दिनेश गुप्ता
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस बात का जिक्र हमेशा होता रहेगा कि पद पर रहे तो आपके चरण कमल के समान और पद से हटे तो होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। वैसे यही सच्चाई है। राजनीति हो या कोई और क्षेत्र। व्यक्ति से ज्यादा पूजा पद की होती है। व्यक्ति पर भी पद ही हावी होता है। जब पद हावी होता तब व्यक्ति मैं और मेरे की भाषा बोलने लगता है। शिवराज सिंह चौहान ने जब होर्डिंग से फोटो हटने की बात कही तो भाजपा में ऐसे बहुत से लोगों की दबी हुई प्रतिक्रिया सामने आई जिसमें कहा गया कि पद रहते वक्त शिवराज सिंह चौहान भी कहां दाएं-बाएं देख रहे थे? बात करने तक का तो समय नहीं था। कोई मिला तो यह कहकर बचने की कोशिश कि आज व्यस्त हूं, बाद में लंबी बात करेंगे। मुख्यमंत्री निवास भी ऐसा हो गया कि बिना मर्जी कोई अंदर कदम नहीं रख सकता था। खैर,सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान को यह बात क्यों कहना पड़ी कि पद से हटे तो होर्डिंग से फोटो गधे के सिर से सींग जैसी गायब हो जाती है। शिवराज सिंह चौहान ने बात भले ही सामान्य तरीके से कही लेकिन,उनका निशाना कोई खास व्यक्ति ही था। वो खास व्यक्ति क्या मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं या फिर कोई और?
शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के पद से हटे हुए अभी एक महीना ही हुआ है। इस एक माह में ऐसा कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ जिसमें नेताओं के होर्डिंग पोस्टर लगे हो? मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में जरूर होर्डिंग-पोस्टर लगवाए थे। अधिकांश नेताओं के होर्डिंग में जो चेहरे थे उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,अमित शाह,जेपी नड्डा,वीडी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रमुख हैं। सिंधिया को चेहरे उनके समर्थकों के होर्डिंग में ही था। जो चरणों को कमल कहते थे संभव है कि ऐसे किसी नेता के होर्डिंग में अपना फोटो न देखकर शिवराज सिंह सिंह चौहान का दर्द सामने आ गया हो? वैसे इन दिनों प्रदेश भर में कई सरकारी होर्डिंग भी लगे हुए हैं। भोपाल शहर में भी प्रमुख सड़कों पर सरकारी होर्डिंग हैं। इन होर्डिंग पर योजनाएं और उसके हितग्राही शिवराज सिंह चौहान की सरकार के हैं। लेकिन,होर्डिंग में श्रेय मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को जाता दिख रहा है। डॉ. मोहन यादव के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी फोटो लगी हुई है। अपनी उपलब्धियां किसी और के खाते में दर्ज देखकर भी टीस उठ सकती है?
विधायक नरेंद्र कुशवाहा को हाईकोर्ट से मिली राहत
जिला अदालत में काफी समय से चल रहे अपहरण, मारपीट सहित अन्य धाराओं के मामले में भिंड से भाजपा विधायक नरेंद्र कुशवाहा और अन्य आरोपियों को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत एफआईआर को निरस्त को कर दिया।है। इसके साथ ही अभी तक निचली अदालत में हुई मामले की पूरी सुनवाई को भी निरस्त करते हुए विधायक सहित अन्य पर लगे आरोप को खत्म कर दिया है। एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रहे मुकदमे में भिंड के वर्तमान भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह पर आरोप था कि वह वर्ष 2015 में जिला पंचायत वार्ड-एक बाराकलाँ से बसपा प्रत्याशी बाबूराम जामौर को कलेक्ट्रेट कैंटीन से अपने वाहन में जबरदस्ती बैठाकर ले गए और उनको चुनाव नहीं लड़ने के लिए धमकाया, मारपीट की। बाद में हथियारों से लैस लोगों की गाड़ी में बैठा दिया। इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी। जिसके आधार पर मुकदमा चल रहा है।
आईएएस अफसर पर हाईकोर्ट की पेनल्टी
देश में ऐसे बहुत कानून और नियम हैं जिनमें कलेक्टरों को दखल अथवा कोई आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। ऐसा ही एक कानून तलाक का भी है। तलाक से भरण-पोषण जुड़ा हुआ है। तलाक होने पर महिला को कितना भरण-पोषण दिया जाए यह अदालत तय करती है। कलेक्टरों को तय करने का अधिकार नहीं है। भले ही तलाक लेने वाला व्यक्ति कलेक्टर के अधीन कार्यरत हो अथवा सरकारी कर्मचारी हो? सिंगरौली में अक्टूबर 2021 में तत्कालीन कलेक्टर राजीव रंजन मीणा ने जन सुनवाई में आए एक आवेदन पर शिक्षक के वेतन से आधा वेतन उसकी तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ मामला हाईकोर्ट पहुंचा। याचिका सिंगरौली निवासी शिक्षक कालेश्वर साहू की ओर से दायर की गई थी। इसमें कहा गया कि उसकी पत्नी ने भरण-पोषण के लिए धारा-125 के तहत कुटुम्ब न्यायालय में आवेदन किया था। कुटुम्ब न्यायालय में मामले की सुनवाई लंबित है।
सिंगरौली जिला कलेक्टर के समक्ष जनसुनवाई के दौरान उसकी पत्नी मुन्नी साहू उपस्थित हुई थीं। कलेक्टर ने याचिकाकर्ता के वेतन से 50 प्रतिशत की राशि काटकर पत्नी को भरण-पोषण के लिए प्रदान करने के आदेश अक्टूबर 2021 में जारी किए थे। कलेक्टर के निर्देशानुसार शिक्षा विभाग के जिला समन्वयक अधिकारी ने 50 प्रतिशत वेतन कटौती के आदेश जारी कर दिए।याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि भरण-पोषण की राशि निर्धारित करने का अधिकार संबंधित न्यायालय को है। ऐसा करने की न्यायिक शक्तियां जिला कलेक्टर के पास नहीं है। जिला कलेक्टर का आदेश पूरी तरह से मनमाना व अवैधानिक है। हाई कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद वेतन से कटौती की गई राशि आठ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ याचिकाकर्ता शिक्षक को प्रदान करने के आदेश जारी किए हैं। हाईकोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को मनमाना व गैरकानूनी मानते हुए याचिका-व्यय बतौर 25 हजार का जुर्माना लगा दिया। यह राशि तत्कालीन कलेक्टर से वसूलने के निर्देश दिए हैं।
सिंहस्थ की तैयारी में जुटी मोहन सरकार
सिंहस्थ वर्ष 2028 में है। इस लिहाज से तैयारियों के लिए सरकार के पास अभी वक्त है। सरकार का अनुमान है कि इस बार सिंहस्थ में तीस करोड़ से अधिक लोग पहुंचेंगे। 2016 के सिंहस्थ में तैयारियां आठ करोड़ लोगों के आने के अनुमान पर की गईं थीं। सरकार ने लगभग साढ़े चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे। अगले सिंहस्थ में श्रद्धालुओं की संख्या बढने के अनुमान का आधार महाकाल लोक में आने वाली भीड़ है। साल के पहले दिन ही छह लाख से ज्यादा लोग उज्जैन पहुंचे थे। इस बार मुख्यमंत्री ही उज्जैन से हैं। इस कारण सिंहस्थ के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने की रणनीति पर अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं। पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक की विकास योजनाएं तैयार की जा रही हैं। इनमें नए आवासीय एवं व्यावसायिक क्षेत्रों का विकास करने, शिप्रा रिवर फ्रंट डेवलप करने, 24 हजार मीटर लंबे घाटों का निर्माण, शहर में 116 सिटी बसों का संचालन करने, दताना हवाई पट्टी, सीवरेज प्रणाली सहित प्रमुख मंदिरों, पर्यटन स्थलों, सप्त सागरों, सड़कों का विकास कार्य करने जैसी कई योजनाएं शामिल हैं। उज्जैन-इंदौर फोरलेन को सिक्स लेन बनाया जाएगा। ऐसा होने पर 44 किलोमीटर का सफर 45 से 50 मिनट में पूरा हो सकेगा। अभी 60 से 70 मिनट लगते हैं। एमपी रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआरडीसी) ने इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर ली है। अगली कैबिनेट मीटिंग में इसे मंजूरी मिल सकती है। कैबिनेट से मंजूरी के बाद ही तय होगा कि प्रोजेक्ट का काम कब शुरू होगा और कब पूरा होगा। सिंहस्थ की तैयारियों की पहली बैठक 14 जनवरी को उज्जैन में आयोजित की गई है। बैठक की सूचना उज्जैन संभाग के प्रभारी अपर मुख्य सचिव राजेश राजोरा की ओर से जारी की गई है। वे गृह के साथ साथ धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के भी अपर मुख्य सचिव हैं।
शाजापुर तनाव के कारण बदले इंटेलिजेंस चीफ
यह एक सामान्य परंपरा का हिस्सा है कि मुख्यमंत्री के साथ ही जनसंपर्क आयुक्त और इंटेलिजेंस चीफ जैसे पदों पर बैठे अधिकारियों के भी तबादले हो जाते हैं। जनसंपर्क आयुक्त के पद पर बदलाव पंद्रह दिन पहले ही हो गया था। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने मनीष सिंह के स्थान पर संदीप यादव को जनसंपर्क आयुक्त बनाया था। मनीष सिंह,शिवराज सिंह चौहान के करीबी अधिकारी माने जाते थे। तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भरोसे वाले अधिकारी थे। संदीप यादव कुछ समय पहले उज्जैन में संभागायुक्त रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से पटरी भी बैठती थी। इस कारण जनसंपर्क आयुक्त जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल गई। अब बारी इंटेलिजेंस चीफ की आई है। आदर्श कटियार के स्थान पर जयदीप प्रसाद को लाया गया है। वे पुलिस मुख्यालय में ही नारकोटिक्स जैसी लूप लाइन माने जाने वाली शाखा में अपर पुलिस महानिदेशक के तौर पर काम कर रहे थे।
कुछ माह पहले ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे हैं। जयदीप प्रसाद उज्जैन के पुलिस अधीक्षक रह चुके हैं। शायद इसी कारण उनका संपर्क मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से रहा होगा। इंटेलिजेंस चीफ को बदलने का फैसला शाजापुर में उपजे सांप्रदायिक तनाव के बाद लिया गया। यह तनाव अक्षत वितरण कार्यक्रम के दौरान उपजा। अक्षत वितरण कार्यक्रम राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए किया जा रहा है। पूरे देश में यह कार्यक्रम चल रहा है। इस मामले में इंटेलिजेंस को सतर्क रहने की जरूरत थी। लेकिन,उससे चूक हो गई। जिससे सांप्रदायिक तनाव की स्थिति निर्मित हुई।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पावर गैलरी पत्रिका के मुख्य संपादक है. संपर्क- 9425014193