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कैबिनेट की औपचारिक बैठक में अनुमोदन की औपचारिकता

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दिनेश गुप्ता
जबलपुर में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कैबिनेट की पहली औपचारिक मीटिंग थी। पहली इस मायने में कि मंत्रियों के विभागों के वितरण के बाद यह पहली औपचारिक बैठक थी। कैबिनेट की पिछली बैठक मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद हुई थी। पूरी तरह से अनौपचारिक बैठक थी। मंत्रियों को विभाग भी नहीं मिले थे। जबलपुर की बैठक में कैबिनेट की मंजूरी के लिए जो विषय कार्यसूची में थे,उनमें अधिकांश मामले अनुमोदन के थे। ग्वालियर मेले में वाहनों की खरीदी पर पचास प्रतिशत रोड टैक्स की माफी का आदेश पहले ही लागू हो चुका है। गुरुवार को मेले का शुभारंभ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया।  तेंदूपत्ता संग्राहकों को चार हजार रुपए प्रति मानक बोरा मजदूरी दिए जाने का निर्णय पहले ही लिया जा चुका है। औपचारिक आदेश भी जारी किया जा चुका है। कैबिनेट में सिर्फ औपचारिक मंजूरी के लिए लाया गया था। राज्यपाल के अभिभाषण का प्रस्ताव भी सिर्फ अनुमोदन के लिए था। कोई चर्चा होना नहीं थी। मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति किलो दस रूपए की राशि किसान को दिए जाने का निर्णय महत्वपूर्ण है। इसके लिए कैबिनेट ने रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू करने का निर्णय लिया है। योजना के अंतर्गत श्री अन्न – कोदो-कुटकी, रागी, ज्वार, बाजरा आदि के उत्पादन करने वाले किसानों को प्रति किलो 10 रुपए की राशि प्रदान की जाएगी। यह राशि सीधे किसानों के खाते में अंतरित की जाएगी। मध्यप्रदेश में कोदो- कुटकी की खेती मण्डला, डिण्डोरी, बालाघाट, छिन्दवाड़ा, अनूपपुर, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, शहडोल, सिवनी और बैतूल जिलों में होती है।

कोदो-कुटकी के किसानों की आय में वृद्धि के लिए फसल उत्पादन, भण्डारण, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग, उपार्जन, ब्रांड बिल्डिंग के साथ वैल्यू चेन विकसित करने के उद्देश्य से रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू की जा रही है। योजना को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा सकता है। कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में लाभ के लिए यह योजना लागू की जा रही है। जबलपुर में कैबिनेट की मीटिंग रखने का उद्देश्य भी राजनीतिक ही था। इससे लोगों में विकास की उम्मीद भी जागी। मंत्रियों ने अपने-अपने विभाग से संबंधित गतिविधियों का जायजा लिया। लोगों से मिलकर भी उनकी जरूरतों को समझा। एक आशा का सकारात्मक भाव लोगों के अंदर आया है। पिछले कुछ सालों से राज्य में सरकार का कामकाज एक ही तरह के ढर्रे पर चल रहा था। मुख्यमंत्री भी उन्हीं से मिलते थे,जिनसे मिलना होता था। सुना भी उन्हें जाता था जिन्हें सुनना होता था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश भर का दौरा कर कार्यकर्ताओं से भी संवाद के द्वार खोले जा रहे हैं।

जहां बैठी कैबिनेट वहां तैयार हुआ महंगी बिजली का प्लान

जबलपुर में कैबिनेट की बैठक शक्ति भवन में हुई। शक्ति भवन में ही पावर मैनेजमेंट कंपनी का दफतर है। इस दफ्तर में ही बिजली महंगी करने का प्लान तैयार किया गया है। इस बार कंपनी की नजर ऐसे उपभोक्ताओं पर है जिनकी मासिक खपत 150 से 300 यूनिट तक है। कंपनी ने ऐसे उपभोक्ताओं के लिए बिजली 6.85 रुपए प्रति यूनिट पर देने का प्रस्ताव राज्य नियामक आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है। कंपनी ने 300 यूनिट पर लगने वाले टैरिफ को भी समाप्त करने का भी प्रस्ताव दिया है। नियत प्रभार में वृद्धि प्रस्तावित की गई है। शहरी क्षेत्र में तीन  रुपए  और ग्रामीण क्षेत्र में दो रुपए नियत प्रभार वसूलने का प्रस्ताव दिया है। बिजली को सत्रह पैसे से लेकर 24 पैसे प्रति यूनिट तक महंगा करने का प्रस्ताव है। वर्तमान में पचास यूनिट बिजली 3.34 प्रति यूनिट की दर पर मिल रही है। इसे बढ़ाकर 3.58 रुपए प्रति यूनिट किए जाने का प्रस्ताव है। पावर मैनेजमेंट कंपनी ने बिजली दरों में वृद्धि का प्रस्ताव अपने घाटे को पूरा करने के नाम पर दिया है। हर साल इसी आधार बिजली की दरें बढ़ती हैं। पिछली बार 1.65 फीसदी बिजली महंगी की थी। कंपनी ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि उसे 55072 करोड़ रुपए की जरूरत होती है। उसकी आमदनी 53026 करोड़ रुपए है। अंतर 2046 करोड़ रुपए का है।

मामा के घर की सियासत

शिवराज सिंह चौहान घर बैठने वाले राजनेता नहीं हैं। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वे अब तक सिर्फ एक बार दिल्ली गए हैं। वह भी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बुलावे पर। उन्होंने अपनी दिल्ली यात्रा में न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और न ही गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की कोई तस्वीर सामने आई। भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अमित शाह बड़ा पावर सेंटर हैं। इस पावर सेंटर के नजदीक आए बगैर भाजपा की राजनीति संभव नहीं है। लेकिन, शिवराज सिंह चौहान मौजूदा दौर में अपनी ताकत के साथ राजनीति करते दिखाई दे रहे हैं। उनकी ताकत मध्यप्रदेश की महिला वोटर हैं। इनसे भाई और मामा का रिश्ता भी बना लिया है। अपने हर कार्यक्रम में वे इस बात का उल्लेख भी करने से नहीं चूकते। अब उन्होंने अपने 74 बंगला स्थित सरकारी आवास पर मामा का घर की तख्ती लगाकर आगे की सियासत भी स्पष्ट कर दी है।

जबलपुर के बाद किसकी बारी

जबलपुर में कैबिनेट की बैठक के बाद वहां के कलेक्टर सौरव कुमार सुमन को हटा दिया गया। सुमन को हटाने का फैसला शायद पहले ही ले लिया गया हो? लेकिन,आदेश बैठक के बाद जारी किए गए। जबलपुर के कलेक्टर बनाए दीपक सक्सेना नरसिंहपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। वे 2020 तक नरसिंहपुर में पदस्थ थे। सक्सेना सितंबर 2021 से संचालक खाद्य एवं आपूर्ति और भंडार निगम के प्रबंध संचालक के पद पर पदस्थ हैं। जबलपुर कलेक्टर के पद से हटाए गए सौरव कुमार सुमन 2011 बैच के अधिकारी हैं। वे 2022 नवंबर में जबलपुर के कलेक्टर बने थे। अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। बिहार मूल के अधिकारी हैं। जबकि जबलपुर के कलेक्टर बनाए दीपक सक्सेना मध्यप्रदेश के ही है। उनका गृह जिला उज्जैन है। उज्जैन मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव का भी गृह जिला है। संभव है इस कारण उन्हें एक बार फिर जिले में जाने का मौका मिल गया हो? सरकार ने गुरुवार को ही नरसिंहपुर में भी कलेक्टर की नियुक्ति कर दी है। शीतल पटले को जिम्मेदारी दी गई है। वे 2014 बैच की अधिकारी हैं। वर्तमान में वे उप सचिव मुख्यमंत्री तथा परियोजना संचालक स्किल डेवलपमेंट के पद पर पदस्थ थीं। इस तरह मुख्यमंत्री निवास से एक और अधिकारी की रवानगी कर दी गई है।

जबलपुर मीटिंग का पुलिस पर इफेक्ट

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा जबलपुर में संभागीय समीक्षा बैठक ली गई। इस बैठक में पार्टी के वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई की ओर पुलिस बल की कमी का मुद्दा उठाया गया। मुख्यमंत्री को बताया गया कि जबलपुर एवं इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद जबलपुर सहित प्रदेश के कई शहरों से आरक्षकों को वहां अटैच कर दिया गया। इनकी वापसी अब तक नहीं की गई है। मुख्यमंत्री ने तत्काल पुलिस महानिदेशक को कार्यवाही के लिए कहा गया। जो आरक्षण इंदौर एवं भोपाल में अटैच थे। उन्हें वापस कर दिया गया।

कंसोटिया को मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठाने का दबाव बनाता अजाक्स

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दिनेश गुप्ता
वैसे तो मुख्य सचिव पद की दौड़ में सबसे आगे 1990 बैच के आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा दिखाई दे रहे हैं।  राजौरा की सक्रियता भी इसी ओर इशारा कर रही है। साइबर सुरक्षा को लेकर आयोजित की गई बैठक का नजारा भी ऐसा ही था जैसे कि मुख्य सचिव बैठक ले रहे हो?  बैठक में नगरीय प्रशासन विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव क्रमश:नीरज मंडलोई और निकुंज श्रीवास्तव भी मौजूद थे। साइबर अपराध शाखा के पुलिस अफसर भी बैठक में थे। मुख्य सचिव को लेकर मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को कोई जल्दी नहीं है। वीरा राणा की ओर से कोई परेशानी भी सामने नहीं आ रही है। मुख्य सचिव पद के एक दावेदार जेएन कंसोटिया भी हैं। वे 1989 बैच के अधिकारी हैं। राजेश राजौरा से वरिष्ठ हैं। वरिष्ठता क्रम में भी उनका  राजौरा  के ठीक ऊपर है। कोई बड़ा विवाद  उनको लेकर भी कभी सामने नहीं आया। जांच,कार्यवाही का भी सामना नहीं किया। उनके पक्ष में एक बात जो खिलाफ जा सकती है वह है अजाक्स संगठन का अध्यक्ष होना। अजाक्स यानी अनुसूचित जाति,जनजाति अधिकारी कर्मचारी संगठन। मुख्य सचिव पद पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह जाति और धर्म को लेकर विशेष लगाव न रखता हो। प्रदेश में यदि अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही थी तो इसके पीछे भी अजाक्स का दबाव ही प्रमुख है।

अजाक्स को खुश करने क लिए शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते यहां तक कह दिया था कि कोई माई का लाल पदोन्नति में आरक्षण नहीं रोक सकता। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। सरकार चाहे तो पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिए बगैर पदोन्नति का रास्ता खोल सकती है। लेकिन,राजनीतिक लाभ का भाव कुछ करने नहीं देता। यही लाभ कंसोटिया उठाना चाहते हैं। मुख्य सचिव बनने का उनके पास अवसर भी है और वरिष्ठता भी है। इस कारण संगठन को भी सामने रख रहे हैं। कंसोटिया अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। दिलचस्प यह है कि राजोरा भी इसी वर्ग से हैं।  मंगलवार को मंत्रालय में आयोजित विदाई समारोह में भी कंसोटिया की दावेदारी चर्चा में रही। विदाई समारोह मंत्रालय से रिटायर हुए अधिकारियों एवं कर्मचारियों का था। ये अधिकारी एवं कर्मचारी अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के थे। सात साल से पदोन्नति न होने को मुद्दा बनाने पर भी बात हुई।

औकात का सवाल हो तो कार्यवाही जरूरी है

शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में नौकरशाही हावी हो गई थी,इसे कोई भी अस्वीकार नहीं करता था। चाहे वह बड़ा नेता हो या छोटा। सुनी सिर्फ उसकी जाती है जिसके बारे में शिवराज सिंह चौहान ने अफसरों को कह दिया है। कई मंत्रियों को तो यह शिकायत भी थी कि मुख्य सचिव के पास भी उनकी बात सुनने का समय नहीं है। वहीं कई अफसर तो ऐसे भी थे जो अपनी एक जेब में मुख्यमंत्री को रखते थे और दूसरी जेब में मुख्य सचिव को। मंत्री तो उनकी गिनती में नहीं था। आम आदमी की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। जन सुनवाई जैसे कार्यक्रम केवल हाथी के दिखाने वाले दांतों की तरह ही हैं। जनता की नियमित सुनवाई हो तो फिर इस तरह के कार्यक्रम क्यों रखना पड़ते? अधिकारियों का आम आदमी के प्रति व्यवहार भी बिल्कुल वैसा ही होता जा रहा है जैसा गौरों के राज में होता था। दिन-दिन भर इंतजार के बाद भी अफसर से आम आदमी मिल नहीं पाता। मुलाकात हो गई तो यह सुनना पड़ता है कि तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हो गई? शाजापुर के कलेक्टर किशोर कन्याल का ट्रक ड्राइवर के प्रति व्यवहार इसका बड़ा उदाहारण है। आम आदमी से उसकी औकात पूछना किस  शिष्टाचार में आता है? ये उन्हीें अधिकारियों में हैं जिनकी दोनों जेबों में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव होते हैं। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव जिस तरह से भारी-भरकम जेब (जिनकी जेब में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव होते हैं) वाले अफसरों को मंत्रालय में ला रहे हैं उससे प्रशासन में कसावट जल्द देखने को मिल सकती है?

किशोर कन्याल पर मेहरबान रही सरकार

ड्राइवर को उसकी औकात याद दिलाने वाले आईएएस अधिकारी किशोर कन्याल की औकात (दबदबा) उनके करीबी और सहयोगी अच्छी तरह से जानते हैं। दिल्ली मूल के किशोर कन्याल 1998 में डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद मध्यप्रदेश आए। अविभाजित मध्यप्रदेश में उनकी पहली पदस्थापना बिलासपुर में हुई थी। अप्रैल 1999 से मार्च 2001 तक वहां रहे । मध्यप्रदेश में आ गए। सीधे कृषि उपज मंडी ग्वालियर में सचिव बनाए गए। कुछ महीने ही रह पाए। ग्वालियर में ही आपूर्ति निगम के महाप्रबंधक बन गए। यहां भी एक साल पूरा नहीं किया। मार्च 2001 से तीन साल का अवकाश भी रहा। 2004 में जब लौटे तो साडा ग्वालियर में मुख्य कार्यपालन अधिकारी बना दिए गए। अगस्त 2004 से  जुलाई 2007 तक रहे। इसके बाद ग्वालियर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बन गए। यहां  मार्च 2008 तक रहे। फिर भोपाल आए गए। संयुक्त कलेक्टर के पद पर अप्रैल 2010 तक लगभग दो साल रहे। फिर मंडी बोर्ड भोपाल में उप संचालक बन गए। यहां भी दो साल रहे। इसके बाद नगर निगम भोपाल में अपर आयुक्त बना दिए गए। जून 2013 तक केवल एक साल रहे।  दो साल खनिज निगम कार्यपालक संचालक के पद पर रहे। इसके बाद एक साल अपर आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग बन गए। फरवरी 2016 से जून 2019 तक राष्ट्रीय राजमार्ग नई दिल्ली में रहे। वापस लौटे तो फिर ग्वालियर के अपर कलेक्टर बना दिए गए। वहां जिला पंचायत और नगर निगम में पोस्टिंग चलती रही। अप्रैल 2022 में शाजापुर के कलेक्टर बने। इससे पहले नवंबर 2020 में उनकी आईएएस में पदोन्नति हो गई। जाहिर है कि सरकार ने उनकी सुविधा का पूरा ख्याल रखा। दिल्ली आना-जान बना रहे इस कारण उन्हें ग्वालियर में पोस्टिंग दी गई।

ऋजु बाफना का उज्जैन कनेक्शन

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रशासनिक फेरबदल में सबसे ज्यादा प्रभावित उज्जैन रहा है। उज्जैन में कलेक्टर,अपर कलेक्टर बदले जा चुके हैं। उज्जैन में अपर कलेक्टर रहीं प्रीति यादव नगर निगम जबलपुर की कमिश्नर बनी हैं। उन्हें तबादले के तत्काल बाद जबलपुर पहुंचना पड़ा। कारण कैबिनेट की मीटिंग रही। मुख्यमंत्री जबलपुर संभाग में दौरे पर हैं। वहां संभागीय समीक्षा भी कर रहे हैं। समीक्षा से पहले ही उन्होंने नरसिंहपुर कलेक्टर का तबादला शाजापुर कलेक्टर के रूप में कर दिया। माना जा रहा है कि ऋजु बाफना को हटाने का आग्रह पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल का था। इसी कारण संभागीय समीक्षा से पहले हटा दिया। संयोगवश शाजापुर कलेक्टर का पद खाली हुआ तो ऋजु बाफना को वहां भेज दिया। 2014 बैच की अफसर हैं। टॉपर रही हैं। 

पहली बार उनकी चर्चा 2015 में एक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हुई थी। पोस्ट महिला उत्पीड़न के खिलाफ थी। विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऋजु बाफना चर्चा में रहीं। नरसिंहपुर के निर्दलीय उम्मीदवार शेखर चौधरी ने भाजपा उम्मीदवार प्रहलाद पटेल के पक्ष में काम करने का आरोप लगाकर उन्हें हटाने की एक याचिका हाईकोर्ट में दायर कर दी। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर कोई फैसला नहीं दिया। ऋजु बाफना उज्जैन जिले के नागदा में अनुभागीय दंडाधिकारी रही हैं। नवंबर 2022 में भोपाल नगर निगम से नरसिंहपुर कलेक्टर बनकर गई थीं।   ट्रेनिंग सिवनी में भरत यादव के अधीन ली। भरत यादव वहां कलेक्टर थे। 

राम बनने की कोशिश करते शिवराज

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या वनवास में हैं? यह सवाल उनके द्वारा शाहगंज में दिए गए एक भाषण के कारण महत्वपूर्ण हो जाता है। शिवराज सिंह चौहान ने सत्रह साल से अधिक समय तक मध्यप्रदेश में राज किया है। लेकिन,इस बार चुनाव नतीजों के बाद राजतिलक डॉ.मोहन यादव का हुआ। डॉ.मोहन यादव मुख्यमंत्री बने हैं। शिवराज सिंह चौहान को यह उम्मीद जरूर रही कि पार्टी बेहतर चुनावी प्रदर्शन के कारण उन्हें एक मौका और दे सकती है। मौका नहीं मिला। शिवराज सिंह चौहान महिलाओं के बीच लोकप्रिय नेता हैं,इसमें भी कोई दो राय नहीं है। जहां भी जाते हैं महिलाएं मुख्यमंत्री न बन पाने पर भावुक हो जाती हैं। शिवराज सिंह चौहान भी भावुक हो जाते हैं। इसी भावुकता में उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र बुधनी के शाहगंज में कहा कि कभी-कभी राजतिलक होते होते वनवास हो जाता है। राजतिलक से पहले वनवास किसे हुआ था यहां इस बात का उल्लेख शिवराज सिंह चौहान ने नहीं किया। लेकिन,सभी जानते हैं कि यह स्थिति भगवान श्री राम के साथ हुई थी। उनके वनवास का बड़ा उद्देश्य रावण वध के तौर पर सामने आया। साधु-संतों का उद्धार भी हुआ। शिवराज सिंह चौहान भी अपने इस वनवास बड़ा उद्देश्य तलाश कर रहे हैं। ऐसा उन्होंने कहा भी कि वनवास बड़े उद्देश्य के लिए हुआ होगा? क्या बड़ा उद्देश्य प्रधानमंत्री का पद हो सकता है?

छतरपुर कलेक्टर मोहित बुंदस पर भड़के जिले के पांचों विधायक, सीएम से की हटाने की मांग

कहा- जनता का समझते हैं कीड़ा-मकोड़ा, आफिस के बाहर कराते हैं घंटों इंतजार

छतरपुर के सभी छह विधायकों ने कलेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आरोप है कि कलेक्टर मोहित बुंदस किसी की सुनते नहीं। जनता के कामों में रुचि नहीं लेते। विधायकों के फोन नहीं उठाते। मिलने जाओ तो घंटों इंतजार कराते हैं। इधर बुंदस इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। वे कलेक्टोरेट में कामकाज निपटाते हैं। जरूरत पड़ने पर फील्ड में निकल जाते हैं। बीजेपी विधायक राजेश प्रजापति के मामले में सिर्फ इतना कहा कि उन्हें पता नहीं था कि प्रजापति बाहर इंतजार कर रहे हैं। वह बिना सूचना मिलने आए थे। कुछ छात्र-छात्राएं और राजनगर विधायक भी मिलने आए थे। इस कारण कुछ समय लगा। इसी इंतजार को लेकर प्रजापति का पारा सातवें आसमान पर है। पिछले दिनों वह कलेक्टोरेट में एक घंटे इंतजार के बाद बुंदस से मिल पाए थे। प्रजापति ने कहा कि कलेक्टर जब हमसे नहीं मिलते तो आमजन की कौन कहे। कांग्रेस सरकार ने ऐसे अधिकारी को भेजकर जनता के साथ अन्याय किया है। कलेक्टर जनता को कीड़ा-मकोड़ा समझते हैं। मुझे विपक्ष का विधायक होने के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है।

दरअसल, बुंदस को हटाने के लिए जिले के पांचों विधायकों ने मोर्चा खोल रखा है। विधायकों ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखा है। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक कुंवर विक्रम सिंह नातीराजा, आलोक चतुवेर्दी, प्रद्युमन सिंह लोधी, नीरज दीक्षित और सपा विधायक राजेश शुक्ला भी कलेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। आरोप है कि हम जब विधानसभा क्षेत्र की दिक्कतों के बारे में बताते हैं तो समाधान नहीं किया जाता। मुलाकात के लिए भी समय नहीं दिया जाता। हालांकि सरकार में बुंदस को लेकर कोई हलचल फिलहाल तो नहीं दिखाई देती।

मोहित बुंदस शासन में अलग तरह की छवि रखने वाले अधिकारी हैं। वह मूलत: जयपुर के रहने वाले हैं। वह 21 साल की उम्र में आईपीएस बन गए थे। बुंदस 18 दिसंबर 2006 से 24 अगस्त 2011 तक झारखंड में आईपीएस थे। इसके बाद मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी बने। उनकी खास बात है कि वह दिन की शुरुआत भगवान के बजाय मां का चेहरा देखकर करते हैं। वह मां को लेकर बहुत भावुक हैं। वह बताते हैं कि बचपन में पिता की मौत के बाद मां ने परवरिश की। वह कोटा में आईआईटी के लिए तैयारी कर रहे थे, लेकिन मां को उनकी इतनी चिंता थी कि साथ ले आर्इं और तैयारी करवाई। वह कहते हैं कि वो आज जो कुछ भी हैं मां के कारण ही हैं।