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डॉक्टर मोहन यादव के राजधर्म को रेखांकित राज्यपाल का अभिभाषण

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दिनेश गुप्ता
राजनीति में जब भी राजधर्म की बात आती है तो अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी का नाम स्वाभाविक तौर पर इस एक शब्द से जुड़ जाता है। गुजरात में राजधर्म का पालन नहीं हुआ। इस बात का जिक्र गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिक्रिया में व्यक्त किया गया था। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। नरेंद्र मोदी के पक्ष में लालकृष्ण आडवाणी के होने के कारण राजधर्म की विफलता पर जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी थी। लगभग दो दशक बाद भी राजधर्म का जिक्र किसी न किसी रूप में होता ही रहता है। लेकिन,इस बार राजधर्म का जिक्र मध्यप्रदेश विधानसभा में राज्यपाल मंगू भाई पटेल के अभिभाषण के अंतिम लाइनों में किया गया है। राज्यपाल मंगू भाई पटेल गुजरात मूल के ही है। अभिभाषण में राजधर्म का जिक्र विकास और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने के संदर्भ में किया गया। डॉ.मोहन यादव की सरकार का यह पहला अभिभाषण था। अभिभाषण पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित नजर आ रहा था। अभिभाषण में 48 बार प्रधानमंत्री मोदी का जिक्र था। ऐसा पहले किसी राज्यपाल के अभिभाषण में नहीं देखा। केन्द्र सरकार की उपलब्धि भी नहीं बताई जातीं थीं। लेकिन, डॉ.मोहन यादव की सरकार के पहले अभिभाषण की खूबी यही है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के साढ़े नौ साल का जिक्र भी है। राज्यपाल ने केन्द्र सरकार की उपलब्धि का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले साढ़े नौ साल में माई बाप की सरकार सेवक सरकार में बदली है। बेहद दिलचस्प भाषण रहा।

राज्यपाल के अभिभाषण में इस बात का भी उल्लेख है कि मोदी जी की गारंटी ही हर गारंटी के पूरा होने की गारंटी है। सामान्यत: राज्यपाल के अभिभाषण को व्यक्ति के्द्रिरत नहीं रखा जाता है। लेकिन,इस बार चुनाव में मोदी की गारंटी की चर्चा बहुत हुई। भाजपा की जीत के पीछे भी इसी गारंटी को श्रेय दिया जा रहा है। राज्यपाल के अभिभाषण में लाडली बहना योजना का जिक्र नहीं है। यह इस बात की इशारा करता है पार्टी शिवराज सिंह चौहान को पार्टी की जीत का श्रेय किसी भी सूरत में नहीं देना चाहती। राज्य की अर्थव्यवस्था को अगले सात साल में 45 लाख करोड़ पहुंचाने की बात कही गई है। इसके अलावा बीस लाख करोड़ के निवेश के जरिए अगले सात साल में प्रति व्यक्ति आय दुगनी होने का दावा किया गया है। इससे यह जाहिर होता है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को लेकर पार्टी की दूरगामी रणनीति है? राज्यपाल के अभिभाषण में केन्द्र की योजना से इतर किसी अन्य योजना को रेखांकित नहीं किया गया है।

नेहरू को लेकर विवाद टाला जा सकता था ?

सोलहवीं विधानसभा के पहले सत्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू की फोटो को लेकर जो विवाद उसे आसानी से टाला जा सकता था। विधानसभा सचिवालय की यह जिम्मेदारी थी कि वह प्रतिपक्ष के नेता को पहले भरोसे में लेते। यह भी संभव था कि प्रोटेम स्पीकर विपक्ष से बात कर डॉ.भीमराव अंबेडकर की फोटो सदन में लगा देते। कांग्रेस को इस बात पर एतराज होता,शायद इस कारण विवाद की शक्ल में यह मामला सामने आया। सामान्यत: सदन में विधानसभा सचिवालय के निर्णयों से जुड़े मामलों को लेकर पक्ष-विपक्ष हंगामा नहीं करते हैं। लेकिन,इस मामले में हुआ हंगामा संवादहीनता की स्थिति की ओर इशारा करती है।

विजय शाह की कमजोर पड़ती दावेदारी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ विधायक विजय शाह मकड़ाई राज परिवार से आते हैं। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में वे वन मंत्री थे। वन विभाग उनका पसंदीदा विभाग है। अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। इस कारण एक-दो मौकों पर उन्हें आदिम जाति कल्याण विभाग का प्रभार भी मिला। डॉ.मोहन यादव के मंत्रिमंडल में विजय शाह को जगह मिलने की पूरी संभावना बनी हुई थी। लेकिन,इस संभावना को कमजोर उन्होंने खुद किया है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में उनकी चिकन पार्टी से उठे विवाद से संभव है कि विजय शाह बाहर रह जाएं और उनकी जगह किसी और आदिवासी नेता को जगह मिल जाए।

कौन होगा गृह मंत्री कैलाश या प्रहलाद

शिवराज सिंह चौहान की सरकार में नरोत्तम मिश्रा गृह मंत्री थे। सरकार में उनकी स्थिति दूसरे नंबर के नेता की थी। सरकार के प्रवक्ता भी वही थे। मोहन यादव की सरकार में राज्य का गृह मंत्री कौन होगा? इसे लेकर कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि डॉ.मोहन यादव की सरकार में यदि कैलाश विजयवर्गीय आते हैं तो सबसे ताकतवर चेहरा उन्हीं का होगा। संभव है कि वे गृह मंत्री बनें। प्रहलाद पटेल के नाम की भी चर्चा है। जगदीश देवड़ा भी गृह मंत्री रह चुके हैं। सरकार के प्रवक्ता को लेकर भी अटकल बाजी चल रही है। उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला के नाम की चर्चा हो रही है।

शिवराज से बड़ी लकीर खींचने की तैयारी

शिवराज सिंह चौहान अमरकंटक की यात्रा पर गए थे। इस कारण वे विधायक दल की बैठक में नजर नहीं आए। बरगी डैम के पास मैकल रिजार्ट में उन्होंने पौधरोपण किया। रानी दुर्गावती की समाधि भी गए। शिवराज सिंह चौहान जनता अपना जुडाव बनाकर चल रहे हैं। सरकार पर दबाव भी इसी से बनता दिखाई दे रहा है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव क्या कर रहे हैं? अभी उनकी प्राथमिकता विधानसभा का सत्र थी। इसके अलावा वे हर वो जतन करने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं जिससे शिवराज सिंह चौहान की लोगों को याद न आए। शिवराज सिंह चौहान के समर्थक हर बात में डॉ.मोहन यादव की तुलना भी करने में लगे हुए हैं। समर्थक यह भूल रहे हैं कि नवंबर 2005 में शिवराज सिंह चौहान सीधे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। किसी विभाग के मंत्री के तौर पर काम करने का अनुभव उन्हें नहीं था। डॉ. मोहन यादव तो तीन साल मंत्री रहे हैं। विधायक के तौर पर राज्य की हर गतिविधि से जुड़े रहे हैं। वे इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं। यही कारण है कि वे शिवराज सिंह चौहान की छवि को भी आत्मसात करने की कोशिश में लगे हुए हैं। हमीदिया अस्पताल के निरीक्षण से लेकर भोपाल के कैंसर अस्पताल में जाकर मरीजों की खैर खबर ली। ठंड से बचने के इंतजाम के निर्देश दिए। शिवराज सिंह चौहान भी तो इसी तरह ठंड में रैन बसेरा हाल जानने जाते थे। पूर्व निर्धारित कानून कार्यक्रम न होने के बाद भी वे पांढुर्णा चले गए। नए जिले की व्यवस्थाओं को देखने। छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। चुनाव परिणाम के बाद शिवराज सिंह चौहान छिंदवाड़ा गए थे। उन्होंने कहा था कि वे इस सीट को जीत कर मोदी जी को 29 कमल की माला पहनाना चाहते हैं। राज्य में लोकसभा की 29 सीटें हैं। पिछले चुनाव में 28 भाजपा जीती थी। छिंदवाड़ा को लेकर जो शिवराज सिंह चौहान ने कहा उस पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया। डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बन गए। अ वे छिंदवाड़ा को लक्ष्य किए हुए हैं  ।
 

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