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रामलला आ गए अब चुनाव की घोषणा का इंतजार

दिनेश गुप्ता
अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बन गया। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई है। 22 जनवरी 2024 की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई है। राम मंदिर का मुद्दा राजनीतिक रहा है। दशकों से इस पर राजनीति हो रही थी। इस बार भाजपा ने राम मंदिर की उपलब्धि पर ही चार सौ सीट लोकसभा चुनाव में जीतने का लक्ष्य तय किया है। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद अब चुनाव की तारीखों के ऐलान का इंतजार है। यदि निर्धारित समय पर चुनाव कराए जाते हैं तो मार्च के अंतिम सप्ताह तक तारीखों का ऐलान होगा। यदि चुनाव समय से पहले कराना है तो तारीखों की घोषणा फरवरी के अंतिम सप्ताह तक भी  घोषणा हो सकती है।
चुनाव में हावी रहेगा राम मंदिर का मुद्दा
राम मंदिर के मुद्दे को भुनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी  ने बड़ी तैयारी कर रखी है। अगले एक माह तक देश के सभी राज्यों से भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को रामलला के दर्शन कराने के लिए अयोध्या भेजेगी। अयोध्या का विकास और रामलला के दर्शन कर जब कार्यकर्ता अपने-अपने गांव में शहर में जाएंगे। वहां इसकी चर्चा करेंगे। यह चर्चा पार्टी के पक्ष में माहौल बनाए रखने में बड़ी मददगार साबित होगी। सबसे पहले दक्षिण के राज्यों के कार्यकर्ताओं को अयोध्या भेजा जाएगा। रेल मंत्रालय ने हर राज्य के लिए अलग-अलग गाड़ियों का इंतजाम किया है। दक्षिण को जीते बगैर भाजपा चार सौ सीटों का लक्ष्य नहीं पा सकती है। इस लिए पूरा जोर दक्षिण भारत के राज्यों पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले दक्षिण के राज्यों की धार्मिक यात्रा भी कर आए हैं। राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा ऐसा मुद्दा है जिसका चौतरफा लाभ मिलने की उम्मीद भाजपा लगाए हुए है।
दक्षिण में राम मंदिर अकेला मुद्दा नहीं
संसद के नए भवन में सेंगाल स्थापना से लेकर राम मंदिर तक से दक्षिण भारत को बीजेपी अपने नैरेटिव के साथ संबोधित करने की कोशिश करती रही है। वाराणसी में तमिल समागम, केरल में आरिफ मोहम्मद को राज्यपाल बनाना, काशी से तमिलनाडु के लिए ट्रेन, राम मंदिर के श्रीविग्रह के लिए कर्नाटक के शिल्पकार का चयन आदि जैसे सतत प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चल रहे हैं।  2014 से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण के राज्यों के करीब-करीब 75 दौरे कर चुके हैं। तमिलनाडु और केरल बीजेपी को हमेशा ही निराश करते रहे हैं, लेकिन बीजेपी इन दोनों राज्यों पर विशेष फोकस कर रही है। अगर आकड़ों को देखें तो केरल से सकारात्मक संकेत मिलते हैं।

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तमिलनाडु के संकेत बीजेपी के लिए निराशाजनक हैं। केरल में बीजेपी 2014 में 18 सीटों पर लड़ी थी। तिरुवनंतपुरम की सीट पर बीजेपी को 32.3 प्रतिशत फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के शशि थुरूर ने 34.1 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। बाकी 17 सीटों पर बीजेपी तीसरे नंबर पर रही थी और कुल 10.5 प्रतिशत वोट मिले। साल 2019 में बीजेपी 15 सीटों पर लड़ी।  तिरुवनंतपुरम में फिर वह दूसरे नंबर पर रही । लेकिन, वोट प्रतिशत कम होकर 31.3 प्रतिशत रह गया और कांग्रेस का वोट बढ़कर 41.2 प्रतिशत हो गया। चार अन्य सीटों पर भी बीजेपी को 20 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले।  इस बार इन चार सीटों के अलावा अलपुझा से बीजेपी उम्मीद लगा सकती है। अलपुझा कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे एके एंटनी के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है और पिछले साल एंटोनी के बेटे अनिल ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। मंदिर के उद्घाटन से पहले मोदी भगवान राम से दक्षिण भारत के रिश्तों को उभार रहे हैं और इस बात को यहां याद रखना चाहिए कि 90 के दशक में मंदिर आंदोलन के दौरान दक्षिण भारत की बड़ी भूमिका रही है।  हालांकि ये अलग बात है कि आंदोलन के दौरान दक्षिण भारत की सियासत में राम मंदिर बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया।  लेकिन अब जब मंदिर बनकर तैयार हो रहा है तो अतीत के पन्नों को पलटा जा रहा है।  अब इसी रिश्ते को अयोध्या से जोड़कर उभारने की कोशिश हो रही है।  ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये आने वाला वक्त बताएगा।  
कांग्रेस के पास नहीं है राम मंदिर से बड़ा मुद्दा

देश में राजनीति  की फिलहाल दो ही दिशाएं दिखाई दे रही हैं। अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक । इसके अलावा कोई मुद्दा वोटर के दिमाग में नहीं है। कांग्रेस राम मंदिर के मुद्दे का मुकाबला किस तरह से करेगी,यह अब तक सामने नहीं है। कांग्रेस की समस्या उसकी नीतियां ही नहीं हैं,नेतृत्व भी बड़ी समस्या है। कांग्रेस विपक्षी गठबंधन तो बना रही है, वह भी आधे-अधूरे से मन से ? ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव तक हर सहयोगी अपने-अपने राज्य में कांग्रेस को ज्यादा जगह नहीं देना चाहते। सबसे बड़े राजनीतिक दल के लिए कांग्रेस को सीटें भी ज्यादा चाहिए और सफलता भी बड़ी चाहिए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के वक्त वह जातीय जनगणना के जिस मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रही थी,उसकी हवा निकल चुकी है। बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने से राजनीतिक लाभ किसे हुआ? शायद अकेले लालू यादव को। नीतीश कुमार के समझ में भी यह बात आ रही है। इस कारण उनका रवैया भी विपक्षी गठबंधन को लेकर उत्साहजनक नहीं है। कांग्रेस महंगाई के मुद्दे को भी ठीक से उठा नहीं पाई है। इस कारण वह महंगाई के विरोध में वोट की उम्मीद नहीं कर रही है। बेरोजगारी के आंकड़े उसके पक्ष में लग रहे हैं। लेकिन,युवा वोटर के हीरो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।
कांग्रेस बचा पाएगी अपना वोट बैंक
अल्पसंख्यक के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक माना जाता है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आखिरी बार इस वर्ग का साथ मिला था। उसके बाद से लगातार इस वर्ग पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर होते देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में मायावती की बसपा के कारण कांग्रेस ने काफी नुकसान उठाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन, यादव-दलित वोट का समीकरण बन नहीं पाया। बिहार में यादव और मुस्लिम का समीकरण काफी मजबूत है। लेकिन उत्तर प्रदेश का मुसलमान पूरी तरह से अखिलेश यादव के साथ नहीं चल रहा है। जब तक मुलायम सिंह यादव थे, तब तक की बात और थी। अब तीन तलाक के बाद पिछड़ा और मुस्लिम दोनों ही वोट बैंक टूट चुके हैं। भाजपा की इस वर्ग में सेंधमारी कांग्रेस को सीधे मुकाबले में नहीं आने देना चाहती। कांग्रेस की उम्मीद के राज्य अब तीन ही बचे हैं। मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 65 सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने राजस्थान की सभी 25 सीटों पर सफलता हासिल की थी। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट ही बची थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सिर्फ दो सीटें ही मिलीं थीं। इस बार भाजपा की नजर कांग्रेस के कब्जे वाली इन सीटों पर है। विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से भी भाजपा उत्साह में है। राम मंदिर के निर्माण से भी उसकी अपेक्षाएं छत्तीसगढ़ में बढ़ी हैं। आदिवासी क्षेत्र में भी रामलला का मंदिर उसकी मदद कर सकता है।
किसान को साथ भी भाजपा को मिलेगा

लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान सम्मान की राशि में भी वृद्धि कर सकते हैं। अभी छह हजार रुपए हर साल किसानों को दिए जाते हैं। यह पैसा तीन किस्तों में दिया जाता है। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम से निपटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूदा संसद के आखिरी सत्र में विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती के रूप में खड़े दिखाई देंगे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी न्याय यात्रा पर है,इस कारण वे संसद में दिखाई नहीं देंगे। मोदी सरकार में इस बार भी तीन महिने के खर्चे की राशि के मंजूरी ही संसद से लेगी। पूरा बजट लोकसभा चुनाव के बाद पेश किया जाएगा। लेकिन,किसान सम्मान निधि में वृद्धि अंतरिम बजट में ही की जा सकती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने इसी तरह अंतरिम बजट में किसान सम्मान निधि का प्रावधान किया था। अब सम्मान निधि की पंद्रह किस्त किसानों को दी जा चुकीं हैं। लोकसभा चुनाव से पहले एक और किस्त दी जाएगी। यह किस्त ढाई हजार रुपए की हो सकती है।

“बिहारी” यादवों को मोहन यादव का निमंत्रण बदलेगा सियासत की दिशा

दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दौरे के बाद बिहार की राजनीति में एक बार फिर पलटू राजनीति देखने को मिल जाए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष  लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव  के बीच हुई मुलाकात को हालात सामान्य करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है? बिहार में असामान्य राजनीतिक घटनाक्रम क्यों है? नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक न बनने के कारण या रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से भाजपा के पक्ष में बने माहौल ने उथल-पुथल मचा दी।
बिहार की राजनीति में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग बड़ा वोट बैंक हैं. 2 अक्टूबर 2023 को जारी जातीय जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में सबसे ज्यादा अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 प्रतिशत जबकि पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 प्रतिशत है। इसके साथ ही मुस्लिमों की आबादी 17.70 प्रतिशत   है। राज्य में लंबे अरसे से इन्हीं दो वोट बैंक के समीकरण से लालू यादव और नीतीश कुमार सत्ता पर काबिज होते रहे हैं। ऐसे में अब भाजपा इसकी काट ढूंढने में जुटी हुई है। दरअसल, जातीय जनगणना के मुताबिक बिहार में करीब 14 प्रतिशत यादव समाज की आबादी है. ऐसे में डॉ.मोहन यादव के जरिए भाजपा यादव वोटर्स का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश करने में जुटी है। पिछले लोकसभा चुनाव में
बिहार की 40 सीटों में से 17 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी. 16 सीट पर जेडीयू, 6 सीट पर एलजेपी और 1 सीट पर कांग्रेस है। जातीय आंकड़ों के मुताबिक 5 लोकसभा सीटों पर यादव समाज निर्णायक भूमिका में है। डॉ.मोहन यादव से पहले भाजपा बिहार में भूपेन्द्र यादव, नित्यानंद राय और
नदंकिशोर यादव जैसे दिग्गज नेताओं का उपयोग कर चुकी है।

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लालू से बड़ा यादव चेहरा कौन?
पिछले लोकसभा चुनाव में लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस मिलकर कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाए थे। परिणाम पूरी तरह से एनडीए के पक्ष में आए थे। इस बार नीतीश कुमार के इंडिया गठबंधन के साथ चले जाने से भाजपा चिंतित है। क्या भाजपा की चिंता डॉ. मोहन यादव दूर कर सकते है? यह ऐसा सवाल है इसका जवाब सिर्फ चुनाव परिणामों से ही मिल सकता है। लेकिन,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री यादव हैं तो यादवों के गढ़ में जाकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन तो कर ही सकते हैं। पटना में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. मोहन यादव ने अपने पूरे भाषण में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव का नाम ही नहीं लिया। संभव है कि नीतीश कुमार नाम उनके पलटू रवैये के कारण न लिया हो? लालू यादव का नाम लेते तो खिलाफ ही बोलना पड़ता। इसलिए बेहतर यही लगा होगा कि  मुद्दे पर चुप ही रहा जाए। बिहार में लालू यादव, यादवों के सर्व मान्य नेता हैं। उनके खिलाफ बोलने से सजातीयों के नाराज होने का खतरा हो सकता था। बिहार के यादवों को बिहार में ही रहना है। वे जानते हैं कि डॉ. मोहन यादव तो भाषण देकर चले जाएंगें। बिहार में डॉ. मोहन यादव के लिए नारा दिया गया- जो मोदी को प्यारा है,वह मोहन हमारा है। मुख्यमंत्री ने भगवान श्री कृष्ण और यदुवंश के ईद गिर्द ही अपने भाषण को केंद्रित रखा। इसके जवाब में डॉ.मोहन यादव बोले- बिहार के नाम को लेकर कन्फ्यूजन काफी है। बोलिये वृन्दावन “बिहारी” लाल की जय। भगवान कृष्ण के अभिनंदन के लिए दो राज्यों यूपी बिहार का नाम एक साथ आ जाता है। इससे बढ़कर कुछ है क्या? कार्यक्रम में स्टेज के बैकड्राप में महाभारत के सीन के बीच मोहन यादव को दिखाया गया। डॉ. मोहन यादव ने भी अपने सजातीयों को काम-धंधे के लिए मध्यप्रदेश आने का न्योता दिया है। राज्य में बाहरी लोगों को काम मिलेगा तो वे चुप तो नहीं रहेंगे?

कृष्ण के साथ राम की सियासत
मुख्यमंत्री विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण के जवाब में यह घोषणा पहले ही कर चुके हैं कि मध्यप्रदेश में जहां-जहाँ भगवान श्रीकृष्ण आए,उन स्थानों को विकसित किया जाएगा। राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो श्रीकृष्ण के जरिए यादवों को साधने की कोशिश दिखाई देती है। इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि भगवान श्री राम से रघुवंशी समाज भाजपा के पक्ष में कितना आया? मध्यप्रदेश में ही रघुवंशी समाज लगभग आधा दर्जन जिलों में असर रखता है। इनमें अशोकनगर,शिवपुरी, नरसिंहपुर,होशंगाबाद,रायसेन और विदिशा जिले प्रमुख हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान हुई कांग्रेस की कपड़ा फाड़ राजनीति के पीछे भी रघुवंशी समाज के वीरेन्द्र रघुवंशी ही थे। अयोध्या में सोमवार 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही है। लेकिन,आश्चर्यजनक तौर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को कोई निमंत्रण नहीं मिला। वैसे इसे पूरे आयोजन में मुख्यमंत्री सिर्फ एक ही दिखाई देंगे। वे हैं योगी आदित्य नाथ। निमंत्रण पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी में इस सवाल का जवाब कई नेता ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं कि आमंत्रित किए जाने वाले अतिथियों की सूची या उसके मापदंड किसने तय किए। ऐसे फिल्म स्टार बुलाए गए, जो सनातन से दूरी बनाए दिखते हैं। लेकिन,ऐसे नेता नहीं बुलाए गए जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया।
ओरछा बना राम की सियासत का केंद्र 

orchha ramraja mandir
orchha ramraja mandir

अयोध्या उत्तर प्रदेश में हैं। ओरछा मध्य प्रदेश में है। ओरछा में रामराजा का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को लेकर पहले कभी सियासत नहीं होती। पिछले कुछ साल खासकर कमलनाथ की सरकार आने के बाद ओरछा भी सियासी एजेंडा हो गया। साल 2020 में ओरछा में राम महोत्सव के बाद ही कमलनाथ की सरकार चली गई थी। यहां हर साल राम महोत्सव होता है। यह महोत्सव मार्च-अप्रैल के महीने में होता है। इस बार जनवरी में ही ओरछा में नेता की भीड़ जमा है। ओरछा में भगवान श्री राम की बाल रूप वाली प्रतिमा है। इसका इतिहास सभी जानते हैं। बाल रूप की यह प्रतिमा महारानी गणेश कुंवर राजे अयोध्या से ही लाईं थीं। ओरछा के राम राजा मंदिर का इतिहास भी उसी दौरान का है जब बाबर ने आतंक मचा कर हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ा था। ओरछा में राम साढ़े पांच सौ साल बाद आए हैं। ओरछा में यह इतने ही सालों से राज महल में बैठे हैं। ओरछा के वे राजा हैं। यहां किसी राजा की सत्ता नहीं चलती। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 22 जनवरी को ओरछा जाने का एलान किया तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी कार्यक्रम बना लिया। ओरछा में सोमवार को नजारा दिलचस्प होगा। शिव और मोहन एक साथ राम भक्ति में लीन दिखाई देंगे। शास्त्रों में वर्णित है शिव और राम में कोई भेद नहीं है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है धर्नुधरों में राम हूं।
कांग्रेसके लिए आसान नहीं राम की भक्ति?
इसमें कोई शक नहीं कि पूरे देश में माहौल दीपावली जैसा ही है। कार्यक्रम भले ही अयोध्या में हो रहा है लेकिन,इसका उत्सव घर-घर,हर मन में चल रहा है। भाजपा के नेताओं में उत्साह कई गुना बढ़ा हुआ है। हर नेता राम भक्ति का प्रदर्शन कर अपनी राजनीति को तारने में लगा हुआ है। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का राम पर गाया गीत सोशल मीडिया पर धूम मचाए हुए हैं।  पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने  भोपाल में भंडारा और सुंदरकांड का आयोजन रखा है। हर नेता अपने-अपने स्तर पर कार्यक्रम कर रहे हंै। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा कार सेवकों के सम्मान में व्यस्त हैं। कांग्रेस के नेता क्या कर रहे हैं? इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को इसी तरह के कई सवालों का जवाब रोज देना पड़ रहा है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने तय किया कि ट्रस्ट से मिले आमंत्रण पर वे 22 जनवरी को अयोध्या के कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे। यह निर्णय कांग्रेस नेताओं के गले में हड्डी की तरह फंसा हुआ है। कांग्रेस के नेता इसे गले से बाहर निकालना भी चाहें तो निकाल नहीं पा रहे। भाजपा के नेता 22 जनवरी को  अयोध्या नहीं जा पा रहे तो ओरछा जाकर भक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस  के नेता 22 जनवरी को क्या करेंगे? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार दो दिन पहले 20 जनवरी को ही ओरछा जाकर हनुमान चालीसा पढ आए। वे भी ओरछा 22 जनवरी को जा सकते थे। दो दिन पहले जाने से उन्हें कोई राजनीतिक लाभ तो नहीं होना। लेकिन, 22 जनवरी को भगवान श्री राम से उदासीन होना नुकसान की वजह बन सकता है।
नेता नहीं वकील से पड़ा पाला
इस बार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को वास्ता ऐसे नेता से पड़ा हँै जो वकील भी है। विवेक तन्खा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं। धीरे-धीरे वे पूर्णकालिक वकील से पूर्णकालिक राजनेता बनते जा रहे हैं। जबलपुर में एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया है। विवेक तन्खा ने एमपी-एमएलए जज विश्वेश्वरी मिश्रा की कोर्ट में इन तीनों के खिलाफ 10 करोड़ रुपए की मानहानि का दावा पेश किया था। जिस पर मुकदमा दर्ज किया गया है।  तन्खा ने तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और तत्कालीन मंत्री भूपेन्द्र सिंह से सार्वजनिक माफी मांगने की बात कही थी, लेकिन तीनों नेताओं ने माफी नहीं मांगी। जिसके बाद विवेक तन्खा ने कोर्ट की शरण ली।
 कोर्ट ने इस मामले में सभी के बयान दर्ज होने के बाद यह एक्शन लिया है। मामला नगरीय निकाय के चुनाव के दौरान का है।  साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने एमपी में पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इस दौरान विवेक तन्खा ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पंचायत और निकाय चुनाव में रोटेशन और परिसीमन को लेकर पैरवी की थी। बीजेपी नेताओं ने विवेक तन्खा को ओबीसी विरोधी बताते हुए उनके खिलाफ बयानबाजी की थी।

बिहार स्टेट एक्स सर्विसमैन बेनेवोलेंट फंड में करें अंशदान : नीतीश

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहादुर सैनिकों के कल्याण एवं पुनर्वास के लिये राज्यवासियों से बिहार स्टेट एक्स सर्विसमैन बेनेवोलेंट फंड में अंशदान करने की अपील की।

श्री कुमार से गुरुवार को सशस्त्र सेना झंडा दिवस के अवसर पर सैनिक कल्याण निदेशालय के निदेशक ब्रिगेडियर मृगेन्द्र कुमार ने यहां एक अणे मार्ग स्थित ‘संकल्प‘ में मुलाकात कर उन्हें सशस्त्र सेना झंडा दिवस का फ्लैग लगाया। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर बिहार स्टेट एक्स सर्विसमैन बेनेवोेलेंट फंड में अंशदान किया और देश के बहादुर सैनिकों के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान प्रकट किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सैनिकों की कुर्बानियां अमर है। वे अपनी जान के मूल्य पर राष्ट्र पर आये बाह्य एवं आंतरिक संकटों का मुकाबला बहादुरी के साथ करते हैं। उन्होंने इन बहादुर सैनिकों के कल्याण एवं पुनर्वास के लिये राज्यवासियों से बिहार स्टेट एक्स सर्विसमैन बेनेवोलेंट फंड में अंशदान किये जाने की अपील भी की। उन्होंने कहा कि आपका यह अंशदान बहादुर सैनिकों के प्रति कृतज्ञता होगी।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव दीपक कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह सह मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डाॅ. एस. सिद्धार्थ, गृह विभाग के सचिव के. सेंथिल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव अनुपम कुमार, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी गोपाल सिंह, सैनिक कल्याण निदेशालय के निदेशक ब्रिगेडियर मृगेन्द्र कुमार, सैनिक कल्याण निदेषालय के संयुक्त सचिव श्री परवेज आलम, सैनिक कल्याण निदेशालय के उप सचिव प्रशांत कुमार, पटना जिला सैनिक कल्याण पदाधिकारी कर्नल (सेवानिवृत) मनोज कुमार, क्षेत्रीय पदाधिकारी राजेश कुमार सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

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हम चाहते हैं कि आगे से सब एकजुट होकर चुनाव लड़ें : नीतीश

बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के शीर्ष नेता नीतीश कुमार ने राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया के दलों को स्पष्ट संदेश देते हुए आज कहा कि वह चाहते हैं कि बहुत तेजी से विपक्ष एकजुट हो और आगे से सब एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ें।


श्री कुमार ने बुधवार को यहां बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को उनके महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में हाल में हुये विधानसभा चुनाव परिणाम से संबंधित प्रश्न पर कहा कि चुनाव में पिछली बार कांग्रेस उन राज्यों में जीती थी। कांग्रेस को इसबार भी अच्छा वोट आया है लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जीती। तेलंगाना में कांग्रेस जीती है। इनसब चीजों पर कोई खास चर्चा की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि वह तो यही चाहते हैं कि बहुत तेजी से विपक्ष एकजुट हो।


मुख्यमंत्री ने कहा, “खबर में चल रहा था कि हम ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में नहीं जा रहे हैं जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी। मेरी तबीयत खराब थी। मुझे सर्दी-खांसी, बुखार लगा हुआ था। अगली बैठक होगी तो हम फिर कहेंगे कि अब देर नहीं कीजिए। आपस में बैठकर सबकुछ जल्दी से तय कर लीजिए। हम एक साल से विपक्षी एकजुटता में लगे हुए हैं। राज्यों के चुनाव में सभी पार्टियां अपनी-अपनी जीत के लिए लग जाती हैं वो अलग चीज है लेकिन हम चाहते हैं कि आगे से सब एकजुट होकर चुनाव लड़ें।”


श्री कुमार ने ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व करने के सवाल पर कहा कि प्रधानमंत्री पद को लेकर उनके बारे में अक्सर खबरें आती हैं कि लेकिन वह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। वह केवल इतना चाहते हैं कि विपक्ष एकजुट हो और अभी जो पार्टी केंद्र की सत्ता में है उसके खिलाफ चुनाव लड़े। उन्होंने परोक्ष रूप से भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि वे लोग देश के इतिहास को बदलने में लगे हुए हैं। नयी पीढ़ी को आजादी की लड़ाई को याद रखना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं चाहिए। वह पहले से ही लोगों की सेवा करते आ रहे हैं। हमलोग आंदोलन भी किए हैं। हम राज्य के हित में अपने काम में लगे रहते हैं। हमलोग तेजी से युवाओं को रोजगार देने में लगे हुए हैं। देशहित में सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हों। हमलोगों ने जाति आधारित गणना कराई। सिर्फ जातिगत गणना नहीं कराई बल्कि हर परिवार की आर्थिक स्थिति का भी पता लगाया। हिंदू, मुस्लिम, अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग, अपर कास्ट किसी भी जाति-वर्ग का हो, सबका पता लगवाया। हर जाति में गरीबी है। अपर कास्ट में भी कितनी गरीबी है, इसका पता चला। पूरे देश में जातिगत जनगणना होती तो सबको काफी फायदा होता।


श्री कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से संबंधित प्रश्न पर कहा कि बिहार की गरीबी को देखते हुए उसे विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। बिहार काफी पौराणिक जगह है। देश में और देश के बाहर जो कुछ भी था सबकुछ बिहार से ही शुरू हुआ था। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा तो वह बहुत आगे बढ़ेगा। बिहार के लोग दूसरी जगहों पर जाकर काफी सेवा करते हैं। बिहार के लोग कहीं कोई गड़बड़ी नहीं करते हैं। सबलोग काफी अच्छा काम करते हैं, सेवा में लगे रहते हैं। बिहार के लोगों का बहुत अच्छा स्वभाव है। उन्होंने कहा कि आप पत्रकारों का भी स्वभाव बहुत अच्छा है। दिल्लीवाले आपलोगों पर कब्जा किए हुए हैं।


मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बिहार दौरे से संबंधित प्रश्न पर कहा, “हम सबका सब दिन इज्जत करते रहेंगे, यह हमारी परंपरा है।”

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नीतीश कुमार ने दुहराया कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं

बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के शीर्ष नेता नीतीश कुमार ने आज एक बार फिर दुहराया कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं है और वह अभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हैं।
श्री कुमार ने स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर राजेन्द्र नगर, रोड नम्बर-3 स्थित पार्क में आयोजित राजकीय समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में जदयू नेता महेश्वर हजारी द्वारा उन्हें (श्री कुमार को) प्रधानमंत्री मैटेरियल बताने से संबंधित प्रश्न पर कहा, “मुझे किसी पद की लालसा नहीं है। मैं सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लगा हुआ हूं।” उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की तरफ झुकाव के बारे में पूछे जाने पर अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि इस तरह की फालतू बातें क्यों करते हैं। वह तो विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लगे हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने ‘इंडिया’ गठबंधन की अगली बैठक कब होगी और आगे की रणनीति क्या होगी, इस सवाल पर कहा कि कमेटियां बन गई हैं, बैठक हो रही है। हम इस काम में उनलोगों को सुझाव दे रहे हैं, सभी लोग लगे हुए हैं। आगे सबकुछ तय कर लिया जाएगा।
श्री कुमार ने जाति आधारित गणना की रिपोर्ट कब सार्वजनिक की जाएगी के बारे में पूछने पर कहा कि यह काम लगभग पूरा कर लिया गया है। रिपोर्ट के तैयार होते ही उसे पब्लिश कर दिया जाएगा। उन्होंने आज कैबिनेट की बुलाई गई बैठक से संबंधित सवाल पर कहा कि मंत्रिमंडल की बैठक कल होनी थी लेकिन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव को बाहर जाना है इसलिए आज ही कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है और कोई विशेष बात नहीं है।

मुख्यमंत्री ने खुसरूपुर में दलित महिला के साथ हुयी घटना से संबंधित प्रश्न पर कहा कि किसी के साथ भी कोई घटना होती है तो निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि कोई भी गड़बड़ करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
श्री कुमार ने स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जंयती समारोह में आप शामिल हुए हैं लेकिन उनकी पार्टी के लोग शामिल नहीं हुए हैं के बारे में पूछने पर कहा कि जो पहले साथ थे लेकिन आज इस कार्यक्रम में नहीं आए तो वे जानें। स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को लेकर जो चीज पहले से सरकार की ओर से तय की हुयी है, उसमें सबलोग आते हैं। हम तो सबकी इज्जत करते हैं, सबका सम्मान करते हैं। हम सबलोगों के लिए काम कर रहे हैं। आगे भी हमलोग विकास का काम यूं ही करते रहेंगे। हम बार-बार कहते हैं कि हम पत्रकारों के पक्षधर हैं।
मुख्यमंत्री से पूछा गया कि आपके जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमा मोदी इस कार्यक्रम में आ रहे हैं तो उन्होंने कहा कि समय पर आने में क्या ऐतराज था, जिसको जो मन में है करे, मुझे इससे क्या लेना-देना है।
इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी प्रसाद यादव, वित्त, वाणिज्य कर एवं संसदीय कार्य मंत्री श्री विजय कुमार चैधरी, बिहार राज्य नागरिक परिषद् के पूर्व महासचिव श्री अरविंद कुमार सिंह, बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य श्री शिवशंकर निषाद सहित अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी स्व0 पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग के कलाकारों द्वारा आरती पूजन, भजन-कीर्तन एवं बिहार गीत का गायन किया गया।

26 दलों से मिलकर बना इंडिया,एनडीए से होगा मुकाबला

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बंगलूरू में 26 विपक्षी दलों ने बैठक कर इंडिया नाम का गठबंधन तैयार किया है। दो दिन चली बैठक के बाद कांगे्रस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पत्रकारों को बताया कि सभी 26 दल इंडिया के नाम पर सहमत हैं। उन्होंने नया विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया होगा। यह यूपीए का सथान लेगा। यूपीए एक तरह से अस्तित्व हीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। गठबंधन की अगली बैठक मुंबई में होगी। जिसकी तारीख अभी तय नहीं की गई है। संयोजक भी मुंबई बैठक में ही तय किया जाएगा। इंडिया गठबंधन का पूरा नाम इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्यूलिस्व एलायंस है।
ग्यारह सदस्यों की एक समिति गठबंधन को संचालित करने के लिए बनाई जाएगी।
कांगे्रस अध्यक्ष ने कहा कि सरकार विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के खिलाफ जिस तरह से जांच एजेंसियों का दुरूपयोग कर रही है,ऐसा देश में पहले कभी नहीं देखा गया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को बचाने के लिए बैठक में चर्चा हुई।

गठबंधन को लीड करने के सवाल खडगे ने कहा कि समन्वय समिति इसीलिए बनाई जा रही हैं। मुबई की बैठक में प्रक्रिया तय हो जाएगी।
कांगे्रस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि देश में बेरोजगारी फैल रही है। लड़ाई भाजपा की विचारधारा के खिलाफ है। चुने हुए लोगों के हाथ में देश का पैसा जा रहा है। देश की आवाज को दबाया जा रहा है।

बिहार में नीतीश के लव-कुश समीकरण को ध्वस्त करने में जुट गई बीजेपी, जान लीजिए अंदर की खबर – bihar bjp steps up destroying nitish kumar luv kush equation

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पटना: बिहार में बीजेपी ने अपने ‘खेल’ को तेज कर दिया है। खासतौर पर कुशवाहा वोटरों के बीच, जो नीतीश कुमार के बेस वोट बैंक ‘लव-कुश’ में से एक है। बीजेपी ने ओबीसी जातियों ने अपनी पहुंच को और आगे बढ़ाया है। इसके साथ ही राज्य में बीजेपी के काम को देखने के लिए पीएम मोदी के प्रमुख सहयोगियों को नियुक्त किया गया है। वहीं, दो अप्रैल को सासाराम में सम्राट अशोक की जयंती बीजेपी मनाने जा रही है, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल होंगे।

लव-कुश वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश

बिहार बीजेपी के नए अध्यक्ष सम्राट चौधरी को बनाए जाने के कुछ दिन बाद ही सासाराम में सम्राट अशोक की जयंती मनाने का फैसला लिया गया। सम्राट चौधरी खुद कुशवाहा जाति से आते हैं और ये समुदाय सम्राट अशोक को अपने पूर्वज के तौर पर देखता है। कोइरी-कुर्मी (लव-कुश) जाति की बिहार में आबादी लगभग साढ़े 10 फीसदी के आसपास है। नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से आते हैं। लालू के मुस्लिम-यादव वोट बैंक से मुकाबले के लिए नीतीश कुमार ने लव-कुश वोटरों का हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। इसका उन्हें अब तक फायदा मिलते आ रहा है।

नीतीश कुमार पर हमलावर सम्राट चौधरी

सम्राट चौधरी ने नवभारत टाइम्स डॉट कॉम के सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि सम्राट अशोक की जयंती को मनाने के लिए बीजेपी एक बड़ा सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित कर रही है, जिसे कुशवाहा अपने पूर्वज के रूप में देखते हैं। अब लव-कुश मतदाता, जिसे नीतीश कुमार अपना बंधुआ मजदूर मानते थे, वो भाजपा के साथ जाएगा। ये सभी भगवान राम के उपासक हैं। उन्होंने कहा कि लव-कुश गठबंधन की उत्पत्ति यादव वोट बैंक की तुष्टिकरण की राजनीति का मुकाबला करने के लिए हुई थी।

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बिहार बीजेपी में गुजरात के लोगों को अहम जिम्मेदारी

इस बीच, भाजपा ने गुजरात के सुनील ओझा को बिहार के लिए नया सह-प्रभारी नियुक्त किया है। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करते थे और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी के काम को देख रहे थे। खास तौर पर वाराणसी का, जो पीएम मोदी का चुनाव क्षेत्र है। सुनील ओझा की नियुक्ति के साथ बिहार बीजेपी के दो प्रमुख पदाधिकारी गुजरात से हो गए। बिहार बीजेपी के संगठनात्मक सचिव भिखूभाई दलसानिया और प्रदेश बीजेपी के सह प्रभारी सुनील ओझा शामिल हैं।

गुजरात के सुनील ओझा बिहार बीजेपी के सह प्रभारी बने

कुछ दिन पहले गुजरात के रहनेवाले सुनील ओझा को पार्टी ने वाराणसी ट्रांसफर किया था। 2018 में पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र से उन्होंने एक मतदाता के रूप में खुद को रजिस्टर्ड कराया। सुनील ओझा ने ईटी को बताया कि मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी का काम संभाल रहा था, जो बिहार से सटा हुआ है। इसलिए, दोनों क्षेत्रों में जनसांख्यिकी और सामाजिक संरचना समान है। सम्राट चौधरी को नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के कुछ दिनों बाद सुनील ओझा को सह प्रभारी बनाया गया।

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जेडीयू और आरजेडी से निपटने की रणनीति

भारतीय जनता पार्टी के लिए बिहार हमेशा से एक चैलेंज रहा है। पार्टी के लिए लगातार चुनौतियां पेश करता रहा है। अब, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, भाजपा ने नए राज्य इकाई प्रमुख और प्रभारियों के साथ अपनी रणनीति फिर से तैयार की है। भाजपा से अलग होने के बाद जद (यू) का राजद के साथ आना भाजपा के लिए एक गंभीर चुनौती है क्योंकि ये दोनों दल जातिगत समीकरणों में बीजेपी पर भारी पड़ते हैं।

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चुनाव आयोग ने टाले सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव

Election Commission of India
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चुनाव आयोग का फैसला कोरोना काल मे लोकसभा और विधानसभा के लिए चुनाव नही होंगे । आयोग ने कानून मंत्रालय को भेजा दिया है । सर्टिफिकेट चुनाव आयोग द्वारा विधि मंत्रालय को भेजे गए प्रस्ताव का असर मध्यप्रदेश विधानसभा की रिक्त 26 सीटों पर भी पड़ेगा। आयोग आगर मालवा और जौरा विधानसभा उप सीट के उप चुनाव दो माह पहले ही टाल चुका था। मध्यप्रदेश में कुल 26 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं,जहां कि सीटें खाली हैं।

क्या बिहार में भी टाल जाएंगे विधानसभा के आम चुनाव

चुनाव आयोग को नवंबर से पहले बिहार में विधानसभा के आम चुनाव कराना है। देश में जिस तेजी के साथ कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है,उसे देखकर लगता नहीं कि अगले दो माह में स्थिति नियंत्रण में आ पाएगी। समय पर विधानसभा का गठन हो जाए,इसके लिए चुनाव आयोग को मतदान की तारीखों का एलान सितंबर अंत तक हर हाल में करना होगा। अन्यथा स्थितियां राष्ट्रपति शासन की बन जाएंगीं।

उप चुनाव छह माह में कराने की बाध्‍यता?

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के भाग 9 में धारा 150 राज्य विधान सभाओं में हुई आकस्मिक रिक्तियों के संबंध में हैं। आकस्मिक रिक्ति निधन अथवा त्यागपत्र के कारण होती है। अधिनियम की धारा 151 मैं रिक्तियों को भरने के लिए समय सीमा का प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान धारा 151(क) में है। रिक्त स्थानों को भरे जाने के लिए प्रक्रिया छह के भीतर पूरी करना होता है। लेकिन,उन मामलों में यह समय-सीमा लागू नहीं होती,जब संसद अथवा विधानसभा का कार्यकाल एक वर्ष से भी कम बचा हो। उस स्थिति में भी समय अविध से छूट दी गई है,जब ऐसी स्थितियां निर्मित हो गईं हों कि निर्वाचन प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती तो चुनाव आयोग, केन्द्र सरकार से परामर्श कर उन कारणें का उल्लेख कर प्रमाणित करता है कि उप चुनाव कराया जाना संभव नहीं है।

खतरे में पड़ सकता है सिलावट और राजपूत का मंत्री पद

मध्यप्रदेश में सत्ता पलट का नाटकीय घटनाक्रम मार्च में हुआ था। 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी। कांगे्रस पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफें के कारण कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांगे्रस सरकार का पतन हो गया था। कांगे्रस के जिन 22 विधायकों ने पार्टी छोड़कर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था,उनमें तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत भी हैं। इन दोनों को 21 अप्रैल को मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई थी। संवैधनिक प्रावधानों के तहत इन दोनों को छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना है। यदि 20 अक्टूबर तक सदस्य नहीं चुने जाते तो इन्हें मंत्री पद छोड़ना होगा।

विस्तृत पढ़ने के लिए देखे :- https://powergallery.in/news/dharm

ईवीएम बिल्कुल ठीक, वोट के अधिकार को दी मजबूती: नीतीश कुमार

एक कथित साइबर एक्सपर्ट के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर किए गए दावे पर मचे विवाद के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं है। बिहार के सीएम ने ईवीएम पर उठाए जा रहे सवालों को खारिज किया है। इससे पहले बीएसपी प्रमुख मायावती और एसपी प्रमुख अखिलेश यादव ने बैलट पेपर से चुनाव की वकालत करते हुए चुनाव आयोग से जल्द निर्णय लेने की मांग की थी। वहीं, बीजेपी ने लंदन में ईवीएम हैकथॉन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताया था।

मीडिया से बातचीत के दौरान ईवीएम विवाद को लेकर पूछे गए सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा, ’ईवीएम बिल्कुल ठीक है। जब हर बूथ पर वीवीपैट (वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल) मशीन उपलब्ध होगी तो किसी तरह की कोई समस्या नहीं आएगी।’ नीतीश ने ईवीएम हैकिंग के आरोपों पर छिड़े सियासी घमासान के बीच कहा, ’ईवीएम के संबंध में जो बातें कही गई हैं मैं उनसे सहमत नहीं हूं। ईवीएम ने जनता के वोट देने के अधिकार को मजबूती दी है।’

बीजेपी का कांग्रेस पर हमला

बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर सिलसिलेवार निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि इस कार्यक्रम को आयोजित करने वाले आशीष रे एक समर्पित कांग्रेसी हैं। उन्होंने कहा, ’पूरा आयोजन कांग्रेस द्वारा प्रायोजित था। इसका आयोजन कांग्रेस के करीबी और उनके लिए प्रचार करने वाले लोगों ने किया था।’ उन्होंने कहा, ’ 2019 के चुनाव में कांग्रेस हारने का बहाना अभी से ढूंढ रही है। राहुल जी होमवर्क नहीं करते है और उनकी पूरी टीम भी होमवर्क नहीं करती है यह भी अब पता चल गया है। राहुल चुनाव हारने के लिए क्या-क्या खुराफात करेंगे।’ प्रसाद ने एक स्थानीय कहावत कहते हुए कांग्रेस नेता सिब्बल की लंदन में मौजूदगी पर सवाल पूछा। उन्होंने कहा, ’वहां सिब्बल क्या कर रहे थे, बीजेपी यह सवाल पूछना चाहती है। किस हैसियत से सिब्बल वहां थे। सिब्बल पूरे मामले की कांग्रेस की तरफ मॉनिटरिंग करने गए थे। वह ऐसा करते रहते हैं।’

विपक्ष ने उठाई बैलट से चुनाव की मांग

एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा, ’यदि किसी ने सवाल उठाया है तो यह विचार किया जाना चाहिए कि आखिर क्या वजह है कि जापान जैसा विकसित देश ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करता है। यह राजनीतिक दल का सवाल नहीं है। यह लोकतंत्र में विश्‍वास का सवाल है। चुनाव आयोग और सरकार को फैसला लेना चाहिए।’ बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ईवीएम विवाद पर ध्यान देने की जरूरत व्यक्त करते हुए कहा कि वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, इसलिए जनता की इस आशंका का समय पर संतोषजनक समाधान होना जरूरी है। मायावती ने सुझाव दिया कि निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्‍चित करने के लिए मतपत्रों के द्वारा मतों के सत्यापन की बेहतर व्यवस्था संभव है, जबकि ईवीएम के सत्यापन की ऐसी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। इसके मद्देनजर उन्होंने चुनाव आयोग से ईवीएम के ताजा विवाद पर संज्ञान लेते हुए देश में अगला लोकसभा चुनाव मतपत्रों से ही कराए जाने की मांग की।

केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) ने संभाला सृजन घोटाले की जांच का जिम्मा संभाला

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बिहार में करोड़ों रुपये के सृजन घोटाले की जांच का काम सम्भाल लिया है और इस सिलसिले में 10 प्राथमिकियां दर्ज की हैं ।  सीबीआई ने बिहार सरकार के अनुरोध और तत्संबंधी  केंद्र सरकार की अनुशंसा के बाद 1000 करोड़ रुपये के चर्चित सृजन घोटाले की जांच का जिम्मा संभाला है।

जांच एजेंसी ने इस घोटाले से जुड़े,  उन मामलों में 10 प्राथमिकियां दर्ज की हैं , जिनकी जांच बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा कर रही थी।

सीबीआई ने जिनके खिलाफ प्राथमिकियां दर्ज की हैं, उनमें गैर-सरकारी संगठन सृजन महिला विकास समिति की निदेशक एवं संस्थापक मनोरमा देवी, संगठन के अन्य पदाधिकारी तथा बैठक अधिकारी शामिल हैं ।

मनोरमा देवी का निधन 2017 के शुरू में हो गया था। इसके बाद से एनजीओ का संचालन उनके बेटे अमित कुमार कर रहे थे।

गौरतलब है कि जब सीबीआई किसी मामले की जांच शुरू करती है तो वह उस सिलसिले में पहले से दर्ज प्राथमिकी को ज्यों का त्यों उठा लेती है, लेकिन जांच के बाद वह नये सिरे से भी प्राथमिकी दर्ज कर सकती है, या आरोप-पत्र दायर करते वक्त उसमें अपनी जांच के परिणाम के अनुरूप फेरबदल कर सकती है।