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आखिर किसने गायब किया था अपने होर्डिंग से शिवराज सिंह चौहान का फोटो ?

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दिनेश गुप्ता
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस बात का जिक्र हमेशा होता रहेगा कि पद पर रहे तो आपके चरण कमल के समान और पद से हटे तो होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। वैसे यही सच्चाई है। राजनीति हो या कोई और क्षेत्र। व्यक्ति से ज्यादा पूजा पद की होती है। व्यक्ति पर भी पद ही हावी होता है। जब पद हावी होता तब व्यक्ति  मैं और मेरे की भाषा बोलने लगता है। शिवराज सिंह चौहान ने जब  होर्डिंग से फोटो हटने की बात कही तो  भाजपा में ऐसे बहुत से लोगों की दबी हुई प्रतिक्रिया सामने आई जिसमें कहा गया  कि पद रहते वक्त शिवराज सिंह चौहान भी कहां दाएं-बाएं देख रहे थे? बात करने तक का तो समय नहीं था। कोई मिला तो यह कहकर बचने की कोशिश कि आज व्यस्त हूं, बाद में लंबी बात करेंगे। मुख्यमंत्री निवास भी ऐसा हो गया कि बिना मर्जी कोई अंदर कदम नहीं रख सकता था। खैर,सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान को यह बात क्यों कहना पड़ी कि पद से हटे तो होर्डिंग से फोटो गधे के सिर से सींग जैसी गायब हो जाती है। शिवराज सिंह चौहान ने बात भले ही सामान्य तरीके से कही लेकिन,उनका निशाना कोई खास व्यक्ति ही था। वो खास व्यक्ति क्या मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं या फिर कोई और?

शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के पद से हटे हुए अभी एक महीना ही हुआ है। इस एक माह में ऐसा कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ जिसमें नेताओं के होर्डिंग पोस्टर लगे हो? मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में जरूर होर्डिंग-पोस्टर लगवाए थे। अधिकांश नेताओं के होर्डिंग में जो चेहरे थे उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,अमित शाह,जेपी नड्डा,वीडी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रमुख हैं। सिंधिया को चेहरे उनके समर्थकों के होर्डिंग में ही था। जो चरणों को कमल कहते थे संभव है कि ऐसे किसी नेता के होर्डिंग में अपना फोटो न देखकर शिवराज सिंह सिंह चौहान का दर्द सामने आ गया हो? वैसे इन दिनों प्रदेश भर में कई सरकारी होर्डिंग भी लगे हुए हैं। भोपाल शहर में भी प्रमुख सड़कों पर सरकारी होर्डिंग हैं। इन होर्डिंग पर योजनाएं और उसके हितग्राही शिवराज सिंह चौहान की सरकार के हैं। लेकिन,होर्डिंग में श्रेय मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को जाता दिख रहा है। डॉ. मोहन यादव के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी फोटो लगी हुई है। अपनी उपलब्धियां किसी और के खाते में दर्ज देखकर भी टीस उठ सकती है?
विधायक नरेंद्र कुशवाहा को हाईकोर्ट से मिली राहत
जिला अदालत में काफी समय से चल रहे अपहरण, मारपीट सहित अन्य धाराओं के मामले में भिंड से भाजपा विधायक नरेंद्र कुशवाहा और अन्य आरोपियों को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत एफआईआर को निरस्त को कर दिया।है। इसके साथ ही अभी तक निचली अदालत में हुई मामले की पूरी सुनवाई को भी निरस्त करते हुए विधायक सहित अन्य पर लगे आरोप को खत्म कर दिया है। एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रहे मुकदमे में भिंड के वर्तमान भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह पर आरोप था कि वह वर्ष 2015 में जिला पंचायत वार्ड-एक बाराकलाँ से बसपा प्रत्याशी बाबूराम जामौर को कलेक्ट्रेट कैंटीन से अपने वाहन में जबरदस्ती बैठाकर ले गए और उनको चुनाव नहीं लड़ने के लिए धमकाया, मारपीट की। बाद में हथियारों से लैस लोगों की गाड़ी में बैठा दिया। इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी। जिसके आधार पर मुकदमा चल रहा है।
आईएएस अफसर पर हाईकोर्ट की पेनल्टी
देश में ऐसे बहुत कानून और नियम हैं जिनमें कलेक्टरों को दखल अथवा कोई आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। ऐसा ही एक कानून तलाक का भी है। तलाक से भरण-पोषण जुड़ा हुआ है। तलाक होने पर महिला को कितना भरण-पोषण दिया जाए यह अदालत तय करती है। कलेक्टरों को तय करने का अधिकार नहीं है। भले ही तलाक लेने वाला व्यक्ति कलेक्टर के अधीन कार्यरत हो अथवा सरकारी कर्मचारी हो? सिंगरौली में अक्टूबर 2021 में तत्कालीन कलेक्टर राजीव रंजन मीणा ने जन सुनवाई में आए एक आवेदन पर शिक्षक के वेतन से आधा वेतन उसकी तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ मामला हाईकोर्ट पहुंचा। याचिका सिंगरौली निवासी शिक्षक कालेश्वर साहू की ओर से दायर की गई थी। इसमें कहा गया कि उसकी पत्नी ने भरण-पोषण के लिए धारा-125 के तहत कुटुम्ब न्यायालय में आवेदन किया था। कुटुम्ब न्यायालय में मामले की सुनवाई लंबित है।

सिंगरौली जिला कलेक्टर के समक्ष जनसुनवाई के दौरान उसकी पत्नी मुन्नी साहू उपस्थित हुई थीं। कलेक्टर ने याचिकाकर्ता के वेतन से 50 प्रतिशत की राशि काटकर पत्नी को भरण-पोषण के लिए प्रदान करने के आदेश अक्टूबर 2021 में जारी किए थे। कलेक्टर के निर्देशानुसार शिक्षा विभाग के जिला समन्वयक अधिकारी ने 50 प्रतिशत वेतन कटौती के आदेश जारी कर दिए।याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि भरण-पोषण की राशि निर्धारित करने का अधिकार संबंधित न्यायालय को है। ऐसा करने की न्यायिक शक्तियां जिला कलेक्टर के पास नहीं है। जिला कलेक्टर का आदेश पूरी तरह से मनमाना व अवैधानिक है। हाई कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद वेतन से कटौती की गई राशि आठ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ याचिकाकर्ता शिक्षक को प्रदान करने के आदेश जारी किए हैं। हाईकोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को मनमाना व गैरकानूनी मानते हुए याचिका-व्यय बतौर 25 हजार का जुर्माना लगा दिया। यह राशि तत्कालीन कलेक्टर से वसूलने के निर्देश दिए हैं।
सिंहस्थ की तैयारी में जुटी मोहन सरकार
सिंहस्थ वर्ष 2028 में है। इस लिहाज से तैयारियों के लिए सरकार के पास अभी वक्त है। सरकार का अनुमान है कि इस बार सिंहस्थ में तीस करोड़ से अधिक लोग पहुंचेंगे। 2016 के सिंहस्थ में तैयारियां आठ करोड़ लोगों के आने के अनुमान पर की गईं थीं। सरकार ने लगभग साढ़े चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे। अगले सिंहस्थ में श्रद्धालुओं की संख्या बढने के अनुमान का आधार महाकाल लोक में आने वाली भीड़ है। साल के पहले दिन ही छह लाख से ज्यादा लोग उज्जैन पहुंचे थे। इस बार मुख्यमंत्री ही उज्जैन से हैं। इस कारण सिंहस्थ के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने की रणनीति पर अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं। पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक की विकास योजनाएं तैयार की जा रही हैं। इनमें नए आवासीय एवं व्यावसायिक क्षेत्रों का विकास करने, शिप्रा रिवर फ्रंट डेवलप करने, 24 हजार मीटर लंबे घाटों का निर्माण, शहर में 116 सिटी बसों का संचालन करने, दताना हवाई पट्टी, सीवरेज प्रणाली सहित प्रमुख मंदिरों, पर्यटन स्थलों, सप्त सागरों, सड़कों का विकास कार्य करने जैसी कई योजनाएं शामिल हैं। उज्जैन-इंदौर फोरलेन को सिक्स लेन बनाया जाएगा। ऐसा होने पर 44 किलोमीटर का सफर 45 से 50 मिनट में पूरा हो सकेगा। अभी 60 से 70 मिनट लगते हैं। एमपी रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआरडीसी) ने इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर ली है। अगली कैबिनेट मीटिंग में इसे मंजूरी मिल सकती है। कैबिनेट से मंजूरी के बाद ही तय होगा कि प्रोजेक्ट का काम कब शुरू होगा और कब पूरा होगा। सिंहस्थ की तैयारियों की पहली बैठक 14 जनवरी को उज्जैन में आयोजित की गई है। बैठक की सूचना उज्जैन संभाग के प्रभारी अपर मुख्य सचिव राजेश राजोरा की ओर से जारी की गई है। वे गृह के साथ साथ धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के भी अपर मुख्य सचिव हैं।
शाजापुर तनाव के कारण बदले इंटेलिजेंस चीफ

यह एक सामान्य परंपरा का हिस्सा है कि मुख्यमंत्री के साथ ही जनसंपर्क आयुक्त और इंटेलिजेंस चीफ जैसे पदों पर  बैठे अधिकारियों के भी तबादले हो जाते हैं। जनसंपर्क आयुक्त के पद पर बदलाव पंद्रह दिन पहले ही हो गया था। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने मनीष सिंह के स्थान पर संदीप यादव को जनसंपर्क आयुक्त बनाया था। मनीष सिंह,शिवराज सिंह चौहान के करीबी अधिकारी माने जाते थे। तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भरोसे वाले अधिकारी थे। संदीप यादव कुछ समय पहले उज्जैन में संभागायुक्त रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से पटरी भी बैठती थी। इस कारण जनसंपर्क आयुक्त जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल गई। अब बारी इंटेलिजेंस चीफ की आई है। आदर्श कटियार के स्थान पर जयदीप प्रसाद को लाया गया है। वे पुलिस मुख्यालय में ही नारकोटिक्स जैसी लूप लाइन माने जाने वाली शाखा में अपर पुलिस महानिदेशक के तौर पर काम कर रहे थे।

कुछ माह पहले ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे हैं। जयदीप प्रसाद उज्जैन के पुलिस अधीक्षक रह चुके हैं। शायद इसी कारण उनका संपर्क मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से रहा होगा। इंटेलिजेंस चीफ को बदलने का फैसला शाजापुर में उपजे सांप्रदायिक तनाव के बाद लिया गया। यह तनाव अक्षत वितरण कार्यक्रम के दौरान उपजा। अक्षत वितरण कार्यक्रम राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए किया जा रहा है। पूरे देश में यह कार्यक्रम चल रहा है। इस मामले में इंटेलिजेंस को सतर्क रहने की जरूरत थी। लेकिन,उससे चूक हो गई। जिससे सांप्रदायिक तनाव की स्थिति निर्मित हुई।

डा. मोहन यादव का मुख्यमंत्री के तौर पहला भाषण : वक्त बदलने की कोशिश

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दिनेश गुप्ता
इसे समय का बदलाव ही कहेंगे। भारी जीत के बाद भी शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने पांचवी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं दिया। जब उम्मीद नहीं थी तब मार्च 2020 में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए। कोरोना इसकी एक मात्र वजह थी। इस बार मुख्यमंत्री नहीं बने तो इसकी वजह शिवराज सिंह चौहान का वक्त बदलना रहा होगा। वक्त डॉ. मोहन यादव का बदला है। वक्त बदला है तो वक्त पर बात भी होगी। वक्त बदला तो शिवराज सिंह चौहान यह बताने में नहीं चूक रहे कि उन्हें भोपाल से अमरकंटक पहुंचने में तीस घंटे का समय लगा। इसकी वजह सड़कों की स्थिति खराब होना नहीं है। इसकी वजह शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता है।

भोपाल से अमरकंटक के रास्ते में उनका जगह-जगह स्वागत हुआ। अमरकंटक जाना था इस कारण विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पहले भाषण को सुनने के लिए वे सदन में मौजूद नहीं थे। लेकिन,विपक्ष उनकी लाडली बहना योजना पर कानून बनाने की मांग जरूर कर रहा था। ये वक्त हैं। शिवराज सिंह चौहान को जब सदन में भाषण देना होता था तो हर विधायक मंत्री वहां मौजूद रहता था। मोहन यादव भी मौजूद रहते थे। ये वक्त है कि विधानसभा के दो पूर्व अध्यक्ष डॉ.सीताशरण शर्मा और गिरीश गौतम विधायक के तौर सदन में बैठे हुए हैं। मंत्री बनने की आस इन दोनों पूर्व विधानसभा अध्यक्षों को है। लेकिन,गिरीश गौतम विंध्य के ब्राह्मण हैं इस कारण कुछ संशय उनके मन में हो सकता है। वक्त साथ देगा तो मंत्री बन भी सकते हैं। बात समय की हो और उज्जैन से जुड़ा व्यक्ति इसकी बात न करें यह संभव हो नहीं सकती। राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में डॉ. मोहन यादव यह बताने से नहीं चूके कि समय और उज्जैन का रिश्ता कितना पुराना है। किस तरह से टाइम स्टैंडर्ड बनाने में भारत की उपेक्षा की गई।

मध्यप्रदेश की विधानसभा तीन सौ साल पीछे चली गई। फ्रांस की राजधानी के पेरिस का टाइम स्टैंडर्ड भारत लागू किया । अंग्रेजों ने किस तरह से टाइम स्टैंडर्ड बनाया इसका जिक्र भी मुख्यमंत्री ने किया। इसका मकसद यह बताना था कि उनकी सरकार ऐसी दिशा में कदम उठाने जा रही हैं जहां भारत के टाइम स्टैंडर्ड के केन्द्र में उज्जैन रहे। मुख्यमंत्री ने सरकार के कामकाज से ज्यादा चर्चा उज्जैन को लेकर की। विक्रमादित्य से लेकर महाकाल तक का जिक्र उन्होंने किया। श्री कृष्ण के बिना उज्जैन की चर्चा नहीं हो सकती। इस कारण कृष्ण का जिक्र भी हुआ और राम का के काज पर भी बोला। प्रदेश में श्री कृष्ण जहां-जहां आए उन स्थानों को तीर्थ के तौर पर विकसित करने की घोषणा भी की गई। ऐसे स्थानों में उज्जैन के अलावा जानापाव और धार का अमझेरा भी विकसित होगा। जानापाव श्रीकृष्ण को सुदर्शन मिला था। अमझेरा में रूकमी के साथ उनका युद्ध होगा। राम के बाद कृष्ण की सियासत वक्त की जरूरत है। भाजपा इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। डॉ. मोहन यादव यह बताने से भी नहीं चूके कि वे मजदूर के बेटे हैं। मजदूर का बेटा उसी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा है जैसे एक चाय वाला प्रधानमंत्री बना था।

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की तस्वीर

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिल्ली में सांसदों को भोज दिया। मध्यप्रदेश से राज्यसभा में कांग्रेस के तीन सांसद दिग्विजय सिंह,राजमणि पटेल और विवेक तन्खा की भी अनौपचारिक मुलाकात हुई। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा भी मौजूद थे। चुनाव की तल्खी तस्वीर में दिखाई नहीं दे रही थी। वीडी शर्मा और दिग्विजय सिंह ने खुलकर बात की। लेकिन,इस बातचीत में विवादास्पद मुद्दे शामिल नहीं रहे। मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे की सबसे महत्वपूर्ण तस्वीर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। इस मुलाकात में राज्य के दोनों उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र शुक्ला भी साथ थे। प्रधानमंत्री के साथ संयुक्त बैठक भी हुई। इस बैठक में डॉ. यादव,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक बातचीत करते दिखाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री उनकी बात को पूरी गंभीरता से सुन रहे हैं। बात जरूर मोदी जी की गारंटी की होगी। मोदी की किसी भी गारंटी को आर्थिक संकट के कारण नहीं रोका जा सकता। राज्य सरकार पर तीन लाख चालीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। यह तथ्य भी प्रधानमंत्री के ध्यान में लाया गया है।

मुख्य सचिव के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से चर्चा हुई?

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में क्या राज्य में पूर्णकालिक मुख्य सचिव को लेकर कोई बात हुई? प्रशासनिक क्षेत्र में इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा पूछे जाने वाला सवाल यही है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1989 बैच के अधिकारी अनुराग जैन क्या मध्यप्रदेश वापस आ रहे हैं। जैन को यदि मध्यप्रदेश में मुख्य सचिव बनाया जा रहा है तो इसका एक औपचारिक पत्र केन्द्र सरकार को भेजना होगा। प्रधानमंत्री से मुलाकात में मुख्यमंत्री के हाथ में जो फाइल थी,उसमें दो पत्र भी थे। पत्र दिया होगा तो केन्द्र सरकार इस पत्र के आधार पर ही प्रतिनियुक्ति अवधि के बीच में जैन की सेवाएं राज्य को वापस कर सकती है। अनुराग जैन सड़क परिवहन मंत्रालय में सचिव हैं। वे मई 2020 से भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। उनका रिटायरमेंट अगस्त 2025 में होना है। अनुराग जैन की सहमति भी होना जरूरी है। भारत सरकार के सचिव पद से रिटायर होने के बाद भी वहां कई संभावनाएं होती हैं। लेकिन,राज्य में गिने-चुने पद होते हैं,जिन पर रिटायरमेंट के बाद अधिकारी उपकृत किया जाता है। अनुराग जैन राज्य की वित्तीय स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ हैं। पिछले बीस साल में प्रशासन किस स्थिति में है,यह भी वे जानते हैं।

राजेश राजौरा को उज्जैन संभाग का प्रभार दिए जाने के मायने

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डॉ. मोहन यादव प्रशासनिक कामकाज की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने हर संभाग के लिए एक प्रभारी अपर मुख्य सचिव बना दिया है। इनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने प्रभार के संभाग में आने वाले जिलों से संबंधित विकास कार्यों की निगरानी करेंगे। राजधानी भोपाल में प्रशासनिक स्तर मामले सुलझाने की जिम्मेदारी भी इन अफसरों की होगी। विभागों के बीच समन्वय का काम भी इन्हें करना होगा। राज्य में कुल दस संभाग हैं। इनमें दस चुनिंदा अधिकारियों को लगाया गया है। सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले उज्जैन संभाग का प्रभार गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा को दिया गया है। उज्जैन,मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव का गृह संभाग है। राजेश राजौरा को प्रभारी बनाए जाने के पीछे वजह शायद यह रही होगी कि वे उज्जैन में पदस्थ रहे हैं। लेकिन,राजोरा मुख्य सचिव की दौड़ में भी शामिल हैं। लेकिन,वरिष्ठता क्रम में उनका नाम काफी नीचे हैै। उनके ऊपर,मोहम्मद सुलेमान विनोद कुमार,जेएन कंसोटिया का नाम हैं। जबकि संजय बंदोपाध्याय,अनुराग जैन और आशीष उपाध्याय भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। वीरा राणा के बाद सबसे वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद सुलेमान हैं। इन्हें भोपाल संभाग का प्रभारी बनाया गया है। 1990 बैच के मलय श्रीवास्तव को इंदौर संभाग की जिम्मेदारी दी गई है। इसमें शायद कैलाश विजयवर्गीय की पसंद का ध्यान रखा गया होगा?ग्वालियर संभाग का प्रभार केसी गुप्ता को दिया गया है। वे उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार जबलपुर संभाग के प्रभारी बनाए गए हैं। जेएन कंसोटिया को रीवा संभाग का प्रभारी बनाया गया है। अपर मुख्य सचिव नर्मदा धाटी विकास विभाग एसएन मिश्रा को सागर संभाग का प्रभारी बनाया गया है। अजीत केसी को नर्मदापुरम और मनु श्रीवास्तव को चंबल संभाग का प्रभारी बनाया गया है। सरकार इन संभागीय प्रभारियों के जरिए विकास में तेजी लाना चाहती हैं। इन्हें जिलों का दौरा भी करना होगा। व्यवस्था में खतरा मंत्रियों को है। प्रभारी मंत्री की व्यवस्था में संभाग के प्रभारी आला अधिकारी से समन्वय कैसे होगा,यह देखना दिलचस्प होगा?

विभागीय समीक्षा से सरकार की प्राथमिकताओं को समझने की कोशिश में जुटे डॉ.मोहन यादव

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दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। प्रशासनिक फेरबदल की हड़बड़ी उनमें दिखाई नहीं दे रही है। डॉ. मोहन यादव विभागीय समीक्षा के जरिए सरकार के कामकाज को समझने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पटवारियों को रजिस्ट्री होते ही जमीन का नामांतरण करने के लिए कहा गया है। जमीन से जुड़े नेता ही ऐसे निर्णय करता है। मुख्यमंत्री हर दिन दो अथवा तीन विभागों की समीक्षा कर रहे हैं। विभागों में कोई मंत्री नहीं है। सीधे अफसरों से उनका संवाद हो रहा है। इस संवाद में मुख्यमंत्री अपनी प्राथमिकता तो बता ही रही हैं,विभागों की प्राथमिकताओं का भी आकलन कर रहे हैं। नगरीय विकास और आवास विभाग की समीक्षा के बाद मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध संचालक मनीष सिंह का तबादला कर दिया गया। मनीष सिंह के तबादले के पीछे वजह मेट्रो रेल है या जनसंपर्क विभाग का कामकाज? मनीष सिंह,शिवराज सिंह चौहान की सरकार में सबसे ताकतवर अफसर माने जाते थे। आईएएस में पदोन्नति के बाद उन्हें सीधे संभागीय मुख्यालय वाले जिले उज्जैन की कलेक्टरी का मौका मिला था। 2020 में जब शिवराज सिंह चौहान वापस सरकार में आए तो मनीष सिंह सीधे इंदौर के कलेक्टर बना दिए गए। मूलत: राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने हैं। वरिष्ठता वर्ष 2009 में निर्धारित है।

विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्हें जनसंपर्क,मध्यप्रदेश माध्यम के अलावा मेट्रो रेल जैसे वजनदार प्रभार भी दिए गए। मनीष सिंह,तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भी करीबी माने जाते रहे हैं। सरकार का चेहरा बदला है तो जनसंपर्क विभाग में भी परिवर्तन स्वाभाविक है। यह परिवर्तन इतनी जल्दी होगा किसी को उम्मीद नहीं रही होगी। दिलचस्प यह है कि जनसंपर्क विभाग के पूर्व आयुक्त राघवेन्द्र सिंह, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव हैं। जनसंपर्क विभाग के आयुक्त के पद पर अभी पूर्णकालिक अधिकारी की पदस्थापना नहीं हुई है। मुख्यमंत्री के सचिव एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव विवेक पोरवाल को आयुक्त जनसंपर्क और प्रबंध संचालक मध्यप्रदेश माध्यम का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। मध्य प्रदेश मेट्रो रेल के प्रबंध संचालक का अतिरिक्त प्रभार नीरज मंडलोई प्रमुख सचिव नगरीय विकास एवं आवास विभाग को दिया गया है। नीरज मंडलोई उज्जैन में कलेक्टर रहे थे। लेकिन, इस पदस्थापना में उज्जैन फेक्टर दिखाई नहीं देता। विभागीय समन्वय की मजबूरी ज्यादा दिखाई देती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा जो फेरबदल किया जा रहा है उसमें एक दिलचस्प तथ्य यह भी सामने आया कि हटाए गए अधिकारी को बिना विभाग के रखा जा रहा है। मनीष रस्तोगी के बाद,मनीष सिंह। दोनों की पदस्थापना मंत्रालय में की गई। विभाग नहीं दिया गया। बता दें मनीष सिंह 2018 से पहले उज्जैन कलेक्टर रहे थे।

हुकुमचंद मिल के मजदूरों के भुगतान में मंडलोई की भूमिका

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव खाते में एक बड़ी उपलब्धि अपने अल्प कार्यकाल में ही जुड़ गई है। यह उपलब्धि है इंदौर के हुकुमचंद मिल के मजदूरों के बकाया वेतन और उसके ब्याज की राशि के भुगतान का।  लंबे समय से यह भुगतान अटका हुआ था। कोर्ट के आदेश के बाद भी भुगतान नहीं हो पा रहा था। आचार संहिता आड़े आ गई। हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई के खिलाफ अवमानना प्रकरण चलाने की चेतावनी दी। तब जाकर चुनाव आयोग ने भुगतान की मंजूरी दी। मुख्यमंत्री चयन में देरी के कारण भुगतान अटका रहा। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के समक्ष प्रकरण आया तो उन्होंने इसे तत्काल मंजूरी दे दी। इंदौर की सबसे बड़ी मिलों में से एक हुकुमचंद मिल को उसके प्रबंधन ने 1991 में बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया था। उस समय मिल में करीब 6,000 श्रमिक काम करते थे। इन श्रमिकों ने अपने बकाया वेतन, ग्रेच्युटी और अन्य लेनदारियों के लिए लंबा संघर्ष किया।2007 में उच्च न्यायालय ने मजदूरों को 229 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया था। यह राशि मिल की 42.5 एकड़ जमीन बेचकर दिया जाना था लेकिन प्रदेश सरकार ने मिल की जमीन को अपने अधीन बताकर इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी। हालांकि 2018 में उच्च न्यायालय ने इस जमीन पर प्रदेश सरकार के दावे को खारिज कर दिया था।
32 सालों से चल रहे संघर्ष में 2200 से ज्यादा श्रमिकों मौत हो चुकी है। जबकि आर्थिक तंगी के चलते 70 श्रमिक आत्महत्या कर चुके हैं। इन श्रमिकों के परिवारों की 700 महिलाओं (पत्नियों) की भी मौत हो चुकी है।

आदेश का इंतजार कर रहे हैं उच्च शिक्षा के अफसर

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डॉ. मोहन यादव अफसरों के फेरबदल में सुनार की तरह हथौड़ी चला रहे हैं। सबसे ज्यादा बेचैनी उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों में देखी जा रही है। मुख्यमंत्री बनने से पहले डॉ.मोहन यादव उच्च  शिक्षा विभाग के मंत्री थे। बताया जाता है कि उच्च शिक्षा विभाग में प्रमुख सचिव और आयुक्त केसी गुप्ता हैं। केसी गुप्ता मंत्री की सिफारिशों को अनदेखा करने के लिए विभाग में पहचाने जाते हैं। जब यादव मुख्यमंत्री बने हैं गुप्ता को लग रहा है कि उन्हें कहीं लूप लाइन में भेज दिया जाएगा। पूरी नौकरशाही गुप्ता को टकटकी लगाए देख रही है।

शिवराज सरकार की नौकरशाही के मनमाने फैसले

राज्य में शिवराज सिंह चौहान की सरकार को बदले ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। कम समय में नौकरशाही के मनमाने फैसले सामने आ रहे है। नौकरशाही के मनमाने फैसले अपनों को उपकृत करने और गैरों को तंग करने के हैं। पहले बात करते है आईएएस से जुड़े एक मामले की। मामला कमल नागर की पदोन्नति से जुड़ा हुआ है। कमल नागर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। ये आईएएस की पदोन्नति की फिट लिस्ट में थे। सामान्य प्रशासन विभाग को पदोन्नति के लिए इंटीग्रिटी सर्टिफिकेट संघ लोक सेवा आयोग को भेजना था। सामान्य प्रशासन विभाग की तत्कालीन प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी को यह सर्टिफिकेट जारी करना था। लेकिन,उन्होंने इसे रोक कर रखा मजबूरन नागर को कोर्ट की शरण लेना पड़ी। कोर्ट ने अवमानना प्रकरण में मुखर्जी को आदेश होने का आदेश दिया। इसके खिलाफ वे डबल बेंच में चली गई हैं।
दूसरा प्रकरण आईपीएस में पदोन्नति का है। राज्य पुलिस सेवा के दो अधिकारियों की वरिष्ठता में फेरबदल कर पदोन्नति देने का यह मामला आपराधिक षड्यंत्र वाला नजर आता है। मामला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सुरक्षा अधिकारी अजय पांडे और डीसीपी (गुप्तवार्ता) संजय अग्रवाल से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट में जो याचिका राजेन्द्र वर्मा की ओर से दाखिल की गई उसमें यह तथ्य सामने आया कि गृह विभाग ने दोनों अधिकारियों की वरिष्ठता में फेरबदल कर उनका नाम राजेन्द्र वर्मा के ऊपर कर दिया। राजेन्द्र वर्मा सेवा में इन दोनों अधिकारियों से वरिष्ठ थे। आईपीएस में पदोन्नति पहले वर्मा की होना थी। लेकिन अजय पांडे और संजय अग्रवाल की हो गई। हाईकोर्ट ने इन दोनों अधिकारियों पर जुर्माना लगा दिया है। गृह विभाग को मूल वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए कहा गया है। वरिष्ठता में परिवर्तन की स्थिति में इन दोनों अधिकारियों से आईपीएस छिन सकता है।

सनातन,भगवा और पिछड़ों की राजनीति पर आगे बढ़ते यादव

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दिनेश गुप्ता
मुख्यमंत्री मोहन यादव का मंत्रालय में पहला दिन हिन्दुत्व और सनातन के नाम रहा। मुख्यमंत्री पहले ही दिन अपने तय समय पर मंत्रालय नहीं पहुंच पाए। कारण गृह नगर उज्जैन से आने में हुई देरी का रहा। मंत्रिमंडल की पहली औपचारिक बैठक उनके द्वारा बुलाई गई थी। कुल तीन सदस्यों वाले उनके मंत्रिमंडल में जो निर्णय लिए जाने थे,उसकी तैयारी अफसरों ने पहले से ही कर रखी थी। यहां तक की आदेश भी तैयार कर लिए थे। शायद यह तैयारी शिवराज सिंह चौहान की पहली कैबिनेट की बैठक के लिए की गई हो? आ गए मोहन यादव। पहले ही दिन मुख्यमंत्री कोई राजनीतिक नियुक्ति करेंगे,इसकी उम्मीद राजनीतिक गलियारे में भी नहीं थी। रामकृष्ण कुसमरिया को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर मोहन यादव ने सभी को चौंका दिया। कुसमरिया की नियुक्ति और उसके राजनीतिक मायने ज्यादा जटिल नहीं है। हमेशा भगवा रंग के वस्त्र पहनने वाले  कुसमरिया को पिछड़ा वर्ग आयोग में नियुक्ति देकर मोहन यादव ने कांग्रेस के सबसे बड़े राजनीतिक अस्त्र जातिगत जनगणना के मुद्दे को कमजोर करने की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस जातिगत जनगणना के जरिए लोकसभा चुनाव पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है। यद्यपि इस मुद्दे का कोई असर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में दिखाई नहीं दिया। ओबीसी राजनीति के केंद्र में रहने वाले मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार भाजपा की बनी है। लोकसभा में भी इसी तरह के नतीजे मिलेंगे। फिर भी भाजपा कोई चांस छोड़ना नहीं चाहती। इस कारण प्राथमिकता में पिछड़ा वर्ग आयोग को रखा गया। आयोग सबसे पहले क्वाटी फाई डाटा तैयार करने का काम करेगी। उसके बाद आरक्षण बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ेगी।

राज्य में पिछड़ा वर्ग को अभी चौदह प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। कमलनाथ सरकार में इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया था। लेकिन,हाईकोर्ट में मामला लटका हुआ है। भाजपा, मोहन यादव के जरिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण का मामला निपटाना चाहती है। यही कारण है कि मंत्रालय में अपने पहले ही दिन पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति की गई। कमलनाथ ने इस आयोग में जेपी धनोपिया को अध्यक्ष बनाया था। वह भी तब जब उनकी सरकार दल बदल के कारण औंधे मुंह गिर चुकी थी। शिवराज सिंह चौहान की सरकार आई तो धनोपिया को पद से हटा दिया गया। हाईकोर्ट के स्टे के कारण धनोपिया पद पर तो थे लेकिन,आयोग  निष्क्रिय  था। जब नगरीय निकाय के आरक्षण में क्वाटी फाई डाटा की बात आई तो सरकार ने आनन-फानन में गौरीशंकर बिसेन को अध्यक्ष नियुक्त कर एक रिपोर्ट तैयार कराई थी। लेकिन,सुप्रीम कोर्ट में इसे मान्यता नहीं मिली थी। मोहन यादव अब कानूनी स्थिति को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहे हैं।
पहले प्रशासनिक निर्णय पर सनातन की छाया

पहली कैबिनेट की बैठक में धार्मिक स्थल और अन्य स्थलों पर लाउडस्पीकर और डीजे के अनियंत्रित प्रयोग को रोकने का निर्णय लिया गया। इस फैसले पर पूरी तरह से सनातन की छाया देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसी तरह का निर्णय अपने राज्य में लिया है। इसके दायरे में मस्जिद से होने वाली अजान में प्रयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर भी होंगे। थानों को धर्म गुरुओं से संपर्क कर नियंत्रित ध्वनि के साथ लाउडस्पीकर का प्रयोग कराना है। दूसरा बड़ा निर्णय खुले में मांस बेचने से जुड़ा हुआ है। दोनों ही मामलों में कानून पहले से ही है लेकिन, सरकार कड़ाई से पालन नहीं कराती। सुप्रीम कोर्ट तक के दिशा निर्देश इनके बारे में है। मोहन यादव ने पहली कैबिनेट में निर्णय लिया तो कुछ ही मिनटों में आदेश जारी होकर मीडिया तक पहुंच गया। मुख्यमंत्री के आदेश पालन में ऐसी रफ्तार स्वाभाविक नहीं है। यह नौकरशाही का पैंतरा हैं। इसका असर यादव पर कितना पड़ा,यह आगे दिखाई देगा। महत्वपूर्ण, आदेश जारी होना नहीं है। उसका सख्ती से पालन सरकार की प्राथमिकता को प्रदर्शित करेगा। वैसे जनता इस निर्णय से ताली बजा रही है। गृह विभाग ने आदेश जारी किया तो सबसे पहले उज्जैन का जिला प्रशासन हरकत में आया। मांस की दुकानों के साथ  मस्जिद के लाउडस्पीकर को लेकर एसपी से लेकर सिपाही तक और कलेक्टर से लेकर पटवारी तक मैदान में दिखाई दे रहा था।
आदिवासी वोटरों पर भी है नजर
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पहले दिन एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय तेंदूपत्ता संग्रहण की दरों में वृद्धि का लिया है। संग्रहण की दर चार हजार रूपए प्रति मानक बोरा निर्धारित की गई है। वर्तमान में संग्रहण की दर तीन हजार रूपए प्रति मानक बोरा है। वनोपज संघ ने पिछले सीजन में 18.03 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण किया गया था। प्रदेश में एक हजार से अधिक प्राथमिक सहकरी समितियां हैं। ये समिति वनोपज संग्रहण से जुड़ी हुई हैं। संग्रहण करने वाले आदिवासी समुदाय के लोग हैं। मध्यप्रदेश में तेंदू पत्ते की सियासत काफी पुरानी है। अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा के बीच कई बार तनातनी तेंदूपत्ता संग्रहण की दर को लेकर ही होती थी। भाजपा के भी कई नेता तेंदूपत्ता खरीदी से जुड़े हुए हैं। मोहन यादव संग्रहण की दर बढ़ाकर आदिवासी वोटों को साधन की कोशिश कर रहे हैं। राज्य में 47 विधानसभा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। लोकसभा की कुल छह सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर जीत दर्ज कराई थी। विधानसभा के इस चुनाव में भाजपा ने 47 में 27 विधानसभा की सीटें जीती हैं। लोकसभा चुनाव के लिहाज से पार्टी को अपनी पकड़ को मजबूत रखना है।
पोस्टर-बैनर से गायब हो रहे शिवराज

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया साइड एक्स पर अपना बायो चेंज किया है। पूर्व मुख्यमंत्री के ऊपर उन्होंने भाई और मामा भी लिखा है। जाहिर है कि शिवराज सिंह चौहान अपनी इसी पहचान के साथ आगे की राजनीति करना चाहते हैं। लेकिन,उनके समर्थकों की आगे की राजनीति में तस्वीरें बदलने लगी हैं। उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला के स्वागत और बधाई के जो पोस्टर राजधानी भोपाल में लगे उसमें शिवराज सिंह चौहान को छोड़कर सभी प्रमुख नेता नजर आ रहे थे। हुजुर के विधायक रामेश्वर शर्मा के पोस्टर से भी शिवराज सिंह चौहान का चेहरा नहीं दिख रहा है।
शुक्ला और सुलेमान की मुलाकात के मायने

उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला को बधाई देने वालों में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा है वह आईएएस अधिकारी और अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान हैं। सुलेमान वरिष्ठता के कारण मुख्य सचिव पद के दावेदार भी हैं। शुक्ला के साथ वे उद्योग और ऊर्जा जैसे विभागों में रहे हैं। रिश्ते बेहद व्यक्तिगत हैं। बदली हुई राजनीतिक परिथतियों में सुलेमान को लग रहा है कि राजेंद्र शुक्ला मददगार साबित हो सकते हैं। यही अर्थ बधाई के बहाने मुलाकात का निकाला जा रहा है। मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा बुलाई गई पहली कैबिनेट बैठक में सुलेमान दूसरे उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के बगल में बैठे नजर आए थे। सुलेमान के बाद जेएन कंसोटिया और फिर मलय श्रीवास्तव थे।  बैठक व्यवस्था वरिष्ठता के आधार पर की गई थी। इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री के बायें राजेन्द्र शुक्ला बैठे थे। उनके बगल में सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार थे। विनोद कुमार भी  मुख्य सचिव पद की दौड़ में हैं।

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मुख्य सचिव पद पर वीरा राणा की जगह कौन लेगा?

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मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रभारी मुख्य सचिव वीरा राणा के आगे के सफर को लेकर अधिकारियों में उत्सुकता बनी हुई है। वीरा राणा का रिटायरमेंट मार्च 2024 में होना है। विधानसभा चुनाव के बीच उन्हें एक दिसंबर को मुख्य सचिव का प्रभार दिया गया था। वे 1988 बैच की अधिकारी हैं। वरिष्ठता क्रम में वे तीसरे नंबर हैं। उनसे ऊपर जो अधिकारी अजय तिर्की और संजय बंदोपाध्याय भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। तिर्की का रिटायरमेंट इसी माह होना है। जबकि बंदोपाध्याय अगस्त 2024 में रिटायर होंगे। जाहिर है कि इन दोनों अफसरों की वापसी अब राज्य में रिटायरमेंट से पहले नहीं होना है।

वीरा राणा के बाद वरिष्ठता क्रम में नाम अनुराग जैन का है। वे भारत सरकार में भूतल परिवहन मंत्रालय में सचिव हैं। 1989 बैच के अधिकारी हैं। इनका रिटायरमेंट अगस्त 2025 में है। संभव है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव,मुख्य सचिव के तौर पर अनुराग जैन के नाम को प्राथमिकता में लें। इसके बाद मोहम्मद सुलेमान की बारी आती है। उनका रिटायरमेंट जुलाई 2025 में है। अर्थात अनुराग जैन के एक माह पहले। सुलेमान के बाद आशीष उपाध्याय और राजीव रंजन का नाम आता है। राजीव रंजन इसी माह रिटायर हो रहे हैं। जबकि उपाध्याय सितंबर 2024 में रिटायर होंगे। उपाध्याय की वापसी को लेकर कोई संभावना बनती नहीं है। इसके बाद बारी आती है सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार की। इनका रिटायरमेंट मई 2025 में है। सरकार सुलेमान को यदि नहीं बनाती है तो फिर विनोद कुमार भी एक मजबूत दावेदार हैं। इसके बाद ही 1990 बैच की बारी आती है। इसमें पहले नंबर जेएन कंसोटिया और राजेश राजौरा है। राजौरा के पास अगस्त 2027 तक का समय है। इस लिहाज से वे मजबूत दावेदार हैं। लेकिन, अतीत के दाग भविष्य पर असर डाल सकते हैं। कंसोटिया की दावेदारी कमजोर होने की स्थिति में एसएन मिश्रा मजबूत दावेदार बनकर उभर सकते हैं। उनकी कार्यशैली भी सभी को खुश करने वाली है।

मुख्यमंत्री सचिवालय का स्वरूप कैसा होगा?

शिवराज सिंह चौहान का मुख्यमंत्री के तौर पर चौथा कार्यकाल प्रशासनिक लिहाज बेहद शुष्क रहा। मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को दरबार लगाने का शौक नहीं था। उनके मित्रों की संख्या भी बेहद कम थी। कुछ दर्जन भर अफसरों को छोड़ दिया जाए तो उनके करीबी होने का कोई दावा नहीं कर सकता था। यही स्थिति मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी के बारे में कही जा सकती है। संवाद और विचार-मंथन की कमी पूरी सरकार में महसूस की जाती रही। शिवराज सिंह चौहान से मिलना भी कोई आसान काम नहीं था। उनकी व्यस्तता पहली बार के मुख्यमंत्री की तरह दिखाई देती थी। लेकिन,निजाम बदला है तो सरकार को चलाने वाले चेहरे भी बदलेंगे। मुख्यमंत्री अपने प्रमुख सचिव के तौर पर उज्जैन अथवा उच्च शिक्षा विभाग के बैकग्राउंड वाले किसी अफसर को अपनी टीम में शामिल कर सकते हैं। मामूली प्रशासनिक फेरबदल भी किया जा सकता है। छिंदवाड़ा और श्योपुर के कलेक्टर पहली सूची में शामिल हो सकते हैं।

मंत्रिमंडल पहली प्राथमिकता

मोहन यादव के साथ दो उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र शुक्ला ने भी शपथ ली। देवड़ा और शुक्ला दोनों ही उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। देवड़ा अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। शुक्ला के जरिए विंध्य की ब्राह्मण राजनीति के समीकरण साधने की कोशिश की गई है। मोहन यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले अन्य चेहरों की है। कैलाश विजयवर्गीय,मंत्री बनाए जाएंगे इस बात पर शंका ळै। विजयवर्गीय यदि मंत्री बने तो रमेश मेंदोला जैसे समर्थक एक बार फिर निराश होंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहेंगे कि उनके समर्थक तुलसी सिलावट को मौका मिले। उषा ठाकुर और महेंद्र हार्डिया के अलावा मालिनी गौड़ की उपेक्षा होगी। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व पर ही नाम तय करने की जिम्मेदारी होगी। इसी तरह सागर की चुनौती भी छोटी नहीं है। गोपाल भार्गव,भूपेन्द्र सिंह और गोविंद राजपूत में कोई दो चेहरे ही मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं। ग्वालियर में भूपेन्द्र सिंह और नारायण कुशवाहा के नाम हैं। यहां भी सिंधिया फेक्टर है। धार में विक्रम वर्मा की कोशिश होगी कि नीना वर्मा को जगह मिल जाए। छतरपुर और पन्ना से किसे मंत्री बनाना है यह जिम्मेदारी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की है। जबलपुर में राकेश सिंह बड़े दावेदार है। अजय विश्नोई लगातार उपेक्षित रहे हैं। उन्हें भी साधना है। अशोक रोहाणी को जगह उसी स्थिति में मिल सकती है जब भगवान दास सबनानी को जगह नहीं दी जाती। भोपाल में भी जबरदस्त मुकाबला है। विश्वास सारंग के अलावा रामेश्वर शर्मा और कृष्णा गौर भी दावेदार हैं। चयन आसान होता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ही पूरा मंत्रिमंडल शपथ ले लेता।

पदोन्नति और फेरबदल साथ-साथ

मुख्यमंत्री मोहन यादव पूरे मंत्रिमंडल का गठन करने के बाद ही प्रशासनिक फेरबदल पर ध्यान देंगे। जनवरी में आईएएस अधिकारियों की विभिन्न पदों पर पदोन्नति की जाना है। अत:पदोन्नति और फेरबदल एक साथ होगा,ऐसी संभावना है। 1992 बैच की स्मिता घाटे को अपर मुख्य सचिव बनाया जाना है। भारत सरकार से सहमति का इंतजार सामान्य प्रशासन विभाग को है। इसके बाद ही अन्य नामों पर विचार होगा। कल्पना श्रीवास्तव को प्रमुख सचिव के पद से ही रिटायर होना होगा। कारण पद रिक्त न होने का बताया जाता है। जनवरी में 2000 बैच के अधिकारियों को प्रमुख सचिव बनाया जाएंगे। इस बैच में केवल दो अधिकारी हैं। संदीप यादव और सोनाली पोंछे वायंडकर। 2006 बैच के अधिक सचिव के वेतनमान में पदोन्नत होंगे। 2011 बैच अपर सचिव बनेगा।

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