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कंसोटिया को मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठाने का दबाव बनाता अजाक्स

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दिनेश गुप्ता
वैसे तो मुख्य सचिव पद की दौड़ में सबसे आगे 1990 बैच के आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा दिखाई दे रहे हैं।  राजौरा की सक्रियता भी इसी ओर इशारा कर रही है। साइबर सुरक्षा को लेकर आयोजित की गई बैठक का नजारा भी ऐसा ही था जैसे कि मुख्य सचिव बैठक ले रहे हो?  बैठक में नगरीय प्रशासन विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव क्रमश:नीरज मंडलोई और निकुंज श्रीवास्तव भी मौजूद थे। साइबर अपराध शाखा के पुलिस अफसर भी बैठक में थे। मुख्य सचिव को लेकर मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को कोई जल्दी नहीं है। वीरा राणा की ओर से कोई परेशानी भी सामने नहीं आ रही है। मुख्य सचिव पद के एक दावेदार जेएन कंसोटिया भी हैं। वे 1989 बैच के अधिकारी हैं। राजेश राजौरा से वरिष्ठ हैं। वरिष्ठता क्रम में भी उनका  राजौरा  के ठीक ऊपर है। कोई बड़ा विवाद  उनको लेकर भी कभी सामने नहीं आया। जांच,कार्यवाही का भी सामना नहीं किया। उनके पक्ष में एक बात जो खिलाफ जा सकती है वह है अजाक्स संगठन का अध्यक्ष होना। अजाक्स यानी अनुसूचित जाति,जनजाति अधिकारी कर्मचारी संगठन। मुख्य सचिव पद पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह जाति और धर्म को लेकर विशेष लगाव न रखता हो। प्रदेश में यदि अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही थी तो इसके पीछे भी अजाक्स का दबाव ही प्रमुख है।

अजाक्स को खुश करने क लिए शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते यहां तक कह दिया था कि कोई माई का लाल पदोन्नति में आरक्षण नहीं रोक सकता। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। सरकार चाहे तो पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिए बगैर पदोन्नति का रास्ता खोल सकती है। लेकिन,राजनीतिक लाभ का भाव कुछ करने नहीं देता। यही लाभ कंसोटिया उठाना चाहते हैं। मुख्य सचिव बनने का उनके पास अवसर भी है और वरिष्ठता भी है। इस कारण संगठन को भी सामने रख रहे हैं। कंसोटिया अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। दिलचस्प यह है कि राजोरा भी इसी वर्ग से हैं।  मंगलवार को मंत्रालय में आयोजित विदाई समारोह में भी कंसोटिया की दावेदारी चर्चा में रही। विदाई समारोह मंत्रालय से रिटायर हुए अधिकारियों एवं कर्मचारियों का था। ये अधिकारी एवं कर्मचारी अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के थे। सात साल से पदोन्नति न होने को मुद्दा बनाने पर भी बात हुई।

औकात का सवाल हो तो कार्यवाही जरूरी है

शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में नौकरशाही हावी हो गई थी,इसे कोई भी अस्वीकार नहीं करता था। चाहे वह बड़ा नेता हो या छोटा। सुनी सिर्फ उसकी जाती है जिसके बारे में शिवराज सिंह चौहान ने अफसरों को कह दिया है। कई मंत्रियों को तो यह शिकायत भी थी कि मुख्य सचिव के पास भी उनकी बात सुनने का समय नहीं है। वहीं कई अफसर तो ऐसे भी थे जो अपनी एक जेब में मुख्यमंत्री को रखते थे और दूसरी जेब में मुख्य सचिव को। मंत्री तो उनकी गिनती में नहीं था। आम आदमी की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। जन सुनवाई जैसे कार्यक्रम केवल हाथी के दिखाने वाले दांतों की तरह ही हैं। जनता की नियमित सुनवाई हो तो फिर इस तरह के कार्यक्रम क्यों रखना पड़ते? अधिकारियों का आम आदमी के प्रति व्यवहार भी बिल्कुल वैसा ही होता जा रहा है जैसा गौरों के राज में होता था। दिन-दिन भर इंतजार के बाद भी अफसर से आम आदमी मिल नहीं पाता। मुलाकात हो गई तो यह सुनना पड़ता है कि तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हो गई? शाजापुर के कलेक्टर किशोर कन्याल का ट्रक ड्राइवर के प्रति व्यवहार इसका बड़ा उदाहारण है। आम आदमी से उसकी औकात पूछना किस  शिष्टाचार में आता है? ये उन्हीें अधिकारियों में हैं जिनकी दोनों जेबों में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव होते हैं। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव जिस तरह से भारी-भरकम जेब (जिनकी जेब में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव होते हैं) वाले अफसरों को मंत्रालय में ला रहे हैं उससे प्रशासन में कसावट जल्द देखने को मिल सकती है?

किशोर कन्याल पर मेहरबान रही सरकार

ड्राइवर को उसकी औकात याद दिलाने वाले आईएएस अधिकारी किशोर कन्याल की औकात (दबदबा) उनके करीबी और सहयोगी अच्छी तरह से जानते हैं। दिल्ली मूल के किशोर कन्याल 1998 में डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद मध्यप्रदेश आए। अविभाजित मध्यप्रदेश में उनकी पहली पदस्थापना बिलासपुर में हुई थी। अप्रैल 1999 से मार्च 2001 तक वहां रहे । मध्यप्रदेश में आ गए। सीधे कृषि उपज मंडी ग्वालियर में सचिव बनाए गए। कुछ महीने ही रह पाए। ग्वालियर में ही आपूर्ति निगम के महाप्रबंधक बन गए। यहां भी एक साल पूरा नहीं किया। मार्च 2001 से तीन साल का अवकाश भी रहा। 2004 में जब लौटे तो साडा ग्वालियर में मुख्य कार्यपालन अधिकारी बना दिए गए। अगस्त 2004 से  जुलाई 2007 तक रहे। इसके बाद ग्वालियर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बन गए। यहां  मार्च 2008 तक रहे। फिर भोपाल आए गए। संयुक्त कलेक्टर के पद पर अप्रैल 2010 तक लगभग दो साल रहे। फिर मंडी बोर्ड भोपाल में उप संचालक बन गए। यहां भी दो साल रहे। इसके बाद नगर निगम भोपाल में अपर आयुक्त बना दिए गए। जून 2013 तक केवल एक साल रहे।  दो साल खनिज निगम कार्यपालक संचालक के पद पर रहे। इसके बाद एक साल अपर आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग बन गए। फरवरी 2016 से जून 2019 तक राष्ट्रीय राजमार्ग नई दिल्ली में रहे। वापस लौटे तो फिर ग्वालियर के अपर कलेक्टर बना दिए गए। वहां जिला पंचायत और नगर निगम में पोस्टिंग चलती रही। अप्रैल 2022 में शाजापुर के कलेक्टर बने। इससे पहले नवंबर 2020 में उनकी आईएएस में पदोन्नति हो गई। जाहिर है कि सरकार ने उनकी सुविधा का पूरा ख्याल रखा। दिल्ली आना-जान बना रहे इस कारण उन्हें ग्वालियर में पोस्टिंग दी गई।

ऋजु बाफना का उज्जैन कनेक्शन

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रशासनिक फेरबदल में सबसे ज्यादा प्रभावित उज्जैन रहा है। उज्जैन में कलेक्टर,अपर कलेक्टर बदले जा चुके हैं। उज्जैन में अपर कलेक्टर रहीं प्रीति यादव नगर निगम जबलपुर की कमिश्नर बनी हैं। उन्हें तबादले के तत्काल बाद जबलपुर पहुंचना पड़ा। कारण कैबिनेट की मीटिंग रही। मुख्यमंत्री जबलपुर संभाग में दौरे पर हैं। वहां संभागीय समीक्षा भी कर रहे हैं। समीक्षा से पहले ही उन्होंने नरसिंहपुर कलेक्टर का तबादला शाजापुर कलेक्टर के रूप में कर दिया। माना जा रहा है कि ऋजु बाफना को हटाने का आग्रह पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल का था। इसी कारण संभागीय समीक्षा से पहले हटा दिया। संयोगवश शाजापुर कलेक्टर का पद खाली हुआ तो ऋजु बाफना को वहां भेज दिया। 2014 बैच की अफसर हैं। टॉपर रही हैं। 

पहली बार उनकी चर्चा 2015 में एक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हुई थी। पोस्ट महिला उत्पीड़न के खिलाफ थी। विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऋजु बाफना चर्चा में रहीं। नरसिंहपुर के निर्दलीय उम्मीदवार शेखर चौधरी ने भाजपा उम्मीदवार प्रहलाद पटेल के पक्ष में काम करने का आरोप लगाकर उन्हें हटाने की एक याचिका हाईकोर्ट में दायर कर दी। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर कोई फैसला नहीं दिया। ऋजु बाफना उज्जैन जिले के नागदा में अनुभागीय दंडाधिकारी रही हैं। नवंबर 2022 में भोपाल नगर निगम से नरसिंहपुर कलेक्टर बनकर गई थीं।   ट्रेनिंग सिवनी में भरत यादव के अधीन ली। भरत यादव वहां कलेक्टर थे। 

राम बनने की कोशिश करते शिवराज

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या वनवास में हैं? यह सवाल उनके द्वारा शाहगंज में दिए गए एक भाषण के कारण महत्वपूर्ण हो जाता है। शिवराज सिंह चौहान ने सत्रह साल से अधिक समय तक मध्यप्रदेश में राज किया है। लेकिन,इस बार चुनाव नतीजों के बाद राजतिलक डॉ.मोहन यादव का हुआ। डॉ.मोहन यादव मुख्यमंत्री बने हैं। शिवराज सिंह चौहान को यह उम्मीद जरूर रही कि पार्टी बेहतर चुनावी प्रदर्शन के कारण उन्हें एक मौका और दे सकती है। मौका नहीं मिला। शिवराज सिंह चौहान महिलाओं के बीच लोकप्रिय नेता हैं,इसमें भी कोई दो राय नहीं है। जहां भी जाते हैं महिलाएं मुख्यमंत्री न बन पाने पर भावुक हो जाती हैं। शिवराज सिंह चौहान भी भावुक हो जाते हैं। इसी भावुकता में उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र बुधनी के शाहगंज में कहा कि कभी-कभी राजतिलक होते होते वनवास हो जाता है। राजतिलक से पहले वनवास किसे हुआ था यहां इस बात का उल्लेख शिवराज सिंह चौहान ने नहीं किया। लेकिन,सभी जानते हैं कि यह स्थिति भगवान श्री राम के साथ हुई थी। उनके वनवास का बड़ा उद्देश्य रावण वध के तौर पर सामने आया। साधु-संतों का उद्धार भी हुआ। शिवराज सिंह चौहान भी अपने इस वनवास बड़ा उद्देश्य तलाश कर रहे हैं। ऐसा उन्होंने कहा भी कि वनवास बड़े उद्देश्य के लिए हुआ होगा? क्या बड़ा उद्देश्य प्रधानमंत्री का पद हो सकता है?