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राम काज में सरकार की सक्रियता से सियासी लाभ की तैयारी

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दिनेश गुप्ता
माहौल पूरी तरह से धार्मिक हो चुका है। मंदिर ही नहीं सरकारी कार्यालयों में भी धुलाई,पुछाई का कार्यक्रम चल रहा है। अयोध्या का प्रशासन राम काज में व्यस्त हो समझ में आता है लेकिन, मध्य प्रदेश का शासन,प्रशासन भोपाल से लेकर झाबुआ तक कौन सा राम काज कर रहा है? अफसरों के लिए राम काज का फरमान सरकार की ओर से जारी किया गया,इसलिए लोग कार्यालय छोड़कर मंदिर-मंदिर आयोजन सुनिश्चित कराने में व्यस्त हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहचान में उनके माथे का सिंदूरी तिलक और भगवा गमछा है। यह पहचान राम काज के कारण ही बन पाई है। यह दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता कि प्रशासनिक अधिकारियों को राम काज में लगाने का कोई आदेश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की ओर से दिया गया होगा? वैसे मध्य प्रदेश की नौकरशाही अब अपने राजनीतिक आकाओं के सामने अपने नंबर बढ़ाने के लिए आदेश का इंतजार नहीं करती है। हो सकता है ताजा आदेश भी नौकरशाही के उत्साहजनक परिणाम के तौर पर सामने हो। आदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग ने जारी किया है,इस कारण यह माना जा सकता है कि सरकार के राजनीतिक नेतृत्व की सहमति ली गई होगी? धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजोरा हैं। गृह विभाग भी उनके पास है।

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मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंत्रालय में बैठे आला अफसरों के लिए संभागीय प्रभारी की जो व्यवस्था स्थापित की है उसमें राजोरा उज्जैन संभाग के प्रभारी हैं। जाहिर है कि वे मुख्यमंत्री की पसंद होंगे? मुख्यमंत्री की पसंद-ना पसंद को ध्यान में रखकर ही राजोरा सरकारी आदेश भी जारी करते होंगे? शिवराज सिंह चौहान की सरकार में भी राजोरा चर्चा में रहते थे। धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग द्वारा 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के नाम 9 बिंदुओं के निर्देश जारी किए गए। कलेक्टरों को कहा गया कि वे (समस्त कलेक्टर)16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में जन सहयोग से राम कीर्तन और दीप प्रज्वलन का कार्यक्रम सुनिश्चित करें। कलेक्टरों को राम मंडलियों को कीर्तन के लिए प्रेरित करना है, मुख्य मंदिरों में टीवी स्क्रीन लगवाना है। मंदिरों में साफ-सफाई कराना है। नगरों और शहरों में सफाई अभियान चलाना है। इसके अलावा अपने सरकारी कार्यालयों में भी सफाई कराना है। इसके अलावा कलेक्टरों से कहा गया है कि जो लोग अयोध्या जा रहे हैं उन यात्रियों के सम्मान और स्वागत की व्यवस्था भी सुनिश्चित करें। 22 जनवरी के कार्यक्रम में अयोध्या में प्रवेश सीमित है। इस तथ्य से सभी वाकिफ हैं। लेकिन,माहौल उत्सवी है तो हर अफसर अपनी आस्था और भक्ति का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहना चाहता। हर गांव-शहर में सरकारी दफ्तरों से अफसर गायब है। हर जगह एक ही जवाब है राम मंदिर के कार्यक्रम में व्यस्त हैं?


राम वनगमन पथ क्यों नहीं बना?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के राजकाज से ज्यादा लोग उनके वनवास के बारे में जानते हैं। राम को राजतिलक छोड़कर वन गमन करना पड़ा था। राज काज वन से लौटने के बाद किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बनकर तैयार हो गया। इस मंदिर में ही 22 जनवरी को रामलला की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मंदिर का निर्माण पांच साल में हो गया। यद्यपि मंदिर के एक बड़े हिस्से का निर्माण अभी बाकी है। अधूरे निर्माण में प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर कांग्रेस के सवाल हैं। इन सवालों को कोई सुनना और समझना नहीं चाहता। इसकी बड़ी वजह यह है कि अधूरे निर्माण पर बात करने पर भी वे हिन्दू और राम विरोधी करार दिए जा सकते हैं। लेकिन,कोई भी मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार में रिकार्ड समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान से यह सवाल नहीं पूछ रहा कि आखिर सोलह साल में भी राम वन गमन पथ का निर्माण क्यों नहीं किया गया? राम का वनवास चौदह साल का था,लेकिन उनके वन गमन पथ का निर्माण न जाने कितने सालों में होगा? कितने चुनाव में यह मुद्दा उठता रहेगा?

राम वन गमन पथ बनाने का निर्णय वर्ष 2007 में लिया गया था। 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले संस्कृति विभाग ने इसके लिए कमेटी भी बना दी थी। भगवान राम ने अपने वनवास का ज्यादातर समय चित्रकूट में बिताया था। इसके बाद जब वे सीताजी की खोज में लंका की तरफ गए तो मध्य प्रदेश के कई रास्तों से होकर गुजरे थे।
खास बात ये है कि जब-जब चुनाव का मौका आया, ये प्रोजेक्ट फाइलों से बाहर निकला। लोकसभा चुनाव नजदीक है, इसलिए एक बार फिर मप्र सरकार को इस प्रोजेक्ट की याद आ गई है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 16 जनवरी को चित्रकूट में राम वन गमन पथ न्यास की पहली बैठक भी कर ली।  2015 में केंद्र सरकार ने रामायण सर्किट का ऐलान किया, तब इस प्रोजेक्ट को केंद्र की इस योजना में मर्ज कर संस्कृति विभाग को सौंप दिया गया। इससे पहले यह अध्यात्म विभाग के अधीन था।
2018 में भाजपा चुनाव हार गई और मप्र में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस प्रोजेक्ट को धर्मस्व विभाग को सौंप दिया और राम वन गमन पथ के लिए 22 करोड़ रु. का टोकन अमाउंट भी आवंटित किया था। प्रोजेक्ट पूरा हो पाता, उससे पहले ही कांग्रेस की सरकार गिर गई। एक बार फिर भाजपा ने सत्ता में वापसी की। प्रोजेक्ट एक बार फिर संस्कृति विभाग को सौंप दिया गया। 2023 में चुनाव से पहले राम वन गमन पथ ट्रस्ट बनाने का शिवराज सरकार ने ऐलान किया। गठन के 7 महीने बाद ट्रस्ट की पहली बैठक चित्रकूट में हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रामायण सर्किट भी अधूरा
नरेंद्र मोदी  के प्रधानमंत्री बनने के बाद वर्ष  2015 में केंद्र सरकार ने रामायण सर्किट नाम से एक परियोजना बनाकर भगवान राम से जुड़े 21 स्थानों को पर्यटन के एक कॉरिडोर से जोड़ने और तीर्थों के विकास की योजना बनाई थी। राम से जुड़े जिन ऐतिहासिक स्थलों की पहचान की गई, उनमें उप्र में पांच, मप्र में तीन, छत्तीसगढ़ में दो, महाराष्ट्र में तीन, आंध्र प्रदेश में दो, केरल में एक, कर्नाटक में एक, तमिलनाडु में दो और श्रीलंका में एक स्थान शामिल था। केंद्र ने इस प्रोजेक्ट के लिए 13 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए थे। तत्कालीन शिवराज सरकार ने अपने प्रोजेक्ट को रामायण सर्किट में शामिल करा लिया था ताकि चालीस प्रतिशत राशि केंद्र सरकार से मिल सके। वर्ष 2017 में चित्रकूट में वनवासी राम पथ के साथ-साथ ओरछा के रामराजा लोक को इस सर्किट में शामिल किया था। 2018 के चुनाव में भाजपा की हार हुई और कमलनाथ सरकार सत्ता में आई। कमलनाथ सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस प्रोजेक्ट को नए सिरे से अमली जामा पहनाने का फैसला लिया क्योंकि विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने इस प्रोजेक्ट को शामिल किया था।
पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक 6 महीने पहले 4 मई 2023 को सरकार को एक बार फिर इस प्रोजेक्ट की याद आई। शिवराज कैबिनेट ने श्री राम वन गमन पथ न्यास के गठन को मंजूरी दी।

अनय द्विवेदी पर गिरेगी गाज?

विवादास्पद 2010 बैच के आईएएस अधिकारी अनय द्विवेदी एक बार फिर चर्चा में हैं। अनय द्विवेदी के साथ विवादास्पद का विशेषण इसलिए उपयोग किया जाने लगा हैं क्योंकि वे जहां भी रहते हैं कुछ ऐसा करते हैं कि विवाद खड़ा हो जाता है और सरकार को उनका तबादला करना पड़ता है। जिस ऊर्जा विभाग में पदस्थ हैं उसके मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को जेल भिजवाने वाले अनय द्विवेदी ही थे। बात उन दिनों की है जब द्विवेदी ग्वालियर में नगर निगम आयुक्त थे। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में उनका आखिरी तबादला खंडवा कलेक्टर के पद से हुआ था। वे पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध संचालक बनाए गए थे। अनय द्विवेदी की कार्यशैली में लचीलापन नहीं है। जबकि वे खूब योग-ध्यान करते हैं। उनके द्वारा किए जाने वाले कठिन योगासन की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है। खंडवा में उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर जनसंपर्क अधिकारी का तबादला कर दिया था। इस बार वे केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते से टक्कर ले रहे हैं। कुलस्ते के बहनोई अशोक धुर्वे,द्विवेदी के अधीन मुख्य महाप्रबंधक हैं। अशोक धुर्वे को लेकर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि कुलस्ते हार गया,धुर्वे को भगाओ। बात कुलस्ते से होती हुई मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक जा पहुंची है। कुलस्ते ने इसे अपने अपमान से जोड़ दिया है। जाहिर है कि मुख्यमंत्री को द्विवेदी का यह व्यवहार पसंद नहीं आएगा।
अधिकारियों का व्यवहार आक्रामक क्यों है?
  मध्यप्रदेश में नौकरशाही का रवैया बेहद खराब है। खासतौर पर आमजन से अधिकारियों का व्यवहार हमेशा ही आपत्तिजनक रहा है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना चुका है। इसके बाद भी अधिकारियों की मानसिकता आमजन को गुलाम समझने की दिखाई देती है। शाजापुर में कलेक्टर रहे किशोर कान्याल का व्यवहार पूरे देश ने देखा। इसके बाद सोनकच्छ की तहसीलदार अंजली गुप्ता की चर्चा हो रही है। ये तो सिर्फ दो प्रतीक हैं। भांग तो पूरे कुएं में घुली हुई है। इसका दोष शिवराज सिंह चौहान को दिया जाना चाहिए या नहीं इसे लेकर दो मत हो सकते हैं। शिवराज सिंह चौहान अक्सर नौकरशाही को हड़काते हुए यह कहते सुने जाते थे कि उल्टा लटका दूंगा। इसके बाद भी राज्य में नौकरशाही का रवैया नहीं सुधारा तो इसकी वजह भ्रष्टाचार है। इस भ्रष्टाचार के कारण ही अधिकारियों ने मंत्रियों,विधायकों को कुछ नहीं समझ तो जनता कहां लगती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने अधिकारियों का व्यवहार जन अपेक्षा के अनुरूप बनाना भी बड़ी चुनौती है। कितने अधिकारियों को वे उनके व्यवहार की शिकायत आने पर हटाएंगे? एक दिन यह सिलसिला भी बंद हो जाएगा। बेहतर है कि उनके व्यवहार का उल्लेख भी सीआर में किया जाए।

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