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राम काज में सरकार की सक्रियता से सियासी लाभ की तैयारी

दिनेश गुप्ता
माहौल पूरी तरह से धार्मिक हो चुका है। मंदिर ही नहीं सरकारी कार्यालयों में भी धुलाई,पुछाई का कार्यक्रम चल रहा है। अयोध्या का प्रशासन राम काज में व्यस्त हो समझ में आता है लेकिन, मध्य प्रदेश का शासन,प्रशासन भोपाल से लेकर झाबुआ तक कौन सा राम काज कर रहा है? अफसरों के लिए राम काज का फरमान सरकार की ओर से जारी किया गया,इसलिए लोग कार्यालय छोड़कर मंदिर-मंदिर आयोजन सुनिश्चित कराने में व्यस्त हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहचान में उनके माथे का सिंदूरी तिलक और भगवा गमछा है। यह पहचान राम काज के कारण ही बन पाई है। यह दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता कि प्रशासनिक अधिकारियों को राम काज में लगाने का कोई आदेश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की ओर से दिया गया होगा? वैसे मध्य प्रदेश की नौकरशाही अब अपने राजनीतिक आकाओं के सामने अपने नंबर बढ़ाने के लिए आदेश का इंतजार नहीं करती है। हो सकता है ताजा आदेश भी नौकरशाही के उत्साहजनक परिणाम के तौर पर सामने हो। आदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग ने जारी किया है,इस कारण यह माना जा सकता है कि सरकार के राजनीतिक नेतृत्व की सहमति ली गई होगी? धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजोरा हैं। गृह विभाग भी उनके पास है।

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मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंत्रालय में बैठे आला अफसरों के लिए संभागीय प्रभारी की जो व्यवस्था स्थापित की है उसमें राजोरा उज्जैन संभाग के प्रभारी हैं। जाहिर है कि वे मुख्यमंत्री की पसंद होंगे? मुख्यमंत्री की पसंद-ना पसंद को ध्यान में रखकर ही राजोरा सरकारी आदेश भी जारी करते होंगे? शिवराज सिंह चौहान की सरकार में भी राजोरा चर्चा में रहते थे। धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग द्वारा 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के नाम 9 बिंदुओं के निर्देश जारी किए गए। कलेक्टरों को कहा गया कि वे (समस्त कलेक्टर)16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में जन सहयोग से राम कीर्तन और दीप प्रज्वलन का कार्यक्रम सुनिश्चित करें। कलेक्टरों को राम मंडलियों को कीर्तन के लिए प्रेरित करना है, मुख्य मंदिरों में टीवी स्क्रीन लगवाना है। मंदिरों में साफ-सफाई कराना है। नगरों और शहरों में सफाई अभियान चलाना है। इसके अलावा अपने सरकारी कार्यालयों में भी सफाई कराना है। इसके अलावा कलेक्टरों से कहा गया है कि जो लोग अयोध्या जा रहे हैं उन यात्रियों के सम्मान और स्वागत की व्यवस्था भी सुनिश्चित करें। 22 जनवरी के कार्यक्रम में अयोध्या में प्रवेश सीमित है। इस तथ्य से सभी वाकिफ हैं। लेकिन,माहौल उत्सवी है तो हर अफसर अपनी आस्था और भक्ति का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहना चाहता। हर गांव-शहर में सरकारी दफ्तरों से अफसर गायब है। हर जगह एक ही जवाब है राम मंदिर के कार्यक्रम में व्यस्त हैं?


राम वनगमन पथ क्यों नहीं बना?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के राजकाज से ज्यादा लोग उनके वनवास के बारे में जानते हैं। राम को राजतिलक छोड़कर वन गमन करना पड़ा था। राज काज वन से लौटने के बाद किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बनकर तैयार हो गया। इस मंदिर में ही 22 जनवरी को रामलला की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मंदिर का निर्माण पांच साल में हो गया। यद्यपि मंदिर के एक बड़े हिस्से का निर्माण अभी बाकी है। अधूरे निर्माण में प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर कांग्रेस के सवाल हैं। इन सवालों को कोई सुनना और समझना नहीं चाहता। इसकी बड़ी वजह यह है कि अधूरे निर्माण पर बात करने पर भी वे हिन्दू और राम विरोधी करार दिए जा सकते हैं। लेकिन,कोई भी मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार में रिकार्ड समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान से यह सवाल नहीं पूछ रहा कि आखिर सोलह साल में भी राम वन गमन पथ का निर्माण क्यों नहीं किया गया? राम का वनवास चौदह साल का था,लेकिन उनके वन गमन पथ का निर्माण न जाने कितने सालों में होगा? कितने चुनाव में यह मुद्दा उठता रहेगा?

राम वन गमन पथ बनाने का निर्णय वर्ष 2007 में लिया गया था। 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले संस्कृति विभाग ने इसके लिए कमेटी भी बना दी थी। भगवान राम ने अपने वनवास का ज्यादातर समय चित्रकूट में बिताया था। इसके बाद जब वे सीताजी की खोज में लंका की तरफ गए तो मध्य प्रदेश के कई रास्तों से होकर गुजरे थे।
खास बात ये है कि जब-जब चुनाव का मौका आया, ये प्रोजेक्ट फाइलों से बाहर निकला। लोकसभा चुनाव नजदीक है, इसलिए एक बार फिर मप्र सरकार को इस प्रोजेक्ट की याद आ गई है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 16 जनवरी को चित्रकूट में राम वन गमन पथ न्यास की पहली बैठक भी कर ली।  2015 में केंद्र सरकार ने रामायण सर्किट का ऐलान किया, तब इस प्रोजेक्ट को केंद्र की इस योजना में मर्ज कर संस्कृति विभाग को सौंप दिया गया। इससे पहले यह अध्यात्म विभाग के अधीन था।
2018 में भाजपा चुनाव हार गई और मप्र में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस प्रोजेक्ट को धर्मस्व विभाग को सौंप दिया और राम वन गमन पथ के लिए 22 करोड़ रु. का टोकन अमाउंट भी आवंटित किया था। प्रोजेक्ट पूरा हो पाता, उससे पहले ही कांग्रेस की सरकार गिर गई। एक बार फिर भाजपा ने सत्ता में वापसी की। प्रोजेक्ट एक बार फिर संस्कृति विभाग को सौंप दिया गया। 2023 में चुनाव से पहले राम वन गमन पथ ट्रस्ट बनाने का शिवराज सरकार ने ऐलान किया। गठन के 7 महीने बाद ट्रस्ट की पहली बैठक चित्रकूट में हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रामायण सर्किट भी अधूरा
नरेंद्र मोदी  के प्रधानमंत्री बनने के बाद वर्ष  2015 में केंद्र सरकार ने रामायण सर्किट नाम से एक परियोजना बनाकर भगवान राम से जुड़े 21 स्थानों को पर्यटन के एक कॉरिडोर से जोड़ने और तीर्थों के विकास की योजना बनाई थी। राम से जुड़े जिन ऐतिहासिक स्थलों की पहचान की गई, उनमें उप्र में पांच, मप्र में तीन, छत्तीसगढ़ में दो, महाराष्ट्र में तीन, आंध्र प्रदेश में दो, केरल में एक, कर्नाटक में एक, तमिलनाडु में दो और श्रीलंका में एक स्थान शामिल था। केंद्र ने इस प्रोजेक्ट के लिए 13 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए थे। तत्कालीन शिवराज सरकार ने अपने प्रोजेक्ट को रामायण सर्किट में शामिल करा लिया था ताकि चालीस प्रतिशत राशि केंद्र सरकार से मिल सके। वर्ष 2017 में चित्रकूट में वनवासी राम पथ के साथ-साथ ओरछा के रामराजा लोक को इस सर्किट में शामिल किया था। 2018 के चुनाव में भाजपा की हार हुई और कमलनाथ सरकार सत्ता में आई। कमलनाथ सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस प्रोजेक्ट को नए सिरे से अमली जामा पहनाने का फैसला लिया क्योंकि विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने इस प्रोजेक्ट को शामिल किया था।
पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक 6 महीने पहले 4 मई 2023 को सरकार को एक बार फिर इस प्रोजेक्ट की याद आई। शिवराज कैबिनेट ने श्री राम वन गमन पथ न्यास के गठन को मंजूरी दी।

अनय द्विवेदी पर गिरेगी गाज?

विवादास्पद 2010 बैच के आईएएस अधिकारी अनय द्विवेदी एक बार फिर चर्चा में हैं। अनय द्विवेदी के साथ विवादास्पद का विशेषण इसलिए उपयोग किया जाने लगा हैं क्योंकि वे जहां भी रहते हैं कुछ ऐसा करते हैं कि विवाद खड़ा हो जाता है और सरकार को उनका तबादला करना पड़ता है। जिस ऊर्जा विभाग में पदस्थ हैं उसके मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को जेल भिजवाने वाले अनय द्विवेदी ही थे। बात उन दिनों की है जब द्विवेदी ग्वालियर में नगर निगम आयुक्त थे। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में उनका आखिरी तबादला खंडवा कलेक्टर के पद से हुआ था। वे पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध संचालक बनाए गए थे। अनय द्विवेदी की कार्यशैली में लचीलापन नहीं है। जबकि वे खूब योग-ध्यान करते हैं। उनके द्वारा किए जाने वाले कठिन योगासन की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है। खंडवा में उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर जनसंपर्क अधिकारी का तबादला कर दिया था। इस बार वे केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते से टक्कर ले रहे हैं। कुलस्ते के बहनोई अशोक धुर्वे,द्विवेदी के अधीन मुख्य महाप्रबंधक हैं। अशोक धुर्वे को लेकर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि कुलस्ते हार गया,धुर्वे को भगाओ। बात कुलस्ते से होती हुई मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक जा पहुंची है। कुलस्ते ने इसे अपने अपमान से जोड़ दिया है। जाहिर है कि मुख्यमंत्री को द्विवेदी का यह व्यवहार पसंद नहीं आएगा।
अधिकारियों का व्यवहार आक्रामक क्यों है?
  मध्यप्रदेश में नौकरशाही का रवैया बेहद खराब है। खासतौर पर आमजन से अधिकारियों का व्यवहार हमेशा ही आपत्तिजनक रहा है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना चुका है। इसके बाद भी अधिकारियों की मानसिकता आमजन को गुलाम समझने की दिखाई देती है। शाजापुर में कलेक्टर रहे किशोर कान्याल का व्यवहार पूरे देश ने देखा। इसके बाद सोनकच्छ की तहसीलदार अंजली गुप्ता की चर्चा हो रही है। ये तो सिर्फ दो प्रतीक हैं। भांग तो पूरे कुएं में घुली हुई है। इसका दोष शिवराज सिंह चौहान को दिया जाना चाहिए या नहीं इसे लेकर दो मत हो सकते हैं। शिवराज सिंह चौहान अक्सर नौकरशाही को हड़काते हुए यह कहते सुने जाते थे कि उल्टा लटका दूंगा। इसके बाद भी राज्य में नौकरशाही का रवैया नहीं सुधारा तो इसकी वजह भ्रष्टाचार है। इस भ्रष्टाचार के कारण ही अधिकारियों ने मंत्रियों,विधायकों को कुछ नहीं समझ तो जनता कहां लगती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने अधिकारियों का व्यवहार जन अपेक्षा के अनुरूप बनाना भी बड़ी चुनौती है। कितने अधिकारियों को वे उनके व्यवहार की शिकायत आने पर हटाएंगे? एक दिन यह सिलसिला भी बंद हो जाएगा। बेहतर है कि उनके व्यवहार का उल्लेख भी सीआर में किया जाए।

कांग्रेस की चिंता दलित वोटर,बसपा के मैदान में होने से किसे नुकसान?

दिनेश गुप्ता
बहुजन समाज पार्टी लोकसभा में बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसका ऐलान भी कर दिया है। बसपा चुनाव मैदान में होगी तो इससे नुकसान कांग्रेस को होगा या भारतीय जनता पार्टी को ? यह एक ऐसा सवाल जिसका जवाब हर सीट पर अलग होगा। खासकर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद। हाल ही में संपन्न विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली है।उसका वोट प्रतिशत भी घट गया है। पिछले चुनाव में उसके दो विधायक चुने गए थे। राम बाई और संजीव सिंह कुशवाहा। संजीव सिंह कुशवाहा की राजनीति जहां दम वहां हम की रही। जब तक कांग्रेस की सरकार रही तब तक राम बाई और संजीव कुशवाहा दोनों ही कमलनाथ की सरकार को समर्थन देते रहे। सरकार जाने के बाद संजीव कुशवाहा भारतीय जनता पार्टी के साथ हो गए। चुनाव की घोषणा से पहले वे भाजपा में शामिल हुए लेकिन,टिकट नहीं मिली। वापस बसपा में जाना पड़ा। बसपा ने टिकट भी दी लेकिन,संजीव कुशवाहा चुनाव नहीं जीत पाए। बसपा की राजनीति इसी तरह की रही है। सुमावली में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला तो बसपा ने कुलदीप सिंह सिकरवार को टिकट दे दी।

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कहने का आशय यह है कि बसपा का नेतृत्व अपने जनाधार का उपयोग निजी हितों के लिए करता आया है। शायद यही कारण है कि फूल सिंह बरैया को बसपा छोड़ना पड़ी। बसपा की मजबूती के लिए उन्होंने बहुत काम किया था। बसपा से जनाधार वाले जाटव नेताओं के चले जाने के कारण लगातार उसकी स्थिति कमजोर होती जा रही है। मध्यप्रदेश में नब्बे के दशक में बसपा का जनाधार तेजी से बढ़ा था। 1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा को दो सीटें मिलीं थीं। मध्यप्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था। कुल चालीस लोकसभा की सीटें  थीं। इससे पहले हुए 1993 के विधानसभा चुनाव में बसपा को ने ग्यारह सीटों पर सफलता दर्ज कराई थी।  विंध्य में बसपा का असर सबसे ज्यादा था। अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता सतना में तीसरे नंबर पर आ गए थे। रीवा में महारानी प्रवीण कुमारी चुनाव हार गईं थीं। बसपा का वोट सामान्य सीटों पर ज्यादा असर डालता है। 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 143, कांग्रेस ने 71 और बसपा ने सात सीटें जीती थीं। तब बीजेपी का वोट शेयर 37 प्रतिशत और कांग्रेस का 32 प्रतिशत था। बसपा ने 9 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। साल 2018 के चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी को 1 करोड़ 56 लाख 43 हजार  623 वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 696 वोट मिले थे. बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी बसपा ही थी। पार्टी राज्य में कुल मतों में से 19 लाख 11 हजार 642 वोट यानी 5.1 फीसदी वोट मिले थे।
 2019 में बसपा ने सपा के साथ मिलकर लड़ा लोकसभा चुनाव
मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने लोकसभा का पिछला चुनाव गठबंधन बनाकर लड़ा था। लेकिन,दोनों ही दलों कोई सफलता नहीं मिल पाई थी। इस बार बसपा किसी भी तरह का गठबंधन नहीं बना रही है। यह माना जा रहा है कि वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए ही वह मैदान में रहेगी। पिछले लोकसभा चुनाव का अनुभव यही है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सपा से ज्यादा नुकसान बसपा के कारण हुआ। बसपा-सपा ने बालाघाट लोकसभा की सीट पर चुनाव उत्तर प्रदेश के कैराना की तर्ज पर लड़ा था।  कंकर मुंजारे उम्मीदवार थे। वे नए फार्मूले में अपना पुराना वोट भी नहीं बचा पाए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में मुरैना की सीट ऐसी थी,जिस पर करतार सिंह भड़ाना की मौजूदगी से भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव जीत गए थे। बसपा को लोकसभा चुनाव में 2.4 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है दलित वोट
भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 82 सीटों में से 50 पर जीत हासिल की है, जो 2018 के चुनाव से 17 सीट ज्यादा है। भाजपा ने राज्य में एससी और एसटी समुदायों के बीच अपना आधार बढ़ाया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के वोटों के कारण ही बनी थी। ग्वालियर में हुआ वर्ग संघर्ष दलित वोटों को कांग्रेस के पक्ष में ले आया था।  अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 35 सीटें 33 जिलों के तहत आती हैं। इनमें से दो जिले सागर और उज्जैन में अनुसूचित जाति के लिए दो-दो सीटें सुरक्षित हैं।
बसपा की रणनीति से किसे लाभ?
बहुजन समाज पार्टी ने मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों को तीन अलग-अलग जोन बांटा है। तीनों जोन के लिए अलग-अलग प्रभारी हैं। इनमें मुख्य प्रदेश प्रभारी रामजी गौतम, प्रदेश प्रभारी मुकेश अहिरवार और प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल शामिल हैं। तीनों ही प्रभारी प्रदेश की सभी 29 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। बसपा ने जोन बनाए हैं वे ग्वालियर-मध्य क्षेत्र, रीवा-जबलपुर और मालवा-निमाड़-मध्य क्षेत्र-2 शामिल हैं।
रीवा-जबलपुर जोन में खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट और छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को शामिल किया गया है. जबकि ग्वालियर-मध्य क्षेत्र में मुरैना, भिंड ग्वालियर, गुना, राजगढ़, दमोह, बैतूल और होशंगाबाद शामिल हैं. इसी तरह मालवा-निमाड-मध्य क्षेत्र-2 में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, खरगोन, खंडवा, धार, भोपाल और विदिशा शामिल हैं।
सपा में भी है हलचल
समाजवादी पार्टी इस बार बहुजन समाज पार्टी के साथ नहीं है। वह भाजपा के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा है। इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच टकराव के हालात देखे गए थे। इसकी वजह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ थे। कमलनाथ यदि अखिलेश-वखिलेश का बयान नहीं देते तो शायद कांग्रेस-सपा के बीच दोस्ताना मुकाबला हो सकता था। कमलनाथ ने बयान दिया तो अखिलेश यादव ने अपनी गतिविधियां मध्यप्रदेश में बढ़ा दी। मध्यप्रदेश में सपा को वोट और सीट भले ही नहीं मिले लेकिन,अखिलेश यादव के अपमान के कारण यादव वोट जरूर भाजपा के साथ चले गए। यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा था।

चुनाव नतीजों के बाद इस तरह की बात सामने आ रही है कि कमलनाथ की दिलचस्पी सरकार बनाने में थी ही नहीं। लोकसभा चुनाव में क्या सपा-कांग्रेस के बीच कोई तालमेल हो पाएगा? यह बड़ा सवाल है। इसका जवाब अब तक इसलिए सामने नहीं है क्योंकि इंडिया गठबंधन की ओर से अब तक बंटवारे को लेकर अधिकृत तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। समाजवादी पार्टी अपनी तैयारी कर रही है। मध्यप्रदेश में एक बार फिर वह बालाघाट की सीट पर जोर लगा सकती है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया है। पार्टी के सभी जिलाध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्षों समेत 10 लोकसभा प्रभारियों को भी तत्काल प्रभाव से पद से हटा दिया है।
भाजपा में विद्यार्थी परिषद का दबदबा

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वाले हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई बड़े नेता इसी पृष्ठभूमि के हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का बैकग्राउंड भी विद्यार्थी परिषद का ही है। कह सकते हैं कि सत्ता और संगठन में विद्यार्थी परिषद की पकड़ है। पार्टी में जो पदाधिकारी नियुक्त किए जा रहे हैं उनकी पृष्ठभूमि भी कहीं न कहीं विद्यार्थी परिषद की ही सामने आ रही है। हाल ही में मऊगंज जिला भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए राजेन्द्र मिश्रा विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आए हैं। मऊगंज उन चार जिलों में है जहां भाजपा ने अलग संगठनात्मक इकाई गठित की है। मैहर में मैहर भाजपा की कमान कमलेश सुहाने को सौंपी है। सुहाने सतना भाजपा संगठन में महामंत्री और कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। सितना से अलग हो कर मैहर के जिला बनने के बाद भाजपा संगठन का भी सतना से अलग होना तय था। सुहाने को यह जिम्मेदारी मिलने की संभावना भी प्रबल थी। हालांकि अमर पाटन विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत रामनगर के भाजपा नेता और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अरुण द्विवेदी के प्रयास भी चर्चा में थे। मैहर भाजपा को नया मुखिया मिलने के बाद अब यहां जल्दी ही कार्यकारिणी की भी घोषणा की उम्मीद जताई जा रही है।

आखिर किसने गायब किया था अपने होर्डिंग से शिवराज सिंह चौहान का फोटो ?

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दिनेश गुप्ता
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस बात का जिक्र हमेशा होता रहेगा कि पद पर रहे तो आपके चरण कमल के समान और पद से हटे तो होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। वैसे यही सच्चाई है। राजनीति हो या कोई और क्षेत्र। व्यक्ति से ज्यादा पूजा पद की होती है। व्यक्ति पर भी पद ही हावी होता है। जब पद हावी होता तब व्यक्ति  मैं और मेरे की भाषा बोलने लगता है। शिवराज सिंह चौहान ने जब  होर्डिंग से फोटो हटने की बात कही तो  भाजपा में ऐसे बहुत से लोगों की दबी हुई प्रतिक्रिया सामने आई जिसमें कहा गया  कि पद रहते वक्त शिवराज सिंह चौहान भी कहां दाएं-बाएं देख रहे थे? बात करने तक का तो समय नहीं था। कोई मिला तो यह कहकर बचने की कोशिश कि आज व्यस्त हूं, बाद में लंबी बात करेंगे। मुख्यमंत्री निवास भी ऐसा हो गया कि बिना मर्जी कोई अंदर कदम नहीं रख सकता था। खैर,सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान को यह बात क्यों कहना पड़ी कि पद से हटे तो होर्डिंग से फोटो गधे के सिर से सींग जैसी गायब हो जाती है। शिवराज सिंह चौहान ने बात भले ही सामान्य तरीके से कही लेकिन,उनका निशाना कोई खास व्यक्ति ही था। वो खास व्यक्ति क्या मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं या फिर कोई और?

शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के पद से हटे हुए अभी एक महीना ही हुआ है। इस एक माह में ऐसा कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ जिसमें नेताओं के होर्डिंग पोस्टर लगे हो? मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में जरूर होर्डिंग-पोस्टर लगवाए थे। अधिकांश नेताओं के होर्डिंग में जो चेहरे थे उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,अमित शाह,जेपी नड्डा,वीडी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रमुख हैं। सिंधिया को चेहरे उनके समर्थकों के होर्डिंग में ही था। जो चरणों को कमल कहते थे संभव है कि ऐसे किसी नेता के होर्डिंग में अपना फोटो न देखकर शिवराज सिंह सिंह चौहान का दर्द सामने आ गया हो? वैसे इन दिनों प्रदेश भर में कई सरकारी होर्डिंग भी लगे हुए हैं। भोपाल शहर में भी प्रमुख सड़कों पर सरकारी होर्डिंग हैं। इन होर्डिंग पर योजनाएं और उसके हितग्राही शिवराज सिंह चौहान की सरकार के हैं। लेकिन,होर्डिंग में श्रेय मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को जाता दिख रहा है। डॉ. मोहन यादव के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी फोटो लगी हुई है। अपनी उपलब्धियां किसी और के खाते में दर्ज देखकर भी टीस उठ सकती है?
विधायक नरेंद्र कुशवाहा को हाईकोर्ट से मिली राहत
जिला अदालत में काफी समय से चल रहे अपहरण, मारपीट सहित अन्य धाराओं के मामले में भिंड से भाजपा विधायक नरेंद्र कुशवाहा और अन्य आरोपियों को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत एफआईआर को निरस्त को कर दिया।है। इसके साथ ही अभी तक निचली अदालत में हुई मामले की पूरी सुनवाई को भी निरस्त करते हुए विधायक सहित अन्य पर लगे आरोप को खत्म कर दिया है। एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रहे मुकदमे में भिंड के वर्तमान भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह पर आरोप था कि वह वर्ष 2015 में जिला पंचायत वार्ड-एक बाराकलाँ से बसपा प्रत्याशी बाबूराम जामौर को कलेक्ट्रेट कैंटीन से अपने वाहन में जबरदस्ती बैठाकर ले गए और उनको चुनाव नहीं लड़ने के लिए धमकाया, मारपीट की। बाद में हथियारों से लैस लोगों की गाड़ी में बैठा दिया। इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी। जिसके आधार पर मुकदमा चल रहा है।
आईएएस अफसर पर हाईकोर्ट की पेनल्टी
देश में ऐसे बहुत कानून और नियम हैं जिनमें कलेक्टरों को दखल अथवा कोई आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। ऐसा ही एक कानून तलाक का भी है। तलाक से भरण-पोषण जुड़ा हुआ है। तलाक होने पर महिला को कितना भरण-पोषण दिया जाए यह अदालत तय करती है। कलेक्टरों को तय करने का अधिकार नहीं है। भले ही तलाक लेने वाला व्यक्ति कलेक्टर के अधीन कार्यरत हो अथवा सरकारी कर्मचारी हो? सिंगरौली में अक्टूबर 2021 में तत्कालीन कलेक्टर राजीव रंजन मीणा ने जन सुनवाई में आए एक आवेदन पर शिक्षक के वेतन से आधा वेतन उसकी तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ मामला हाईकोर्ट पहुंचा। याचिका सिंगरौली निवासी शिक्षक कालेश्वर साहू की ओर से दायर की गई थी। इसमें कहा गया कि उसकी पत्नी ने भरण-पोषण के लिए धारा-125 के तहत कुटुम्ब न्यायालय में आवेदन किया था। कुटुम्ब न्यायालय में मामले की सुनवाई लंबित है।

सिंगरौली जिला कलेक्टर के समक्ष जनसुनवाई के दौरान उसकी पत्नी मुन्नी साहू उपस्थित हुई थीं। कलेक्टर ने याचिकाकर्ता के वेतन से 50 प्रतिशत की राशि काटकर पत्नी को भरण-पोषण के लिए प्रदान करने के आदेश अक्टूबर 2021 में जारी किए थे। कलेक्टर के निर्देशानुसार शिक्षा विभाग के जिला समन्वयक अधिकारी ने 50 प्रतिशत वेतन कटौती के आदेश जारी कर दिए।याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि भरण-पोषण की राशि निर्धारित करने का अधिकार संबंधित न्यायालय को है। ऐसा करने की न्यायिक शक्तियां जिला कलेक्टर के पास नहीं है। जिला कलेक्टर का आदेश पूरी तरह से मनमाना व अवैधानिक है। हाई कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद वेतन से कटौती की गई राशि आठ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ याचिकाकर्ता शिक्षक को प्रदान करने के आदेश जारी किए हैं। हाईकोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को मनमाना व गैरकानूनी मानते हुए याचिका-व्यय बतौर 25 हजार का जुर्माना लगा दिया। यह राशि तत्कालीन कलेक्टर से वसूलने के निर्देश दिए हैं।
सिंहस्थ की तैयारी में जुटी मोहन सरकार
सिंहस्थ वर्ष 2028 में है। इस लिहाज से तैयारियों के लिए सरकार के पास अभी वक्त है। सरकार का अनुमान है कि इस बार सिंहस्थ में तीस करोड़ से अधिक लोग पहुंचेंगे। 2016 के सिंहस्थ में तैयारियां आठ करोड़ लोगों के आने के अनुमान पर की गईं थीं। सरकार ने लगभग साढ़े चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे। अगले सिंहस्थ में श्रद्धालुओं की संख्या बढने के अनुमान का आधार महाकाल लोक में आने वाली भीड़ है। साल के पहले दिन ही छह लाख से ज्यादा लोग उज्जैन पहुंचे थे। इस बार मुख्यमंत्री ही उज्जैन से हैं। इस कारण सिंहस्थ के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने की रणनीति पर अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं। पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक की विकास योजनाएं तैयार की जा रही हैं। इनमें नए आवासीय एवं व्यावसायिक क्षेत्रों का विकास करने, शिप्रा रिवर फ्रंट डेवलप करने, 24 हजार मीटर लंबे घाटों का निर्माण, शहर में 116 सिटी बसों का संचालन करने, दताना हवाई पट्टी, सीवरेज प्रणाली सहित प्रमुख मंदिरों, पर्यटन स्थलों, सप्त सागरों, सड़कों का विकास कार्य करने जैसी कई योजनाएं शामिल हैं। उज्जैन-इंदौर फोरलेन को सिक्स लेन बनाया जाएगा। ऐसा होने पर 44 किलोमीटर का सफर 45 से 50 मिनट में पूरा हो सकेगा। अभी 60 से 70 मिनट लगते हैं। एमपी रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआरडीसी) ने इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर ली है। अगली कैबिनेट मीटिंग में इसे मंजूरी मिल सकती है। कैबिनेट से मंजूरी के बाद ही तय होगा कि प्रोजेक्ट का काम कब शुरू होगा और कब पूरा होगा। सिंहस्थ की तैयारियों की पहली बैठक 14 जनवरी को उज्जैन में आयोजित की गई है। बैठक की सूचना उज्जैन संभाग के प्रभारी अपर मुख्य सचिव राजेश राजोरा की ओर से जारी की गई है। वे गृह के साथ साथ धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के भी अपर मुख्य सचिव हैं।
शाजापुर तनाव के कारण बदले इंटेलिजेंस चीफ

यह एक सामान्य परंपरा का हिस्सा है कि मुख्यमंत्री के साथ ही जनसंपर्क आयुक्त और इंटेलिजेंस चीफ जैसे पदों पर  बैठे अधिकारियों के भी तबादले हो जाते हैं। जनसंपर्क आयुक्त के पद पर बदलाव पंद्रह दिन पहले ही हो गया था। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने मनीष सिंह के स्थान पर संदीप यादव को जनसंपर्क आयुक्त बनाया था। मनीष सिंह,शिवराज सिंह चौहान के करीबी अधिकारी माने जाते थे। तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भरोसे वाले अधिकारी थे। संदीप यादव कुछ समय पहले उज्जैन में संभागायुक्त रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से पटरी भी बैठती थी। इस कारण जनसंपर्क आयुक्त जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल गई। अब बारी इंटेलिजेंस चीफ की आई है। आदर्श कटियार के स्थान पर जयदीप प्रसाद को लाया गया है। वे पुलिस मुख्यालय में ही नारकोटिक्स जैसी लूप लाइन माने जाने वाली शाखा में अपर पुलिस महानिदेशक के तौर पर काम कर रहे थे।

कुछ माह पहले ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे हैं। जयदीप प्रसाद उज्जैन के पुलिस अधीक्षक रह चुके हैं। शायद इसी कारण उनका संपर्क मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से रहा होगा। इंटेलिजेंस चीफ को बदलने का फैसला शाजापुर में उपजे सांप्रदायिक तनाव के बाद लिया गया। यह तनाव अक्षत वितरण कार्यक्रम के दौरान उपजा। अक्षत वितरण कार्यक्रम राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए किया जा रहा है। पूरे देश में यह कार्यक्रम चल रहा है। इस मामले में इंटेलिजेंस को सतर्क रहने की जरूरत थी। लेकिन,उससे चूक हो गई। जिससे सांप्रदायिक तनाव की स्थिति निर्मित हुई।

लोकसभा से पहले राज्यसभा के चुनाव में होगी असंतुष्टों को साधने की कवायद

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दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश में राज्यसभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं। इनमें चार सीटें भाजपा की हैं। एक सीट कांग्रेस के पास है। राजमणि पटेल इस सीट पर राज्यसभा सदस्य हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ ने विंध्य क्षेत्र में कुर्मी वोटरों को साधने के लिए राजमणि पटेल को इस सीट पर राज्यसभा में भेज दिया था। 2 अप्रैल को उनके कार्यकाल का अंतिम दिन है। कांग्रेस के लिए इस सीट पर उम्मीदवार तय करने में कोई खास दिक्कत नहीं होना चाहिए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं है। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की गुड बुक में भी हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग से भी आते हैं। युवा चेहरा हैं। इससे पार्टी पीढ़ी परिवर्तन का संदेश भी आसानी से दे सकती है।
भारतीय जनता पार्टी में उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति के अनुसार तय होगा। पार्टी की कोशिश यह होगी कि जिन चेहरों को लोकसभा में भेजने में दिक्कत है उन्हें मध्यप्रदेश से राज्यसभा में भेज दिया जाए।

भाजपा के जिन सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है वे अजय प्रताप सिंह,कैलाश सोनी,धर्मेन्द्र प्रधान और डॅा. एल. मुरगन है। धर्मेन्द्र प्रधान और मुरगन केंद्र में मंत्री हैं। संभव है कि पार्टी इस बार धर्मेन्द्र प्रधान को उड़ीसा से लोकसभा चुनाव लड़ाए। मुरगन तमिलनाडु से हैं। पार्टी इनके स्थान पर किसी नए नाम पर विचार कर सकती है। इस बात की संभावना भी है कि पार्टी मध्यप्रदेश के बाहर के दो नेताओं को इन सीटों से राज्यसभा में भेज सकती है। मुरगन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के राज्य मंत्री हैं।
मध्यप्रदेश विधानसभा में इस बार भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 163 है। जबकि कांग्रेस ने 66 सीटें जीती है। राज्यसभा की एक सीट के लिए इस बार 39 वोटों की जरूरत होगी। इस हिसाब से भारतीय जनता पार्टी 156 विधायकों से ही चारों उम्मीदवारों को निर्वाचित कर लेगी। पार्टी के पास सात वोट ही अतिरिक्त हैं। जबकि कांग्रेस के पास 27 वोट अतिरिक्त हैं। इस कारण मार्च 2020 के घटनाक्रम की पुनरावृति दिखाई नहीं पड़ती।

यादव मुख्यमंत्री होने का असर तो है?

डॉ.मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद यादव समुदाय तेजी से लामबंद हो रहा है। अन्य जातियों पर भी इसका दबाव साफ दिखाई पड़ता है। पिछले दिनों पिछोर जिला शिवपुरी से भाजपा विधायक प्रीतम लोधी अपने छोटे पुत्र दिनेश लोधी को गिरफ्तार कराने खुद उसे लेकर थाने पहुंचे तो लोगों में हैरानी स्वाभाविक थी। प्रीतम लोधी और उनके दोनों पुत्रों पर मामले दर्ज हैं। ग्वालियर जिले की पुलिस भी अब  उनके खिलाफ नए मामले दर्ज कराने से बचती दिखाई देती है। खासकर प्रीतम लोधी के विधायक बनने के बाद। प्रीतम लोधी सत्ताधारी दल भाजपा के विधायक हैं। पार्टी ने ब्राह्मणों पर टिप्पणी को लेकर जब उन्हें पार्टी से बाहर किया था तब काफी बवाल मचा था। ऐन चुनाव के वक्त प्रीतम लोधी भाजपा में वापस आए और पिछोर से उम्मीदवार भी बने। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनके लिए प्रचार भी किया। चुनाव जीते तो हिसाब-किताब बराबर करने के प्रयास शुरू हो गए। प्रीतम लोधी की पत्नी मीरा लोधी ने जुलाई 2022 में हुए नगरीय निकाय के चुनाव में ग्वालियर नगर निगम के वार्ड 63 से पार्षद का चुनाव लड़ा था। भाजपा के टिकट पर वे 163 वोट से चुनाव हार गईं थी। चुनाव हराने वाला यादव परिवार,प्रीतम लोधी का पारिवारिक मित्र था। इस मित्र परिवार की उमा यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज कराई थी। जबकि जलालपुरा गांव के इस वार्ड में सिर्फ चार यादव परिवार ही रहते हैं। सिकंदर यादव का परिवार। वार्ड लोधी बाहुल्य है। प्रीतम लोधी के विधायक बनने के बाद से ही यादव परिवार को धमकी मिल रहीं थीं। 31 दिसंबर की रात दिनेश लोधी ने स्कॉर्पियो से उन्हें नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया। घर के बाहर खड़े दो पहिया वाहन को नुकसान भी पहुंचाया। मामले की रिपोर्ट जब सीसीटीवी फुटेज के साथ की गई तब पुलिस ने मामला दर्ज किया। जब दिनेश लोधी की गिरफ्तारी को लेकर यादव समाज लामबंद हुआ तो प्रीतम लोधी उसे लेकर थाने पहुंच गए। जाहिर है कि वे मौजूदा स्थिति में यादवों से पंगा नहीं लेना चाहते?

उज्जैन का विकास सरकार की प्राथमिकता

उज्जैन का विकास किसी मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में नहीं रहा। जब सिंहस्थ की तैयारियां शुरू होती हैं तो उज्जैन को लेकर सरकार की प्राथमिकता भी बदल जाती है। उज्जैन में अगला सिंहस्थ 2028 में होना है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने साधु-संतों को अभी से निमंत्रण देना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री हरिद्वार में विभिन्न अखाड़ों के संतों को न्यौत आए हैं। उज्जैन में रहते हैं तो संतों की संगत करने से नहीं चूकते। मकर संक्रांति का पर्व करीब है। क्षिप्रा में स्नान के लिए लाखों लोग उज्जैन पहुंचेंगे। कमलनाथ सरकार में क्षिप्रा की गंदगी को लेकर तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह नप गए थे। इस बार तो मुख्यमंत्री ही उज्जैन का है। नए साल पर पहली जनवरी को उज्जैन में रिकार्ड श्रद्धालु पहुंचे थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहली प्राथमिकता क्षिप्रा में साफ पानी उपलब्ध कराना है। इस सिलसिले में रविवार को उज्जैन में बैठक भी हुई। इसमें देवास और इंदौर के कलेक्टर भी मौजूद रहे। क्षिप्रा मेली होने की वजह इंदौर के सांवेर से आने वाला सीवेज है। इसे रोकने के रणनीति पर चर्चा हुई। मुख्यमंत्री उज्जैन की तस्वीर बदलना चाहते हैं। कई विकास योजनाएं उनके जेहन में हैं। महाकाल लोक से उज्जैन की अर्थ व्यवस्था भी बदली है। इस कारण उज्जैन का विकास क्षेत्र बढ़ाने पर भी विचार हो रहा है। उज्जैन के पूर्व संभागायुक्त और मौजूदा जनसंपर्क आयुक्त संदीप यादव उज्जैन की विकास योजना का समन्वय कर रहे हैं। वे रविवार की बैठक में भी उज्जैन में थे।

कमलनाथ -दिग्विजय संभालेंगे मैदान

मध्यप्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व नए हाथों में है। जीतू पटवारी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उमंग सिंघार प्रतिपक्ष के नेता हैं। जीतू पटवारी युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं,इस कारण उन्हें संगठन चलाने का अनुभव है। लेकिन,अभी भी उनकी छवि युवा और छात्र नेता की बनी हुई है। इस छवि से बाहर निकलना सबसे बड़ी चुनौती है। प्रदेश में युवक कांग्रेस के पदाधिकारियों के जरिए संगठन नहीं चलाया जा सकता। वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को भी मैदान में आना होगा। लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं है। भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर के शिखर से सत्ता के शिखर पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर चुनाव में हार का जोखिम नहीं उठाना चाहती। कमलनाथ ने विधायक की शपथ लेकर साफ कर दिया है कि वे मध्यप्रदेश में ही बने रहेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी सक्रिय भूमिका में लग रहे हैं। यह परिवर्तन तब सामने आया जब दोनों नेताओं के पुत्र कांग्रेस की विभिन्न समितियों में जगह पा गए। अब देखना है कि चुनाव जीतने में कांग्रेस का यह फार्मूला कितना काम आता है  ?

Kamal Nath said to Digvijay, whether it is a mistake or not, you will have to face abuses.
Kamal Nath said to Digvijay, whether it is a mistake or not, you will have to face abuses.

रीवा जिला महिला अफसरों के हवाले

प्रदेश में संभवत: रीवा अकेले ऐसा जिला है जिसमें महत्वपूर्ण पदों पर महिला अधिकारी पदस्थ हैं। रीवा में कलेक्टर प्रतिभा पाल है। प्रतिभा पाल अप्रैल 2023 में रीवा की कलेक्टर बनाई गईं थीं। इससे पहले वे नगर निगम आयुक्त के पद पर पदस्थ थीं। इस दौरान ही बावड़ी का हादसा हुआ था। जिसमें 36 लोगों की जान चली गई थी। इसकी पूरी जिम्मेदारी नगर निगम की थी। सरकार ने इस बात को अनदेखा कर घटना के सप्ताह भर के भीतर ही उन्हें रीवा का कलेक्टर बनाकर भेज दिया। रीवा में  एसडीएम के रूप में वैशाली जैन को पदस्थ किया गया है। उनकी पदस्थापना अनुराग तिवारी के स्थान पर की गई है। एडीएम (अपर कलेक्टर) शीलेन्द्र सिंह का भी तबादला कर दिया गया है। इस पद पर सागर से सपना त्रिपाठी को तबादला कर भेजा गया हैं। यहां जिला खनिज अधिकारी दीपमाला त्रिपाठी हैं। सिरमौर में तहसीलदार आंचल अग्रहरी हैं। भारती मरावी एसडीएम हैं। रीवा नगर निगम की कमिश्नर संस्कृति जैन हैं। जबकि जिला पंजीयक के पद पर संध्या सिंह पदस्थ हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रीवा के दौरे से पहले संभागायुक्त अनिल सुचारी का तबादला कर दिया था। रीवा छोड़ने के बाद एडीएम के हटाने का आदेश रीवा पहुंच गया।

क्या प्रतिभा पाल का भी होगा ट्रांसफर

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा अब तक जो प्रशासनिक फेरबदल किए गए हैं,उनमें उज्जैन कनेक्शन जरूर सामने आया है। इसकी वजह साफ है। मुख्यमंत्री भी उज्जैन के हैं। इस कारण वहां पदस्थ रहे अधिकारियों की खूबी और कमियां भी अच्छी तरीके से जानते हैं। रीवा की कलेक्टर प्रतिभा पाल भी उज्जैन में रही हैं। वे वहां नगर निगम की कमिश्नर थीं। मई 2018 में सतना नगर निगम से उनकी पदस्थापना उज्जैन नगर निगम में की गई थी। कमलनाथ सरकार आने के बाद प्रतिभा पाल को कलेक्टर बनाकर श्योपुर भेज दिया गया। प्रतिभा पाल जब उज्जैन में पदस्थ थीं, उस वक्त मनीष सिंह वहां कलेक्टर थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में उन्हें जनसंपर्क आयुक्त के पद से हटाकर मंत्रालय में बिना विभाग के पदस्थ कर रखा है। मनीष सिंह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीब रहे हैं।  मार्च 2020 में जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने तो मनीष सिंह को मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी प्रबंध संचालक के पद से इंदौर कलेक्टर के पद पर ट्रांसफर किया था। कुछ दिन बाद ही प्रतिभा पाल को श्योपुर कलेक्टर के पद से हटाकर इंदौर नगर निगम का कमिश्नर बना दिया गया। इंदौर नगर निगम की कुर्सी श्योपुर के कलेक्टर से ज्यादा वजनदार है। इंदौर में मनीष सिंह और प्रतिभा पाल की जुगलबंदी थी। इस जुगलबंदी के चलते कई बिल्डर परेशान हुए। मुख्यमंत्री बदले हैं तो इंदौर की बिल्डर राजनीति भी बदल रही है। ऐसे कई लोग हैं जो प्रतिभा पाल से भी अपना हिसाब बराबर करना चाहते हैं। प्रतिभा पाल 2014 बैच की अधिकारी हैं। प्रतिभा पाल उत्तर प्रदेश मूल की है। अन्य पिछड़ा वर्ग से आती हैं। बरेली की महात्मा ज्योतिबा फुले यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है।

कंसोटिया को मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठाने का दबाव बनाता अजाक्स

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दिनेश गुप्ता
वैसे तो मुख्य सचिव पद की दौड़ में सबसे आगे 1990 बैच के आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा दिखाई दे रहे हैं।  राजौरा की सक्रियता भी इसी ओर इशारा कर रही है। साइबर सुरक्षा को लेकर आयोजित की गई बैठक का नजारा भी ऐसा ही था जैसे कि मुख्य सचिव बैठक ले रहे हो?  बैठक में नगरीय प्रशासन विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव क्रमश:नीरज मंडलोई और निकुंज श्रीवास्तव भी मौजूद थे। साइबर अपराध शाखा के पुलिस अफसर भी बैठक में थे। मुख्य सचिव को लेकर मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को कोई जल्दी नहीं है। वीरा राणा की ओर से कोई परेशानी भी सामने नहीं आ रही है। मुख्य सचिव पद के एक दावेदार जेएन कंसोटिया भी हैं। वे 1989 बैच के अधिकारी हैं। राजेश राजौरा से वरिष्ठ हैं। वरिष्ठता क्रम में भी उनका  राजौरा  के ठीक ऊपर है। कोई बड़ा विवाद  उनको लेकर भी कभी सामने नहीं आया। जांच,कार्यवाही का भी सामना नहीं किया। उनके पक्ष में एक बात जो खिलाफ जा सकती है वह है अजाक्स संगठन का अध्यक्ष होना। अजाक्स यानी अनुसूचित जाति,जनजाति अधिकारी कर्मचारी संगठन। मुख्य सचिव पद पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह जाति और धर्म को लेकर विशेष लगाव न रखता हो। प्रदेश में यदि अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही थी तो इसके पीछे भी अजाक्स का दबाव ही प्रमुख है।

अजाक्स को खुश करने क लिए शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते यहां तक कह दिया था कि कोई माई का लाल पदोन्नति में आरक्षण नहीं रोक सकता। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। सरकार चाहे तो पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिए बगैर पदोन्नति का रास्ता खोल सकती है। लेकिन,राजनीतिक लाभ का भाव कुछ करने नहीं देता। यही लाभ कंसोटिया उठाना चाहते हैं। मुख्य सचिव बनने का उनके पास अवसर भी है और वरिष्ठता भी है। इस कारण संगठन को भी सामने रख रहे हैं। कंसोटिया अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। दिलचस्प यह है कि राजोरा भी इसी वर्ग से हैं।  मंगलवार को मंत्रालय में आयोजित विदाई समारोह में भी कंसोटिया की दावेदारी चर्चा में रही। विदाई समारोह मंत्रालय से रिटायर हुए अधिकारियों एवं कर्मचारियों का था। ये अधिकारी एवं कर्मचारी अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के थे। सात साल से पदोन्नति न होने को मुद्दा बनाने पर भी बात हुई।

औकात का सवाल हो तो कार्यवाही जरूरी है

शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में नौकरशाही हावी हो गई थी,इसे कोई भी अस्वीकार नहीं करता था। चाहे वह बड़ा नेता हो या छोटा। सुनी सिर्फ उसकी जाती है जिसके बारे में शिवराज सिंह चौहान ने अफसरों को कह दिया है। कई मंत्रियों को तो यह शिकायत भी थी कि मुख्य सचिव के पास भी उनकी बात सुनने का समय नहीं है। वहीं कई अफसर तो ऐसे भी थे जो अपनी एक जेब में मुख्यमंत्री को रखते थे और दूसरी जेब में मुख्य सचिव को। मंत्री तो उनकी गिनती में नहीं था। आम आदमी की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। जन सुनवाई जैसे कार्यक्रम केवल हाथी के दिखाने वाले दांतों की तरह ही हैं। जनता की नियमित सुनवाई हो तो फिर इस तरह के कार्यक्रम क्यों रखना पड़ते? अधिकारियों का आम आदमी के प्रति व्यवहार भी बिल्कुल वैसा ही होता जा रहा है जैसा गौरों के राज में होता था। दिन-दिन भर इंतजार के बाद भी अफसर से आम आदमी मिल नहीं पाता। मुलाकात हो गई तो यह सुनना पड़ता है कि तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हो गई? शाजापुर के कलेक्टर किशोर कन्याल का ट्रक ड्राइवर के प्रति व्यवहार इसका बड़ा उदाहारण है। आम आदमी से उसकी औकात पूछना किस  शिष्टाचार में आता है? ये उन्हीें अधिकारियों में हैं जिनकी दोनों जेबों में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव होते हैं। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव जिस तरह से भारी-भरकम जेब (जिनकी जेब में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव होते हैं) वाले अफसरों को मंत्रालय में ला रहे हैं उससे प्रशासन में कसावट जल्द देखने को मिल सकती है?

किशोर कन्याल पर मेहरबान रही सरकार

ड्राइवर को उसकी औकात याद दिलाने वाले आईएएस अधिकारी किशोर कन्याल की औकात (दबदबा) उनके करीबी और सहयोगी अच्छी तरह से जानते हैं। दिल्ली मूल के किशोर कन्याल 1998 में डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद मध्यप्रदेश आए। अविभाजित मध्यप्रदेश में उनकी पहली पदस्थापना बिलासपुर में हुई थी। अप्रैल 1999 से मार्च 2001 तक वहां रहे । मध्यप्रदेश में आ गए। सीधे कृषि उपज मंडी ग्वालियर में सचिव बनाए गए। कुछ महीने ही रह पाए। ग्वालियर में ही आपूर्ति निगम के महाप्रबंधक बन गए। यहां भी एक साल पूरा नहीं किया। मार्च 2001 से तीन साल का अवकाश भी रहा। 2004 में जब लौटे तो साडा ग्वालियर में मुख्य कार्यपालन अधिकारी बना दिए गए। अगस्त 2004 से  जुलाई 2007 तक रहे। इसके बाद ग्वालियर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बन गए। यहां  मार्च 2008 तक रहे। फिर भोपाल आए गए। संयुक्त कलेक्टर के पद पर अप्रैल 2010 तक लगभग दो साल रहे। फिर मंडी बोर्ड भोपाल में उप संचालक बन गए। यहां भी दो साल रहे। इसके बाद नगर निगम भोपाल में अपर आयुक्त बना दिए गए। जून 2013 तक केवल एक साल रहे।  दो साल खनिज निगम कार्यपालक संचालक के पद पर रहे। इसके बाद एक साल अपर आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग बन गए। फरवरी 2016 से जून 2019 तक राष्ट्रीय राजमार्ग नई दिल्ली में रहे। वापस लौटे तो फिर ग्वालियर के अपर कलेक्टर बना दिए गए। वहां जिला पंचायत और नगर निगम में पोस्टिंग चलती रही। अप्रैल 2022 में शाजापुर के कलेक्टर बने। इससे पहले नवंबर 2020 में उनकी आईएएस में पदोन्नति हो गई। जाहिर है कि सरकार ने उनकी सुविधा का पूरा ख्याल रखा। दिल्ली आना-जान बना रहे इस कारण उन्हें ग्वालियर में पोस्टिंग दी गई।

ऋजु बाफना का उज्जैन कनेक्शन

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रशासनिक फेरबदल में सबसे ज्यादा प्रभावित उज्जैन रहा है। उज्जैन में कलेक्टर,अपर कलेक्टर बदले जा चुके हैं। उज्जैन में अपर कलेक्टर रहीं प्रीति यादव नगर निगम जबलपुर की कमिश्नर बनी हैं। उन्हें तबादले के तत्काल बाद जबलपुर पहुंचना पड़ा। कारण कैबिनेट की मीटिंग रही। मुख्यमंत्री जबलपुर संभाग में दौरे पर हैं। वहां संभागीय समीक्षा भी कर रहे हैं। समीक्षा से पहले ही उन्होंने नरसिंहपुर कलेक्टर का तबादला शाजापुर कलेक्टर के रूप में कर दिया। माना जा रहा है कि ऋजु बाफना को हटाने का आग्रह पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल का था। इसी कारण संभागीय समीक्षा से पहले हटा दिया। संयोगवश शाजापुर कलेक्टर का पद खाली हुआ तो ऋजु बाफना को वहां भेज दिया। 2014 बैच की अफसर हैं। टॉपर रही हैं। 

पहली बार उनकी चर्चा 2015 में एक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हुई थी। पोस्ट महिला उत्पीड़न के खिलाफ थी। विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऋजु बाफना चर्चा में रहीं। नरसिंहपुर के निर्दलीय उम्मीदवार शेखर चौधरी ने भाजपा उम्मीदवार प्रहलाद पटेल के पक्ष में काम करने का आरोप लगाकर उन्हें हटाने की एक याचिका हाईकोर्ट में दायर कर दी। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर कोई फैसला नहीं दिया। ऋजु बाफना उज्जैन जिले के नागदा में अनुभागीय दंडाधिकारी रही हैं। नवंबर 2022 में भोपाल नगर निगम से नरसिंहपुर कलेक्टर बनकर गई थीं।   ट्रेनिंग सिवनी में भरत यादव के अधीन ली। भरत यादव वहां कलेक्टर थे। 

राम बनने की कोशिश करते शिवराज

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या वनवास में हैं? यह सवाल उनके द्वारा शाहगंज में दिए गए एक भाषण के कारण महत्वपूर्ण हो जाता है। शिवराज सिंह चौहान ने सत्रह साल से अधिक समय तक मध्यप्रदेश में राज किया है। लेकिन,इस बार चुनाव नतीजों के बाद राजतिलक डॉ.मोहन यादव का हुआ। डॉ.मोहन यादव मुख्यमंत्री बने हैं। शिवराज सिंह चौहान को यह उम्मीद जरूर रही कि पार्टी बेहतर चुनावी प्रदर्शन के कारण उन्हें एक मौका और दे सकती है। मौका नहीं मिला। शिवराज सिंह चौहान महिलाओं के बीच लोकप्रिय नेता हैं,इसमें भी कोई दो राय नहीं है। जहां भी जाते हैं महिलाएं मुख्यमंत्री न बन पाने पर भावुक हो जाती हैं। शिवराज सिंह चौहान भी भावुक हो जाते हैं। इसी भावुकता में उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र बुधनी के शाहगंज में कहा कि कभी-कभी राजतिलक होते होते वनवास हो जाता है। राजतिलक से पहले वनवास किसे हुआ था यहां इस बात का उल्लेख शिवराज सिंह चौहान ने नहीं किया। लेकिन,सभी जानते हैं कि यह स्थिति भगवान श्री राम के साथ हुई थी। उनके वनवास का बड़ा उद्देश्य रावण वध के तौर पर सामने आया। साधु-संतों का उद्धार भी हुआ। शिवराज सिंह चौहान भी अपने इस वनवास बड़ा उद्देश्य तलाश कर रहे हैं। ऐसा उन्होंने कहा भी कि वनवास बड़े उद्देश्य के लिए हुआ होगा? क्या बड़ा उद्देश्य प्रधानमंत्री का पद हो सकता है?

मुख्यमंत्री के नए चेहरे को पुराने का सहारा बदलाव का इशारा

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दिनेश गुप्ता

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर यह साफ संदेश दिया है कि विस्तार में देर जरूर दिख रही है लेकिन,मंत्रिमंडल पूरी तरह से दुरुस्त है। डॉ.मोहन यादव के मंत्रिमंडल विस्तार में यह संदेश भी दिखाई दे रहा है कि पार्टी ने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि मंत्रिमंडल में किसी भी तरह से शिवराज सिंह चौहान या अन्य किसी दूसरे बड़े नेता की छाया पड़ती दिखाई नहीं देना चाहिए।  मार्च 2020 के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद जो मंत्रिमंडल बना था,उस पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की छाया नजर आ रही थी। अधिकांश वे चेहरे मंत्रिमंडल में थे जो कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में आए थे। लेकिन, डॉ.मोहन यादव के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में कोई भी नेता यह दावा नहीं कर सकता कि मेरे दबदबे वाला मंत्रिमंडल है। अनुभव को पूरा सम्मान मिला है और नए चेहरों को भी उड़ान भरने का अवसर पार्टी ने दिया है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के कोटे से जिस चेहरे को शामिल करना तय माना जा रहा था वह चेहरा बृजेन्द्र प्रताप सिंह को मौका नहीं दिया गया।

छतरपुर से दिलीप अहिरवार को जगह मिल सकी है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे करीबी भूपेन्द्र सिंह का नाम कटना चौंकाने वाला है। भूपेन्द्र सिंह, शिवराज सिंह चौहान की सरकार में नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग के मंत्री थे। इसी विभाग ने उज्जैन का वह मास्टर प्लान जारी किया था,जिसे लेकर विवाद की स्थिति बनी। इस विवाद के जरिए कहीं न कहीं डॉ. मोहन यादव की छवि बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। मास्टर प्लान बाद में निरस्त कर दिया गया। लेकिन,भूपेन्द्र सिंह का सामान्य विधायक रह जाना पुराने घटनाक्रम को एक बार जरूर सामने ला रहा है। भूपेन्द्र सिंह को मंत्रिमंडल में जगह न मिलने को इस तरह भी देखा जा सकता है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उज्जैन मास्टर प्लान विवाद को गंभीरता से लिया। अब यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि डॉ.मोहन यादव को मध्यप्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का मन नेतृत्व काफी पहले बना चुका था। शायद मार्च 2020 के घटनाक्रम के साथ ही। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान और उनके करीबी भूपेन्द्र सिंह द्वारा विवाद के हालात बनाना गंभीर हो जाता है।
गोपाल भार्गव उम्र के चलते नहीं बन पाए मंत्री
गोपाल भार्गव ने पिछले सप्ताह ही मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर के तौर पर नवनिर्वाचित मंत्रियों को शपथ दिलाई थी। वरिष्ठता के कारण मंत्रिमंडल में उनकी जगह पक्की मानी जा रही थी। जयंत मलैया भी उम्मीद लगाए थे। बुंदेलखंड क्षेत्र के दोनों कद्दावर नेता माने जाते है। शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में सागर जिले से तीन-तीन मंत्री थे। अब केवल गोविंद राजपूत ही जगह पा पाए हैं। कह सकते हैं कि राजपूत को जगह सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण ही मिली है। गोपाल भार्गव के राह में कहीं न कहीं उनकी उम्र आडे आई होगी? भार्गव 71 साल के हैं। कैलाश विजयवर्गीय 67 साल के और प्रहलाद पटेल 63 साल के हैं। इन चेहरों में पार्टी भविष्य की संभावनाएं अभी भी देख रही है। मंत्रिमंडल में पहली बार 18 नए चेहरों को जगह मिली है। बुंदेलखंड की सियासत इस नए मंत्रिमंडल के बाद बिल्कुल बदल जाएगी।

गुना संसदीय क्षेत्र को क्यों नहीं मिली जगह

गुना संसदीय क्षेत्र में तीन जिले आते हैं। शिवपुरी,गुना और अशोक नगर। इन तीनों जिलों से किसी भी चेहरे को मंत्री नहीं बनाया गया। शायद इसकी वजह यादव जाति वर्ग भी हो सकता है। अशोक नगर जिले की मुंगावली विधानसभा सीट से चुनाव जीते ब्रजेन्द्र यादव की दावेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण मजबूत मानी जा रही थी। लेकिन,मुख्यमंत्री का चेहरा यादव होने से मंत्रिमंडल में ज्यादा यादवों को शामिल करने से लाभ कम नुकसान ज्यादा हो सकता था। इस कारण केवल कृष्णा गौर को ही मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के तौर पर जगह मिल पाई। सिंधी समुदाय को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व न मिलने से निराशा होना स्वाभाविक थी। जब पहली बार के विधायक मंत्रिमंडल में रखे जा रहे थे तो भगवानदास सबनानी का आशान्वित होना स्वाभाविक था। शायद संगठन के निर्णय के कारण वे बाहर रहे गए।

पांच जिले दस मंत्री

डॉ. मोहन यादव के मंत्रिमंडल के विस्तार में यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गई कि एक संसदीय क्षेत्र से एक मंत्री बनाने अथवा एक जिले से एक मंत्री बनाने के जिस मापदंड की बात हो रही थी,वह गलत साबित हुई। ग्वालियर जिले से मंत्रिमंडल में दो सदस्य रखे गए हैं। नारायण सिंह कुशवाह और प्रद्युमन सिंह तोमर। भोपाल जिले से भी दो मंत्री हैं। विश्वास सारंग और कृष्णा गौर। इंदौर जिले से भी दो मंत्री हैं। कैलाश विजयवर्गीय और तुलसी सिलावट। नरसिंहपुर जिले से भी दो मंत्री हैं। प्रहलाद पटेल और राव उदय प्रताप सिंह। लेकिन,रायसेन से पार्टी ने पहली बार के विधायक नरेंद्र शिवाजी पटेल को शामिल कर सभी को चौंका दिया। रायसेन किसी दौर में शिवराज सिंह चौहान के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा होती थी। होशंगाबाद-नरसिंहपुर संसदीय सीट। इस सीट से कुल तीन चेहरे मंत्रिमंडल में हैं। प्रहलाद पटेल,राव उदय प्रताप सिंह तथा नरेन्द्र शिवाजी पटेल। प्रभुराम चौधरी मंत्रिमंडल में जगह क्यों नहीं पा सके,यह समय के साथ सामने आएगा? अलीराजपुर-झाबुआ दोनों जिलों को अलग-अलग मंत्री मिला है। झाबुआ से निर्मला भूरिया और अलीराजपुर से नागर सिंह चौहान। दमोह जिले से भी दो मंत्री बने हैं। लखन पटेल और धर्मेंद्र लोधी। दोनों ही दूसरी बार के विधायक हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिला सीहोर से करण सिंह वर्मा को जगह मिली है।

नीरज वशिष्ठ अब फील्ड में जाने का वक्त

नीरज कुमार वशिष्ठ। प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। सरकार बदलने के बाद हाल ही में उनका तबादला मुख्यमंत्री कार्यालय से उप सचिव मंत्रालय के रूप में किया गया है। वशिष्ठ को विभाग बाद में मिलेगा। यह भी संभव है कि बाद में उन्हें मंत्रालय से बाहर भेज दिया जाए। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ वे पिछले सत्रह साल से है। इस लंबी अवधि में उनकी पदस्थापना एक ही स्थान पर रही। मुख्यमंत्री सचिवालय। वर्ष 2018 में जब सरकार बदली तो शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व मुख्यमंत्री के तहत मिलने वाली अमले की सुविधा में वशिष्ठ को विशेष सहायक के तौर पर शामिल कर लिया था। वशिष्ठ राज्य प्रशासनिक सेवा के जरिए सरकारी नौकरी में आए थे। साल 1998 में डिप्टी कलेक्टर नियुक्त हुए थे। लगभग पच्चीस साल के अपने करियर में वशिष्ठ ने सिर्फ आठ साल ही फील्ड में काम किया है। बाकी समय मंत्रालय और मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थापना रही। मार्च 2020 में हुए सत्ता के तख्तापलट के समय उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति मिली। आईएएस अधिकारियों को पूर्व मुख्यमंत्री अथवा कैबिनेट मंत्री के निजी अमले में नहीं रखा जाता है। यह नियम है। आईएएस के साथ सरकार बदल गई,उनकी पदस्थापना मुख्यमंत्री सचिवालय में उप सचिव के तौर पर कर दी गई। शिवराज सिंह चौहान पद से हटे तो वशिष्ठ को भी मुख्यमंत्री सचिवालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी सरकार की मजबूरी जानते हैं। इस कारण उनका जोर भी अब वशिष्ठ के नाम पर नहीं है। किसी नए अधिकारी को उनके विशेष सहायक के तौर पर पदस्थ किया जाएगा।

डॉ.मोहन यादव के मंत्रिमंडल का विस्तार 28 नए चेहरे,18 कैबिनेट,10 राज्य मंत्री बने

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोमवार को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए 28 नए मंत्री शामिल किए हैं। नए मंत्रियों 18 कैबिनेट 6 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और चार राज्य मंत्री हैं। मंत्रिमंडल के नवनियुक्त सदस्यों को राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने राजभवन में हुए एक सादे समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में केंद्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजूद थे।
विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद भाजपा नेतृत्व ने डॉ.मोहन यादव को राज्य का नया मुख्यमंत्री मनोनीत किया था। डॉ.यादव ने 13 दिसंबर को शपथ ग्रहण की थी। यादव के साथ दो उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। 28 नए मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के बाद डॉ.यादव का मंत्रिमंडल 31 सदस्यीय हो गया है। चार मंत्रियों को शामिल करने की गुंजाइश अभी बनी हुई है। 

कैबिनेट मंत्री के रूप में जिन चेहरों को जगह मिली है। वे विजय शाह,कैलाश विजयवर्गीय,प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह,उदय प्रताप सिंह और करण सिंह वर्मा,संपतिया उइके,तुलसीराम सिलावट,एदल सिंह कंसाना,निर्मला भूरिया,गोविंद राजपूत,नारायण सिंह कुशवाह,नागर सिंह चौहान,प्रद्युमन सिंह तोमर,इंदर सिंह तोमर,चैतन्य कश्यप ,विश्वास सारंग तथा राकेश शुक्ला हैं
राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में जिन छह विधायकों को शपथ दिलाई गई वे कृष्णा गौर, धर्मेन्द्र लोधी,नारायण सिंह पंवार,लखन पटेल, दिलीप जायसवाल, गौतम टेटवाल हैं। राज्यमंत्री के तौर पर प्रतिमा बागरी,राधा सिंह नरेंद्र शिवाजी पटेल तथा दिलीप अहिरवार हैं।

डा. मोहन यादव का मुख्यमंत्री के तौर पहला भाषण : वक्त बदलने की कोशिश

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दिनेश गुप्ता
इसे समय का बदलाव ही कहेंगे। भारी जीत के बाद भी शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने पांचवी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं दिया। जब उम्मीद नहीं थी तब मार्च 2020 में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए। कोरोना इसकी एक मात्र वजह थी। इस बार मुख्यमंत्री नहीं बने तो इसकी वजह शिवराज सिंह चौहान का वक्त बदलना रहा होगा। वक्त डॉ. मोहन यादव का बदला है। वक्त बदला है तो वक्त पर बात भी होगी। वक्त बदला तो शिवराज सिंह चौहान यह बताने में नहीं चूक रहे कि उन्हें भोपाल से अमरकंटक पहुंचने में तीस घंटे का समय लगा। इसकी वजह सड़कों की स्थिति खराब होना नहीं है। इसकी वजह शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता है।

भोपाल से अमरकंटक के रास्ते में उनका जगह-जगह स्वागत हुआ। अमरकंटक जाना था इस कारण विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पहले भाषण को सुनने के लिए वे सदन में मौजूद नहीं थे। लेकिन,विपक्ष उनकी लाडली बहना योजना पर कानून बनाने की मांग जरूर कर रहा था। ये वक्त हैं। शिवराज सिंह चौहान को जब सदन में भाषण देना होता था तो हर विधायक मंत्री वहां मौजूद रहता था। मोहन यादव भी मौजूद रहते थे। ये वक्त है कि विधानसभा के दो पूर्व अध्यक्ष डॉ.सीताशरण शर्मा और गिरीश गौतम विधायक के तौर सदन में बैठे हुए हैं। मंत्री बनने की आस इन दोनों पूर्व विधानसभा अध्यक्षों को है। लेकिन,गिरीश गौतम विंध्य के ब्राह्मण हैं इस कारण कुछ संशय उनके मन में हो सकता है। वक्त साथ देगा तो मंत्री बन भी सकते हैं। बात समय की हो और उज्जैन से जुड़ा व्यक्ति इसकी बात न करें यह संभव हो नहीं सकती। राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में डॉ. मोहन यादव यह बताने से नहीं चूके कि समय और उज्जैन का रिश्ता कितना पुराना है। किस तरह से टाइम स्टैंडर्ड बनाने में भारत की उपेक्षा की गई।

मध्यप्रदेश की विधानसभा तीन सौ साल पीछे चली गई। फ्रांस की राजधानी के पेरिस का टाइम स्टैंडर्ड भारत लागू किया । अंग्रेजों ने किस तरह से टाइम स्टैंडर्ड बनाया इसका जिक्र भी मुख्यमंत्री ने किया। इसका मकसद यह बताना था कि उनकी सरकार ऐसी दिशा में कदम उठाने जा रही हैं जहां भारत के टाइम स्टैंडर्ड के केन्द्र में उज्जैन रहे। मुख्यमंत्री ने सरकार के कामकाज से ज्यादा चर्चा उज्जैन को लेकर की। विक्रमादित्य से लेकर महाकाल तक का जिक्र उन्होंने किया। श्री कृष्ण के बिना उज्जैन की चर्चा नहीं हो सकती। इस कारण कृष्ण का जिक्र भी हुआ और राम का के काज पर भी बोला। प्रदेश में श्री कृष्ण जहां-जहां आए उन स्थानों को तीर्थ के तौर पर विकसित करने की घोषणा भी की गई। ऐसे स्थानों में उज्जैन के अलावा जानापाव और धार का अमझेरा भी विकसित होगा। जानापाव श्रीकृष्ण को सुदर्शन मिला था। अमझेरा में रूकमी के साथ उनका युद्ध होगा। राम के बाद कृष्ण की सियासत वक्त की जरूरत है। भाजपा इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। डॉ. मोहन यादव यह बताने से भी नहीं चूके कि वे मजदूर के बेटे हैं। मजदूर का बेटा उसी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा है जैसे एक चाय वाला प्रधानमंत्री बना था।

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की तस्वीर

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिल्ली में सांसदों को भोज दिया। मध्यप्रदेश से राज्यसभा में कांग्रेस के तीन सांसद दिग्विजय सिंह,राजमणि पटेल और विवेक तन्खा की भी अनौपचारिक मुलाकात हुई। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा भी मौजूद थे। चुनाव की तल्खी तस्वीर में दिखाई नहीं दे रही थी। वीडी शर्मा और दिग्विजय सिंह ने खुलकर बात की। लेकिन,इस बातचीत में विवादास्पद मुद्दे शामिल नहीं रहे। मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे की सबसे महत्वपूर्ण तस्वीर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। इस मुलाकात में राज्य के दोनों उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र शुक्ला भी साथ थे। प्रधानमंत्री के साथ संयुक्त बैठक भी हुई। इस बैठक में डॉ. यादव,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक बातचीत करते दिखाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री उनकी बात को पूरी गंभीरता से सुन रहे हैं। बात जरूर मोदी जी की गारंटी की होगी। मोदी की किसी भी गारंटी को आर्थिक संकट के कारण नहीं रोका जा सकता। राज्य सरकार पर तीन लाख चालीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। यह तथ्य भी प्रधानमंत्री के ध्यान में लाया गया है।

मुख्य सचिव के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से चर्चा हुई?

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में क्या राज्य में पूर्णकालिक मुख्य सचिव को लेकर कोई बात हुई? प्रशासनिक क्षेत्र में इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा पूछे जाने वाला सवाल यही है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1989 बैच के अधिकारी अनुराग जैन क्या मध्यप्रदेश वापस आ रहे हैं। जैन को यदि मध्यप्रदेश में मुख्य सचिव बनाया जा रहा है तो इसका एक औपचारिक पत्र केन्द्र सरकार को भेजना होगा। प्रधानमंत्री से मुलाकात में मुख्यमंत्री के हाथ में जो फाइल थी,उसमें दो पत्र भी थे। पत्र दिया होगा तो केन्द्र सरकार इस पत्र के आधार पर ही प्रतिनियुक्ति अवधि के बीच में जैन की सेवाएं राज्य को वापस कर सकती है। अनुराग जैन सड़क परिवहन मंत्रालय में सचिव हैं। वे मई 2020 से भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। उनका रिटायरमेंट अगस्त 2025 में होना है। अनुराग जैन की सहमति भी होना जरूरी है। भारत सरकार के सचिव पद से रिटायर होने के बाद भी वहां कई संभावनाएं होती हैं। लेकिन,राज्य में गिने-चुने पद होते हैं,जिन पर रिटायरमेंट के बाद अधिकारी उपकृत किया जाता है। अनुराग जैन राज्य की वित्तीय स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ हैं। पिछले बीस साल में प्रशासन किस स्थिति में है,यह भी वे जानते हैं।

राजेश राजौरा को उज्जैन संभाग का प्रभार दिए जाने के मायने

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डॉ. मोहन यादव प्रशासनिक कामकाज की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने हर संभाग के लिए एक प्रभारी अपर मुख्य सचिव बना दिया है। इनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने प्रभार के संभाग में आने वाले जिलों से संबंधित विकास कार्यों की निगरानी करेंगे। राजधानी भोपाल में प्रशासनिक स्तर मामले सुलझाने की जिम्मेदारी भी इन अफसरों की होगी। विभागों के बीच समन्वय का काम भी इन्हें करना होगा। राज्य में कुल दस संभाग हैं। इनमें दस चुनिंदा अधिकारियों को लगाया गया है। सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले उज्जैन संभाग का प्रभार गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा को दिया गया है। उज्जैन,मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव का गृह संभाग है। राजेश राजौरा को प्रभारी बनाए जाने के पीछे वजह शायद यह रही होगी कि वे उज्जैन में पदस्थ रहे हैं। लेकिन,राजोरा मुख्य सचिव की दौड़ में भी शामिल हैं। लेकिन,वरिष्ठता क्रम में उनका नाम काफी नीचे हैै। उनके ऊपर,मोहम्मद सुलेमान विनोद कुमार,जेएन कंसोटिया का नाम हैं। जबकि संजय बंदोपाध्याय,अनुराग जैन और आशीष उपाध्याय भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। वीरा राणा के बाद सबसे वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद सुलेमान हैं। इन्हें भोपाल संभाग का प्रभारी बनाया गया है। 1990 बैच के मलय श्रीवास्तव को इंदौर संभाग की जिम्मेदारी दी गई है। इसमें शायद कैलाश विजयवर्गीय की पसंद का ध्यान रखा गया होगा?ग्वालियर संभाग का प्रभार केसी गुप्ता को दिया गया है। वे उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार जबलपुर संभाग के प्रभारी बनाए गए हैं। जेएन कंसोटिया को रीवा संभाग का प्रभारी बनाया गया है। अपर मुख्य सचिव नर्मदा धाटी विकास विभाग एसएन मिश्रा को सागर संभाग का प्रभारी बनाया गया है। अजीत केसी को नर्मदापुरम और मनु श्रीवास्तव को चंबल संभाग का प्रभारी बनाया गया है। सरकार इन संभागीय प्रभारियों के जरिए विकास में तेजी लाना चाहती हैं। इन्हें जिलों का दौरा भी करना होगा। व्यवस्था में खतरा मंत्रियों को है। प्रभारी मंत्री की व्यवस्था में संभाग के प्रभारी आला अधिकारी से समन्वय कैसे होगा,यह देखना दिलचस्प होगा?

विभागीय समीक्षा से सरकार की प्राथमिकताओं को समझने की कोशिश में जुटे डॉ.मोहन यादव

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दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। प्रशासनिक फेरबदल की हड़बड़ी उनमें दिखाई नहीं दे रही है। डॉ. मोहन यादव विभागीय समीक्षा के जरिए सरकार के कामकाज को समझने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पटवारियों को रजिस्ट्री होते ही जमीन का नामांतरण करने के लिए कहा गया है। जमीन से जुड़े नेता ही ऐसे निर्णय करता है। मुख्यमंत्री हर दिन दो अथवा तीन विभागों की समीक्षा कर रहे हैं। विभागों में कोई मंत्री नहीं है। सीधे अफसरों से उनका संवाद हो रहा है। इस संवाद में मुख्यमंत्री अपनी प्राथमिकता तो बता ही रही हैं,विभागों की प्राथमिकताओं का भी आकलन कर रहे हैं। नगरीय विकास और आवास विभाग की समीक्षा के बाद मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध संचालक मनीष सिंह का तबादला कर दिया गया। मनीष सिंह के तबादले के पीछे वजह मेट्रो रेल है या जनसंपर्क विभाग का कामकाज? मनीष सिंह,शिवराज सिंह चौहान की सरकार में सबसे ताकतवर अफसर माने जाते थे। आईएएस में पदोन्नति के बाद उन्हें सीधे संभागीय मुख्यालय वाले जिले उज्जैन की कलेक्टरी का मौका मिला था। 2020 में जब शिवराज सिंह चौहान वापस सरकार में आए तो मनीष सिंह सीधे इंदौर के कलेक्टर बना दिए गए। मूलत: राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने हैं। वरिष्ठता वर्ष 2009 में निर्धारित है।

विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्हें जनसंपर्क,मध्यप्रदेश माध्यम के अलावा मेट्रो रेल जैसे वजनदार प्रभार भी दिए गए। मनीष सिंह,तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भी करीबी माने जाते रहे हैं। सरकार का चेहरा बदला है तो जनसंपर्क विभाग में भी परिवर्तन स्वाभाविक है। यह परिवर्तन इतनी जल्दी होगा किसी को उम्मीद नहीं रही होगी। दिलचस्प यह है कि जनसंपर्क विभाग के पूर्व आयुक्त राघवेन्द्र सिंह, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव हैं। जनसंपर्क विभाग के आयुक्त के पद पर अभी पूर्णकालिक अधिकारी की पदस्थापना नहीं हुई है। मुख्यमंत्री के सचिव एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव विवेक पोरवाल को आयुक्त जनसंपर्क और प्रबंध संचालक मध्यप्रदेश माध्यम का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। मध्य प्रदेश मेट्रो रेल के प्रबंध संचालक का अतिरिक्त प्रभार नीरज मंडलोई प्रमुख सचिव नगरीय विकास एवं आवास विभाग को दिया गया है। नीरज मंडलोई उज्जैन में कलेक्टर रहे थे। लेकिन, इस पदस्थापना में उज्जैन फेक्टर दिखाई नहीं देता। विभागीय समन्वय की मजबूरी ज्यादा दिखाई देती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा जो फेरबदल किया जा रहा है उसमें एक दिलचस्प तथ्य यह भी सामने आया कि हटाए गए अधिकारी को बिना विभाग के रखा जा रहा है। मनीष रस्तोगी के बाद,मनीष सिंह। दोनों की पदस्थापना मंत्रालय में की गई। विभाग नहीं दिया गया। बता दें मनीष सिंह 2018 से पहले उज्जैन कलेक्टर रहे थे।

हुकुमचंद मिल के मजदूरों के भुगतान में मंडलोई की भूमिका

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव खाते में एक बड़ी उपलब्धि अपने अल्प कार्यकाल में ही जुड़ गई है। यह उपलब्धि है इंदौर के हुकुमचंद मिल के मजदूरों के बकाया वेतन और उसके ब्याज की राशि के भुगतान का।  लंबे समय से यह भुगतान अटका हुआ था। कोर्ट के आदेश के बाद भी भुगतान नहीं हो पा रहा था। आचार संहिता आड़े आ गई। हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई के खिलाफ अवमानना प्रकरण चलाने की चेतावनी दी। तब जाकर चुनाव आयोग ने भुगतान की मंजूरी दी। मुख्यमंत्री चयन में देरी के कारण भुगतान अटका रहा। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के समक्ष प्रकरण आया तो उन्होंने इसे तत्काल मंजूरी दे दी। इंदौर की सबसे बड़ी मिलों में से एक हुकुमचंद मिल को उसके प्रबंधन ने 1991 में बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया था। उस समय मिल में करीब 6,000 श्रमिक काम करते थे। इन श्रमिकों ने अपने बकाया वेतन, ग्रेच्युटी और अन्य लेनदारियों के लिए लंबा संघर्ष किया।2007 में उच्च न्यायालय ने मजदूरों को 229 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया था। यह राशि मिल की 42.5 एकड़ जमीन बेचकर दिया जाना था लेकिन प्रदेश सरकार ने मिल की जमीन को अपने अधीन बताकर इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी। हालांकि 2018 में उच्च न्यायालय ने इस जमीन पर प्रदेश सरकार के दावे को खारिज कर दिया था।
32 सालों से चल रहे संघर्ष में 2200 से ज्यादा श्रमिकों मौत हो चुकी है। जबकि आर्थिक तंगी के चलते 70 श्रमिक आत्महत्या कर चुके हैं। इन श्रमिकों के परिवारों की 700 महिलाओं (पत्नियों) की भी मौत हो चुकी है।

आदेश का इंतजार कर रहे हैं उच्च शिक्षा के अफसर

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डॉ. मोहन यादव अफसरों के फेरबदल में सुनार की तरह हथौड़ी चला रहे हैं। सबसे ज्यादा बेचैनी उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों में देखी जा रही है। मुख्यमंत्री बनने से पहले डॉ.मोहन यादव उच्च  शिक्षा विभाग के मंत्री थे। बताया जाता है कि उच्च शिक्षा विभाग में प्रमुख सचिव और आयुक्त केसी गुप्ता हैं। केसी गुप्ता मंत्री की सिफारिशों को अनदेखा करने के लिए विभाग में पहचाने जाते हैं। जब यादव मुख्यमंत्री बने हैं गुप्ता को लग रहा है कि उन्हें कहीं लूप लाइन में भेज दिया जाएगा। पूरी नौकरशाही गुप्ता को टकटकी लगाए देख रही है।

शिवराज सरकार की नौकरशाही के मनमाने फैसले

राज्य में शिवराज सिंह चौहान की सरकार को बदले ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। कम समय में नौकरशाही के मनमाने फैसले सामने आ रहे है। नौकरशाही के मनमाने फैसले अपनों को उपकृत करने और गैरों को तंग करने के हैं। पहले बात करते है आईएएस से जुड़े एक मामले की। मामला कमल नागर की पदोन्नति से जुड़ा हुआ है। कमल नागर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। ये आईएएस की पदोन्नति की फिट लिस्ट में थे। सामान्य प्रशासन विभाग को पदोन्नति के लिए इंटीग्रिटी सर्टिफिकेट संघ लोक सेवा आयोग को भेजना था। सामान्य प्रशासन विभाग की तत्कालीन प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी को यह सर्टिफिकेट जारी करना था। लेकिन,उन्होंने इसे रोक कर रखा मजबूरन नागर को कोर्ट की शरण लेना पड़ी। कोर्ट ने अवमानना प्रकरण में मुखर्जी को आदेश होने का आदेश दिया। इसके खिलाफ वे डबल बेंच में चली गई हैं।
दूसरा प्रकरण आईपीएस में पदोन्नति का है। राज्य पुलिस सेवा के दो अधिकारियों की वरिष्ठता में फेरबदल कर पदोन्नति देने का यह मामला आपराधिक षड्यंत्र वाला नजर आता है। मामला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सुरक्षा अधिकारी अजय पांडे और डीसीपी (गुप्तवार्ता) संजय अग्रवाल से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट में जो याचिका राजेन्द्र वर्मा की ओर से दाखिल की गई उसमें यह तथ्य सामने आया कि गृह विभाग ने दोनों अधिकारियों की वरिष्ठता में फेरबदल कर उनका नाम राजेन्द्र वर्मा के ऊपर कर दिया। राजेन्द्र वर्मा सेवा में इन दोनों अधिकारियों से वरिष्ठ थे। आईपीएस में पदोन्नति पहले वर्मा की होना थी। लेकिन अजय पांडे और संजय अग्रवाल की हो गई। हाईकोर्ट ने इन दोनों अधिकारियों पर जुर्माना लगा दिया है। गृह विभाग को मूल वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए कहा गया है। वरिष्ठता में परिवर्तन की स्थिति में इन दोनों अधिकारियों से आईपीएस छिन सकता है।