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कांग्रेस के निराश कार्यकर्ता से चुनाव हारने और जीतने की रणनीति

Strategy to win and lose elections from disappointed Congress workers

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के केंद्र में कांग्रेस के कार्यकर्ता का निराशा का भाव महत्वपूर्ण हो गया है। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा की सभी 29 सीटें जीतने में आशा की किरण भी कांग्रेस के कार्यकर्ता की निराशा ही है। भारतीय जनता पार्टी के सबसे ताकतवर नेता और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने एक दिन में मध्यप्रदेश के तीन अलग-अलग स्थानों पर बैठकें लीं। इन बैठकों में एक स्वर समान रूप से सुनाई दिया और वह है कांग्रेस के निराश कार्यकर्ता के गले में भाजपा का भगवा गमछा डालना। अमित शाह ने रविवार को ग्वालियर, खजुराहो और भोपाल में अलग-अलग बैठक ली थीं। ग्वालियर में कार्यकर्ताओं से बातचीत में जो चार मंत्र दिए हैं उसमें कमोबेश वही रणनीति सामने आई जो विधानसभा चुनाव से पहले देखने को मिली थी।

भाजपा की चुनावी राजनीति हमेशा से बूथ आधारित रही है। किसी दौर में एक बूथ,दस यूथ का नारा दिया गया था। यह वो दौर था जब भाजपा के पास कार्यकर्ता नहीं थे। पार्टी अपना विस्तार करने के लिए हर बूथ पर दस युवा जोड़ने का लक्ष्य लेकर चली थी। आज वह विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। उसके कार्यकर्ता की संख्या करोड़ों में है लेकिन, चुनावी रणनीति बूथ को मजबूत रखने की है। बस तरीका अलग है। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ रही है। कांग्रेस मुक्त भारत की लड़ाई को वह कांग्रेस मुक्त बूथ पर ले आई है। उसी विचारधारा और समर्पित काडर कांग्रेसियों के चेहरे में जीत देख रहे हैं।


शाह के वो चार मंत्र जिससे बूथ होगा कांग्रेस मुक्त?


अमित शाह ने लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए कार्यकर्ताओं को जो मंत्र दिया है,उसमें कांग्रेस कार्यकर्ता को भाजपा में लाना सबसे अहम है। भाजपा,कांग्रेस के कार्यकर्ता को अपने दल में शामिल कराने के लिए उतावली क्यों है? क्या इससे उसका मूल कार्यकर्ता निराश नहीं होगा? ये वो अहम सवाल थे, जिनका जवाब अमित शाह ने दिया। अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ता को यह भरोसा दिलाया है कि दल बदल कर आने वाले नेताओं से उसका अधिकार खतरे में नहीं पड़ेगा? फिर यह सवाल उठता है कि कांग्रेस का जो कार्यकर्ता भाजपा में आएगा तो वह भी पद प्रतिष्ठा के लिए ही आएगा। जैसा कि अन्य मामलों में देखा गया। होशंगाबाद से सांसद रहे राव उदय प्रताप सिंह भाजपा में शामिल हुए तो पार्टी ने उन्हें टिकट भी दी। भाजपा का मूल कार्यकर्ता राव उदय प्रताप सिंह के सामने कब टिका?

हक मूल कार्यकर्ता का मारा गया। ऐसे और भी उदाहरण हैं। भाजपा कार्यकर्ता के बजाए दलबदल कर आए नेता टिकट पा रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं को अपना भविष्य सुरक्षित नहीं लगेगा तो वे भाजपा में आएंगे भी नहीं। दलबदल का यह मॉडल, गुजरात मॉडल का ही हिस्सा है। इस मॉडल की सफलता में बूथ भी महत्वपूर्ण है। बूथ पर विरोधी दल के परंपरागत वोट को तोड़कर पार्टी में लाना फिर उसका शुद्धिकरण। शुद्धिकरण भाजपा की विचारधारा को रटाकर किया जाता है। इसके बाद संस्कारीकरण की परंपरा शुरू होती है। जब बूथ पर पार्टी का विस्तार, शुद्धिकरण हो जाए तो वहां कार्यकर्ता को संस्कारीकरण करना शुरू हो जाता है। । मतलब यहां लोगों को बताना है कि भाजपा में कार्यकर्ता ही सबसे बड़ा होता है। यहां विकास, सिद्धांत, पारदर्शिता के जो संस्कार हैं, उससे बूथ को संस्कारित करना है, जिससे हर बूथ पर भाजपा की पकड़ मजबूत हो सके।


गृहमंत्री अमित शाह ने क्लस्टर बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा कि जब पहले तीन मंत्र पूरे हो जाएं तो चौथा मंत्र है- बूथ को परिपूर्ण कर उसे अजेय बनाना। मतलब जब बूथ आपका हो जाएगा तो उसे कांग्रेस मुक्त बनाकर उसे अजेय बना देना, जिससे वहां भाजपा की जीत के अलावा कुछ और न सुनाई दे न दिखाई दे।


कांग्रेस निराश कार्यकर्ता में कैसे भरेगी ऊर्जा


भारतीय जनता पार्टी की दल बदल की रणनीति से कांग्रेस में चिंता स्वाभाविक है। कांग्रेस अपने निराश कार्यकर्ता में ऊर्जा भरने के लिए क्या कर रही है? क्या ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप से पार्टी का कार्यकर्ता उत्साहित हो जाएगा? इस बारे में पार्टी के अधिकांश बड़े नेता इस पर सहमत नहीं होंगे। पार्टी कार्यकर्ता को जोड़कर कैसे रखा जाए,इसकी कोई रणनीति सामने दिखाई नहीं दे रही। राज्य के प्रभारी महासचिव भंवर जितेन्द्र सिंह तो कह चुके हैं जिसे जाना है,उसके लिए दरवाजे खुले हुए हैं। इस तरह के बयान पार्टी के छोटे कार्यकर्ता में असुरक्षा का भाव भी भर रहे हैं। उसके सामने जब कमलनाथ जैसे नेताओं के नाम दल छोड़ने की संभावना से जुड़कर सामने आते हैं तो उसे बचाव के लिए कहना पड़ता है कि अच्छा है फूल छाप कांगे्रसी चले जाएं? ऐसी स्थिति में कमलनाथ की जिम्मेदारी बनती है कि वे ड्राइंग रूम से मैदान में आएं और पार्टी का वॉर रूम संभालें। रविवार को गृह मंत्री अमित शाह जब अपने कार्यकर्ता को दल बदल का मंत्र सिखा रहे थे,ठीक उसी वक्त कमलनाथ एक वर्चुअल मीटिंग में अध्यक्ष जीतू पटवारी को सलाह दे रहे थे कि उम्मीदवार जल्द घोषित किए जाएं।


कांग्रेस में मुश्किल है पहले उम्मीदवारों की घोषणा


विधानसभा चुनाव के समय भी कमलनाथ लगातार इस बात को कह रहे थे कि वे उम्मीदवार की घोषणा तीन-चार माह पहले कर देंगे। इससे उन्हें प्रचार करने के लिए समय मिल जाएगा। लेकिन, कांग्रेस ने अपनी रीति-नीति के अनुसार ही उम्मीदवारों की घोषणा की। भारतीय जनता पार्टी ने पहले उम्मीदवारों की घोषणा कर सभी को चौंका दिया था। लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी अपने कुछ उम्मीदवार चुनाव की घोषणा से पहले ही करने की तैयारी में है। कांग्रेस में टिकट की घोषणा राहुल गांधी की न्याय यात्रा के पूरे होने के बाद ही संभव दिखाई देती है। न्याय यात्रा का समापन सात मार्च को होगा। इससे पहले 2 मार्च को यात्रा मध्यप्रदेश में प्रवेश करेगी। इसके बाद आगे निकल जाएगी। कांग्रेस ने उम्मीदवारों के नाम का पैनल जरूर तैयार कर लिया है। कमलनाथ चाहते हैं कि जिन्हें टिकट देना है उन्हें पहले बता दिया जाए। इसमें खतरा यह बना रहेगा कि भाजपा अंतिम समय पर उनके किसी उम्मीदवार का दलबदल करा दे। जैसा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के समय हुआ था। डॉ. भागीरथ प्रसाद कांग्रेस से टिकट लेकर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने उन्हें भिंड से अपना उम्मीदवार बनाया था। भागीरथ प्रसाद के दल बदल के कारण कांग्रेस को अंतिम समय में अपना नया उम्मीदवार देना पड़ा था।


कांग्रेस की एनओसी रणनीति कितनी कारगर


भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले में कांग्रेस अपना बूथ बचाने के लिए क्या कर रही है? यह भी महत्वपूर्ण सवाल है जो कांग्रेस के मैदानी कार्यकर्ता के जहन में भी है। कांग्रेस के मैदानी कार्यकर्ता की सक्रियता उम्मीदवार की घोषणा पर निर्भर करती है। हर उम्मीदवार अपने हिसाब से रणनीति बनाता है। कई बार तो बूथ कार्यकर्ता तक उसकी पहुंच ही नहीं हो पाती। भाजपा जैसी पन्ना प्रभारी की व्यवस्था यहां नहीं चल पाती। फिर कांग्रेस माहौल बनाने की पूरी कोशिश कर रही है। कांग्रेस प्रभारी महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह भाजपा की रणनीति का लगातार अध्ययन कर रहे हैं। इसके आधार उन्होंने अगले तीन दिन में बूथ कार्यकर्ता तक वोटर लिस्ट पहुंचाने के लिए कहा है। कार्यकर्ता से अपने बूथ के वोटर के बारे में रिपोर्ट भी मांगी है। इस रिपोर्ट में तीन श्रेणी निर्धारित करना है। पहली श्रेणी उस वोटर की रखी गई है जो कांग्रेस को वोट नहीं देता। इसे एन का नाम दिया गया है। दूसरी श्रेणी न्यूट्रल वोटर की है। इसे ओ श्रेणी बनाकर रखा जाना है। तीसरी श्रेणी कांग्रेस के प्रतिबद्ध वोटर की है। इसे सी श्रेणी दी गई है। एनओसी रिपोर्ट की निगरानी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी करेगी। यह कांग्रेस की योजना है। यह अमल कितनी आती है,यह जल्द सामने होगा।


कमलनाथ को छिंदवाड़ा को जीतने भाजपा की मैदानी जंग


भारतीय जनता पार्टी को अपना 370 सीटों का लक्ष्य पूरा करना है तो छिंदवाड़ा की लोकसभा सीट उसे हर हाल में जीतना होगी। गृह मंत्री अमित शाह ने ग्वालियर से लेकर भोपाल तक की बैठक में सिर्फ छिंदवाड़ा की बात की। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 29 में से 28 सीटें जीतीं थीं। भाजपा यह मानकर चल रही है कि मोदी की गारंटी से 28 सीटें फिर उसके खाते में होंगी। लेकिन, 29 वीं सीट छिंदवाड़ा में मुश्किल कम करने के लिए उसे दल बदल का सहारा लेना पड़ रहा है। उसकी मैदानी रणनीति काफी कसी हुई है। कमलनाथ के छिंदवाड़ा लौटने से पहले ही उनके कई नजदीकियों को भगवा दुपट्टा पहना दिया। पांढुर्णा के नगर पालिका अध्यक्ष, 7 पार्षद, 16 सरपंच और जनपद सदस्य भाजपा में शामिल हो गए हैं। भाजपा ने यहां जिला अध्यक्ष से लेकर बूथ अध्यक्ष तक को टारगेट दिया है। काम है कांग्रेस के लोगों का भरोसा जीतकर उन्हें अपना बनाओ।  जिला अध्यक्ष से लेकर पन्ना प्रमुख तक इसी काम लगे लोगों का मन बदलने के मिशन में।  पार्टी इस बात का भी रिकॉर्ड रख रही है कि किसने कितने कांग्रेसी तोड़े।  गांवों में रात्रि विश्राम कार्यक्रम चलाया जा रहा है। मॉनिटरिंग राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर हो रही है। कई बार प्रदेश मुख्यालय से किसी भी कार्यकर्ता के पास सीधे फोन कर जानकारी ली जाती है। मंडल अध्यक्ष हफ्ते में एक बार शक्ति केंद्र अध्यक्षों और बूथ अध्यक्षों के साथ मीटिंग करता है। हफ्तेभर के काम का अपडेट लेता है।


इसी तरह बूथ अध्यक्ष पन्ना प्रभारियों की साप्ताहिक बैठक लेता है। अभी हम गांव-गांव में बूथ चलो अभियान चला रहे हैं। इस अभियान के तहत भाजपा जिला संगठन के कार्यकर्ता, क्षेत्र के मंडल अध्यक्ष, शक्ति केंद्र अध्यक्ष, बूथ अध्यक्ष और पन्ना प्रभारी गांव-गांव जाते हैं। वहां रात्रि विश्राम करते हैं। संगठन से जुड़े लोगों के यहां ही भोजन करते हैं।पूरे गांव को इकट्ठा कर नुक्कड़ सभाएं करते हैं। लोगों को सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताते हैं। इससे प्रभावित होकर कई लोग वहीं भाजपा जॉइन कर लेते हैं। बूथ चलो अभियान के तहत हम घर-घर जाकर मतदाताओं को जागरूक कर रहे हैं। बूथ से बूथ को जोड़ते जा रहे हैं।

हाथी के हमले से युवक की मौत, ग्रामीणों ने किया हंगामा, मौके में पहुंची पुलिस


अनूपपुर। एक माह से अधिक समय से विचरण कर रहे एक हाथी द्वारा गुरुवार को ग्रमीणों के खेत में लगे गेहूं को अहार बना रहा था, हाथी को भगाए जाने पर तेजी से वापस आकर ग्रामीणों को दौड़ाने लगा इस दौरान ग्राम पगना के एक युवक को हाथी ने पकड़ कर दबा दिया जिससे युवक की स्थल पर ही मौत हो गई। जिससे गुस्साौयें ग्रमीणों ने वन विभाग की टीम पर हमला किया। घटना ठाकुरबाबा के पास गुरूवार की रात्रि 8 बजे की बताई हैं।


जानकारी अनुसार जैतहरी वन परिक्षेत्र सहित अनूपपुर और कोममा वन परिक्षेत्र में एक माह से अधिक समय से विचरण कर रहे एक नर हाथी ग्रमीणों के खेत में लगे गेहूं सहित अन्य8 फसलों को अहार बना रहा हैं। गुरुवार को गोबरी गांव के जंगल से हाथी निकलकर ग्रमीणों के खेतों में लगी गेहूं की फसलों को अहार बना रहा था, तभी ग्रमीणों द्वारा हाथी को भगाए जाने पर तेजी से वापस आकर ग्रामीणों को दौड़ाने लगा इस दौरान ग्राम पगना के एक युवक को हाथी ने पकड़ कर दबा दिया जिससे युवक की स्थल पर ही मौत हो गई। घटना की जानकारी लगते ही गोवरी, पगना एवं आसपास के ग्रामीणों की भीड़ एकत्रित होकर वन विभाग की टीम पर हमला करने लगी, इस बीच वन परीक्षेत्र अधिकारी जैतहरी के शासकीय वाहन को भी तोड़फोड़ किया। जानकारी लगते ही कलेक्टर आशीष वशिष्ठ, पुलिस अधीक्षक जितेंद्र सिंह पवार, अनूपपुर तथा जैतहरी थानों की पुलिस फोर्स के साथ घटनास्थल एवं गोबरी गांव में पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित करने में लगी है। वहीं हाथी युवक के शव के पास विगत 2 घंटे से खेत में खड़ा है।

ऊर्जस्विता 2024: देश-विदेश की 22 महिला विभूतियों का सम्मान

  • महिला एवं बाल विकास मंत्री सुश्री निर्मला भूरिया, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने किया सम्मानित
  • जर्मनी, दिल्ली, बेंगलुरू के साथ ही बालाघाट की महिलाओं का सम्मान
  • अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी मना रही है 13वीं सालगिरह

शिक्षा, नशामुक्ति और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सेवा के लिए समर्पित संस्था अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी को 13 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस मौके को खास बनाने के लिए संस्था ने 20 फरवरी 2024 को राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जस्विता सम्मान समारोह 2024 का आयोजन किया। महिला एवं बाल विकास मंत्री सुश्री निर्मला भूरिया और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल के हाथों देश-विदेश की 21 महिला विभूतियों को ऊर्जस्विता सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इस अवसर पर शिक्षाविद् डॉ. प्रमिला मैनी को लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सम्मान समारोह में सुश्री निर्मला भूरिया ने कहा कि महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी हैं। जब कोई महिला घर से बाहर निकलती है तो उसे कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ता है। आज हमने अलग अलग क्षेत्रों की महिलाओं का सम्मान किया है। निश्चित तौर पर हर एक की कहानी प्रेरक है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने कहा कि मोदी जी के नेतृत्व में नारी वंदन विधेयक अब कानून बन चुका है। महिलाओं को क्या सशक्त करना, वो है तो सब हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मां की वजह से हूं। हाउस वाइफ सुबह से रात तक काम करती है। उसकी मेहनत की तुलना नहीं हो सकती।

इस अवसर पर अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी की अध्यक्ष माही भजनी ने संस्था की गतिविधियों की जानकारी दी। संस्था के सचिव रिटायर आईएफएस अधिकारी एके भट्टाचार्य ने अवॉर्ड्स की जानकारी दी। इंस्टिट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट (आईएचएम) के प्राचार्य डॉ. रोहित सरीन, मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण समिति के पूर्व सदस्य विभांशु जोशी और अपना घर की संचालक माधुरी मिश्रा ने भी संबोधित किया। इस आयोजन में आईएचएम के साथ-साथ आकृति इको सिटी स्थित श्री एथनिक, अभिषेक खरे कोचिंग क्लासेस, फ्यूल का सहयोग प्राप्त हुआ है।

इन विभूतियों को किया सम्मानित


डॉ फ्रीडा मारिया बैंगलोर (पर्यावरण), केरोल क्रिस्टीना जर्मनी (नवाचार बांस प्रौद्योगिकी), डॉ रीनू यादव (शिक्षा), डॉ लता सिंह मुंशी (कला एवं संस्कृति), डॉ रितु उपमन्यु पाटीदार (ट्रांसफॉर्मेशन कोच,साइकिक हीलर), नीलिमा पाठक सामंतरे राय (कॉलमिस्ट एवं लेखन), रख़शां ज़ाहिद (सोशल आंत्रप्रेन्योर), जोयिता भट्ठाचार्य पाठक इंदौर (उद्यमिता), गोमती बैगा टेकाम बालाघाट (जनजातीय हस्तशिल्प), संगीता श्रीवास्तव (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), ⁠आशा कोलेकर (आतिथ्य सत्कार प्रशिक्षक आईएचएम), रीता दलेला ( समाज सेवा), गायत्री विजयवर्गीय (सोशल सर्विस– वृद्धाश्रम), विभूति मिश्रा (यंग अचीवर), पल्लवी वाघेला (प्रिंट मीडिया), आचार्य अंजना गुप्ता (ज्योतिष से चिकित्सा), सोनल विपिन महेश्वरी (बालिका शिक्षा), डॉ मोनिका जैन ( साइंस एंड टेक्नोलॉजी), नन्दनी त्रिपाठी (स्कूल शिक्षा), मीता वाधवा (सोशल वर्क), कृतिका भीमावद (प्रशासनिक)।

अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी के बारे में…


अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी मध्य प्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रिकरण अधिनियम 1973 के अधीन 30 जुलाई, 2011 को पंजीकृत की गई है। अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी झुग्गी-बस्तियों के बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए प्रयत्नशील संस्था है। इन बस्तियों में बाल श्रम उन्मूलन, बाल विवाह के खिलाफ अभियान, स्कूल ड्रॉपआउट्स को शिक्षा से जोड़ना, नशामुक्ति के साथ ही स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों का संचालन होता है। अब तक एक हजार से अधिक बच्चों को संस्था के प्रयासों से स्कूलों से जोड़ा गया है।

ऊर्जस्विता सम्मान समारोह के बारे में


अनुनय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी ने 2021 में ऊर्जस्विता सम्मान समारोह की शुरुआत की थी। 2021 में तत्कालीन संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर और 2022 में तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री और मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महिला विभूतियों का सम्मान किया था। पहले वर्ष से ही इस सम्मान समारोह को हमने राज्यस्तरीय स्वरूप दिया हुआ है। इस बार हम प्रदेश की सीमाओं को लांघकर देश-दुनिया की महिला विभूतियों का सम्मान कर रहे हैं।

समय पूर्व विधानसभा का सत्रावसान किसके पास थी मुद्दों की कमी

विधानसभा का सत्र शुरू हुआ और खत्म भी होगा। न तो नौकरशाही ही सत्र का मानसिकता बना पाई और न ही विधायकों को सदन की गतिविधियों का अहसास हो पाया। विधानसभा का बजट सत्र 19 फरवरी तक चलना था। कुल नौ बैठक सत्र के लिए तय की गई थीं। लेकिन,छह बैठकों में सदन में विधायी कार्य भी निपट गया और जनता के मुद्दों पर भी चर्चा हो गई? सरकार ने जिस तेजी के साथ सत्रावसान किया है,उससे यह बात तो पूरी तरह साफ है कि कमी विधायी कार्य भी रही होगी। सत्र में सरकार की चिंता विधायी कार्य को लेकर ही ज्यादा रहती है। डॉ. मोहन यादव की सरकार का यह पहला बजट सत्र था। सरकार ने वर्ष 2024-2025 का पूर्ण बजट पेश नहीं किया है। इस कारण विभाग वार चर्चा भी नहीं हुईं। अन्यथा बजट सत्र अनुदान मांगों पर विभाग वार चर्चा के कारण अधिक दिन चलता है। सरकार ने केवल तीन माह के लिए लेखानुदान प्रस्तुत किया है। इस कारण चर्चा का अवसर बजट को लेकर नहीं था। हैरानी की बात यह है कि विपक्ष के पास भी ऐसे मुद्दे नहीं थे,जिन पर वे 19 फरवरी तक सत्र को चलाने के लिए सरकार को मजबूर कर पाते। कोई भी सरकार नहीं चाहती कि सदन में हंगामा हो और छवि पर विपरीत असर पड़े। हरदा पटाखा फैक्ट्री का मामला ही एक ऐसा मामला तात्कालिक रूप से सामने था जिस पर विपक्ष ने सरकार को घेरने की कोशिश की। लेकिन,जांच आयोग का गठन फिर भी नहीं करा सके। जांच अधिकारी की रिपोर्ट अब तक न आने पर भी सरकार को नहीं घेर पाए। न ही प्रभावित परिवारों को मुआवजा ही अधिक दिला सके। जबकि हरदा में विधायक कांग्रेस के हैं। वे गले में सुतली बम डालकर जरूर पहुंचे थे। लेकिन,पूरे मामले में ऐसा कोई धमाका नहीं कर पाए जिसमें सरकार का संरक्षण उजागर होता।


राज्यपाल के अभिभाषण और उस पर चर्चा के दो दिन


सात फरवरी को सत्र की शुरुआत राज्यपाल मंगू भाई पटेल के अभिभाषण से हुई। हर साल के प्रारंभ में विधानसभा का जो पहला सत्र आयोजित किया जाता है,उसमें पहला दिन राज्यपाल के नाम ही रहता है। विपक्ष ने पहले ही दिन से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की। राज्यपाल के अभिभाषण में भाजपा के चुनावी संकल्प का जिक्र न होने को विपक्ष मुद बना रहा था। राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने अपने पिछले अभिभाषण की तरह इस अभिभाषण में भी मोदी की गारंटी का जिक्र अधिक किया। राज्यपाल ने अपने अभिभाषण के दौरान प्रदेश सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि विकसित भारत संकल्प यात्रा में 50 लाख से अधिक लोगों को लाभान्वित किया गया है। उन्होंने दोहराया जहां-जहां मध्य प्रदेश में श्री राम और श्री कृष्ण के कदम पड़े हैं उन स्थानों को तीर्थ के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्होंने बताया 724 किलोमीटर लंबी दस हजार करोड़ रुपये से अधिक की सड़क परियोजनाओं की सौगात मिली है। केन-बेतवा, पार्वती- कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना प्रदेश विकास में मील का पत्थर साबित होगी।अभिभाषण के दौरान विपक्षी कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा के संकल्प पत्र की प्रतियां सदन में लहराई और राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान नारेबाजी शुरू कर दी। उन्होंने सरकार पर जनता से धोखेबाजी का आरोप लगाया। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि अभिभाषण में न तो धान की खरीदी 3100 रुपये प्रति क्विंटल करने का उल्लेख है न ही गेहूं का मूल्य 2700 रुपये देने की बात है। 450 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर देने का भी उल्लेख नहीं है। नारेबाजी करते हुए कांग्रेस के सदस्य सदन के बाहर निकल गए।

सात मंत्रियों को जिम्मेदारी सदस्यों को मिलेंगे उनके प्रश्नों के पूर्ण उत्तर


विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के विधायी अनुभव का असर विधानसभा के बजट सत्र में साफ देखने को मिला। है।सोलहवीं विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों के प्रबोधन कार्यक्रम में अध्यक्ष ने घोषणा की थी कि सदन में शून्यकाल की सूचनाओं में पहली बार के सदस्यों की सूचनाओं को प्राथमिकता से लिया जाएगा। इसका पालन भी सत्र के पूरे सत्र में देखने को मिला। पहली बार के सदस्यों को सदन में अपनी बात रखने के लिए भी पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराया गया। प्रश्नकाल के दौरान भी दो से अधिक पूरक प्रश्न पूछने दिए गए। विधानसभा अध्यक्ष ने अपूर्ण प्रश्नों के उत्तर के लिए भी पुरानी व्यवस्था को बहाल किया है। अब विधानसभा का विघटन होने के बाद भी अपूर्ण उत्तर वाले प्रश्न निरस्त नहीं होंगे। इस सत्र में कुल 2303 प्रश्न प्राप्त हुए, जिसमें 1163 तारांकित 1140 अतारांकित प्रश्न थे। ध्यानाकर्षण की कुल 541 सूचनाएं प्राप्त हुई, जिनमें 40 सूचनाएं ग्राहय हुई। शून्यकाल की 176 सूचनाएं एवं 242 याचिकाएं प्राप्त हुई तथा 08 शासकीय विधेयक भी पारित किये गये। राज्यपाल के अभिभाषण पर कृतज्ञता प्रस्ताव पर, हरदा शहर के ग्राम बैरागढ़ स्थित पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट से उत्पन्न स्थिति के संबंध में लाये गये स्थगन प्रस्ताव पर तथा 139 के अधीन अविलंबनीय लोक महत्व के विषय पर विस्तृत चर्चा की गई।


सरकार छुपा नहीं रही जानकारी ?


सरकार का चेहरा बदलने का असर भी विधानसभा में पूछे गए सवालों के जवाब में देखने को मिल रहा है। सरकार विधायकों के मुद्दे भी सुन रही है और उनके जवाब भी दे रही है। नल जल योजना के बारे में विपक्ष के आरोपों पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने साफगोई से इस बात को स्वीकार किया कि राज्य में योजना संचालित करने के लिए पर्याप्त मानव संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। यह एक ऐसा तथ्य है जो बीस साल की भाजपा सरकार पर कई तरह के सवाल खड़े करती है। सरकार ने सदन में इस बात को भी स्वीकार किया कि राज्य में बेरोजगार बढ़ गए हैं। पहले इस बारे में पूछे जाने वाले सवालों का जवाब जानकारी एकत्रित की जा रही है, लिखकर दिया जाता था। बाद में कभी जानकारी आती नहीं थी।


सवालों और शिकायतों पर सरकार की कार्यवाही


सदन में दो मामले ऐसे देखने में आए जिनमें सरकार ने नौकरशाही का बचाव करने के बजाए उनके खिलाफ तत्काल कार्यवाही की। एक मामला बैतूल जिले में आदिवासी की पिटाई का था। प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से कहा, गृह विभाग आपके पास है। आपका इसको लेकर कोई ध्यान नहीं है। इस तरह की घटनाएं मध्य प्रदेश में घटित हो रही हैं जो शर्मनाक हैं। मुख्यमंत्री ने तत्काल बैतूल के पुलिस अधीक्षक का तबादला कर दिया और आरोपी के मकान पर बुलडोजर पहुंचा दिया। दूसरा मामला पूर्व बिसाहूलाल साहू द्वारा पूछे गए एक सवाल पर हुई कार्यवाही का है। विधानसभा में जवाब देने से 48 घंटे पहले अनूपपुर जिले के डीएफओ सुशील कुमार प्रजापति को हटाया दिया गया। वन मंत्री विजय शाह ने जवाब दिया- सुशील कुमार प्रजापति 13 जनवरी 2023 से अनूपपुर जिले में पदस्थ हैं। इसके पूर्व प्रजापति वनमंडलाधिकारी, हरदा (उत्पादन) वन मंडल के पद पर पदस्थ थे। इनके विरुद्ध वनमंडल अनूपपुर के अधीनस्थ 6 परिक्षेत्रों के परिक्षेत्र अधिकारियों द्वारा मानसिक प्रताड़ना की शिकायत करने पर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (सतर्कता व शिकायत) मुख्यालय, भोपाल को जांच सौंपी गई है।


इनके विरुद्ध 14 सितंबर 2023 से दो सदस्यीय जांच दल का गठन किया गया। जांच प्रतिवेदन के आधार पर विभागीय कार्यवाही प्रारंभ की गई है। बताया गया कि प्रजापति द्वारा 9 वनरक्षकों को निलंबित किया है। 32 अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गई है। सरकार ने कहा है कि जांच उपरांत दोषी पाए जाने पर वनमंडलाधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी।


इमरती देवी का दबदबा बरकरार


एक नहीं दो-दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी पूर्व मंत्री इमरती देवी का जलवा बरकरार है। सरकार उनसे 74 बंगला स्थित सरकारी आवास खाली नहीं कराएगी। ऐसे में मंत्री निर्मला भूरिया को आवंटित बंगला अब इमरती देवी के पास ही रहेगा। इसके बदले निर्मला भूरिया को 74 बंगला क्षेत्र में बी -27 नंबर का आवास आवंटित किया गया है। इमरती देवी, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की कट्टर समर्थक हैं। वे उनके साथ दलबदल कर भाजपा में आईं थीं। भाजपा में आने के बाद हुए उपचुनाव में इमरती देवी डबरा से पराजित हो गईं थीं। इसके बाद 2023 के आम चुनाव में भी उन्हें कांग्रेस के सुरेश राजे के हाथों शिकस्त मिली। शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें बाद में लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष बना दिया था। इमरती देवी कांग्रेस सरकार के दिनों से जिस बंगले में रहतीं थीं,वह बना रहेगा। आगे संभव है निगम अध्यक्ष का पद भी मिल जाए। इसके अलावा, मंत्री चैतन्य काश्यप, गौतम टेटवाल, लखन पटेल को भी पूर्व में आवंटित बंगले बदले गए हैं। वहीं, विधायक विश्राम गृह और निजी आवास में रह रहे राज्य मंत्रियों नरेंद्र शिवाजी पटेल, प्रतिमा बागरी, राधा सिंह, दिलीप अहिरवार, नारायण सिंह पंवार को भी गृह विभाग ने बंगले आवंटित कर दिए हैं।

कांग्रेस में हताशा,अविश्वास और गुटबाजी का माहौल

An atmosphere of frustration, distrust and factionalism in Congress

लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं। कांग्रेस अविश्वास और हताशा के माहौल से बाहर नहीं आ पा रही है। कांग्रेस की गुटबाजी लाइलाज है। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले जो उत्साह का माहौल था वह अब नजर नहीं आता है। जो नेता भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे,उनकी वापसी भी होने लगी है। प्रदेश भाजपा कार्यालय में हर दिन कोई न कोई नेता कांग्रेस छोड़कर पहुंच रहा है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी पूरी तरह से अलग-थलग पड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि उन्हें पार्टी के युवा नेतृत्व का समर्थन मिलता दिख रहा है। उमंग सिंघार प्रतिपक्ष के नेता हैं। हेमंत कटारे उप नेता। इन तीनों नेताओं की जुगलबंदी भाजपा से मुकाबला करती दिख नहीं रही। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ,दिग्विजय सिंह,सुरेश पचौरी,अजय सिंह और अरुण यादव जैसे नेताओं की उदासीनता कार्यकर्ता महसूस कर रहा है। क्या इन नेताओं का तालमेल जीतू पटवारी से नहीं बैठ रहा है या जीतू पटवारी एकला चलो की नीति अपनाए हुए हैं?


जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में चूक


विधानसभा चुनाव में कुछ जिला पंचायत के अध्यक्ष विधायक बन गए। जिन जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन होना था वें अशोकनगर,सीहोर,जबलपुर और खंडवा थे। इन चारों स्थानों पर सोमवार को निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी हो गई। सभी जगह भाजपा चुनाव जीती है। इन जिलों में पंचायत के आम चुनाव के समय कांग्रेस ने बहुमत के आधार पर अपना अध्यक्ष बनाने में सफलता पाई थी। बाद में विधानसभा चुनाव से पहले कुछ अध्यक्ष पाला बदलकर भाजपा में चले गए। सीहोर जिला इनमें महत्वपूर्ण है। यह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला है। सीहोर में जिला पंचायत अध्यक्ष गोपाल इंजीनियर थे। वे आष्टा से विधायक बन गए हैं। पहले कांग्रेस में थे। विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद कांग्रेस में उपजी हताशा का लाभ भारतीय जनता पार्टी ने उठाया। पार्टी ने कांग्रेस के कई जिला पंचायत सदस्य तोड लिए। नतीजा सोमवार को हुए चुनाव में भाजपा ने रचना सुरेन्द्र सिंह मेवाड़ा का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित करा लिया। जबलपुर में आशा मुकेश गोटिया निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हो गईं। कांग्रेस ने इन दोनों ही स्थानों पर अपने उम्मीदवार ही नहीं उतारे। जबलपुर में दलबदल के बाद कांग्रेस के चार जिला पंचायत सदस्य शेष बचे थे। अशोकनगर में मुकाबला भाजपा के नेताओं के बीच ही हुआ। राव अजय प्रताप यादव को नौ वोट और उनकी विरोधी बबीता मोहन यादव को मात्र दो ही वोट मिले। बबीता मोहन यादव बसपा से भाजपा में आईंथीं। राव अजय प्रताप यादव अपनी मां बाई साहब यादव के साथ हाल में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। रविवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सांसद केपी यादव के भाई अजय पाल यादव का दलबदल करा दिया। वे भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए। जिला पंचायत सदस्य थे। जिला पंचायत में सबसे ज्यादा सदस्य राव अजय प्रताप यादव के परिवार के ही थे।


भाजपा ने रणनीति से जीता चुनाव


भाजपा विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही जिला पंचायत हासिल करने की तैयारी लग गई थी। पहले चुनाव की तारीख आगे बढ़ाई,फिर जिला पंचायत सदस्यों को अपने पक्ष में किया। सीहोर में निर्विरोध निर्वाचन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कारण ही संभव हो पाया। भारतीय जनता पार्टी यहां दो गुटों में बंट गई थी। भाजपा में हाल ही में शामिल हुए राजू राजपूत का नाम पार्टी ने अध्यक्ष के लिए तय किया था। जिसके बाद रचना सुरेंद्र मेवाड़ा ने फार्म दाखिल करने की घोषणा कर दी। दोनों के समर्थक सक्रिय हो गए। लेकिन कुछ देर बाद भाजपा ने राजू राजपूत को मना लिया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इसमें बड़ी भूमिका रही। चौहान खुद बंगाल में है लेकिन, ध्यान सीहोर की राजनीति का भी रख रहे हैं। इसी कारण जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन निर्विरोध संपन्न हो गया। वहीं इस पूरी निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस समर्थित सदस्य विरोध की स्थिति में नहीं दिखाई दिए।


दूसरी और खंडवा में कांग्रेस की किस्मत ने साथ नहीं दिया। भाजपा प्रत्याशी पिंकी वानखेड़े जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लॉटरी से जीत गईं। दरअसल, जिला पंचायत में कुल सोलह सदस्य हैं। कांग्रेस नेता नानकराम बरवाहे ने अपने दम पर आठ वोट हासिल कर लिए। ऐसे में दोनों प्रत्याशियों को आठ-आठ वोट मिले। कलेक्टर अनूपसिंह ने पर्ची डालकर लॉटरी निकाली। लॉटरी में भाजपा प्रत्याशी पिंकी वानखेड़े का नाम खुला। इसके बाद कलेक्टर ने उन्हें जीत का सर्टिफिकेट दे दिया।


दलबदल के सिलसिले से उपजा अविश्वास


भाजपा का मुख्यालय हो या कांग्रेस का दोनों ही स्थानों पर एक चर्चा समान रूप से चल रही है। कांग्रेस में हताशा के बीच नेता एक-दूसरे से पूछते हैं कि अब कौन चल गया? भाजपा मुख्यालय में उत्साह के साथ बताया जाता है कि अभी तो और आने वाले हैं। बड़े-बड़े नेताओं की लाइन लगी है। पिछले दिनों खुद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था कि इतने लोग भाजपा में शामिल होना चाहते हैं कि हमें कहना पड़ रहा है कि अभी कुछ देर इंतजार करो। हर दिन कोई न कोई चेहरा भाजपा का गमछा पहनते दिखाई देता है। जब से यह चर्चा चल रही है कि कमलनाथ या उनका कोई परिजन भाजपा में शामिल हो सकता है तब से दलबदल भी तेज हुआ है। जबलपुर महापौर और डिंडोरी के जिला पंचायत अध्यक्ष के दलबदल को कमलनाथ से ही जोड़कर देखा गया। कमलनाथ के अलावा भी कई नेताओं के नाम भाजपा मुख्यालय में दल बदल की चर्चा के साथ जुड़े हुए हैं। कई नेताओं के नाम पर भाजपा के नेता पुष्टि या खंडन नहीं करते। सिर्फ चुप्पी के साथ मुस्कुरा देते हैं। कभी देश के अन्य राज्य से कांग्रेस के किसी बड़े चेहरे के भाजपा में शामिल होने की खबर आती है तो इसके साथ कई किस्से भी एक साथ सुनाई देने लगते हैं। सोमवार को ही महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कांग्रेस छोड दी। जब ऐसे लोग कांग्रेस छोड़ रहे हैं जिन्हें पार्टी ने सभी कुछ दिया फिर छोटे नेताओं की बात ही क्या?


कमलनाथ को मिलेगा विधायकों का साथ


वही मौसम है जो मार्च 2020 में था। राज्यसभा चुनाव का मौसम। राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को चार और कांग्रेस को एक सीट मिल रही है। एक सीट जीतने के लिए कुल 39 वोट चाहिए। कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 66 है। इस कारण वह ज्यादा चिंतित नजर नहीं आ रही। कांग्रेस नेतृत्व को लग रहा है कि जितनी बड़ी संख्या में विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चले गए थे,इतनी बड़ी संख्या में किसी और नेता के साथ नहीं जाएंगे? कमलनाथ के साथ भी नहीं। ऐसा ही कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व सोच रहा है। भाजपा में बात इससे उलट हो रही है। कमलनाथ को आना है तो सिंधिया से ज्यादा विधायक लेकर भाजपा में आना होगा। अन्यथा बड़े नेता सिंधिया ही कहलाएंगे?सिंधिया के साथ कुल 21 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी। भाजपा को कांग्रेस से उसके हिस्से की सीट छीनना है तो कम से कम 28 विधायक तोड़ना होंगें। यदि 35 विधायक छोड़ते हैं तो दलबदल की कार्यवाही से भी बच जाएंगे और उप चुनाव भी नहीं लड़ना होगा। इस तरह की कयासबाजी भी चल रही है। एक चर्चा यह भी चल रही है कि भाजपा इस शर्त पर कमलनाथ को शामिल करेगी कि वे खुद छिंदवाड़ा से चुनाव लड़े। नकुल नाथ के चुनाव लड़ने में भाजपा वह संदेश नहीं देख रही जो कमलनाथ के लड़ने से जाएगा। क्या कमलनाथ वाकई कांग्रेस छोड़ देंगे? यह एक ऐसा सवाल जिसके जवाब में कांग्रेस के भीतर बिखरा अविश्वास ही दिखाई देगा।


जीतू पटवारी ने क्यों खेला सोनिया कार्ड


मध्यप्रदेश में कांग्रेस को राज्यसभा की सिर्फ एक सीट मिल रही है। एक अनार,सौ बीमार वाली स्थिति बन रही है। जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है वह राज्यसभा सीट को टकटकी लगाए देख रहा है। दो दावेदार सबसे मजबूत माने जा रहे थे। अरुण यादव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी। जीतू पटवारी का दावा पार्टी अध्यक्ष के नाते मजबूत माना जा रहा था। सोनिया गांधी और कमलनाथ की मुलाकात से माहौल एक दम बदल गया। गांधी परिवार से अपने रिश्तों के कारण ही कमलनाथ इतनी लंबी राजनीति कर पाए। बेटे नकुल नाथ को भी अपनी विरासत सौंप दी। खुद विधायक हैं। बेटा लोकसभा चुनाव लड़ेगा। यह सीधी-सीधी राजनीति दिख रही थी। राजनीति में मोड़ सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही आया। कहा गया कि कमलनाथ राज्यसभा की टिकट चाहते हैं। राजनीति में असंभव कुछ नहीं होता। कमलनाथ को टिकट मिलते ही जीतू पटवारी का कद घट जाएगा। जीतू पटवारी कांग्रेस अध्यक्ष हैं। इसका लाभ उठाते हुए उन्होंने चुनाव लड़ने का आमंत्रण सोनिया गांधी को ही दे दिया। सोनिया गांधी को ही तय करना है कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना है या राज्यसभा में जाना है। अभी तक गांधी परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा में नहीं गया। क्या सोनिया गांधी राज्यसभा जाएंगी,यह बड़ा सवाल है। इसका जवाब उम्मीदवार की घोषणा में ही मिल पाएग।


सोनिया को आमंत्रण से मजबूत हुई भाजपा


जीतू पटवारी ने सोनिया गांधी को राज्यसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव सिर्फ कमलनाथ की राह में रोड़ा अटकाने के लिए ही दिया है। यह राजनीति आसानी से समझ आने वाली है। लेकिन, इस प्रस्ताव से नुकसान किसे होने वाला है? भारतीय जनता पार्टी तो कांग्रेस के नेताओं से इस तरह की गलती करने का इंतजार करती हे। सोनिया गांधी ने अब तक यह घोषणा नहीं की है कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहीं। राज्यसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिलने के बाद भाजपा यह प्रचारित करेगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर से सोनिया गांधी डर गईं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी में उतारा था। राहुल गांधी को परिणामों का अंदाजा पहले से लग गया था। इस कारण वायनाड से भी चुनाव लड़े। अब बारी रायबरेली की है। सोनिया गांधी का लोकसभा चुनाव न लड़ना ही भाजपा को चार सौ पार पहुंचा सकता है।


मध्यप्रदेश भी आएगी ईडी


कांग्रेस के कई नेताओं को आयकर विभाग के नोटिस मिले हैं। नोटिस मिलते ही हड़कंप मचना स्वाभाविक है। करीब 100 नेताओं को समन जारी किया गया है। इस समन के जरिए विधायकों और नेताओं को आय-व्यय से संबंधित दस्तावेजों के साथ दिल्ली बुलाया गया है। विधानसभा चुनाव के पहले इसी तरह का समन ईडी ने तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को दिया था। वे सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। उनसे पूछताछ नहीं हुई थी। इस बार भी समन पर चुनावी रंग चढ़ा हो सकता है। नेताओं को जारी नोटिस को लेकर प्रदेश में सियासी घमासान मच गया है। जिन नेताओं को आयकर विभाग ने तलब किया है इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया भी हैं। भूरिया झाबुआ से लोकसभा के उम्मीदवार हो सकते हैं। रविवार को झाबुआ में प्रधानमंत्री की बड़ी सभा हुई थी। भूरिया के विधायक पुत्र विक्रांत भूरिया को भी समन मिला है।
भिंड-दतिया लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहे देवाशीष जरारिया को भी समन किया गया। सभी नेताओं को पिछले सात सालों का हिसाब और दस्तावेज लेकर दिल्ली स्थित आयकर दफ्तर जाना होगा। समन में 2014 से 2021 तक के वित्तीय लेनदेन के दस्तावेज मंगाए गए हैं।

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“बिहारी” यादवों को मोहन यादव का निमंत्रण बदलेगा सियासत की दिशा

दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दौरे के बाद बिहार की राजनीति में एक बार फिर पलटू राजनीति देखने को मिल जाए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष  लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव  के बीच हुई मुलाकात को हालात सामान्य करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है? बिहार में असामान्य राजनीतिक घटनाक्रम क्यों है? नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक न बनने के कारण या रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से भाजपा के पक्ष में बने माहौल ने उथल-पुथल मचा दी।
बिहार की राजनीति में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग बड़ा वोट बैंक हैं. 2 अक्टूबर 2023 को जारी जातीय जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में सबसे ज्यादा अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 प्रतिशत जबकि पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 प्रतिशत है। इसके साथ ही मुस्लिमों की आबादी 17.70 प्रतिशत   है। राज्य में लंबे अरसे से इन्हीं दो वोट बैंक के समीकरण से लालू यादव और नीतीश कुमार सत्ता पर काबिज होते रहे हैं। ऐसे में अब भाजपा इसकी काट ढूंढने में जुटी हुई है। दरअसल, जातीय जनगणना के मुताबिक बिहार में करीब 14 प्रतिशत यादव समाज की आबादी है. ऐसे में डॉ.मोहन यादव के जरिए भाजपा यादव वोटर्स का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश करने में जुटी है। पिछले लोकसभा चुनाव में
बिहार की 40 सीटों में से 17 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी. 16 सीट पर जेडीयू, 6 सीट पर एलजेपी और 1 सीट पर कांग्रेस है। जातीय आंकड़ों के मुताबिक 5 लोकसभा सीटों पर यादव समाज निर्णायक भूमिका में है। डॉ.मोहन यादव से पहले भाजपा बिहार में भूपेन्द्र यादव, नित्यानंद राय और
नदंकिशोर यादव जैसे दिग्गज नेताओं का उपयोग कर चुकी है।

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लालू से बड़ा यादव चेहरा कौन?
पिछले लोकसभा चुनाव में लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस मिलकर कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाए थे। परिणाम पूरी तरह से एनडीए के पक्ष में आए थे। इस बार नीतीश कुमार के इंडिया गठबंधन के साथ चले जाने से भाजपा चिंतित है। क्या भाजपा की चिंता डॉ. मोहन यादव दूर कर सकते है? यह ऐसा सवाल है इसका जवाब सिर्फ चुनाव परिणामों से ही मिल सकता है। लेकिन,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री यादव हैं तो यादवों के गढ़ में जाकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन तो कर ही सकते हैं। पटना में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. मोहन यादव ने अपने पूरे भाषण में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव का नाम ही नहीं लिया। संभव है कि नीतीश कुमार नाम उनके पलटू रवैये के कारण न लिया हो? लालू यादव का नाम लेते तो खिलाफ ही बोलना पड़ता। इसलिए बेहतर यही लगा होगा कि  मुद्दे पर चुप ही रहा जाए। बिहार में लालू यादव, यादवों के सर्व मान्य नेता हैं। उनके खिलाफ बोलने से सजातीयों के नाराज होने का खतरा हो सकता था। बिहार के यादवों को बिहार में ही रहना है। वे जानते हैं कि डॉ. मोहन यादव तो भाषण देकर चले जाएंगें। बिहार में डॉ. मोहन यादव के लिए नारा दिया गया- जो मोदी को प्यारा है,वह मोहन हमारा है। मुख्यमंत्री ने भगवान श्री कृष्ण और यदुवंश के ईद गिर्द ही अपने भाषण को केंद्रित रखा। इसके जवाब में डॉ.मोहन यादव बोले- बिहार के नाम को लेकर कन्फ्यूजन काफी है। बोलिये वृन्दावन “बिहारी” लाल की जय। भगवान कृष्ण के अभिनंदन के लिए दो राज्यों यूपी बिहार का नाम एक साथ आ जाता है। इससे बढ़कर कुछ है क्या? कार्यक्रम में स्टेज के बैकड्राप में महाभारत के सीन के बीच मोहन यादव को दिखाया गया। डॉ. मोहन यादव ने भी अपने सजातीयों को काम-धंधे के लिए मध्यप्रदेश आने का न्योता दिया है। राज्य में बाहरी लोगों को काम मिलेगा तो वे चुप तो नहीं रहेंगे?

कृष्ण के साथ राम की सियासत
मुख्यमंत्री विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण के जवाब में यह घोषणा पहले ही कर चुके हैं कि मध्यप्रदेश में जहां-जहाँ भगवान श्रीकृष्ण आए,उन स्थानों को विकसित किया जाएगा। राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो श्रीकृष्ण के जरिए यादवों को साधने की कोशिश दिखाई देती है। इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि भगवान श्री राम से रघुवंशी समाज भाजपा के पक्ष में कितना आया? मध्यप्रदेश में ही रघुवंशी समाज लगभग आधा दर्जन जिलों में असर रखता है। इनमें अशोकनगर,शिवपुरी, नरसिंहपुर,होशंगाबाद,रायसेन और विदिशा जिले प्रमुख हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान हुई कांग्रेस की कपड़ा फाड़ राजनीति के पीछे भी रघुवंशी समाज के वीरेन्द्र रघुवंशी ही थे। अयोध्या में सोमवार 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही है। लेकिन,आश्चर्यजनक तौर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को कोई निमंत्रण नहीं मिला। वैसे इसे पूरे आयोजन में मुख्यमंत्री सिर्फ एक ही दिखाई देंगे। वे हैं योगी आदित्य नाथ। निमंत्रण पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी में इस सवाल का जवाब कई नेता ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं कि आमंत्रित किए जाने वाले अतिथियों की सूची या उसके मापदंड किसने तय किए। ऐसे फिल्म स्टार बुलाए गए, जो सनातन से दूरी बनाए दिखते हैं। लेकिन,ऐसे नेता नहीं बुलाए गए जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया।
ओरछा बना राम की सियासत का केंद्र 

orchha ramraja mandir
orchha ramraja mandir

अयोध्या उत्तर प्रदेश में हैं। ओरछा मध्य प्रदेश में है। ओरछा में रामराजा का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को लेकर पहले कभी सियासत नहीं होती। पिछले कुछ साल खासकर कमलनाथ की सरकार आने के बाद ओरछा भी सियासी एजेंडा हो गया। साल 2020 में ओरछा में राम महोत्सव के बाद ही कमलनाथ की सरकार चली गई थी। यहां हर साल राम महोत्सव होता है। यह महोत्सव मार्च-अप्रैल के महीने में होता है। इस बार जनवरी में ही ओरछा में नेता की भीड़ जमा है। ओरछा में भगवान श्री राम की बाल रूप वाली प्रतिमा है। इसका इतिहास सभी जानते हैं। बाल रूप की यह प्रतिमा महारानी गणेश कुंवर राजे अयोध्या से ही लाईं थीं। ओरछा के राम राजा मंदिर का इतिहास भी उसी दौरान का है जब बाबर ने आतंक मचा कर हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ा था। ओरछा में राम साढ़े पांच सौ साल बाद आए हैं। ओरछा में यह इतने ही सालों से राज महल में बैठे हैं। ओरछा के वे राजा हैं। यहां किसी राजा की सत्ता नहीं चलती। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 22 जनवरी को ओरछा जाने का एलान किया तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी कार्यक्रम बना लिया। ओरछा में सोमवार को नजारा दिलचस्प होगा। शिव और मोहन एक साथ राम भक्ति में लीन दिखाई देंगे। शास्त्रों में वर्णित है शिव और राम में कोई भेद नहीं है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है धर्नुधरों में राम हूं।
कांग्रेसके लिए आसान नहीं राम की भक्ति?
इसमें कोई शक नहीं कि पूरे देश में माहौल दीपावली जैसा ही है। कार्यक्रम भले ही अयोध्या में हो रहा है लेकिन,इसका उत्सव घर-घर,हर मन में चल रहा है। भाजपा के नेताओं में उत्साह कई गुना बढ़ा हुआ है। हर नेता राम भक्ति का प्रदर्शन कर अपनी राजनीति को तारने में लगा हुआ है। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का राम पर गाया गीत सोशल मीडिया पर धूम मचाए हुए हैं।  पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने  भोपाल में भंडारा और सुंदरकांड का आयोजन रखा है। हर नेता अपने-अपने स्तर पर कार्यक्रम कर रहे हंै। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा कार सेवकों के सम्मान में व्यस्त हैं। कांग्रेस के नेता क्या कर रहे हैं? इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को इसी तरह के कई सवालों का जवाब रोज देना पड़ रहा है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने तय किया कि ट्रस्ट से मिले आमंत्रण पर वे 22 जनवरी को अयोध्या के कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे। यह निर्णय कांग्रेस नेताओं के गले में हड्डी की तरह फंसा हुआ है। कांग्रेस के नेता इसे गले से बाहर निकालना भी चाहें तो निकाल नहीं पा रहे। भाजपा के नेता 22 जनवरी को  अयोध्या नहीं जा पा रहे तो ओरछा जाकर भक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस  के नेता 22 जनवरी को क्या करेंगे? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार दो दिन पहले 20 जनवरी को ही ओरछा जाकर हनुमान चालीसा पढ आए। वे भी ओरछा 22 जनवरी को जा सकते थे। दो दिन पहले जाने से उन्हें कोई राजनीतिक लाभ तो नहीं होना। लेकिन, 22 जनवरी को भगवान श्री राम से उदासीन होना नुकसान की वजह बन सकता है।
नेता नहीं वकील से पड़ा पाला
इस बार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को वास्ता ऐसे नेता से पड़ा हँै जो वकील भी है। विवेक तन्खा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं। धीरे-धीरे वे पूर्णकालिक वकील से पूर्णकालिक राजनेता बनते जा रहे हैं। जबलपुर में एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया है। विवेक तन्खा ने एमपी-एमएलए जज विश्वेश्वरी मिश्रा की कोर्ट में इन तीनों के खिलाफ 10 करोड़ रुपए की मानहानि का दावा पेश किया था। जिस पर मुकदमा दर्ज किया गया है।  तन्खा ने तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और तत्कालीन मंत्री भूपेन्द्र सिंह से सार्वजनिक माफी मांगने की बात कही थी, लेकिन तीनों नेताओं ने माफी नहीं मांगी। जिसके बाद विवेक तन्खा ने कोर्ट की शरण ली।
 कोर्ट ने इस मामले में सभी के बयान दर्ज होने के बाद यह एक्शन लिया है। मामला नगरीय निकाय के चुनाव के दौरान का है।  साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने एमपी में पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इस दौरान विवेक तन्खा ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पंचायत और निकाय चुनाव में रोटेशन और परिसीमन को लेकर पैरवी की थी। बीजेपी नेताओं ने विवेक तन्खा को ओबीसी विरोधी बताते हुए उनके खिलाफ बयानबाजी की थी।

अमित शाह ने किया था रामलाल के दर्शन का वादा,सीहोर में बनी निभाने की रणनीति

amit shah
amit shah

दिनेश गुप्ता
सौगंध राम की खाते हैं,हम मंदिर वहीं बनाएंगे। यह वो नारा है जो अस्सी और नब्बे के दशक में भारतीय जनता पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने का का किया। भाजपा के कार्यकर्ता जब यह नारा लगाते थे उनके विरोधी जवाब में नारा लगाते थे -मंदिर वहीं बनाएंगे,लेकिन तारीख नहीं बताएंगे? इस नारे के चलते भाजपा को कई बार बचाव की मुद्रा अख्तियार करना पड़ती थी। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार कांग्रेस के इस नारे का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अब हम तारीख भी बता रहे हैं। 22 जनवरी 2024। गृह मंत्री ने अपनी चुनावी सभाओं में भी कहा था कि मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो वह फ्री में रामलला के दर्शन भी कराएंगे। इसे अमित शाह का बड़ा चुनावी वादा कह सकते हैं। उन्होंने यह वादा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गृह नगर राघोगढ़ में भी किया था। दिग्विजय सिंह ही यह सवाल उठा रहे हैं कि रामलाल की वह मूर्ति कहां हैं,जो टाट में थी? चुनाव में भाजपा को अपेक्षानुसार सफलता मिली है। इस सफलता के बाद गृह मंत्री अमित शाह के वादे पर भी अमल जरूरी है। गुरुवार को सीहोर में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की जो बैठक हुई उसमें हर लोकसभा क्षेत्र से दस हजार कार्यकर्ताओं को दर्शन के लिए अयोध्या भेजे जाने का निर्णय लिया गया है।

power marathon
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कार्यकर्ताओं को 22 जनवरी को  मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद  दर्शन के लिए भेजा जाएगा। ऐसा माना जाता है कि पार्टी फरवरी अंत तक सभी 29 लोकसभा सीट के कार्यकर्ताओं को रामलला के दर्शन कराने का काम पूरा कर लेगी। इसी के साथ ही आमजन को तीर्थ दर्शन योजना के तहत अयोध्या भेजा जाएगा। इस बार अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए हवाई जहाज से यात्रा कराने की योजना है। प्रदेश के उन हिस्सों से जहां हवाई सेवा नहीं है वहां ट्रेन के द्वारा यात्रियों को अयोध्या भेजा जाएगा। एक फरवरी से 31 मार्च तक के लिए कुल 19 रेलगाड़ी रेल मंत्रालय उपलब्ध कराने पर सहमत है। अयोध्या दर्शन के लिए हर राज्य से रेल मंत्रालय के पास ट्रेन की मांग आ रही है। मांग इतनी ज्यादा है कि मंत्रालय के पास उतनी गाड़ी चलाने के लिए उपलब्ध ही नहीं हैं।  रेल मंत्रालय ने उन राज्यों को प्राथमिकता में रखा है जो भाजपा शासित राज्य हैं।
कांग्रेस भी भेजेगी एक लाख कार्यकर्ता
यद्यपि कांग्रेस नेतृत्व ने 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में सम्मिलित होने का न्योता स्वीकार नहीं किया है। पार्टी के इस निर्णय से मध्यप्रदेश में कई नेता इत्तेफाक नहीं रखते। पूर्व विधायक लक्ष्मण सिंह तो खुली आलोचना कर रहे हैं। जबलपुर के महापौर जगत बहादुर भी इस राय हैं कि अयोध्या जाना चाहिए। सोनिया गांधी अथवा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अयोध्या जाते तो वहां दर्शक दीर्घा में बैठकर ताली बजाने के अलावा कोई भूमिका उनकी नहीं थी। भूमिका सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। चारों शंकराचार्य भी इसी कारण नहीं जा रहा हैं। शंकराचार्य का न जाना राजनीतिक नफा-नुकसान का कारण नहीं बन सकता। लेकिन,कांग्रेस के नेताओं का दर्शक दीर्घा में बैठना भी राजनीतिक लाभ देने वाला नहीं था। जो कांग्रेस को वोट नहीं देते वे कार्यक्रम में जाने के बाद भी नहीं देते। शायद इस कारण भी पार्टी ने शंकराचार्यों के पीछे खड़े होने का फैसला किया। पार्टी के फैसले के बाद भी कांग्रेस के नेता अपने-अपने स्तर पर कार्यकर्ताओं को रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या भेजने की तैयारी में जुटे हैं। वजह साफ है मैदानी नेता  पार्टी की मजबूरी और प्राण प्रतिष्ठा की राजनीति को ठीक से समझ रहा है। न्यौते को अस्वीकार करने से माहौल कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बन रहा है,इसमें भी कोई दो राय नहीं है। कार्यक्रम में चारों पीठ के शंकराचार्य की अनुपस्थिति से राम भक्तों को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। इस बात को भी कांग्रेस समझ रही है। मध्यप्रदेश में जब पार्टी के अध्यक्ष कमलनाथ थे तब से उसने हिन्दुत्व को लेकर नरम रवैया अपनाया हुआ है। प्रदीप मिश्रा और बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री के आयोजन कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में रखे थे। राम मंदिर का जब शिलान्यास हुआ उस वक्त भी प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर भगवान श्री राम का पोस्टर लगाकर विरोध की राजनीति से बचने की कोशिश कांग्रेस ने की थी। कांग्रेस को इससे चुनाव में कोई लाभ नहीं मिला। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी भी इसी लाइन पर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। जीतू पटवारी ने एलान किया है कि उसके एक लाख कार्यकर्ता राम लाल के मंदिर के दर्शन के लिए जाएंगे।

Jeetu Patwari
Jeetu Patwari


जीतू पटवारी का मैदान में हो रहा गुटबाजी से सामना
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी पार्टी को मजबूत करने के लिए मैदान में उतरे हैं। मैदान में भाजपा से निपटने के लिए रीति-नीति भी भाजपा की अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है रात्रि विश्राम। जीतू पटवारी अपने साथी जयवर्द्धन सिंह और उमंग सिंघार के साथ रात्रि विश्राम कार्यकर्ता के घर ही कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं में इससे उत्साह है। कुछ नयापन पार्टी में देखने को मिल रहा है। साथ ही अपने नेता को भी समझने का मौका है। नेता को भी समझना है कि समस्या कहा हैं? शिवपुरी में जीतू पटवारी को कार्यकर्ताओं की भारी नाराजगी का सामना भी करना पड़ा। जिले के एकमात्र विधायक कैलाश कुशवाहा की फोटो भी बैनर-पोस्टर में नहीं लगी। दो पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला और गणेश गौतम ने भी खुलकर अपनी नाराजगी प्रकट की। गणेश गौतम ने शिवपुरी विधानसभा से प्रत्याशी  बनाए गए केपी सिंह को टिकट दिए जाने पर सवालिया निशान खड़े करते हुए कहा कि कौन सा ऐसा सर्वे था जिसमें केपी सिंह कक्काजू का नाम शिवपुरी से सर्वे टीम ने प्रस्तावित किया था? फिर ऐसा क्या हुआ जो कांग्रेस को पिछोर से उन्हें शिवपुरी में लाकर प्रत्याशी बनाना पड़? जबकि आम कार्यकर्ता टिकट की मांग के लिए जब भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भीड़ के साथ भोपाल जाता उसे वहां से जवाब मिलता  कि सर्वे रिपोर्ट में जो नाम आएगा उसे टिकट दिया जाएगा। तो केपी सिंह कक्काजू किस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर शिवपुरी से प्रत्याशी बनाया गया था वह सर्वे रिपोर्ट कहां और किसके पास है? यह सवाल भी जीतू पटवारी से पूछा गया। लेकिन,वे जवाब नहीं दे पाए।  कांग्रेस के द्वारा बनाए गए प्रभारी पर भी कटाक्ष करते हुए हरिवल्लभ शुक्ला बोले- जो प्रभारी कांग्रेस के द्वारा बनाए गए थे वह प्रभारी क्षेत्र में आकर काम करने से पहले ऐसे नाश्ते की मांग करते थे,जो खर्चीला होता। उन्होंने कहा  भविष्य में महंगे प्रभारी की अपेक्षा सस्ते प्रभारी बनाए जाएं, जो कार्यकर्ता के साथ जुड़कर काम कर सके।

kamalnath
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व्यापमं कांड :पिक्चर अभी बाकी है
शिवराज सिंह चौहान के तीसरे कार्यकाल में चर्चा में आया व्यापमं घोटाला अभी खत्म नहीं हुआ। विभिन्न अदालतों में इन पर सुनवाई चल रही है। कई आरोपियों को सजा भी हो गई है। घोटाले की जांच जिस तरह से सीबीआई को करना चाहिए,उस तरह हुई नहीं। ईडी तो पूरे मामले में कहीं नजर ही नहीं आई। जबकि घोटाले में बड़े पैमाने पर लेनदेन हुआ था। पूर्व मंत्री भी इस मामले में आरोपी थे और जेल में बंद रहे। इसी घोटाले के चलते 2018 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं बन पाई थी। भाजपा चुनाव हार गई तो कांग्रेस ने भी यह मुद्दा छोड़ दिया। जबकि कई आरोपियों पर आरोप प्रमाणित हुई। कांग्रेस ने सीबीआई जांच को लेकर कभी सवाल भी नहीं उठाया। असली गुनाहगार अब तक सामने नहीं हैं। लेकिन,कोर्ट में कई मामले सामने आ जाते हैं। ऐसा ही मामला नौकरी से निकाले गए आरोपियों का सामने आया। हाईकोर्ट ने व्यापमं घोटाले से जुड़े आरक्षक की याचिका खारिज कर दी। साथ ही मामले की गंभीरता और कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग करने पर कोर्ट ने न केवल नाराजगी जताई, बल्कि आरक्षक कैलाश कुमार निमोरिया पर पांच हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक खेडकर को निर्देश दिया कि वे सभी बेंच में आवेदन पेश करें ताकि उसमें जिन आरक्षकों को हाई कोर्ट से स्टे मिला है, उसे निरस्त कराया जा सके। व्यापमं कांड में जांच एजेंसी ने जिन आरक्षकों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया उन्हें 23 मार्च 2021 को मप्र के परिवहन आयुक्त ने निलंबित कर दिया था। मामले में एफआईआर 2014 में दर्ज की गई। इस आदेश को चुनौती देते हुए निलंबित आरक्षकों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। 31 मार्च 2022 को हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने संजय सोलंकी और कैलाश कुमार निमोरिया की याचिका को खारिज कर दिया। इस आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील भी नहीं की गई। बाद में संजय सोलंकी ने फिर से हाई कोर्ट में याचिका प्रस्तुत की और इस तथ्य को छुपाया कि पूर्व में उनकी याचिका खारिज की जा चुकी है।
नकली रजिस्ट्री ऑफिस का कमाल

kuldeepak dubey thesildar morena
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मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में नौकरशाही मदमस्त थी। जांच एजेंसियां भी मुंह देख कर कार्यवाही करती थी। आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो,लोकायुक्त से ज्यादा सक्रिय दिखता था। इसके बाद भी कई अपराध पुलिस की आंखों से छुपे रहते थे। ऐसा ही एक दिलचस्प मामला मुरैना का है। मुरैना में नकली रजिस्ट्री ऑफिस का खुलासा हुआ है।  यह खुलासा पुलिस ने नहीं किया है। एक तहसीलदार ने किया है। कुलदीपक दुबे उनका नाम है। तहसीलदार कुलदीपक दुबे को लंबे समय से जिले में फर्जी रजि्ट्रिरयों के नामांतरण कराने की शिकायतें मिल रही थीं। इस संबंध में उन्होंने जब छानबीन की तो पता लगा कि मुरैना शहर के गोपालपुरा में एक फर्जी रजिस्ट्री कार्यालय संचालित हो रहा है। इस पर उन्होंने कोतवाली थाना इंचार्ज शिवम चौहान ने मौके पर जाकर जब छापा मारा तो मौके से इस फर्जीवाड़े का मुख्य आरोपी भाग जाने में सफल हो गया।

कमलनाथ-दिग्विजय के प्रभाव से कैसे बचेंगे जीतू पटवारी

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दिनेश गुप्ता
जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी की राजनीतिक मामलों की समिति की यह पहली बैठक थी। इस बैठक में जीतू पटवारी के एक और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे तो दूसरी और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ थे। इन दोनों नेताओं के बीच जीतू पटवारी राज्य के प्रभारी महामंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह के साथ बैठे थे। भंवर जितेन्द्र सिंह को गांधी परिवार के नजदीकी माना जाता है। वे राजस्थान के अलवर से सांसद रहे हैं। वे केन्द्र में स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। शाही राजपरिवार से आते हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों के ही बेहद करीबी हैं। कर्नाटक में जब मुख्यमंत्री चयन की बात आई थी तब कांग्रेस पार्टी ने उन्हें ही पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। अब भंवर जितेन्द्र सिंह मध्यप्रदेश के प्रभारी हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से संतुलन स्थापित करने की है। इससे पहले यह जिम्मेदारी गांधी परिवार के ही करीबी रणदीप सिंह सुरजेवाला के पास थी। लेकिन,वे असफल हो गए। कांग्रेस के हारने के बाद सुरजेवाला अचानक पटल से अदृश्य हो गए। उनकी जगह भंवर जितेन्द्र सिंह ने ली है। जीतू पटवारी और उमंग सिंघार पार्टी और विधायक दल का नेतृत्व कर रहे हैं। उमंग सिंघार यह उम्मीद कर सकते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पूरे समय विधानसभा में मौजूद नहीं रहेंगे। पिछली विधानसभा में भी कमलनाथ पूरे समय विधानसभा में मौजूद नहीं रहते थे। डॉ.गोविंद सिंह सरकार पर कोई बड़ा हमला बोलकर उसे घेर नहीं पाए थे। अब प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार हैं। उन्हें अपने दल के वरिष्ठ सदस्यों को साधकर सरकार को घेरना है। उनकी आगे की राजनीति की राह भी तब ही आसान होगी जब विपक्ष के नेता के साथ अपने पक्ष के नेता के तौर भी स्थापित हो जाएंगे।

जीतू पटवारी के लिए मुश्किल ज्यादा है। वे पार्टी के अध्यक्ष हैं। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पिछले चार दशक से कांग्रेस को अपने हिसाब से चला रहे हैं। ये बात और है कि ये दोनों नेता सरकार बनाने और बचाने में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं दे पाए। मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति पर भी इन दोनों ही नेताओं का कब्जा है। विधानसभा चुनाव से पहले इन दोनों नेताओं की सार्वजनिक तौर पर हुई कपड़ा फाड़ राजनीति ने कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया है। पार्टी अथवा कांग्रेस के आला नेताओं के लिए कमलनाथ-दिग्विजय की राजनीति को समझना मुश्किल भरा रहता है।  पार्टी ने इन नेताओं के समर्थकों को खूब टिकट दिए। लेकिन, ये समर्थक चुनाव जीत कर सरकार बनाने में सहयोग नहीं दे पाए। लोकसभा चुनाव में भी इन नेताओं की कोशिश होगी टिकट उनके समर्थकों को ही मिलें। जीतू पटवारी के लिए इस दबाव के साथ जिताऊ उम्मीदवार ढूंढना मुश्किल है। चुनाव में पार्टी को नुकसान न हो इसलिए इन दोनों नेताओं को कंधे पर सवार रखना भी जरूरी है। कह सकते हैं कि जीतू पटवारी के लिए ऐसी स्थिति में संतुलन बैठाना मुश्किल होगा?
चुनाव में हार पर कमलनाथ-दिग्विजय एक मत नहीं?

विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस की हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ रहे हैं। ईवीएम को लेकर इंडी गठबंधन भी इस बार कुछ गंभीर दिखाई दे रहा है। विपक्ष जब भी ईवीएम का मुद्दा उठाता है तब सत्ता पक्ष या चुनाव आयोग किसी राज्य में हुई विपक्ष की जीत को सामने रखकर बचाव करता है। इस बार कांग्रेस मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भले ही हार गई लेकिन,तेलंगाना में उसे सत्ता मिली है। दो राज्य गंवाने के बाद एक राज्य हाथ आया है। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस परिणाम आने से पहले तक यह मानकर चल रही थी कि वह सत्ता में वापसी कर रही हैं। छिंदवाड़ा जिले की सातों सीट कांग्रेस ने जीतीं। लेकिन, दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह और भतीजे प्रियव्रत सिंह चुनाव हार गए। लक्ष्मण सिंह सेबोटेज का आरोप लगा रहे हैं। दिग्विजय सिंह ईवीएम का राग गा रहे हैं। कमलनाथ ईवीएम को लेकर बहुत नेगेटिव नहीं दिख रहे हैं। बस वे खुलकर ज्यादा नहीं बोल रहे।

दिग्विजय के खिलाफ गवाही देने जाएंगे सतीश सिकरवार ?
मार्च 2020 के दल बदल के घटनाक्रम से पहले सतीश सिकरवार भारतीय जनता पार्टी में थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में आए तो सतीश सिकरवार कांग्रेस में चले गए। भाजपा में रहते सिकरवार जिन कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ बोलते थे अब बदली परिस्थिति में उनके बारे में मुंह बंद रखना पड़ रहा है। साल 2019 में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा भिंड की एक पत्रकार वार्ता में यह आरोप लगाए थे कि भाजपा और बजरंग दल पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से पैसे लेकर भारत की जासूसी करते हैं। इस बयान के आधार पर भाजपा नेता एडवोकेट अवधेश सिंह भदौरिया द्वारा दिग्विजय सिंह के खिलाफ न्यायालय में मानहानि का मामला दर्ज कराया गया। विधायक सतीश सिकरवार साक्षी हैं, लेकिन लगातार कोर्ट में हाजिर नहीं हो रहे हैं। एडवोकेट अवधेश सिंह भदोरिया द्वारा न्यायालय में गंभीर आपत्ति दर्ज कराई गई कि दिग्विजय सिंह जानबूझकर मामले को विलंबित कर रहे हैं, जबकि साक्षी सतीश सिंह सिकरवार उनकी ही पार्टी के विधायक हैं। अदालत ने अब उनके खिलाफ  एक हजार रुपए का जमानती वारंट जारी किया है। अगली तारीख 22 जनवरी की है। सतीश सिकरवार,अदालत में दिग्विजय सिंह के बयान पर क्या बोलते हैं देखना दिलचस्प होगा?
जिला बदर हटाने के ग्राम सभा के प्रस्ताव को मानेंगे कलेक्टर?

रतलाम जिले में दो आदिवासी युवकों के खिलाफ जिला बदर की कार्यवाही रद्द करने का  ग्राम सभा का एक प्रस्ताव कलेक्टर भास्कर लक्षकार को दिया गया है। मध्यप्रदेश में यह अपने तरह का पहला मामला है। देश में भी संभवत: ऐसा मामला कभी सामने नहीं आया हो। मामला जिला बदर की कार्यवाही से जुड़ा हुआ है। इस कार्यवाही के पूरे अधिकार जिला दंडाधिकारी अर्थात कलेक्टर के पास होते हैं। विधानसभा चुनाव के समय रतलाम के तत्कालीन कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी ने सैलाना के दो आदिवासी युवकों विलेष खराड़ी और वीपी हारी के खिलाफ गलत तरीके से जिला बदर की कार्यवाही की। चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद नरेन्द्र सूर्यवंशी का तबादला कर दिया गया था। उनके स्थान पर भास्कर लक्षकार को पदस्थ किया गया था। चुनाव परिणाम के बाद यह माना जा रहा था कि चुनाव आयोग के आदेश पर किया गया तबादला आदेश भी अब बदल जाएगा। लेकिन,मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने कोई बदलाव नहीं किया है। सोमवार को अचानक आदिवासियों ने रतलाम कलेक्ट्रेट का घेराव कर लिया। कलेक्टर को बुलाने की जिद पर अड़ गए। कलेक्टर लक्षकार के आने से पहले गांव वालों ने वहीं ग्राम सभा की बैठक की। एक प्रस्ताव तैयार किया। इस प्रस्ताव को लक्षकार को देते हुए कहा कि ग्राम सभा जिला बदर का आदेश निरस्त करने के पक्ष में हैं। आदिवासी बैनर झंडे के साथ थे। बैनर पर लिखा था लोकसभा,विधानसभा से बड़ी ग्राम सभा। आदिवासियों की मांग पर कलेक्टर सभा स्थल पर आए। प्रस्ताव भी लिया। आदिवासियों को कार्यवाही का आश्वासन भी दिया है। अब देखना है कि आदिवासियों की ग्राम सभा के आदेश का कलेक्टर पर कितना असर होता है। आदिवासियों का आरोप है कि जिला बदर की कार्यवाही द्वेषपूर्ण है। जिला बदर किए गए युवकों पर चार-पांच आपराधिक प्रकरण बताए जाते हैं। पूर्व कलेक्टर पर आरोप है कि उन्होंने बीस-पच्चीस आपराधिक प्रकरण वालों को छोड़कर इनके खिलाफ कार्यवाही की है।
कुलपति की कुर्सी के लिए हो रही हैं शिकायतें
मध्यप्रदेश के एकमात्र वेटरनरी विश्वविद्यालय जबलपुर के नए कुलपति की तलाश शुरू हो गई है। इसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में वरिष्ठ पदों के प्रभारी से लेकर पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से भी कई दावेदारों ने अपनी दावेदारी पेश की है। इधर विवि से ही इस बार लगभग 10 लोगों ने कुलपति बनने के लिए आवेदन किया है। इनमें तीन डीन और डायरेक्टर हैं तो वहीं तीनों महाविद्यालय से तीन महिला प्रोफेसर ने भी कुलपति की दौड़ में हिस्सा लिया है। हालांकि इनमें तीन दावेदार ऐसे हैं, जो अपनी योग्यता के साथ केंद्र और राज्य के वरिष्ठ राजनेता और पार्टी के कार्यकर्ताओं के दम पर दावेदारी पेश कर रहे हैं। इनमें से एक दावेदार ने तो ग्वालियर से एक वरिष्ठ नेता से अपना नाम चलवा दिया है।
 इस बार चुने जाने वाले विवि के नए कुलपति के कार्यकाल चार की बजाए पांच वर्ष का होगा। पहले कार्यकाल चार वर्ष का होता था। वर्तमान में पदस्थ कुलपति प्रो. एसपी तिवारी का कार्यकाल दो मार्च 2024 को खत्म हो रहा है।
कई दावेदारों ने कुलपति के लिए गोपनीय तरीके से आवेदन किया है, ताकि उनके नाम की भनक दूसरे दावेदारों तक न पहुंचे। बावजूद इसके उनका नाम इन दिनों विवि से लेकर भोपाल तक छाया हुआ है। इस बीच कुछ दावेदारों की शिकायत करने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। दो दावेदारों की शिकायत राजभवन तक जा पहुंची है तो वहीं एक दावेदार के शिकायत ईओडब्ल्यू से करने की तैयारी हो रही है, ताकि कुलपति के दौड़ में शामिल लोगों की संख्या कम हो सकें।

शिवराज की राजनीति में बचाव की मुद्रा अख्तियार करते डॉ.मोहन यादव

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दिनेश गुप्ता
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोशल मीडिया पर अपने चिर परिचित अंदाज में दिखाई दे रहे हैं। दस तारीख आने वाली है। इसकी याद दिलाते हुए एक ट्वीट उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर किया है। हर माह की दस तारीख को मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना की हितग्राहियों के खाते में बारह सौ पचास रुपए जमा किए जाते हैं। डॉ.मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से यह चर्चा चल पड़ी थी कि शिवराज सिंह चौहान की गेम चेंजर योजना लाडली बहना को बंद कर दिया जाएगा? मोहन यादव ने मुख्यमंत्री के तौर पर 13 दिसंबर को शपथ ली थी। इसके पहले दिसंबर की दस तारीख की किश्त हितग्राहियों के खाते में जमा हो गई थी। इसी चक्कर में शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था। जब मोहन यादव के नाम का फैसला हो गया तब पद छोड़ने राजभवन दौड़ लगाई। इसके बाद से ही लाडली बहना योजना पर सवाल खड़े हो रहे थे। इसकी बड़ी वजह सरकार पर आने वाला वित्तीय भार है। दूसरा अन्य भाजपा शासित राज्यों में इस तरह की योजना संचालित नहीं हो रही। भाजपा नेतृत्व अपनी सरकारों की योजना में एकरूपता रखने की पक्षधर है।

योजना को लेकर उठ रहे तमाम सवालों के बीच मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने साफ तौर पर कहा कि शिवराज सिंह चौहान सरकार की कोई योजना बंद नहीं की जाएगी। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया साइट पर दस तारीख की याद दिलाई है। जाहिर है कि वे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी अपनी इस योजना के तहत खाते में डाले जाने वाली राशि का श्रेय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को नहीं देना चाहते। वे लखपति दीदी योजना को लेकर भी प्रतिबद्धता जताते दिखाई देते हैं। योजना की जिम्मेदारी सरकारी मुखिया की होती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव भी मामले की संवेदनशीलता और गंभीरता को समझ रहे हैं। इस कारण अपनी लकीर बड़ी करने की जल्दबाजी नहीं कर रहे। उन्होंने दस से लेकर पंद्रह जनवरी तक के कई कार्यक्रम तय किए हैं।  मुख्यमंत्री ने इंदौर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मंत्रालय के अधिकारियों से बात की। शनिवार को मुख्यमंत्री हरिद्वार से सीधे इंदौर पहुंचे थे। उन्हें रात्रि विश्राम उज्जैन में करना था। लेकिन,लाडली बहना योजना पर उठ रहे सवालों को जवाब देना जरूरी था। इस कारण वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इंदौर से की गई। बैठक में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट मौजूद थे। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय मौजूद नहीं थे। मुख्यमंत्री का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित नहीं था,संभवत: इस कारण वे इंदौर में मौजूद नहीं रहे।

पद बदला,राजनीति के नियम भी बदले

मुख्यमंत्री रहते शिवराज सिंह चौहान ने इस बात को कभी पसंद नहीं किया कि उनकी सरकार की नाकामी के किसी भी मुद्दे पर पार्टी के नेतागण सार्वजनिक मंच पर या सोशल मीडिया पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करें। नकारात्मक प्रतिक्रिया को उन्होंने विरोध मानते हुए पार्टी लाइन का उल्लंघन भी माना। पार्टी नेताओं द्वारा  किसी तरह की मांग या आग्रह सार्वजनिक मंच से करने का अधिकार शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में  नहीं था। कई बार पार्टियों की बैठक में खुद शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सार्वजनिक मंच पर सरकार की किसी भी तरह से आलोचना न की जाए। विवादास्पद मामलों पर पार्टी जनों से कहा जाता था कि वे चुप्पी साधे रहें। मीडिया कुछ भी पूछे,बोलना नहीं है। शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़े हुए अभी पूरा एक महीना भी नहीं हुआ है। इस एक माह में वे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ रहे जिसमें सरकार उनकी छाया नजर आए। भोपाल के परवलिया सड़क पर अवैध रूप से संचालित हो रहे बाल गृह से 26 बच्चियों के गायब होने की खबर सामने आते ही पूर्व मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया साइट पर मामले का जिक्र करते लिखा कि संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार त्वरित कार्यवाही करे। शिवराज सिंह चौहान ने इस ट्वीट में मांग शब्द का उपयोग करने के बजाए आग्रह शब्द का उपयोग किया। जाहिर है कि वे मांग शब्द का उपयोग कर विपक्षी नेता की भूमिका में आने से बच रहे थे।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी मामले की गंभीरता को समझा।इंदौर पहुंचते ही उन्होंने आला अधिकारियों को सख्त कार्यवाही का निर्देश देते हुए कहा कि कोई भी अवैध बाल संरक्षण गृह संचालित न हो,यह सुनिश्चित किया जाए? भोपाल के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह के लिए तो यह मामला सिर मुंडाते ही ओले पड़ने जैसा था। एक दिन पहले ही उन्होंने कलेक्टरी संभाली थी। अगली सुबह अवैध बाल संरक्षण गृह का मामला सामने आ गया। वह भी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के दखल के बाद। कलेक्टर ने महिला एवं बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल निलंबित कर दिया। वो तो गनीमत है कि कथित तौर पर गायब बच्चियां सही सलामत मिल गईं अन्यथा डॉ. मोहन यादव सरकार में बड़ा मामला बनने से कोई नहीं रोक सकता था। वैसे यह अवैध बाल संरक्षण गृह शिवराज एक-दो महीने में शुरू नहीं हुआ। तीन साल से ज्यादा का समय हो गया है। उस वक्त कौन कलेक्टर था और कौन मुख्यमंत्री यह किसी छुपा हुआ तो है नहीं। अब मुख्यमंत्री मोहन यादव की मजबूरी है कि पिछली सरकार भी उनकी ही पार्टी की थी। कमलनाथ की रही होती तो कांग्रेस को कोस लेते। अभी तो चुप्पी ही बेहतर है।

डॉ. मोहन यादव ने गार्ड ऑफ ऑनर से बनाई दूरी

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शनिवार की रात भी उज्जैन में विश्राम किया। उज्जैन को लेकर जो मिथक है वे मानते नहीं है। मिथक यह है कि जो मुख्यमंत्री अथवा राजा उज्जैन शहर में रात बिताता है उसकी कुर्सी जल्दी ही चली जाती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कह चुके हैं कि वे उज्जैन में रात्रि विश्राम मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं नागरिक के तौर पर करेंगे। अब नागरिक को तो गार्ड ऑफ ऑनर दिया नहीं जाता। रविवार को मुख्यमंत्री जब उज्जैन जेल का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां गार्ड ऑफ ऑनर भी देने की तैयारी थी। उन्होंने अधिकारियों से साफ कह दिया कि वे इस परंपरा में यकीन नहीं रखते। जाहिर है कि वे उज्जैन में नागरिक ही रहना चाहते हैं।

उमंग सिंघार को ऐतराज क्यों?

चार दिन पहले सरकार ने 2015 बैच के आईपीएस अधिकारी अखिल पटेल को डिंडोरी का पुलिस अधीक्षक बनाया है। यह हो नहीं सकता कि अखिल पटेल का नाम प्रस्तावित करने के साथ गृह विभाग के आला अधिकारियों ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समक्ष यह तथ्य न रखा हो कि अखिल पटेल प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार के बहनोई है। अखिल पटेल पुलिस मुख्यालय में सहायक पुलिस महानिरीक्षक के पद पर पदस्थ थे। नवंबर 2022 में उन्हें अनूपपुर के पुलिस अधीक्षक के पद से हटाकर पुलिस मुख्यालय लाया गया था। अनूपपुर में उनका कलेक्टर सोनिया मीणा से टकराव हो गया था। टकराव की वजह सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस कार्यवाही थी। मुख्य सचिव तक अखिल पटेल की शिकायत पहुंची। कलेक्टर ने भी सरकार को पत्र भेजा। तत्कालीन डिवीजनल कमिश्नर राजीव शर्मा की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने अखिल पटेल को फील्ड पोस्टिंग से हटा लिया। अब मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने उन्हें फिर  फील्ड में भेज दिया। इस पर नेता प्रतिपक्ष को लग रहा है कि इससे उनकी छवि प्रभावित हो सकती है। शायद उन्हें लग रहा है कि जनता यह मान लेगी कि प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार की सरकार से सांठगांठ हो गई है। ऐसी ही आशंका के चलते उन्होंने एक ट्वीट कर मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि पटेल का तबादला निरस्त कर उन्हें लूप लाइन में ही रखा जाए। अब देखना है कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं?

हरदा भाजपा में बदलाव

विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने चौथी बार भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई है। लेकिन,हरदा जिले में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। हरदा में विधानसभा की दो सीटें हैं। हरदा एवं टिमरनी। टिमरनी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। हरदा सीट पर शिवराज सिंह चौहान सरकार के मंत्री कमल पटेल चुनाव लड़े थे। टिमरनी से संजय शाह उम्मीदवार थे। दोनों सीटें कांग्रेस ने जीत ली। पिछले दिन पूर्व मंत्री कमल पटेल का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे यह कहते दिख रहे हैं कि पार्टी के जिला अध्यक्ष अमर सिंह मीणा के सेबोटेज के कारण हार गए। मीणा तीन बार से पार्टी के जिला अध्यक्ष बनाए जाते रहे हैं। शिकायत के बाद पार्टी ने अब उन्हें हटा कर राजेश वर्मा को जिला अध्यक्ष नियुक्त किया है। पार्टी लोकसभा चुनाव में बैतूल सीट पर कोई खतरा नहीं लेना चाहती। हरदा जिले की दोनों विधानसभा सीट बैतूल लोकसभा में आती हैं।

जयवर्धन सिंह को मिला मौका

राघोगढ़ के विधायक पूर्व मंत्री जयवर्द्धन सिंह को भी कांग्रेस नेतृत्व धीरे-धीरे मुख्य धारा में ला रहा है। जयवर्द्धन सिंह,पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे हैं। वे कमलनाथ सरकार में नगरीय प्रशासन एवं आवास विकास विभाग के मंत्री थे। दिग्विजय सिंह के कारण ही जयवर्द्धन सिंह को राष्ट्रीय स्तर की समितियों में जगह नहीं मिल पा रही  थी। पार्टी परिवारवाद के आरोपों से बचने की कोशिश करती  थी। लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार तय करने पार्टी ने क्लस्टर लेवल पर स्क्रीनिंग कमेटियां बनाई हैं। इन कमेटियों के जिम्मे उम्मीदवारों के नामों की छानबीन करना है। जयवर्द्धन सिंह उस कमेटी में है जिसे बिहार,झारखंड,पश्चिम बंगाल,असम,अरुणाचल प्रदेश,मणिपुर,मिजोरम मेघालय,नागालैंड,त्रिपुरा और सिक्किम राज्यों के उम्मीदवार ढूंढने हैं। यह पांचवे क्लस्टर वाली कमेटी है। इसके अध्यक्ष राणा केपी सिंह हैं। जयवर्द्धन सिंह से पहले कांग्रेस नेतृत्व उमंग सिंघार को मध्यप्रदेश कांग्रेस विधायक दल का नेता और जीतू पटवारी को प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर चुका है। कमलेश्वर पटेल जैसे चेहरे भी कार्यसमिति में जगह पा चुके हैं।

कैबिनेट की औपचारिक बैठक में अनुमोदन की औपचारिकता

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दिनेश गुप्ता
जबलपुर में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कैबिनेट की पहली औपचारिक मीटिंग थी। पहली इस मायने में कि मंत्रियों के विभागों के वितरण के बाद यह पहली औपचारिक बैठक थी। कैबिनेट की पिछली बैठक मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद हुई थी। पूरी तरह से अनौपचारिक बैठक थी। मंत्रियों को विभाग भी नहीं मिले थे। जबलपुर की बैठक में कैबिनेट की मंजूरी के लिए जो विषय कार्यसूची में थे,उनमें अधिकांश मामले अनुमोदन के थे। ग्वालियर मेले में वाहनों की खरीदी पर पचास प्रतिशत रोड टैक्स की माफी का आदेश पहले ही लागू हो चुका है। गुरुवार को मेले का शुभारंभ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया।  तेंदूपत्ता संग्राहकों को चार हजार रुपए प्रति मानक बोरा मजदूरी दिए जाने का निर्णय पहले ही लिया जा चुका है। औपचारिक आदेश भी जारी किया जा चुका है। कैबिनेट में सिर्फ औपचारिक मंजूरी के लिए लाया गया था। राज्यपाल के अभिभाषण का प्रस्ताव भी सिर्फ अनुमोदन के लिए था। कोई चर्चा होना नहीं थी। मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति किलो दस रूपए की राशि किसान को दिए जाने का निर्णय महत्वपूर्ण है। इसके लिए कैबिनेट ने रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू करने का निर्णय लिया है। योजना के अंतर्गत श्री अन्न – कोदो-कुटकी, रागी, ज्वार, बाजरा आदि के उत्पादन करने वाले किसानों को प्रति किलो 10 रुपए की राशि प्रदान की जाएगी। यह राशि सीधे किसानों के खाते में अंतरित की जाएगी। मध्यप्रदेश में कोदो- कुटकी की खेती मण्डला, डिण्डोरी, बालाघाट, छिन्दवाड़ा, अनूपपुर, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, शहडोल, सिवनी और बैतूल जिलों में होती है।

कोदो-कुटकी के किसानों की आय में वृद्धि के लिए फसल उत्पादन, भण्डारण, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग, उपार्जन, ब्रांड बिल्डिंग के साथ वैल्यू चेन विकसित करने के उद्देश्य से रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू की जा रही है। योजना को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा सकता है। कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में लाभ के लिए यह योजना लागू की जा रही है। जबलपुर में कैबिनेट की मीटिंग रखने का उद्देश्य भी राजनीतिक ही था। इससे लोगों में विकास की उम्मीद भी जागी। मंत्रियों ने अपने-अपने विभाग से संबंधित गतिविधियों का जायजा लिया। लोगों से मिलकर भी उनकी जरूरतों को समझा। एक आशा का सकारात्मक भाव लोगों के अंदर आया है। पिछले कुछ सालों से राज्य में सरकार का कामकाज एक ही तरह के ढर्रे पर चल रहा था। मुख्यमंत्री भी उन्हीं से मिलते थे,जिनसे मिलना होता था। सुना भी उन्हें जाता था जिन्हें सुनना होता था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश भर का दौरा कर कार्यकर्ताओं से भी संवाद के द्वार खोले जा रहे हैं।

जहां बैठी कैबिनेट वहां तैयार हुआ महंगी बिजली का प्लान

जबलपुर में कैबिनेट की बैठक शक्ति भवन में हुई। शक्ति भवन में ही पावर मैनेजमेंट कंपनी का दफतर है। इस दफ्तर में ही बिजली महंगी करने का प्लान तैयार किया गया है। इस बार कंपनी की नजर ऐसे उपभोक्ताओं पर है जिनकी मासिक खपत 150 से 300 यूनिट तक है। कंपनी ने ऐसे उपभोक्ताओं के लिए बिजली 6.85 रुपए प्रति यूनिट पर देने का प्रस्ताव राज्य नियामक आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है। कंपनी ने 300 यूनिट पर लगने वाले टैरिफ को भी समाप्त करने का भी प्रस्ताव दिया है। नियत प्रभार में वृद्धि प्रस्तावित की गई है। शहरी क्षेत्र में तीन  रुपए  और ग्रामीण क्षेत्र में दो रुपए नियत प्रभार वसूलने का प्रस्ताव दिया है। बिजली को सत्रह पैसे से लेकर 24 पैसे प्रति यूनिट तक महंगा करने का प्रस्ताव है। वर्तमान में पचास यूनिट बिजली 3.34 प्रति यूनिट की दर पर मिल रही है। इसे बढ़ाकर 3.58 रुपए प्रति यूनिट किए जाने का प्रस्ताव है। पावर मैनेजमेंट कंपनी ने बिजली दरों में वृद्धि का प्रस्ताव अपने घाटे को पूरा करने के नाम पर दिया है। हर साल इसी आधार बिजली की दरें बढ़ती हैं। पिछली बार 1.65 फीसदी बिजली महंगी की थी। कंपनी ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि उसे 55072 करोड़ रुपए की जरूरत होती है। उसकी आमदनी 53026 करोड़ रुपए है। अंतर 2046 करोड़ रुपए का है।

मामा के घर की सियासत

शिवराज सिंह चौहान घर बैठने वाले राजनेता नहीं हैं। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वे अब तक सिर्फ एक बार दिल्ली गए हैं। वह भी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बुलावे पर। उन्होंने अपनी दिल्ली यात्रा में न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और न ही गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की कोई तस्वीर सामने आई। भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अमित शाह बड़ा पावर सेंटर हैं। इस पावर सेंटर के नजदीक आए बगैर भाजपा की राजनीति संभव नहीं है। लेकिन, शिवराज सिंह चौहान मौजूदा दौर में अपनी ताकत के साथ राजनीति करते दिखाई दे रहे हैं। उनकी ताकत मध्यप्रदेश की महिला वोटर हैं। इनसे भाई और मामा का रिश्ता भी बना लिया है। अपने हर कार्यक्रम में वे इस बात का उल्लेख भी करने से नहीं चूकते। अब उन्होंने अपने 74 बंगला स्थित सरकारी आवास पर मामा का घर की तख्ती लगाकर आगे की सियासत भी स्पष्ट कर दी है।

जबलपुर के बाद किसकी बारी

जबलपुर में कैबिनेट की बैठक के बाद वहां के कलेक्टर सौरव कुमार सुमन को हटा दिया गया। सुमन को हटाने का फैसला शायद पहले ही ले लिया गया हो? लेकिन,आदेश बैठक के बाद जारी किए गए। जबलपुर के कलेक्टर बनाए दीपक सक्सेना नरसिंहपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। वे 2020 तक नरसिंहपुर में पदस्थ थे। सक्सेना सितंबर 2021 से संचालक खाद्य एवं आपूर्ति और भंडार निगम के प्रबंध संचालक के पद पर पदस्थ हैं। जबलपुर कलेक्टर के पद से हटाए गए सौरव कुमार सुमन 2011 बैच के अधिकारी हैं। वे 2022 नवंबर में जबलपुर के कलेक्टर बने थे। अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। बिहार मूल के अधिकारी हैं। जबकि जबलपुर के कलेक्टर बनाए दीपक सक्सेना मध्यप्रदेश के ही है। उनका गृह जिला उज्जैन है। उज्जैन मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव का भी गृह जिला है। संभव है इस कारण उन्हें एक बार फिर जिले में जाने का मौका मिल गया हो? सरकार ने गुरुवार को ही नरसिंहपुर में भी कलेक्टर की नियुक्ति कर दी है। शीतल पटले को जिम्मेदारी दी गई है। वे 2014 बैच की अधिकारी हैं। वर्तमान में वे उप सचिव मुख्यमंत्री तथा परियोजना संचालक स्किल डेवलपमेंट के पद पर पदस्थ थीं। इस तरह मुख्यमंत्री निवास से एक और अधिकारी की रवानगी कर दी गई है।

जबलपुर मीटिंग का पुलिस पर इफेक्ट

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा जबलपुर में संभागीय समीक्षा बैठक ली गई। इस बैठक में पार्टी के वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई की ओर पुलिस बल की कमी का मुद्दा उठाया गया। मुख्यमंत्री को बताया गया कि जबलपुर एवं इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद जबलपुर सहित प्रदेश के कई शहरों से आरक्षकों को वहां अटैच कर दिया गया। इनकी वापसी अब तक नहीं की गई है। मुख्यमंत्री ने तत्काल पुलिस महानिदेशक को कार्यवाही के लिए कहा गया। जो आरक्षण इंदौर एवं भोपाल में अटैच थे। उन्हें वापस कर दिया गया।