस, कौन जाएगा तेल लेने ?

jitu patwari said party gayi tel lene

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार प्रचार और प्रहार के लिए वीडियो का काफी इस्तेमाल हो रहा है. कभी शिवराज मामा अंगद बने दिखाई देते हैं तो कभी कमलनाथ भगवान श्री कृष्णा. कभी दिग्विजय सिंह कहते हैं कि उनके प्रचार करने से कांग्रेस के वोट कटते हैं तो अब कांग्रेस नेता जीतू पटवारी कह रहे हैं कि ‘पार्टी गयी तेल लेने’.

दरअसल कांग्रेस नेता जीतू पटवारी का एक वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. 3 सेकंड के इस वीडियो में पटवारी एक व्यक्ति से गले मिलते हुए कहते हैं कि ‘पार्टी गयी तेल लेने’. अब इस आधे-अधूरे वीडियो में यह बात साफ़ नही थी कि जीतू पटवारी इसमें अपनी ही पार्टी कांग्रेस की बात कर रहे हैं या सत्ता में बैठी भाजपा की. वीडियो के वायरल होते ही भाजपा ने भी तंज कसने का मौका नही छोड़ा और जीतू पटवारी के इस वीडियो पर तंज कसते हुए भाजपा नेताओं ने कहा कि ‘अब तो कांग्रेस नेता भी मानने लग गये कि कांग्रेस अब तेल लेने जा रही है और सोशल मीडिया पर #CongressGayiTelLene ट्रेंड करने लगा.

वीडियो वायरल होने के बाद विधायक जीतू पटवारी ने सफाई दी कि वह इस वीडियो में कांग्रेस नही बल्कि भाजपा की बात कर रहे थे. जीतू पटवारी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर वीडियो शेयर करते हुए कहा कि “मैं ही नहीं, पूरे देश की जनता अब कह रही है कि ‘बीजेपी जाये तेल लेने’ . भाजपा अपने दामन के दाग छिपाने के लिये तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है, पर जनता सब जानती है। मैं आज जनसंपर्क के दौरान में भाजपा के एक कार्यकर्त्ता के यहाँ गया, मैंने उनसे कहा कि आप जिस भी पार्टी के हो, जीतू पटवारी आपके परिवार का सदस्य है. आपको मेरी इज्जत रखनी है”.

इस पूरे घटनाक्रम के बाद कांग्रेस ने भाजपा पर पलटवार किया. यूथ कांग्रेस अध्यक्ष केशव चन्द्र यादव ने कहा ” 2014 में पेट्रोल की कीमत 63 रुपये/लीटर था और आज कच्चे तेल के दाम कम होने के बाद भी 90 रुपये/लीटर मिल रहा है. जब मेरा पीएम चोर है फिर क्यों नही ‘कांग्रेस गयी तेल लेने’ की बजाय भाजपा जाए तेल लेने.”

लेखक संघमित्रा ने कहा कि “मोदी जी के राज में, वोटर गये तेल लेने, लोकतंत्र गया तेल लेने, राम मंदिर गया तेल लेने, गंगा की सफाई गयी तेल लेने, कालाधन गया तेल लेने और अर्थव्यवस्था गयी तेल लेने. बैठकर देखो, 2019 में बीजेपी और आरएसएस जाएँगे तेल लेने.”