पंद्रह हजार टन सोना तिजोरियों में बंद है
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी लोगों ने अपना सोना तिजोरियों से बाहर नहीं निकाला। सोने में निवेश के बारे में सरकार द्वारा बनाई गईं योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही सीमित रहीं हैं। लोग योजना के बारे में जानते ही नहीं है। योजना के फायदे भी नहीं पता।
आईएफएमआर का सर्वेक्षण
इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंसियल मैनेजमेंट एण्ड रिसर्च (आईएफएमआर) के शोधकर्ताओं योजना का अध्ययन किया है। इसके लिए आर्थिक सहयोग भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के ह्यभारत स्वर्ण नीति केन्द्र ने उपलब्ध कराया। देश के चार जिलों में यह सर्वे हुए। सर्वे महाराष्ट्र में कोल्हापुर, तमिलनाडु में कोयंबटूर, पश्चिम बंगाल में हुगली और उत्तर प्रदेश में सहारनपुर में 1,000 लोगों के बीच किया गया।
सर्वे टीम के प्रमुख प्रोफेसर अरविंद सहाय के अनुसार अध्ययन में जो बात सामने आई वह चौंकाने वाली है। सर्वे में शामिल किए गए एक हजार लोगों में से सिर्फ पांच व्यक्ति को ही केन्द्र सरकार र्स्वण निवेश योजना के बारे में पता था।
मोदी सरकार की सोने को लेकर हैं तीन योजनाएं
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने स्वर्ण निवेश से जुड़ी तीन योजनाएं तैयार की हैं। ये स्वर्ण मुद्रीकरण योजना, सावरेन गोल्ड बॉंड योजना और स्वर्ण सिक्का योजना हैं।
आईएफएमआर शोधकर्ता मिशा शर्मा के अनुसार सर्वे में पता चला कि लोगों के बीच इन तीन स्वर्ण योजनाओं के बारे में या तो बहुत कम जानकारी है या फिर उनमें कोई जागरूकता नहीं है। ये योजनायें दो साल पहले केन्द्र सरकार ने शुरू की हैं। इन योजनाओं को पेश करने के पीछे सरकार का मकसद सोने की भौतिक मांग को कम करना है ताकि सोने के आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके और घरों में रखे सोने को इस्तेमाल हो सके। देश में हर साल कई टन सोना आयात किया जाता है जबकि दूसरी तरफ करीब 15,000 टन सोना आभूषण और विभिन्न रूपों में घरों में पडा हुआ है।