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भाजपा विशेष सदस्यता अभियान में नए सदस्य 11 लाख के पार

New members in BJP special membership campaign cross 11 lakhs
New members in BJP special membership campaign cross 11 lakhs

मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के 20 अगस्त से प्रारंभ हुए मिस्ड कॉल पर आधारित विशेष सदस्यता अभियान में अभी तक 11 लाख से ज्यादा नए सदस्य बनाने का पार्टी ने दावा किया है।

पार्टी का दावा है कि इसमें अलग अलग वर्गों के नवमतदाता, केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की योजनाओं के हितग्राही और विभिन्न वर्गों के लोग शामिल है। पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने अभियान के अंतर्गत बने सभी नए सदस्यों को शुभकामनाएं देते हुए पार्टी की विचारधारा जन-जन तक पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाने की बात कही। अभियान अभी जारी है।

पार्टी के प्रदेश मंत्री एवं अभियान के प्रदेश प्रभारी रजनीश अग्रवाल ने बताया कि 20 अगस्त को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ग्वालियर में आयोजित वृहद कार्यसमिति में पार्टी के विशेष सदस्यता अभियान को लॉन्च किया था। अभी तक इस अभियान के अंतर्गत नए सदस्यों की संख्या 11 लाख के पार हो चुकी है। पार्टी के सभी मोर्चा प्रकोष्ठ, ग्रामीण एवं नगरीय निकाय के जनप्रतिनिधि अभियान को गति देने में लगे हुए है।

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पांढुर्णा मध्यप्रदेश का 55 वां जिला बनेगा: शिवराज

Pandhurna will become the 55th district of Madhya Pradesh: Shivraj
Pandhurna will become the 55th district of Madhya Pradesh: Shivraj

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पांढुर्णा प्रदेश का 55वां जिला बनेगा। इस नवीन जिले में पांढुर्णा, सौंसर तहसील और नांदनवाड़ी उप तहसील को मिलाया जाएगा। चौहान ने छिंदवाड़ा जिले के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर जाम सांवली में हनुमान लोक का विधि-विधान से भूमि पूजन कर यह घोषणा की तथा मंदिर में बजरंगवली के दर्शन पूजन कर प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि और उन्नति की कामना की। कृषि मंत्री तथा छिंदवाड़ा जिले के प्रभारी कमल पटेल साथ थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि महाकाल लोक की तर्ज पर जामसांवली हनुमान मंदिर में ‘ हनुमान लोक’ का निर्माण किया जाएगा। लगभग 26.50 एकड़ क्षेत्र में प्रथम चरण में 35 करोड़ रुपये से अधिक लागत से ‘ हनुमान लोक’ के निर्माण का कार्य आरंभ होगा।


छिंदवाड़ा में बन रहे ‘ हनुमान लोक’ में प्रथम चरण में मराठवाड़ा वास्तुकला से प्रेरित भव्य प्रवेश द्वार से भगवान के विराट स्वरूप की छवि दिखेगी। मुख्य प्रवेश द्वार से प्रथम प्रांगण तक 500 मीटर लंबा चिरंजीवी पथ बनेगा। चिरंजीवी पथ और प्रथम प्रांगण के 90 हजार वर्गफुट क्षेत्र में कलाकृतियों के माध्यम से अंजनी पुत्र हनुमान जी के बाल स्वरूप का मनोहारी चित्रण होगा।

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लगभग 62 हजार वर्गफुट क्षेत्र में मूर्तियों एवं कलाकृतियों के माध्यम से भक्त-शिरोमणी हनुमान जी के भक्ति स्वरूप का चित्रण। रामलीला एवं अन्य धार्मिक आयोजनों के लिए जलाशय के तट पर 12 हजार वर्गफुट क्षेत्र में मुक्ताकाश मंच बनेगा, संजीवनी बूटी लाने वाले भगवान के संकटमोचक स्वरूप से प्रेरणा लेकर परिसर में आयुर्वेदिक चिकित्सालय बनाया जाएगा।
हनुमान लोक समीप बहने वाली नदी तट के सौंदर्यीकरण एवं लैंडस्केपिंग के माध्यम से श्रद्धालुओं के बैठने आदि की व्यवस्था बनाई जाएगी। कम्युनिटी सेंटर, जन सुविधाएं, ट्रस्ट ऑफिस, प्रशासनिक कार्यालय एवं कंट्रोल रूम आदि 37 हजार वर्गफुट में निर्मित किया जाएगा। प्रसाद-पूजन सामग्री और भोजन आदि की व्यवस्था के लिए 120 दुकान एवं फूड कोर्ट बनेंगे। लगभग 400 चार पहिया एवं 400 दो पहिया वाहनों की क्षमता के लिए डेढ़ लाख वर्गफुट क्षेत्र में पार्किंग विकसित की जाएगी।


द्वितीय चरण में रामटेकरी पर्वत की परिक्रमा के लिए संजीवनी पथ का विकास, अष्टसिद्धि केंद्र एवं संस्कृत विद्यालय, योगशाला प्रवचन हॉल एवं ओपन एयर थियेटर, जाम नदी पर घाट निर्माण, वॉटर फ्रंट पाथ वे एवं सिटिंग एरिया, भक्त निवास, भोजनालय तथा गौशाला का निर्माण होगा।

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भाजपा ने छत्तीसगढ में 21 और मध्य प्रदेश के लिए 39 उम्मीदवार घोषित किये

भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए गुरूवार को क्रमशः 21 एवं 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी।दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव नवंबर में होने हैं।बुधवार को भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में हुई पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में इन उम्मीदवारों के नामों को मंजूरी दी गयी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई इस बैठक की अध्यक्षता भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने की थी जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बी एल संतोष भी बैठक में शामिल थे।

मध्य प्रदेश के उम्मीदवारों की सूची इस प्रकार है:
सबलगढ से सरला विजेन्द्र रावत , सुमावली से अदल सिंह कंसाना , गोहद से लाल सिंह आर्य , पिछोर से प्रीतम लोधी, चाचौड़ा से प्रियंका मीणा, चंदेरी से जगन्नाथ सिंह रघुवंशी, बंडा से वीरेन्द्र सिंह लम्बरदार, महाराजपुर से कामाख्या प्रताप सिंह, छत्तरपुर से ललिता यादव , पथरिया से लखन पटेल, गुन्नौर (अनुसूचित जाति) से राजेश कुमार वर्मा, चित्रकुट से सुरेन्द्र सिंह गहरवार, पुष्पराजगढ (अनुसूचित जनजाति) से हीरासिंह श्याम, बड़वारा (अनुसूचित जाति) धीरेन्द्र सिंह , बरगी से नीरज ठाकुर , जबलपुर पूर्व (अनुसूचित जनजाति) से अंचल सोनकर , शाहपुरा (अनुसूचित जनजाति) से ओम प्रकाश धुर्वे , बिछिया (अनुसूचित जनजाति) से विजय आनंद मरावी, बैहर (अनुसूचित जनजाति) से भगत सिंह नेताम, लांजी से राजकुमार कर्राये, बरघाट (अनुसूचित जनजाति) से कमल मस्कोले, गोटेगांव (अनुसूचित जाति) से महेंद्र नागेश, सौसर से नानाभाऊ मोहोड, पांढुर्णा  (अनुसूचित जनजाति) से प्रकाश उईके,  मुल्ताई से चंद्रशेखर देशमुख, भैंसदेही  (अनुसूचित जनजाति) से महेंद्र सिंह चौहान, भोपाल उत्तर से आलोक शर्मा, भोपाल मध्य से ध्रुव नारायण सिंह , सोनकच्छ (अनुसूचित जनजाति) से राजेश सोनकर,  महेश्वर (अनुसूचित जाति) से राजकुमार मेव, कसरावद से आत्माराम पटेल, अलीराजपुर (अनुसूचित जनजाति) से नागर सिंह चौहान, झाबुआ  (अनुसूचित जनजाति) से  भानू भूरिया,  पेटलावद  (अनुसूचित जनजाति) से निर्मला भूरिया, कुक्षी (अनुसूचित जनजाति) से जयदीप पटेल,  धर्मपुरी (अनुसूचित जनजाति) से कालू सिंह ठाकुर, राऊ से मधु वर्मा, तराना (अनुसूचित जाति) से ताराचंद गोयल और  घाटिया (अनुसूचित जाति) से सतीश मालवीय।

छत्तीसगढ विधानसभा चुनाव के लिए घोषित उम्मीदवारों की सूची इस प्रकार है

प्रेमनगर से भूलन सिंह मरावी, भटगांव से लक्ष्मी राजवाड़े, प्रतापपुर(अजजा) से शकुंतला सिंह पोर्थे, रामानजुगंज(अजजा) से राम विचार नेताम, लुंद्र (अजजा) से प्रबोज भींज, खरिसया से महेश साहू, धर्मजागढ(अजजा) से रिश्चंद्र राठिया, कोरबा से लखनला दवांगन, मरवाही(अजजा) से प्रणव कुमार मरपच्ची, सरायपाली (अजा) से सरला कोसरिया, खल्लारी से अलका चंद्राकर, अभानपुर से इंद्रकुमार साहू, राजिम से रोहित साहू, सिहावा(अजजा) से श्रवण मरकाम, दौंडी लोहारा (अजजा) से देवलाल हलवा ठाकुर, पाटन से विजय बघेल सांसद, खैरागढ से विक्रांत सिहं, खुज्जी से गीता घासी साहू, महल्ला-मानपुर(अजजा) से संजीव साहा, कांकेर(अजजा) से आशाराम नेताम और बस्तर(अजजा) से मनीराम कश्यप।

उज्जैन से शुरू होगी भाजपा की विजय संकल्प यात्रा: कुल चार स्थानों से निकलेगी यात्रा

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति संभाल रहे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में चुनावी रोडमेप तैयार हो गया है। भाजपा अपनी विजय संकल्प यात्रा की शुरूआत उज्जैन से करेगी। यात्रा की शुरूआत सितंबर में होगी। तारीखों का एलान बाद में किया जाएगा।


उज्जैन पिछले कई माह से चर्चा के केंद्र में हैं। विश्व प्रसिद्ध महाकाल ज्योर्तिलिंग परिसर में बने महाकाल लोक की मूर्तिया उडने सरकार पर कई तरह के आरोप लग रहे थे। मास्टर प्लान में स्थानीय मंत्री मोहन यादव की जमीन को मेला क्षेत्र से बाहर किए जाने का विरोध भी हो रहा है। नगरीय निकाय के चुनाव में भी पार्टी महापौर का पद बहुत कम अंतर से जीत पाई थी। उज्जैन से यात्रा की शुरूआत की एक वजह अनुसूचित जाति वर्ग का वोटर भी बताई जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले हुए सिंहस्थ में समरस स्नान भी दलितों को लुभाने के लिए उज्जैन में ही हुआ था। पार्टी की योजना प्रदेश में चार स्थानों से विजय संकल्प यात्रा निकालने की है।उज्जैन के अलावा ग्वालियर, चित्रकूट और जबलपुर से भी ये यात्राएं निकाली जाएंगी। इन यात्राओं में से किसी भी एक स्थान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हो सकते हैं।


केन्रदीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार आधी रात तक चुनावी रणनीति को लेकर पार्टी की राज्य इकाईके सीनियर लीडर्स के साथ मंथन किया। भोपाल स्थित बीजेपी दफ्तर में हुई इस हाईलेवल मीटिंग में शाह ने प्रदेश चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव की रिपोर्ट के आधार पर सभी 230 विधानसभा सीटों के सियासी समीकरण की जानकारी ली। इस दौरान 11 जुलाई को हुई बैठक में दिए गए टास्क का फीडबैक भी लिया। बैठक में प्रदेश के मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य, महाकौशल और मध्य क्षेत्र की अलग-अलग नेताओं के साथ समीक्षा की। सूत्रों का कहना है कि शाह ने ग्वालियर-चंबल को लेकर तोमर और सिंधिया के साथ अलग बात की। जबकि मालवा-निमाड़ का फीडबैक कैलाश विजयवर्गीय से लिया।
बीजेपी की आतंरिक सर्वे रिपोर्ट में कई वरिष्ठ नेताओं की स्थिति अच्छी नहीं बताई गई है। बीजेपी उनका चुनाव में टिकट काट सकती है। ाृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा मौजूद रहे।

प्रधानमंत्री की चुप्पी पर प्रियंका का वार, कहा मणिपुर बयान में राजनीति घोल दी

प्रधानमंत्री की चुप्पी पर प्रियंका ने किया वार। कहा मणिपुर पिछले दो महिनो से जल रहा है, घरो में आग लगाई जा रही है, महिलाओं के साथ भयावय अत्याचार हो रहा हैं, बच्चों के सर पर छत नहीं है और हमारे प्रधानमंत्री जी ने 77 दिन से कोई बयान नहीं दिया। कल भयावय वीडियो वायरल होने के बाद मजबूरी में उन्हेंने बयान दिया और उसमें भी राजनीति घोल दी।

टिफिन मीटिंग से पार्टी को मजबूत करने की रणनीति कितनी मजबूत ?

tiffin meetin
tiffin meeting @cm house mp

शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार की रात मुख्यमंत्री निवास में अपनी कैबिनेट के सहयोगियों के साथ टिफिन मीटिंग की। यह टिफिन मीटिंग भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति का हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कार्यकर्ताओं को पदाधिकारियों के साथ इस तरह की बैठक कर चुके हैं।
पार्टी ने देश भर में चार हजार से अधिक टिफिन बैठक करने की रणनीति बनाई थी। इसकी शुरुआत पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने की थी। टिफिन मीटिंग का न्यूनतम समय तीन घंटे निर्धारित किया गया था। इसमें एक घंटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ साल की उपलब्धियों पर चर्चा किया जाना तय किया गया था।

एक घंटे कार्यकर्ताओं से अलग-अलग चर्चा करना थी। पार्टी के हर स्तर के प्रमुख नेताओं को यह टिफिन बैठक करने की जिम्मेदारी दी गई थी।  गृह मंत्री अमित शाह ने नांदेड में टिफिन मीटिंग की थी।
भोपाल में मुख्यमंत्री निवास में हुई टिफिन मीटिंग पार्टी के दिशा निर्देशों को पूरा करने की रस्म अदायगी भर दिखाई दी। इस बैठक में हंसी-मजाक और फोटो सेशन के अलावा कुछ नहीं हुआ। कैबिनेट की बैठक भी हुई।

मंत्रियों का नाम की पर्ची लगा टिफिन उनके घरों से आया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक तरफ वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव थे और दूसरी और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा थे।

कैबिनेट के कुछ सदस्य अपने परिवार के साथ इस टिफिन मीटिंग में पहुंचे थे।
कैबिनेट के सदस्यों के साथ मुख्यमंत्री की इस टिफिन बैठक के औचित्य को लेकर कई तरह की चर्चाएं भाजपा के भीतर चल रही हैं। भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जिन लोगों के साथ मुख्यमंत्री हर सप्ताह बैठक करते हैं उनकी साथ टिफिन मीटिंग से पार्टी कैसे मजबूत होगी?

एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि जरूरी तो यह था कि पार्टी के पदाधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री टिफिन मीटिंग करते तो शायद कुछ जमीनी हकीकत भी पता लग जाती।
 

गुंडे, बदमाशों में पुलिस का खौफ और आम जनता का पुलिस पर विश्वास होना जरूरी : मुख्यमंत्री चौहान

गुंडे, बदमाश और असामाजिक तत्वों पर कठोरता से कार्रवाई की जाये, सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने और नशा करने वालों पर त्वरित कार्यवाही करें। मुख्यमंत्री चौहान ने की इंदौर की कानून-व्यवस्था की समीक्षा।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज प्रातः इंदौर की कानून-व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की। मुख्यमंत्री चौहान ने गुंडे, बदमाश और असामाजिक तत्वों पर कठोरतम कार्यवाही करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि गुंडे, बदमाशों में पुलिस का खौफ रहे। आम जनता में पुलिस पर विश्वास होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने और नशा करने जैसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस प्रकार की गतिविधियों में लिप्त व्यक्तियों पर तुरंत कार्यवाही की जाए।

मुख्यमंत्री निवास समत्व कार्यालय भवन में हुई बैठक में अपर मुख्य सचिव गृह राजेश राजौरा, पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना, एडीजी इंटेलीजेंस आदर्श कटियार, ओ.एस.डी. मुख्यमंत्री अंशुमान सिंह सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। इंदौर से कमिश्नर पवन शर्मा, पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर, कलेक्टरटी. इलैया राजा सहित जिला प्रशासन के अधिकारी बैठक में वर्चुअली शामिल हुए।

मध्‍यप्रदेश में विकास नहीं धर्म जाति के मुद्दे पर चुनाव की आहट

kamalnath-shivraj
kamalnath-shivraj singh chouhan
उन्नीस माह की सरकार में कमलनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर सफल रहे या असफल यह चर्चा किया जाना अब ज्यादा जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि कांग्रेस के पास अपने वोटर को बताने के लिए वे कौन सी उपलब्धियां हैं,जिनके आधार पर वह नया जनादेश मांगेगी? एक बात तो तय है कि किसानों की कर्ज मुक्ति को कांग्रेस एक बार फिर बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने से पीछे नहीं हटेगी। यही वह मुद्दा था जिसके कारण पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पंद्रह साल के बाद सरकार में वापसी की थी।

सोनल भारद्वाज
वर्ष 2023 के आते ही चुनाव की दृष्टि से जो राज्य ध्यान में आते हैं उनमें मध्यप्रदेश भी एक है। मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण और दिलचस्प रहने वाले हैं। दिलचस्प इस मामले में हैं कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के पास सरकार में रहते हुए किए गए विकास कार्यो की लंबी सूची है। अब तक राज्य की राजनीति पूरी तरह से दो दलीय व्यवस्था पर चल रही है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। पिछले पांच साल के दौरान दोनों ही राजनीतिक दल सत्ता संभाल चुके हैं। राज्य की सत्ता में कांग्रेस सिर्फ उन्नीस माह ही सरकार में रही थी। कांग्रेस को जनादेश पांच साल के लिए मिला था। भले ही उसके पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। लेकिन,वोटर ने उसे सबसे ज्यादा सीटें देकर सबसे बड़ी पार्टी बनाया था। मामूली बाहरी समर्थन से सरकार आराम से चल रही थी। लेकिन,ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के दलबदल किए जाने के कारण रातों-रात भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन गई। बगैर किसी जनादेश के उसे सत्ता भी मिली। बाद में जनादेश हासिल कर पूरी तरह अपने पांव जमा लिए। उन्नीस माह की सरकार में कमलनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर सफल रहे या असफल यह चर्चा किया जाना अब ज्यादा जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि कांग्रेस के पास अपने वोटर को बताने के लिए वे कौन सी उपलब्धियां हैं,जिनके आधार पर वह नया जनादेश मांगेगी? एक बात तो तय है कि किसानों की कर्ज मुक्ति को कांग्रेस एक बार फिर बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने से पीछे नहीं हटेगी। यही वह मुद्दा था जिसके कारण पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पंद्रह साल के बाद सरकार में वापसी की थी। कांग्रेस पूरे पांच साल सरकार में रहती तो शायद उन सभी किसानों की कर्ज माफी हो जाती जिनके ऊपर दो लाख रुपए तक का कर्ज है। कमलनाथ सरकार ने अपने दो साल से भी कम के कार्यकाल में किसानों का सात हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया था। यह बात शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार विधानसभा के भीतर भी स्वीकार कर चुकी है। भारतीय जनता पार्टी के पास किसानों की कर्ज माफी के मुद्दे का क्या कोई तोड़ है? फिलहाल तो भाजपा इस मुद्दे के पास भी फटकती नहीं दिख रही है। कर्ज अदा न करने के कारण जो किसान डिफाल्टर हो चुके हैं,उनकी बात जरूर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं। डिफॉल्टर की ब्याज माफी और कर्ज मुक्ति में बड़ा अंतर है।
देश में हुए पिछले कुछ चुनावों में मुफ्त बिजली देने के वादे करते हुए भी राजनीतिक दल सामने आ रहे हैं। पंजाब में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की जीत में बड़ा योगदान मुफ्त बिजली के वादे का माना जा रहा है। मध्यप्रदेश पर भी अरविंद केजरीवाल की नजर है। वे यहं भी मुफ्त बिजली की बात कर सकते हैं। गुजरात में भी उन्होंने तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात कही थी,लेकिन वहां आम आदमी पार्टी दूसरा बड़ा राजनीतिक दल भी नहीं बन सकी। केजरीवाल पांच साल बाद कितने असरदार रहेंगे? कमलनाथ ने कांग्रेस की सरकार में सौ रुपए में सौ यूनिट बिजली देने की योजना शुरू की थी। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में दो सौ रुपए में सौ यूनिट बिजली देना शुरू की गई। यह तय है कि विधानसभा चुनाव में बिजली भी बड़ा मुद्दा बनने जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेबडी पॉलिटिक्स के खिलाफ हैं। यद्यपि केन्द्र सरकार ने मुफ्त खाद्यान्न की योजना को अगले एक साल के लिए और बढ़ा दिया। जाहिर है कि भाजपा हिन्दी पट्टी के राज्यों में मुफ्त राशन की योजना को बंद कर निचले तबके के वोटर की नाराजगी नहीं लेना चाहती। यह परंपरागत तौर पर कांग्रेस का वोटर रहा है। कांग्रेस ने गरीब की थाली को हमेशा ही चुनाव में मुद्दा बनाया है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में गरीबी की थाली ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराई थी। मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इसी साल चुनाव होना है। यहां की कांग्रेस सरकारें निचले तबके के वोटर को साधने के लिए कई योजनाएं पहले से ही चला रही है। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार की कई हितग्राही मूलक योजनाएं चल रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले शुरू की गई संबल योजना का कोई खास लाभ नहीं मिला था। पिछले चुनाव में भाजपा की हार में अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इस चुनाव में भाजपा का पूरा ध्यान आदिवासी वोटर पर है। अनुसूचित जाति वर्ग उसकी चिंता में शामिल नहीं है। प्रदेश भर में आदिवासी इलाकों में कई ऐसे धार्मिक आयोजन हो रहे हैं,जो कि देखने में गैर राजनीतिक लगते हैं लेकिन पीछे भाजपा नेताओं की सक्रिय भूमिका दिखाई देती है। भाजपा ने आदिवासियों के कई प्रतीक पिछले तीन साल में खड़े किए है। टंटया भील से लेकर शंकर शाह और रघुनाथ शाह तक के नाम पर कई आयोजन किए गए हैं। रानी कमलापति के जरिए गोंड आदिवासियों को साधने की कोशिश की गई है। लेकिन,वोटर में सकारात्मक बदलाव भाजपा को दिखाई नहीं दे रहा है। फिर भाजपा अपनी सरकार कैसे बचा पाएगी? यह बड़ा सवाल हर नेता के जहन में है। इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए ही भाजपा में लगातार बैठकों का दौर चल रहा है। मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के विधायकों से बात कर उन्हें क्षेत्र का फीडबैक दे रहे हैं। भाजपा इस बार अतिविश्वास में नहीं रहना चाहती। पिछली बार अतिविश्वास में रहने के कारण ही सत्ता हाथ से फिसल गई थी। पार्टी पूरे पांच साल विंध्य क्षेत्र पर ध्यान के्द्रिरत किए रही मगर ग्वालियर-चंबल हाथ से निकल गया। इस बार भाजपा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए सैकड़ों कार्यकर्ताओं को भी साधना है। वे इस चुनाव में पार्टी के साथ रहे तो आगे निपटने में आसानी रहेगी। चुनाव के वक्त किसी भी तरह का दलबदल पार्टियों को नुकसान पहुंचाता है।
जिस तरह का राजनीतिक वातावरण धार्मिक आधार पर निर्मित किए जाने की कोशिश की जा रही है,वह लोकतंत्र के लिए भले ही घातक हो लेकिन,भाजपा के लिए लाभ पहुंचाने वाली होती है। पठान फिल्म में दीपिका पादुकोण की ड्रेस में यदि धर्म तलाश किया जाएगा तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि चुनाव में विकास मुद्दा नहीं होगा। वैसे भी मध्यप्रदेश के हर जिले में इन दिनों फिजा धार्मिक आधार पर विभाजन की नजर आ रही है। कहीं मस्जिद का रास्ता विवाद का कारण बन रहा है तो कहीं मदरसे में पढ़ रहे हिन्दू बच्चे। आदिवासियों की घर वापसी के खबरें सुर्खियां बनी हुई हैं।
(लेखक आईएनएच न्यूज चैनल में पत्रकार एवं न्यूज एंकर हैं)

शिवराज सिंह चौहान: चौथी पारी,चौदह साल कई वजह से बने बेमिसाल

शिवराज सिंह चौहान अद्वितीय हैं,बेमिसाल हैं। अद्भूत हैं। अतुलनीय हैं। जन नायक हैं। लोकप्रिय हैं। बहनों के भाई और बच्चों के मामा हैं। यही वे वजह नहीं हैं जिनके कारण शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी का पहला कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। बहुत सारे दूसरे कारण भी हैं जिनके चलते शिवराज सिंह चौहान अगंद की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिके हुए हैं। उनका कोई विकल्प नहीं है। 2018 में हुए विधानसभा के आमचुनाव में भाजपा सरकार से बाहर क्यों हुई? इस कारण की तलाश भजपा नेताओं ने भी कभी पूरी गंभीरता से नहीं की। शायद पंद्रह साल लगातार सत्ता में रहने के बाद भाजपा नेता राजनीति के मूल सिद्धांतों को विस्मृत कर चुके हैं।

shivraj singh chouhan
shivraj singh chouhan


वर्ष 2003 में जब उमा भारती ने भाजपा सरकार का नेतृत्व किया था तब शिवराज सिंह चौहान कहां थे? वे विदिशा से सांसद थे। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी शमिल नहीं थे। उमा भारती के विकल्प के तौर भाजपा के पास काबिल और लोेकप्रिय नेताओं की फौज थी। बाबूलाल गौर को हटाकर जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने तब भी वे विकल्प हीन नहीं थे। कई विकल्प पार्टी के पास थे। चौहान से वरिष्ठ और बराबरी से बात करने वाले कई नेता थे। गौर मंत्रिमंडल में थे। एक नरेन्द्र सिंह तोमर ने शिवराज सिंह चौहान का हाथ पकडकर राजनीति की तो वे केन्द्र में मंत्री हैं। तोमर का नाम हर बार चौहान के उत्तराधिकारी के तौर पर सामने आता है। पिछड़ा वर्ग के ही प्रहलाद पटेल को विरोध की क्या कीमत चुकाना पड़ी इसका अनुमान उनकी राजनीति यात्रा के पड़ाव पर नजर डालकर आसानी से लगाया जा सकता है।

आम चुनाव में मिली हार से लोकप्रियता प्रभावित

भाजपा के नेता व्यक्तिवाद और परिवारवाद का विरोध करते-करते इसका अनुकरण करने लगे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिलता तो मार्च में सरकार की वर्षगांठ मानाने की जरूरत नहीं पड़ती। पिछले दिसंबर में ही शिवराज सिंह चौहान पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहने का जश्न मना चुके होते। वो भी शायद जंबूरी मैदान में। पंद्रह माह के बे्रक से चौहान का ट्रैक रिकार्ड भी प्रभावित हुआ है। चुनाव परिणामों ने उनकी लोकप्रियता पर भी सवाल खड़े किए। मार्च की सरकार नरेन्द्र-मोदी-अमित शाह की रणनीति का परिणाम है। एक तरह से यह सरकार चौहान को तौहफे के तौर पर मिली है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके विधायकों के कारण मिली। भाजपा के देवतुल्य कार्यकत्र्ता का कोई योगदान मार्च की सरकार में नहीं है।

शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में यदि दिग्विजय सिंह को चुनौती दी थी तो वर्ष 2004 में कमलनाथ को उनके गढ़ छिंदवाड़ा में चुनौती देने वाला कौन था? प्रहलाद पटेल ने ही कमलनाथ को चुनौती दी थी। प्रहलाद पटेल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोयला राज्य मंत्री थे। शिवराज सिंह चौहान से काफी आगे। काफी संभावनाएं पटेल के चेहरे में तलाशी जा रहीं थीं। उमा भारती के एक गलत राजनीतिक निर्णय के कारण ही चौहान के सामने कोई विकल्प बन नहीं बन पाया। कैलाश विजयवर्गीय,अनूप मिश्रा,अजय विश्नोई और गौरीशंकर शेजवार जैसे नेता अहम का शिकार होकर हासिए पर चले गए। शिवराज सिंह चौहान पैर में चक्कर और मुंह में शक्कर के सिद्धांत का पालन करते हुए आगे निकल गए।

मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा में कोई विकल्प नहीं

uma bharti
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कुशाभाऊ ठाकरे की मंशा के विपरीत जाना अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाने जैसा था। शिवराज सिंह चौहान ने संघर्ष की राह चुनी तो आज मुख्यमंत्री की कुर्सी उनकी है। विक्रम वर्मा कहां हैं? अख्खड़ स्वभाव वाले। वीर भौग्या वसुंधरा। जिस तरह वीर धरा का उपभागे करते हैं उसी तरह मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री या कहें राजा वही बन सकता है जो शक्तिशाली है,समर्थ है और चुनौतियों को स्वीकार कर सकता है। शिवराज सिंह चौहान में चुनौतियों को स्वीकार करने की क्षमता है। उनके जीवन का तीसरा ब्रह वाक्य सिर पर बर्फ है। पैर में चक्कर,मुंह में शक्कर और सिर पर बर्फ जो व्यक्ति रखकर चलता है उसकी राह कितनी भी दुर्गम हो, सुगम बन जाती है। यदि ऐसा न होता तो पहले डंपर और फिर व्यापमं मामले के भंवर से वे निकलकर बाहर नहीं आ सकते थे।

नृपस्य चितं ,कृपणस्य वितम;त्रिया चरित्रं ,पुरुषस्य भाग्यम ;देवो न जानाति कुतो मनुष्य:। शिवराज सिंह चौहान कर्मशील हैं,इस कारण भाग्य भी उनका साथ दे रहा है। चौहान से वरिष्ठ,समकालीन और उनसे कनिष्ठ नेताओंं में ऐसे कितने हैं,जिसने प्रदेश भर की सड़कें नापी हो? शायद कोई नहीं। सभी यह मानकर चलते हैं कि राज्याभिषेक पार्टी की मर्जी पर निर्भर है। बाबूलाल गौर पार्टी लाइन पर चलकर भी अपनी कुर्सी नहीं बचा सके। उमा भारती विधायकों की संख्या बल के आधार पर भी दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं। शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री हैं। अतुल्य।
यदि आमजन के बीच खड़े होकर देख जाए तो शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाले एक साल में आपको सिर्फ निराशा दिखाई देगी। युवाओं में निराशा। महिलाओं में निराशा। उद्योग -धंधों में निराशा। स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर निराशा। शिक्षा को लेकर निराशा। खास लोगों की दृष्टि से देखेगों तो चारों और हरियाली और खुशहाली दिखाई देगी। पिछले साल जब कोरोना आया था तब सरकार ने जो प्रतिबंध लोगों पर थोपे वे प्रतिबंध खास लोगों के लिए आपदा में अवसर साबित हुए।

मोदी के चेहरे के बगैर राज्य में भाजपा को मिली जीत

जनता ने पंद्रह माह भाजपा को सरकार से बाहर रखा तो उसका खामियाजा उसे वापसी पर भुगतना पड़ रहा है। राज्य में भ्रष्टाचार का सूचकांक सारे रिकार्ड तोड़ चुका है। सत्ता की राजनीति में सुशासन शब्द को रामबाण की तरह उपयोग किया जा रहा है। सुशासन के लिए जो रीति-नीति सरकार ने बनाई है,उसमें प्रशासन आमजन से दूर होता जा रहा है। सूचना प्रद्यौगिकी के कारण भी प्रशासन की जवाबदेही समाप्त होती जा रही है। सूचना एवं प्रद्यौगिकी ने भ्रष्टाचार के नए तरीके भर ईजाद किए हैं।

भ्रष्टाचार सुनियोजित,संगठित और लोगों को अपराधियों की तरह कटघरे में खड़ा कर किया जा रहा है। माफिया जैसे भारी-भरकम शब्दों के जरिए प्रशासन अपने भ्रष्टाचार और मनमानी को छुपाने का काम भी कर रहा है। अच्छे और सफल मुख्यमंत्री के लिए सुद़ढ सूचना तंत्र भी जरूरी होता है। वह नेता जमीन छोड़ देता है,जिसका सूचना तंत्र कमजोर होता है और संवाद न्यूनतम। चौथी पारी में शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर शकुन और चमक दिखाई नहीं देती। टेलीविजन की स्क्रीन पर जब वे भाषण देते दिखाई देते हैंं तो माथे पर की शिकन और चेहरे का तनाव छुपता नहीं है।

लुटिंयंस की दिल्ली रास नहीं आती

कोई न कोई वजह तो है,जिसके कारण शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर उलछन दिखाई दे रही है। हो सकता है कि कोरोना ने उनके पांव बांध रखे हो?संभव है कि सरकारी खजाने की माली हालत उन्हें परेशान कर रही हो। संभव है कि उन्हें नई जिम्मेदारियां देने की बात हो रही हो? शिवराज सिंह चौहान का मन मध्यप्रदेश में ही बसता है। नरेन्द्र मोदी की तरह उन्हें दिल्ली जाना पड़े तो बात दूसरी है। लुटिंयंस की दिल्ली उन्हें रास नहीं आती।

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विधानसभा उपचुनाव :धारणा और विश्वसनीयता ही असल मुद्दा

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विधानसभा उप चुनाव में धारणा और विश्वसनीयता।

ये दो शब्द बेहद अहम हैं।

दो चेहरों को इन शब्दों में वोटर तोल रहा है।

पहला चेहरा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का है।

दूसरा चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का है।

कमलनाथ केवल पंद्रह माह राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं।

शिवराज सिंह चौहान लगातार तेरह साल मुख्यमंत्री रहने के बाद पंद्रह माह के अंतराल से चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं।

विधानसभा उप चुनाव आम से भी ज्यादा खास

इस चुनाव में कई आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं। लेकिन,मुद्दा कोई नजर नहीं आ रहा।

कहने को यह उप चुनाव है,लेकिन आम चुनाव से भी ज्यादा खास है।

उप चुनाव में भी वोटर को यह तय करना है कि बदलाव करना है अथवा नहीं।

आम चुनाव के नतीजों के बाद बनी कांगे्रस की सरकार में जो बदलाव वोटर ने देखे,उसमें पाया कुछ नहीं था।

जो खोया उसका कोई हिसाब नहीं है।

बदलाव हुआ तो मेधावी छात्रों को फीस भरने के लाले पड़ गए थे।

कन्यादान की राशि तो मिली ही नहीं।

जबकि राशि बढ़ाकर देने का दावा किया जा रहा है।

लैपटॉप,साइकल और न जाने कितने सपने बदलाव की भेंट चढ़ गए थे।

पंद्रह माह की सरकार में लाडली का तो जिक्र ही नहीं हुआ।

ये वे योजनाएं हैं,जिनका लाभ आमजन को मार्च में शिवराज सिंह चौहान की सरकार वापस आने के बाद फिर से मिलने लगा है।

मध्यप्रदेश मे विधानसभा उप चुनाव 

शिवराज का चेहरा गरीब ,कमजोर की उम्मीद

शिवराज सिंह चौहान आमजन का चेहरा हैं।

यह धारणा कोई पिछले सात माह में नहीं बनी है।

इस धारणा को बनने में तेरह साल का लंबा वक्त लगा।

लोकसभा,विधानसभा और उप चुनाव की कई अग्नि परीक्षाओं से उत्पन्न यह धारणा है।

कमलनाथ का चेहरा आम आदमी का चेहरा नहीं बन सका?

दूसरी और कमलनाथ का चेहरा मुख्यमंत्री के तौर प्रदेश की जनता ने देखा। आमजन से दूर रहने वाले इस चेहरे ने कई नई धारणाओं को विकसित किया।

मुख्यमंत्री का यह चेहरा एक खास वर्ग के लिए ही काम करता दिखाई दिया।

हर वर्ग परेशान था। बाढ़ हो या कोई भी आपदा पंद्रह माह मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ लोगों की तकलीफ में उनके साथ खड़े नजर नहीं आए।

कमलनाथ खुद बड़े उद्योगपति हैं।

इस कारण उनकी सोच भी कारपोरेट कल्चर वाली थी। कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाने की।

सरकारी खजाने पर उन्होंने बिल्कुल वैसे ही ताला लगाया था,जैसे कोई उद्योगपति अपने वर्कर को उचित मेहनताना देने के लिए लगाता है। पैसा न होने का रोना रो कर।

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पूंजीपति सोच में कभी गरीब किसान और मजदूर के कल्याण को देखा ही नहीं जाता।

कमलनाथ अभिजात्य वर्ग के मुख्यमंत्री हैं यह धारण पंद्रह माह में आमजन के जहन में उभरी है।

विश्वसनीयता के मामले में भी कमलनाथ जन आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरे।

विधानसभा के आम चुनाव में कांगे्रस पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने दस दिन में किसानों की कर्ज माफी का वादा किया था।

लेकिन,कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी तो पंद्रह माह में भी दो लाख रूपए तक के कर्ज माफ नहीं हुए। राहुल गांधी कांगे्रस अध्यक्ष नहीं रहे।

सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे

राहुल गांधीकमलनाथ ने उन्हें भी अनदेखा करने में देर नहीं की।

कमलनाथ,राहुल गांधी की पसंद नहीं थे।

वे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। कमलनाथ कांग्रेस पर काबिज कोटरी की मदद से मुख्यमंत्री बन गए।

उन्होंने सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीतिक तौर पर कमजोर करना शुरू कर दिया।

सरकार की ड्राइविंग सीट पर दिग्विजय सिंह नजर आ रहे थे। कमलनाथ तो उनकी छाया मात्र थे।

पंद्रह साल बाद भी दिग्विजय सिंह की छवि मिस्टर बंटाधार और मुस्लिम समर्थक नेता की बनी हुई है।

नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के मंत्री उनके पुत्र जयवर्द्धन सिंह थे। दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले बड़े शहरों के मास्टर प्लान में बदलाव करना शुरू किया।

ग्वालियर में मास्टर प्लान में भी बदलाव किया गया।

सिंधिया इस बदलाव के पक्ष में नहीं थे।

कमलनाथ ने चुनावी वादों पर अमल न कर आमजन को बेहद निराश किया।

आम चुनाव में कांगे्रस पार्टी ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश भी नहीं किया था।

शिवराज के चेहरे से जुड़ा आम विश्वास

कमलनाथ को लेकर आमजन में विश्वास की कमी देखी गई।

जबकि शिवराज सिंह चौहान का चेहरा परखा हुआ है।

लोगों को विश्वास है कि परेशानी आने पर सरकार उनकी मदद के लिए खड़ी होगी।

उप चुनाव में धारणा और विश्वास के मुद्दे पर ही फैसला होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ही अपने-अपने पुत्रों को राजनीति में स्थापित करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

बिकाऊ-टिकाऊ का नारा देकर इन दोनों नेताओं की कोशिश कांगे्रस पार्टी में विभाजन को रोकने की है।

विधायकों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की है।

वैसे भी कमलनाथ ने ही विधायकों को दबाव में डालकर अपने पक्ष में करने की कोशिश की थी। नारायण त्रिपाठी और शरद कोल के जरिए। यह शुरूआत थी।

मध्यप्रदेश में राजनीति की नई संस्क्ृति को विकसित करने की।

विधानसभा में विधायकों की संख्या इस बात की ओर साफ इशारा कर रही है कि कांगे्रस किसी भी हाल में सरकार नहीं बना सकती।

विधानसभा उपचुनाव:पांच सीट जीत कर भी सत्ता में बने रहेंगे शिवराज

वर्तमान में भाजपा के पास कुल 107 विधायक हैं।

कांग्रेस के पास 87 विधायक हैं। 28 सीटों के चुनाव नतीजों के बाद भी एक सीट खाली रहेगी।

230 सदस्यों वाली विधानसभा में 10 नवंबर को कुल 229 विधायक होंगे।

सरकार बनाने के लिए 115 विधायक चाहिए।

इस लिहाज से कांग्रेस को सभी 28 सीटें जीतना होगीं।

बसपा-सपा और निर्दलीय का समर्थन मिलना भी जरूरी है।

कांग्रेस 28 से जितनी कम सीटें जीतेगी उसकी उतनी दूरी सरकार से बन जाएगी।

भाजपा पांच सीटें भी जीतती है तो सदन में उसके विधायकों की संख्या 112 हो जाएगी।

कांग्रेस के विधायकों की संख्या 110 ही रहेगी।

तब भी सबसे बड़े दल के नाते भाजपा को ही सरकार बनाने का अवसर मिलेगा।

कांग्रेस को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक दल होना जरूरी है।

वैसे भी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने हर इंटरव्यू में स्पष्ट कर रहे हैं कि वे सरकार बनाने के लिए उप चुनाव नहीं लड़ रहे।

फिर किस लिए उप चुनाव मैदान में है? शायद आयटम जैसे शब्दों के जरिए राजनीतिक विरोधियों को अपमानित करने के लिए?

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