Homeपावर मैराथनवे चेहरे तो सामने आ ही गए जो भाजपा में जाने की...

वे चेहरे तो सामने आ ही गए जो भाजपा में जाने की इच्छा रखते हैं

Published on


भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के साथ जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही थी,वह कमलनाथ और उनके पुत्र नकुल नाथ के कांग्रेस छोड़ने की थी। मीडिया ने पिछले एक सप्ताह में इस तरह का माहौल बना दिया था कि गांव-गांव,गली-गली सिर्फ कमलनाथ की ही चर्चा हो रही थी। राष्ट्रीय परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या संदेश दे रहे हैं,इससे ज्यादा यह जानने में लोगों की दिलचस्पी थी कि कमलनाथ के साथ कुल कितने विधायक कांग्रेस छोड़ रहे हैं? सोशल मीडिया पर सूत्रों के हवाले यह खबर भी चर्चा में आ गई थी कि कमलनाथ रविवार शाम पांच बजे भाजपा की सदस्यता ले लेंगे। राष्ट्रीय परिषद को न तो कमलनाथ का इंतजार था और न ही कमलनाथ भी वहां पहुंचे। लेकिन,इस पूरे मामले में सवाल यह उठ रहा है कि कमलनाथ भाजपा में शामिल हो रहे हैं,इसकी चर्चा कहां से शुरू हुई? इस चर्चा के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा,वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकर्ता को सौ दिन का का समय नए वोटर के साथ संपर्क बनाने के लिए दिया है। जाहिर है कि अगले सौ दिन देश की राजनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इन सौ दिन में ही केंद्र में नई सरकार आ जा जाएगी। जीत की हैट्रिक बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को 370 सीट जीतने का लक्ष्य दिया गया है। हर राज्य के हिसाब से पार्टी ने अलग-अलग रणनीति बनाई है। मध्यप्रदेश में पार्टी ने सभी 29 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे 28 सीट मिलीं थीं। 29 वीं सीट छिंदवाड़ा की है। छिंदवाड़ा का संबंध कमलनाथ से है। पिछले एक सप्ताह से उनके भाजपा में शामिल होने को लेकर जो हंगामा मचा था,उसमें अब पूरी तरह विराम लग गया है।


भाजपा का संपर्क अभियान और चुनाव की तारीख


लोकसभा के चुनाव की तारीखों को लेकर अभी अटकलबाजी ही चल रही है। लेकिन, अनुमान है कि दस मार्च को आम चुनाव की घोषणा हो जाएगी। भाजपा कार्यकर्ता का नए वोटर से संपर्क करने का अभियान और चुनाव प्रचार साथ-साथ चलेगा। चुनाव सात चरणों में होंगे। लगभग दो माह का समय पूरी चुनाव प्रक्रिया में लगता है। प्रधानमंत्री ने अपने पार्टी जनों को जो सौ दिन का लक्ष्य नए वोटर से संपर्क के लिए दिया है,उसमें यह स्वर भी सुनाई देता है कि चुनाव की घोषणा सौ दिन बाद होगी। लेकिन,ऐसा होने वाला नहीं है। चुनाव आयोग को मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले चुनाव कराना है। भाजपा को भी अपनी सीटें 370 करने के लिए चारों दिशाओं में जीत का परचम लहराना होगा। इसके लिए जरूरी है कि अन्य राजनीतिक दल के जनाधार वाले नेता भी उसके साथ जुड़े। इसके लिए सोमवार से देशव्यापी मेगा सदस्यता अभियान भी शुरू किया है। महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण की इंट्री सदस्यता अभियान का ही हिस्सा थी। अशोक चव्हाण के अलावा भी कुछ और नेता महाराष्ट्र में भाजपा की सदस्यता ले सकते हैं। राजस्थान में कांग्रेस विधायक महेंद्रजीत मालवीय भाजपा में शामिल हो गए हैं। मालवीय आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बांसवाड़ा से आते हैं। भाजपा की रणनीति आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ बनाकर रखने की है। देश के लगभग हर राज्य में आदिवासी सीटों के हिसाब से भाजपा की रणनीति अलग-अलग देखने को मिलती है। राजस्थान में हलचल सोनिया गांधी के राज्यसभा चुनाव लड़ने से है। भाजपा की कोशिश है कि वह निर्वाचन परिणाम घोषित होने से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका दे दे। लगभग सात कांग्रेस विधायक दलबदल की तैयारी में दिख रहे हैं। लेकिन,इससे सोनिया गांधी के निर्विरोध राज्यसभा सदस्य निर्वाचित होने पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भाजपा की चिंता राज्य की 25 लोकसभा सीटें हैं। पिछले चुनाव में उसने सभी 25 सीटें जीतीं थीं।


कमलनाथ के प्रभाव क्षेत्र की चार लोकसभा सीट


कमलनाथ कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। कांग्रेस के कई ऐसे नेता हैं जो कमलनाथ को ही हाईकमान मानते हैं। गांधी परिवार के नजदीक होने के कारण उन्हें यह रूतबा हासिल भी  है। कमलनाथ का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर भी चर्चा में आया था। लेकिन,मल्लिकार्जुन खरगे के पक्ष में समीकरण बने। खरगे का नाम सामने आने के बाद ही दिग्विजय सिंह अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे। कमलनाथ छिंदवाड़ा की जिस लोकसभा सीट से चुनाव जीतते रहे हैं,उसमें भी आदिवासियों की बड़ी तादाद है। आदिवासी वर्ग लंबे समय से कांग्रेस का साथ दे रहा है। हाल ही के विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी सीटों का रुझान कांग्रेस के पक्ष में देखने को मिला है। लोकसभा की कुल दस सीटों पर भाजपा पिछड़ती दिखाई दी हैं। इनमें छिंदवाड़ा के अलावा मंडला की लोकसभा सीट भी है। गोंड आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में भाजपा की जीत में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ,भाजपा की कभी मदद करती रही है। कमलनाथ की इस वर्ग पर अच्छी पकड़ है। कमलनाथ यदि भाजपा में जाते तो राष्ट्रीय स्तर कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता था। भाजपा को भी एक मजबूत चेहरा छिंदवाड़ा सीट के लिए मिल जाता । इसका असर मंडला बालाघाट के अलावा जबलपुर की लोकसभा सीट पर पड़ता? विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सभी सात सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही है। मंडला लोकसभा सीट की निवास सीट से चुनाव लड़े केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते चुनाव हार गए थे।


कमलनाथ का अपनी टीम से संवाद का अभाव


कमलनाथ के प्रकरण में एक बात पूरी तरह से साफ हुई है कि उन्होंने खुद जानबूझकर मामले को हवा दी। हो सकता है कि उनका इरादा कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाकर अपनी स्थिति को सुरक्षित करना रहा हो? कमलनाथ चाहते तो पहले ही दिन इस बात का खंडन कर सकते थे कि उनके दलबदल को लेकर जो खबर चल रहीं हैं वो गलत है। मीडिया यदि उनकी बातों को गलत तरीके से लोगों के सामने रख रहा था तो भी वे सोशल मीडिया के जरिए अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकते थे। कमलनाथ अपने बेहतर प्रबंधन के लिए जाने जाते हैं। लेकिन,संवाद की कमी इस पूरे प्रकरण भी उनके खिलाफ चली गई। उनके समर्थकों को भी उनका अगल कदम पता नहीं था। यही कारण है कि जिसे जो ठीक लगा वह मीडिया को अपना बयान देता रहा है। सज्जन सिंह वर्मा जैसे समर्थक भी  दलबदल की बात से अंजान थे। यही वजह है कि उन्हें तीन दिन में तीन तरह के बयान देने पड़े। हर समर्थक दूसरे समर्थक की ओर ताक रहा था। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कमलनाथ से बात कर वस्तुस्थिति का पता लगा ले। ऊपर से भगवान राम के ध्वज ने मीडिया को खूब मसाला दिया।  भाजपा नेताओं ने भी इस पूरे मामले को हवा देने में कोई देर नहीं की। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का बयान मीडिया में ऐसे रखा गया जैसे वे कमलनाथ को पार्टी में आमंत्रण दे रहे हो? कमलनाथ को पार्टी में केवल एक ही व्यक्ति से संवाद करने की जरूरत है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी अपनी राष्ट्रीय परिषद की बैठक के मंच का उपयोग दल बदल कर आए नेता के लिए नहीं करती। कमलनाथ यदि अपने दिल्ली जाने के कार्यक्रम में बदलाव नहीं करते तो संभव है कि विवाद खड़ा ही नहीं होता। वैसे भी कमलनाथ शनिवार और रविवार का दिन निजी कार्यों के लिए रखते आए हैं। उनका दिल्ली जाना ऐसे दिनों में हुआ,जब भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक हो रही थी।


दलबदल का भाव रखने वाले चेहरे उजागर


मीडिया और सोशल मीडिया पर जिस तरह से कमलनाथ के दल बदल की खबरों का शोर मचा उसमें वे चेहरे जरूर सामने आ गए जो अब कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं देखते हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर की गुटबाजी को लेकर हमेशा से बदनाम रही है। कांग्रेस का झंडा पकड़े चल रहा हर नेता अपने को ही पार्टी मानता है। इसी कारण जब नेता दल बदल करता है तो समर्थक भी साथ चल देते हैं। कमलनाथ के दल बदल की खबरें देखकर उनके समर्थक भी भाजपा में जाने की तैयारी करते दिखे। ग्वालियर,मुरैना और छिंदवाड़ा के महापौर के साथ जाने की बात होने लगी। ऐसे विधायकों के नाम भी सामने आने लगे जो अपना भविष्य भाजपा में देख रहे हैं। कुछ ने तो साफ तौर पर कहा कि जहां कमलनाथ,वहां हम। लेकिन,कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा के ही विधायक सोहनलाल वाल्मीकि ने तो एक वीडियो जारी कर अपील की कि कांग्रेस का नेतृत्व करते रहें। साथ ही यह भी जोड़ दिया कि विधायक उनके नेतृत्व में काम करना चाहते हैं। दीपक सक्सेना ने तो यहां तक कह दिया कि पार्टी में उनकी उपेक्षा हो रही थी। दीपक सक्सेना वफादारी दिखाने के चक्कर में शायद यह भी भूल गए कि कमलनाथ के नेतृत्व में पार्टी 2019 का लोकसभा चुनाव ही नहीं हारी थी 2023 के चुनाव में चालीस प्रतिशत वोट होने के बाद भी सरकार बनाने लायक सीटें हासिल नहीं कर पाई। 28 सीटों के उप चुनाव की पराजय को भी नहीं भुलाया जा सकता। पार्टी नेतृत्व ने कमलनाथ के सम्मान के चलते ही मध्यप्रदेश को दांव पर लगाया था।


सज्जन वर्मा के लिए खुल सकते थे संभावना के द्वारा


पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा काफी उत्साहित थे। उन्होंने भी कमलनाथ के मान-सम्मान का मसला सार्वजनिक तौर पर उठाया। अपने चालीस साल के रिश्तों का हवाला देकर कमलनाथ के साथ जाने को तैयार थे। दरअसल सज्जन वर्मा का स्वार्थ इस मामले में हो सकता है? वर्मा,कमलनाथ के करीबी हैं। यह बात छुपी हुई नहीं है। कमलनाथ भाजपा में जाते तो सज्जन सिंह वर्मा देवास-शाजापुर लोकसभा सीट से टिकट के दावेदार हो जाते। इस सीट पर वर्मा वर्ष 2009 में चुनाव जीते थे। इसके बाद से यहां भाजपा जीत रही है। विधानसभा चुनाव में वर्मा सोनकच्छ से विधानसभा चुनाव हार गए। 2028  में चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा,इसकी उम्मीद कम है। वे अब अपने पुत्र और भतीजे के भविष्य को लेकर भी सक्रिय रहते हैं। कमलनाथ के साथ भाजपा में जाने की इच्छा रखने वाले ज्यादा नेता निमाड़-मालवा में ही दिखाई दिए। धार में मोहन बुंदेला के पुत्र कुलदीप सिंह बुंदेला ने भी भाजपा में जाने की तैयारी कर ली थी। वे बदनावर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े थे। केवल छह हजार वोट मिले थे। कांग्रेस के भीतर भाजपा मे जाने की इच्छा रखने वाले नेताओं के चेहरे सामने आने के बाद अगले कुछ दिनों में बड़े दलबदल से इंकार नहीं किया जा सकता है। संभव है कि भाजपा ने ही इस बात को हवा दी हो कि कमलनाथ दलबदल कर रहे हैं? उद्देश्य ऐसे लोगों की पहचान करना रहा हो,जो भाजपा में आने की इच्छा रखते हैं।

ताज़ा खबर

सोनी सब के पुष्पा इम्पॉसिबल के नवीन पंडिता उर्फ अश्विन कहते हैं,”स्वरा सेट पर हमारी स्ट्रेसबस्टर है”

सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविज़न के होमग्रोन सिंगिंग रियलिटी शो, ‘सुपरस्टार सिंगर 3’ ने देश भर...

अरविंद केजरीवाल के घर पहुंची ED की टीम

अरविंद केजरीवाल के घर पहुंची ED की टीम

बीजेपी ने तीन राज्यो में चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी का किया ऐलान

लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगी बीजेपी ने राजस्थान सहित तीन राज्यों में चुनाव...

31 मार्च को रविवार होने के बावजूद देश के सभी बैंक खुले रहेंगे 

मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन 31 मार्च को रविवार होने के बावजूद देश...

संबंधित समाचार

इमोशनल कार्ड से साख को बचाने की कोशिश करते कमलनाथ

देश की राजनीति में कमलनाथ बेहद संजीदा राजनेता माने जाते हैं। 1980 के लोकसभा...

कांग्रेस के निराश कार्यकर्ता से चुनाव हारने और जीतने की रणनीति

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के केंद्र में कांग्रेस के कार्यकर्ता का निराशा का भाव...

गुटबाजी,आदिवासी अत्याचार और सांप्रदायिक तनाव के हावी होते मुद्दे ?

देश को कांग्रेस मुक्त करते-करते भारतीय जनता पार्टी ही कांग्रेस युक्त हो गई है।...