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क्या यह कांग्रेस में नए युग की शुरुआत है

rag darbari
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दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन अपेक्षित था। चेहरे भी वहीं हैं जिनके नामों को लेकर हमेशा चर्चा बनी रहती थी। आज जो है कल वही रहेगा,ऐसा न तो राजनीति में होता है न ही अन्य किसी क्षेत्र में देखने को मिलता है। राजनीति पर यह बात भी लागू नहीं होती कि सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या किया?कब आपका सितारा चमक जाए कह नहीं सकते। इसलिए जब जागो तब सबेरा के आधार पर राजनीति चलती है। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश ही नहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपना सब कुछ लुटा दिया। इसके बाद भी वह नेतृत्व परिवर्तन के जरिए नए सबेरे का इंतजार कर रही है। नई पीढ़ी के साथ पुराने मठाधीशों की चुनौती कम नहीं होगी? साधन और संसाधन जुटाने की चुनौती अपनों को साधने से बड़ी है।
कमलनाथ ने अपनी मर्जी से पद नहीं छोड़ा है। कमलनाथ की मर्जी पर चलकर कांग्रेस ने चुनाव में अपने हाथ आए राज्य को गंवा दिया है।

The face of Madhya Pradesh Congress changed after the historic defeat, Kamal Nath was removed and Patwari made the president.
The face of Madhya Pradesh Congress changed after the historic defeat, Kamal Nath was removed and Patwari made the president.

छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में इस बात की चर्चा ज्यादा नहीं हुई कि केन्द्रीय नेतृत्व के सर्वे को नकारते हुए कमलनाथ ने मध्यप्रदेश में विधानसभा उम्मीदवार तय किए। जो नाम सर्वे में नहीं थे,उन्हें अपने रसूख से टिकट दिलाए। कांग्रेस आलाकमान के सामने इस दौर की सबसे बड़ी चुनौती उन चेहरों को पहचानने की है जो नेता तो कांग्रेस पार्टी के हैं लेकिन,काम भारतीय जनता पार्टी के लिए कर रहे हैं। कमलनाथ को कभी इंदिरा गांधी ने अपना तीसरा बेटा बताया था। इस बात का लाभ कमलनाथ पिछले पांच दशक से उठा रहे हैं। जो एक सामान्य नेता को मिलता है उससे ज्यादा वे पा चुके हैं।  राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी ने अपनी पारिवारिक विरासत को बनाए रखने के लिए कमलनाथ पर काफी भरोसा भी किया। लेकिन,कमलनाथ ने कभी राहुल गांधी को सहयोग नहीं किया।

कमलनाथ ही नहीं इंदिरा-राजीव युग के कई नेताओं के असहयोग पूर्ण रवैये के कारण राहुल गांधी भाजपा के लिए सॉफ्ट टारगेट आसानी से बनकर पप्पू करार दिए गए। पुराने नेताओं ने पारिवारिक रिश्तों का हवाला देकर राहुल गांधी की टीम में अविश्वास का भाव पैदा कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट के नाम सभी के सामने हैं। सचिन पायलट से खतरा अशोक गहलोत को रहता था। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया बड़ी चुनौती बन सकते थे। सिंधिया को लोकसभा चुनाव में हराने और नकुल नाथ को जीताने की रणनीति किसी से छुपी हुई नहीं हैं। वीरेन्द्र रघुवंशी से लेकर केपी सिंह तक इस राजनीति का हिस्सा 2019 तक रहे हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में ये दोनों नेता किनारे लग गए।जीतू पटवारी के अलावा राहुल गांधी के पास कोई और बेहतर विकल्प शायद था नहीं। फैसला राजनीति से ज्यादा वफादारी के आधार पर लिया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का चयन यदि आगे की राजनीति को सोचकर किया जाता तो शायद अरुण यादव बेहतर विकल्प हो सकते थे। वे चार साल अध्यक्ष रह भी चुके थे। विपरीत परिस्थितियों में ही पार्टी चलाई थी। वे पिछले कुछ सालों से लगातार हाशिए पर चल रहे हैं। राजनीति में कई बार जो दिख रहा होता है ,वह होता नहीं हे। संभव है कि अरुण यादव से कोई चूक हुई हो? इसका लाभ जीतू पटवारी को मिला है।

Kamal Nath said to Digvijay, whether it is a mistake or not, you will have to face abuses.
Kamal Nath said to Digvijay, whether it is a mistake or not, you will have to face abuses.

जीतू पटवारी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी ने अपनी अगली टीम के लीडर के संकेत पहले ही दिए थे। पटवारी की हार चौंकाने वाली रही। मध्यप्रदेश में कांग्रेस का कोई नेता इस बात का अंदाज ही नहीं लगा पाया कि चुनाव नतीजे इतने खराब होंगे? सरकार बनना तो दूर जो सीटें 2020 के बाद से हाथ में बचीं थीं,उन्हें भी कमलनाथ नहीं बचा पाए।
क्या कमलनाथ मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाना चाहते? इसका जवाब अतीत की तमाम घटनाओं में छुपा हुआ। कमलनाथ ने अपनी सरकार बचाने की कोशिश कभी नहीं की। वे राज्य के मुख्यमंत्री थे। चाहते तो अशोक गहलोत की तरह सरकार बचा लेते। उप चुनाव जीतने में भी कमलनाथ की दिलचस्पी नहीं थी। 2023 के आम चुनाव में मिली पराजय के बाद कांग्रेस हाईकमान को इस बात का जवाब मिल गया कि कमलनाथ सरकार ही नहीं बनाना चाहते थे। दिग्विजय सिंह से कपड़ा फाड़ संवाद पार्टी को चुनाव में नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया था। इसका असर राजस्थान में भी हुआ और छत्तीसगढ़ में भी हुआ।
लगभग साढ़े पांच साल कमलनाथ ने अकेले ही कांग्रेस चलाई। हर नेता से उनकी दूरी साफ दिखाई देती थी। अजय सिंह अरुण यादव ही नहीं सुरेश पचौरी भी अलग-थलग पड़े हुए थे। दिग्विजय सिंह तो जैसे तैसे अपनी राजनीति और साख बचाए हुए थे। पार्टी की जीत के उनके अनुमान भी गलत साबित हुए। भाई लक्ष्मण सिंह भितरघात की शिकायत कर रहे हैं। पुत्र जयवर्द्धन सिंह मुश्किल से जीत पाए। छिंदवाड़ा में मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होता तो कांग्रेस वहां भी बुरी तरह हारती। इस बता को कमलनाथ समझ चुके हैं। इस कारण अब उनकी चिंता छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में अपने पुत्र नकुल नाथ को जीताने की  है। नकुल का कोई राजनीतिक संघर्ष कांग्रेस पार्टी के लिए नहीं रहा। अध्यक्ष पद से हटाए जाने के एवज में कमलनाथ को नकुल नाथ की टिकट की गारंटी जरूर मिल गई होगी। कांग्रेस की पांच गारंटियों को हवा निकालने में कमलनाथ की बड़ी भूमिका रही है।

प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर  उमंग सिंघार का नाम भी राहुल गांधी के कारण ही फाइनल हो सका। आदिवासी वर्ग के दूसरे दावेदार ओंकार मरकाम की राजनीति आक्रामक नहीं है। प्रतिपक्ष में तीखे तेवर के बगैर काम नहीं चलता। समय रहते उमंग सिंगार ने भले ही दिग्विजय सिंह से माफी मांग ली हो लेकिन,उनके द्वारा लगाए गए आरोप ही सत्ता पक्ष के लिए हथियार का काम करेंगे। हेमंत कटारे पार्टी का ब्राह्मण चेहरा बन पाएंगे,इसमें संदेह है। उनकी राजनीति में निरंतरता नहीं है। उन्हें समन्वय की कला भी सीखना होगी। कांग्रेस पार्टी की युवा तिकड़ी के सामने भाजपा के बड़े-बड़े रणनीतिकार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के सामने पार्टी को लोकसभा चुनाव में जीत दिलाना आसान नहीं है।  

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ऐतिहासिक हार के बाद बदला मध्यप्रदेश कांग्रेस का चेहरा, कमलनाथ को हटा पटवारी बनाए गए अध्यक्ष

The face of Madhya Pradesh Congress changed after the historic defeat, Kamal Nath was removed and Patwari made the president.
The face of Madhya Pradesh Congress changed after the historic defeat, Kamal Nath was removed and Patwari made the president.

आगामी लोकसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस ने अपना चेहरा बदलने की कोशिश करते हुए अब तक राज्य में पार्टी की कमान संभाले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाते हुए पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को ये जिम्मेदारी सौंप दी है।

पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मालवांचल के इंदौर से आने वाले पार्टी के युवा नेता और पूर्व मंत्री श्री पटवारी को कांग्रेस अध्यक्ष और इसी अंचल के धार जिले के युवा नेता और गंधवानी विधायक उमंग सिंघार को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नियुक्त किया है। साथ ही भिंड जिले के अटेर विधायक हेमंत कटारे को उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। इस के साथ ही राज्य में विधानसभा चुनाव के समय से पार्टी की कमान को लेकर चली आ रहीं अटकलों पर विराम लग गया है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले श्री पटवारी इंदौर जिले के राऊ से विधायक रहे हैं। वे उस समय राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए थे, जब मंदसौर किसान मामले के समय पुलिस के भारी पहरे के बीच श्री गांधी मंदसौर श्री पटवारी की ही मोटरसाइकिल पर बैठ कर गए थे। वे कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे हैं। इस बार वे भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी मधु वर्मा से चुनाव हार गए हैं।

इसी बीच राज्य में श्री कमलनाथ की अध्यक्षता में कार्यकारी अध्यक्ष का दायित्व निभा रहे वरिष्ठ विधायक श्री रामनिवास रावत ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। श्री रावत इस बार भी विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए हैं।

नेता प्रतिपक्ष बनाए गए श्री सिंघार राज्य में पार्टी का बड़ा आदिवासी चेहरा माने जाते हैं। वे पूर्व उप मुख्यमंत्री जमुना देवी के भतीजे हैं। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान के बीच भी श्री सिंघार अपनी परंपरागत सीट गंधवानी को कांग्रेस की झोली में डालने में कामयाब रहे हैं। हालांकि कमलनाथ सरकार के दौरान मंत्री पद पर रहते उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर कई सनसनीखेज आरोप लगाए थे और बाद तक भी वे अपने आरोपों पर कायम रहे थे। इस मामले ने तत्कालीन सरकार के समय बहुत सुर्खियां बटोरीं थीं।

श्री कटारे भिंड जिले के अटेर से दूसरी बार विधायक चुन कर आए हैं। वे पूर्व मंत्री सत्यदेव कटारे के पुत्र हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वे भाजपा के कद्दावर नेता अरविंद भदौरिया से हार गए थे, लेकिन इस बार उन्होंने श्री भदौरिया को धूल चटा कर ये सीट एक बार फिर कांग्रेस की झोली में डाल दी है।

हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राज्य की कुल 230 में से मात्र 66 सीटें प्राप्त हुई हैं। इस चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है, जिसमें एक नाम श्री पटवारी का भी है।

श्री कमलनाथ वर्ष 2018 के चुनाव के पहले से कांग्रेस अध्यक्ष पर कायम थे। पिछले दो चुनाव कांग्रेस ने उन्हीं के नेतृत्व में लड़े थे। इस बार पार्टी की ऐतिहासिक हार के बाद से उन्हें इस पद से हटाए जाने की खबरों ने जोर पकड़ रखा था।