दिनेश गुप्ता
अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बन गया। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई है। 22 जनवरी 2024 की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई है। राम मंदिर का मुद्दा राजनीतिक रहा है। दशकों से इस पर राजनीति हो रही थी। इस बार भाजपा ने राम मंदिर की उपलब्धि पर ही चार सौ सीट लोकसभा चुनाव में जीतने का लक्ष्य तय किया है। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद अब चुनाव की तारीखों के ऐलान का इंतजार है। यदि निर्धारित समय पर चुनाव कराए जाते हैं तो मार्च के अंतिम सप्ताह तक तारीखों का ऐलान होगा। यदि चुनाव समय से पहले कराना है तो तारीखों की घोषणा फरवरी के अंतिम सप्ताह तक भी घोषणा हो सकती है।
चुनाव में हावी रहेगा राम मंदिर का मुद्दा
राम मंदिर के मुद्दे को भुनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी तैयारी कर रखी है। अगले एक माह तक देश के सभी राज्यों से भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को रामलला के दर्शन कराने के लिए अयोध्या भेजेगी। अयोध्या का विकास और रामलला के दर्शन कर जब कार्यकर्ता अपने-अपने गांव में शहर में जाएंगे। वहां इसकी चर्चा करेंगे। यह चर्चा पार्टी के पक्ष में माहौल बनाए रखने में बड़ी मददगार साबित होगी। सबसे पहले दक्षिण के राज्यों के कार्यकर्ताओं को अयोध्या भेजा जाएगा। रेल मंत्रालय ने हर राज्य के लिए अलग-अलग गाड़ियों का इंतजाम किया है। दक्षिण को जीते बगैर भाजपा चार सौ सीटों का लक्ष्य नहीं पा सकती है। इस लिए पूरा जोर दक्षिण भारत के राज्यों पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले दक्षिण के राज्यों की धार्मिक यात्रा भी कर आए हैं। राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा ऐसा मुद्दा है जिसका चौतरफा लाभ मिलने की उम्मीद भाजपा लगाए हुए है।
दक्षिण में राम मंदिर अकेला मुद्दा नहीं
संसद के नए भवन में सेंगाल स्थापना से लेकर राम मंदिर तक से दक्षिण भारत को बीजेपी अपने नैरेटिव के साथ संबोधित करने की कोशिश करती रही है। वाराणसी में तमिल समागम, केरल में आरिफ मोहम्मद को राज्यपाल बनाना, काशी से तमिलनाडु के लिए ट्रेन, राम मंदिर के श्रीविग्रह के लिए कर्नाटक के शिल्पकार का चयन आदि जैसे सतत प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चल रहे हैं। 2014 से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण के राज्यों के करीब-करीब 75 दौरे कर चुके हैं। तमिलनाडु और केरल बीजेपी को हमेशा ही निराश करते रहे हैं, लेकिन बीजेपी इन दोनों राज्यों पर विशेष फोकस कर रही है। अगर आकड़ों को देखें तो केरल से सकारात्मक संकेत मिलते हैं।
तमिलनाडु के संकेत बीजेपी के लिए निराशाजनक हैं। केरल में बीजेपी 2014 में 18 सीटों पर लड़ी थी। तिरुवनंतपुरम की सीट पर बीजेपी को 32.3 प्रतिशत फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के शशि थुरूर ने 34.1 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। बाकी 17 सीटों पर बीजेपी तीसरे नंबर पर रही थी और कुल 10.5 प्रतिशत वोट मिले। साल 2019 में बीजेपी 15 सीटों पर लड़ी। तिरुवनंतपुरम में फिर वह दूसरे नंबर पर रही । लेकिन, वोट प्रतिशत कम होकर 31.3 प्रतिशत रह गया और कांग्रेस का वोट बढ़कर 41.2 प्रतिशत हो गया। चार अन्य सीटों पर भी बीजेपी को 20 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले। इस बार इन चार सीटों के अलावा अलपुझा से बीजेपी उम्मीद लगा सकती है। अलपुझा कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे एके एंटनी के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है और पिछले साल एंटोनी के बेटे अनिल ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। मंदिर के उद्घाटन से पहले मोदी भगवान राम से दक्षिण भारत के रिश्तों को उभार रहे हैं और इस बात को यहां याद रखना चाहिए कि 90 के दशक में मंदिर आंदोलन के दौरान दक्षिण भारत की बड़ी भूमिका रही है। हालांकि ये अलग बात है कि आंदोलन के दौरान दक्षिण भारत की सियासत में राम मंदिर बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। लेकिन अब जब मंदिर बनकर तैयार हो रहा है तो अतीत के पन्नों को पलटा जा रहा है। अब इसी रिश्ते को अयोध्या से जोड़कर उभारने की कोशिश हो रही है। ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये आने वाला वक्त बताएगा।
कांग्रेस के पास नहीं है राम मंदिर से बड़ा मुद्दा
देश में राजनीति की फिलहाल दो ही दिशाएं दिखाई दे रही हैं। अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक । इसके अलावा कोई मुद्दा वोटर के दिमाग में नहीं है। कांग्रेस राम मंदिर के मुद्दे का मुकाबला किस तरह से करेगी,यह अब तक सामने नहीं है। कांग्रेस की समस्या उसकी नीतियां ही नहीं हैं,नेतृत्व भी बड़ी समस्या है। कांग्रेस विपक्षी गठबंधन तो बना रही है, वह भी आधे-अधूरे से मन से ? ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव तक हर सहयोगी अपने-अपने राज्य में कांग्रेस को ज्यादा जगह नहीं देना चाहते। सबसे बड़े राजनीतिक दल के लिए कांग्रेस को सीटें भी ज्यादा चाहिए और सफलता भी बड़ी चाहिए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के वक्त वह जातीय जनगणना के जिस मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रही थी,उसकी हवा निकल चुकी है। बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने से राजनीतिक लाभ किसे हुआ? शायद अकेले लालू यादव को। नीतीश कुमार के समझ में भी यह बात आ रही है। इस कारण उनका रवैया भी विपक्षी गठबंधन को लेकर उत्साहजनक नहीं है। कांग्रेस महंगाई के मुद्दे को भी ठीक से उठा नहीं पाई है। इस कारण वह महंगाई के विरोध में वोट की उम्मीद नहीं कर रही है। बेरोजगारी के आंकड़े उसके पक्ष में लग रहे हैं। लेकिन,युवा वोटर के हीरो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।
कांग्रेस बचा पाएगी अपना वोट बैंक
अल्पसंख्यक के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक माना जाता है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आखिरी बार इस वर्ग का साथ मिला था। उसके बाद से लगातार इस वर्ग पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर होते देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में मायावती की बसपा के कारण कांग्रेस ने काफी नुकसान उठाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन, यादव-दलित वोट का समीकरण बन नहीं पाया। बिहार में यादव और मुस्लिम का समीकरण काफी मजबूत है। लेकिन उत्तर प्रदेश का मुसलमान पूरी तरह से अखिलेश यादव के साथ नहीं चल रहा है। जब तक मुलायम सिंह यादव थे, तब तक की बात और थी। अब तीन तलाक के बाद पिछड़ा और मुस्लिम दोनों ही वोट बैंक टूट चुके हैं। भाजपा की इस वर्ग में सेंधमारी कांग्रेस को सीधे मुकाबले में नहीं आने देना चाहती। कांग्रेस की उम्मीद के राज्य अब तीन ही बचे हैं। मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 65 सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने राजस्थान की सभी 25 सीटों पर सफलता हासिल की थी। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट ही बची थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सिर्फ दो सीटें ही मिलीं थीं। इस बार भाजपा की नजर कांग्रेस के कब्जे वाली इन सीटों पर है। विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से भी भाजपा उत्साह में है। राम मंदिर के निर्माण से भी उसकी अपेक्षाएं छत्तीसगढ़ में बढ़ी हैं। आदिवासी क्षेत्र में भी रामलला का मंदिर उसकी मदद कर सकता है।
किसान को साथ भी भाजपा को मिलेगा
लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान सम्मान की राशि में भी वृद्धि कर सकते हैं। अभी छह हजार रुपए हर साल किसानों को दिए जाते हैं। यह पैसा तीन किस्तों में दिया जाता है। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम से निपटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूदा संसद के आखिरी सत्र में विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती के रूप में खड़े दिखाई देंगे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी न्याय यात्रा पर है,इस कारण वे संसद में दिखाई नहीं देंगे। मोदी सरकार में इस बार भी तीन महिने के खर्चे की राशि के मंजूरी ही संसद से लेगी। पूरा बजट लोकसभा चुनाव के बाद पेश किया जाएगा। लेकिन,किसान सम्मान निधि में वृद्धि अंतरिम बजट में ही की जा सकती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने इसी तरह अंतरिम बजट में किसान सम्मान निधि का प्रावधान किया था। अब सम्मान निधि की पंद्रह किस्त किसानों को दी जा चुकीं हैं। लोकसभा चुनाव से पहले एक और किस्त दी जाएगी। यह किस्त ढाई हजार रुपए की हो सकती है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पावर गैलरी पत्रिका के मुख्य संपादक है. संपर्क- 9425014193