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सनातन,भगवा और पिछड़ों की राजनीति पर आगे बढ़ते यादव

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दिनेश गुप्ता
मुख्यमंत्री मोहन यादव का मंत्रालय में पहला दिन हिन्दुत्व और सनातन के नाम रहा। मुख्यमंत्री पहले ही दिन अपने तय समय पर मंत्रालय नहीं पहुंच पाए। कारण गृह नगर उज्जैन से आने में हुई देरी का रहा। मंत्रिमंडल की पहली औपचारिक बैठक उनके द्वारा बुलाई गई थी। कुल तीन सदस्यों वाले उनके मंत्रिमंडल में जो निर्णय लिए जाने थे,उसकी तैयारी अफसरों ने पहले से ही कर रखी थी। यहां तक की आदेश भी तैयार कर लिए थे। शायद यह तैयारी शिवराज सिंह चौहान की पहली कैबिनेट की बैठक के लिए की गई हो? आ गए मोहन यादव। पहले ही दिन मुख्यमंत्री कोई राजनीतिक नियुक्ति करेंगे,इसकी उम्मीद राजनीतिक गलियारे में भी नहीं थी। रामकृष्ण कुसमरिया को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर मोहन यादव ने सभी को चौंका दिया। कुसमरिया की नियुक्ति और उसके राजनीतिक मायने ज्यादा जटिल नहीं है। हमेशा भगवा रंग के वस्त्र पहनने वाले  कुसमरिया को पिछड़ा वर्ग आयोग में नियुक्ति देकर मोहन यादव ने कांग्रेस के सबसे बड़े राजनीतिक अस्त्र जातिगत जनगणना के मुद्दे को कमजोर करने की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस जातिगत जनगणना के जरिए लोकसभा चुनाव पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है। यद्यपि इस मुद्दे का कोई असर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में दिखाई नहीं दिया। ओबीसी राजनीति के केंद्र में रहने वाले मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार भाजपा की बनी है। लोकसभा में भी इसी तरह के नतीजे मिलेंगे। फिर भी भाजपा कोई चांस छोड़ना नहीं चाहती। इस कारण प्राथमिकता में पिछड़ा वर्ग आयोग को रखा गया। आयोग सबसे पहले क्वाटी फाई डाटा तैयार करने का काम करेगी। उसके बाद आरक्षण बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ेगी।

राज्य में पिछड़ा वर्ग को अभी चौदह प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। कमलनाथ सरकार में इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया था। लेकिन,हाईकोर्ट में मामला लटका हुआ है। भाजपा, मोहन यादव के जरिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण का मामला निपटाना चाहती है। यही कारण है कि मंत्रालय में अपने पहले ही दिन पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति की गई। कमलनाथ ने इस आयोग में जेपी धनोपिया को अध्यक्ष बनाया था। वह भी तब जब उनकी सरकार दल बदल के कारण औंधे मुंह गिर चुकी थी। शिवराज सिंह चौहान की सरकार आई तो धनोपिया को पद से हटा दिया गया। हाईकोर्ट के स्टे के कारण धनोपिया पद पर तो थे लेकिन,आयोग  निष्क्रिय  था। जब नगरीय निकाय के आरक्षण में क्वाटी फाई डाटा की बात आई तो सरकार ने आनन-फानन में गौरीशंकर बिसेन को अध्यक्ष नियुक्त कर एक रिपोर्ट तैयार कराई थी। लेकिन,सुप्रीम कोर्ट में इसे मान्यता नहीं मिली थी। मोहन यादव अब कानूनी स्थिति को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहे हैं।
पहले प्रशासनिक निर्णय पर सनातन की छाया

पहली कैबिनेट की बैठक में धार्मिक स्थल और अन्य स्थलों पर लाउडस्पीकर और डीजे के अनियंत्रित प्रयोग को रोकने का निर्णय लिया गया। इस फैसले पर पूरी तरह से सनातन की छाया देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसी तरह का निर्णय अपने राज्य में लिया है। इसके दायरे में मस्जिद से होने वाली अजान में प्रयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर भी होंगे। थानों को धर्म गुरुओं से संपर्क कर नियंत्रित ध्वनि के साथ लाउडस्पीकर का प्रयोग कराना है। दूसरा बड़ा निर्णय खुले में मांस बेचने से जुड़ा हुआ है। दोनों ही मामलों में कानून पहले से ही है लेकिन, सरकार कड़ाई से पालन नहीं कराती। सुप्रीम कोर्ट तक के दिशा निर्देश इनके बारे में है। मोहन यादव ने पहली कैबिनेट में निर्णय लिया तो कुछ ही मिनटों में आदेश जारी होकर मीडिया तक पहुंच गया। मुख्यमंत्री के आदेश पालन में ऐसी रफ्तार स्वाभाविक नहीं है। यह नौकरशाही का पैंतरा हैं। इसका असर यादव पर कितना पड़ा,यह आगे दिखाई देगा। महत्वपूर्ण, आदेश जारी होना नहीं है। उसका सख्ती से पालन सरकार की प्राथमिकता को प्रदर्शित करेगा। वैसे जनता इस निर्णय से ताली बजा रही है। गृह विभाग ने आदेश जारी किया तो सबसे पहले उज्जैन का जिला प्रशासन हरकत में आया। मांस की दुकानों के साथ  मस्जिद के लाउडस्पीकर को लेकर एसपी से लेकर सिपाही तक और कलेक्टर से लेकर पटवारी तक मैदान में दिखाई दे रहा था।
आदिवासी वोटरों पर भी है नजर
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पहले दिन एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय तेंदूपत्ता संग्रहण की दरों में वृद्धि का लिया है। संग्रहण की दर चार हजार रूपए प्रति मानक बोरा निर्धारित की गई है। वर्तमान में संग्रहण की दर तीन हजार रूपए प्रति मानक बोरा है। वनोपज संघ ने पिछले सीजन में 18.03 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण किया गया था। प्रदेश में एक हजार से अधिक प्राथमिक सहकरी समितियां हैं। ये समिति वनोपज संग्रहण से जुड़ी हुई हैं। संग्रहण करने वाले आदिवासी समुदाय के लोग हैं। मध्यप्रदेश में तेंदू पत्ते की सियासत काफी पुरानी है। अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा के बीच कई बार तनातनी तेंदूपत्ता संग्रहण की दर को लेकर ही होती थी। भाजपा के भी कई नेता तेंदूपत्ता खरीदी से जुड़े हुए हैं। मोहन यादव संग्रहण की दर बढ़ाकर आदिवासी वोटों को साधन की कोशिश कर रहे हैं। राज्य में 47 विधानसभा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। लोकसभा की कुल छह सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर जीत दर्ज कराई थी। विधानसभा के इस चुनाव में भाजपा ने 47 में 27 विधानसभा की सीटें जीती हैं। लोकसभा चुनाव के लिहाज से पार्टी को अपनी पकड़ को मजबूत रखना है।
पोस्टर-बैनर से गायब हो रहे शिवराज

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया साइड एक्स पर अपना बायो चेंज किया है। पूर्व मुख्यमंत्री के ऊपर उन्होंने भाई और मामा भी लिखा है। जाहिर है कि शिवराज सिंह चौहान अपनी इसी पहचान के साथ आगे की राजनीति करना चाहते हैं। लेकिन,उनके समर्थकों की आगे की राजनीति में तस्वीरें बदलने लगी हैं। उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला के स्वागत और बधाई के जो पोस्टर राजधानी भोपाल में लगे उसमें शिवराज सिंह चौहान को छोड़कर सभी प्रमुख नेता नजर आ रहे थे। हुजुर के विधायक रामेश्वर शर्मा के पोस्टर से भी शिवराज सिंह चौहान का चेहरा नहीं दिख रहा है।
शुक्ला और सुलेमान की मुलाकात के मायने

उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला को बधाई देने वालों में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा है वह आईएएस अधिकारी और अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान हैं। सुलेमान वरिष्ठता के कारण मुख्य सचिव पद के दावेदार भी हैं। शुक्ला के साथ वे उद्योग और ऊर्जा जैसे विभागों में रहे हैं। रिश्ते बेहद व्यक्तिगत हैं। बदली हुई राजनीतिक परिथतियों में सुलेमान को लग रहा है कि राजेंद्र शुक्ला मददगार साबित हो सकते हैं। यही अर्थ बधाई के बहाने मुलाकात का निकाला जा रहा है। मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा बुलाई गई पहली कैबिनेट बैठक में सुलेमान दूसरे उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के बगल में बैठे नजर आए थे। सुलेमान के बाद जेएन कंसोटिया और फिर मलय श्रीवास्तव थे।  बैठक व्यवस्था वरिष्ठता के आधार पर की गई थी। इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री के बायें राजेन्द्र शुक्ला बैठे थे। उनके बगल में सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार थे। विनोद कुमार भी  मुख्य सचिव पद की दौड़ में हैं।

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