इंदौर पुलिस के छोटे से लेकर आला अफसर तक ने अपने मोबाइल फोन पर एक ही तरह की डीपी लगाकर सरकार के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराया है। इस डीपी में लिखा हुआ है-खाकी का भी तो मान है। ऐसे पहली बार हुआ है कि पुलिस वालों को अपने मान की रक्षा के लिए मोबाइल डीपी का सहारा लेना पड़ा। इसके बाद यह देखना दिलचस्प है कि सरकार पुलिस का साथ देती है या बजरंग दल का।

मामला इंदौर में नशे के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर हुए लाठीचार्ज से जुड़ा हुआ है। लाठी चार्ज 15 जून को हुआ था। बजरंग दल का आरोप है कि पुलिस ने नशे का व्यापार करने वाले भाजपा नेता कमाल खान के बेटे को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए लाठी चार्ज किया। कमाल खान के खिलाफ पार्टी ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है। इंदौर में नशे का कारोबार बढ़ने से हर स्तर पर नाराजगी देखने को मिल रही है। बजरंग दल के आरोप के बाद सरकार ने इंदौर डीसीपी धर्मेंद्र भदौरिया का ट्रांसफर भी कर दिया। मामले की जांच अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विपिन माहेश्वरी कर रहे हैं। इस जांच के दौरान पुलिस वालों ने वह वीडियो माहेश्वरी को दिया है जिसमें बजरंग दल के कार्यकर्ता धर्मेन्द्र भदौरिया का कॉलर पकड़े हुए हैं। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एसीपी पूर्ति तिवारी को घेर रखा है। जांच का सामना कर रहे पुलिस अधिकारियों का आरोप है कि लाठीचार्ज बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए पथराव के बाद किया। टकराव की पहल बजरंग दल की ओर से हुई थी।


बजरंग दल का आरोप है कि पुलिस ने उनके कई बेगुनाह कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस ने झूठे मामले दर्ज किए हैं। इसके बाद से ही ऐसे अनेक ऑडियो,वीडियो वायरल हो रहे जिनमें बजरंग दल के कार्यकत्र्ता और पुलिस एक-दूसरे को घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
राम मंदिर मामले का हल निकल जाने के बाद देश में बजरंग दल धरे-धीरे अप्रासंगिक होता जा रहा था। कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में बजरंग दल पर रोक लगाने का वादा शामिल कर उसे सुर्खियों में ला दिया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी सभा में इसे बजरंग बली पर प्रतिबंध करार दिया था। मध्यप्रदेश में भी अब बजरंग दल का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है।
