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कानून से बंद हुए दरवाजे बयानों से नहीं खुला करते

बचपन से ही अली बाबा चालीस चोर की कहानी सुनते आए हैं। पूरी कहानी ठीक-ठीक याद नहीं रही। लेकिन कहानी में खुल जा सिम-सिम का शब्द आज भी याद है। कहानी के चालीस चोर आते थे और चट्टान के सामने खड़े होकर कहते-खुल जा सिम-सिम और गडगडाहट की आवाज के साथ एक दरवाजा खुल जाता था। चालीस चोर चट्टान से बनी गुफा में अंदर जाते और चोरी का अपना माल छुपाकर बाहर निकल आते। एक दिन अलीबाबा ने पूरा नजारा अपनी आंखों से देखा। खुल जा सिम-सिम शब्द का चमत्कार भी आंखों से देखा। चारों के जाने के बाद अलीबाबा ने खुल जा सिम-सिम कहा तो गुफा का दरवाजा अपने आप खुल गया। अलीबाबा अंदर पहुंचा तो देखकर दंग रह गया कि पूरी गुफा सोना-चांदी और जेवरातों से भरी हुई हैं। अशर्फियों का डेर लगा हुआ है।

अलीबाबा ने कुछ माल समेटा और घर आ गए। पत्नी मरजीना को लगा कि अलीबाबा ने कहीं डाका डाल दिया। उसे भरोसा दिलाने के लिए अलीबाबा को पूरी कहानी सुनाना पड़ी। दोनों ने तय किया कि माल तोलकर सुरक्षित स्थान पर छुपाकर कर रख दिया जाए। तोलने के लिए तराजू लेने मरजीना ने अलीबाबा को भाई कासिम के पास भेज दिया। कासिम की पत्नी को गरीब अलीबाबा के तराजू मांगने पर शंका हुई। उसने चुपचाप से गोंद तराजू के नीचले हिस्से में चिपका दी। तराजू वापस लौटी तो उसके नीचे अशर्फी चिपकी हुई थी। कासिम घर आया तो पूरा किस्सा पत्नी ने उसे सुनाया और कहा कि अलीबाबा के हाथ खजाना लग गया है।   कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती है।

कासिम डरा-धमका कर दरवाजे का राज जान लेता है। कासिम माल भरने के लिए गधे लेकर गुफा में घुस जाता है। अपार संपत्ति देखकर वह यह भूल गया कि दरवाजा खोलकर बाहर कैसे जाना है? अचानक चोर वापस आते हैं गुफा में गधे देखकर कासिम की तलाश करते हैं और मार डालते हैं। कासिम घर नहीं पहुंचता तो उसकी पत्नी अलीबाबा को लेकर गुफा में जाती हैं। वहां कासिम मरा हुआ मिला। कासिम का शव और गधे लेकर अलीबाबा गुफा से बाहर आ गया। चोर वापस पहुंचे तो गधे वहां नहीं थे। वे समझ गए कि दरवाजे का राज कोई और भी जानता है। चोरों ने नगर में तलाश शुरू कर दी। अलीबाबा होशियार था। उसे पता था कि कासिम की मौत की खबर बाहर गई तो चोर उसे भी नहीं छोड़ेगें। वह आंखों पर पट्टी बांधकर एक दर्जी घर लाया और कासिम का शव सिलवा दिया। चोरों को इसकी भनक लग गई। दर्जी से घर बताने को कहा। उसने कहा कि आंख पर पट्टी बांधकर कदम गिनकर वहां तक पहुंचा सकता। दर्जी ने अलीबाबा के घर तक पहुंचा दिया। चोरों ने घर के सामने निशान लगा दिया और अपने सरदार को बुलाने चले गए। मरजीना निशाना देखकर समझ गई कि गडबड़ है। उसने सभी घरों पर एक जैसा निशान लगा दिया। सरदार ने नई योजना बनाई। वह चालीस घड़े लेकर मुसाफिर के तौर नगर में आया। अलीबाबा के घर में रूकने की जगह हासिल कर ली। घड़ों चोर छुपे बैठे थे। मरजीना ने घड़ों के अंदर हलचल महसूस की तो उसे माजरा समझ में आ गया। उसने तत्काल उबलता तेल घड़ों में डाल दिया। चोर वहीं मर गए। सरदार बचा था। अलीबाबा ने उसे खत्म कर दिया।

इसके बाद अलीबाबा को जब भी धन की जरूरत पड़ी वह गुफा से निकाल लाता। उसका पूरा जीवन बहुत बढ़िया निकला। बचपन में सुनी इस कहानी के याद आने की वजह एट्रोसिटी एक्ट को लेकर आया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वह बयान था, जिसमें उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी जांच के बगैर नहीं होगी? एट्रोसिटीज एक्ट पर आया बयान खुल जा सिम-सिम की तरह नहीं हो सकता है। किसी के कह देने भर से पुलिस मामला दर्ज करने के बाद गिरफ्तार करने न जाए ऐसा संभव ही नहीं है।

संसद में हाल ही में एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन कर जो प्रावधान लागू किए हैं,वे ऐसे नहीं है जो किसी सामान्य प्रशासनिक आदेश से अमल में आने से रोके दिए जाएं। मुख्यमंत्री को शायद यह लगता है कि उनके बयान पर लोग भरोसा कर लेंगे? मुख्यमंत्री को यहां खजाना सामान्य वर्ग के वोटर के रूप में सामने दिखाई दे रहा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी सामने आने के बाद शायद सरकार को लगा होगा कि यह सही वक्त है जब खुल जा सिम-सिम कहकर दरवाजा खोला जा सकता है और सुरंग के अंदर जाकर खजाने को अधिकार में लिया जा सकता है। खजाने के साथ सुरक्षित बाहर आने का मंत्र यदि याद नहीं आता है तो स्थिति अलीबाबा के भाई कासिम जैसी हो जाती है।

संसद ने कानून में संशोधन के जरिए उस स्थिति को पुन: बहाल कर दिया जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण निष्प्रभावी हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनावाई के बाद अपने आदेश में दो महत्वपूर्ण बातें कहीं थीं। सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी सक्षम अधिकारी से अनुमति के बाद ही होगी। जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है उनकी गिरफ्तारी एडिशनल एसपी की मंजूरी के बाद ही होगी। किसी भी शिकायत पर तुरंत एफआईआर न कराने का आदेश भी कोर्ट ने दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश विभिन्न सरकारों द्वारा पेश किए गए उन आकंडों के बाद दिया था, जिनमें जांच के बाद यह तथ्य सामने आए थे कि दर्ज कराया गए मामला झूठे थे।

2 अप्रैल के भारत बंद की घटना के बाद केन्द्र सरकार ने कानून में संशोधन कर हाईकोर्ट के अग्रिम जमानत देने के अधिकार को भी समाप्त कर दिया। सरकार ने शिकायत मिलते ही एफआईआर दर्ज करने की पुरानी व्यवस्था को भी बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन में विशेष कोर्ट के मजिस्ट्रेट के लिए भी कुछ विशेष हिदायतें दी थीं। एट्रोसिटीज एक्ट का कानून तीन दशक पुराना है। सुप्रीम कोर्ट में मामला वर्ष 2015 में किए गए संशोधनों के कारण पहुंचा था। कानून में संशोधन के जरिए कई नए प्रावधान भी जोड़े गए थे। उसमें जातिसूचक शब्दों के अलावा हाल ही में घटित अपराधों के ट्रेंड को भी ध्

आधार विधेयक धन विधेयक के रूप में पारित, उठ खड़े हुए कई सवाल

उच्चतम न्यायालय ने ‘आधार’ कानून को संसद में ‘धन’ विधेयक के रूप में पारित कराये जाने के औचित्य पर 2 मई को सवाल खड़े किये।
केंद्र सरकार की ओर से एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि आधार कानून पारित किये जाने का एक मात्र उद्देश्य सही लाभार्थियों तक सब्सिडी का लाभ पहुंचाना है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इस पर संविधान पीठ ने आधार कानून की धारा 57 का जिक्र किया, जिसके तहत आधार कार्ड को न केवल सरकार बल्कि किसी कॉरपोरेट या व्यक्ति द्वारा पहचान दस्तावेज के रूप में इस्तेमाल करने की बात की गयी है।
श्री वेणुगोपाल ने कहा कि इस कानून के कई अलग-अलग प्रावधान हो सकते हैं, लेकिन इसकी व्यापकता के मद्देनजर आधार कानून संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक की परिभाषा के दायरे में आता है।


एटर्नी जनरल ने आधार कानून की धारा सात, 24 और 25 का उल्लेख करते हुए कहा कि ये धाराएं संचित निधि से सीधे तौर पर जुड़ी हैं।
संविधान पीठ आधार की अनिवार्यता से संबंधित याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य जयराम रमेश की याचिका भी शामिल है, जिन्होंने आधार कानून को मनी बिल के रूप में पारित कराये जाने को चुनौती दी है।


गौरतलब है कि 11 मार्च 2016 को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आधार विधेयक को धन विधेयक करार देते हुए इसे निचले सदन से पारित करा दिया था और बाद में इसे राज्यसभा भेज दिया गया था। ऊपरी सदन ने 16 मार्च 2016 को कुछ संशोधनों के साथ विधेयक निचले सदन को भेज दिया था। लोकसभा ने ऊपरी सदन के संशोधनों को खारिज करते हुए इसे धन विधेयक के रूप में पारित कर दिया।

साढ़े चार साल बाद आसाराम दोषी करार

नाबालिग शिष्या से दुष्कर्म के मामले में आसाराम को दाेषी करार दिया गया है। विशेष एससी-एसटी कोर्ट के जज मधुसूदन शर्मा ने 25 अप्रैल सुबह सेंट्रल जेल में कोर्ट लगाकर अपना फैसला सुनाया। जोधपुर की जेल में बंद आसाराम के दो सहयोगियों को भी दोषी ठहराया गया। सजा का एलान बुधवार ही हो सकता है। फैसले और सजा के खिलाफ आसाराम राजस्थान हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। आसाराम को कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है। प्रावधान उम्रकैद तक का है। इंदिरा गांधी के हत्यारों, आतंकी अजमल आमिर कसाब और डेरा प्रमुख गुरमीत राम-रहीम के केस के बाद ये देश का चौथा ऐसा बड़ा मामला है, जब जेल में कोर्ट लगी और वहीं से फैसला सुनाया गया। पॉक्सो एक्ट के तहत भी ये पहला बड़ा फैसला है।
पीड़ित लड़की का अपने बयान पर टिके रहना सबसे बड़ी बात
दुष्कर्म की शिकार लड़की उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली है। आसाराम के समर्थकों ने उसे और उसके परिवार को बयान बदलने के लिए बार-बार
धमकाया। उत्तर प्रदेश से बार-बार जोधपुर आकर केस लड़ने के लिए उसके पिता को ट्रक तक बेचने पड़े।
आसाराम के खिलाफ गवाही देने वाले नौ लोगों पर हमला हुआ। तीन गवाहों की हत्या तक हुई। जान गंवाने वालों में लड़की के परिवार के करीबी दोस्त भी
थे। कोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिशें हुईं। जांच अधिकारी को बचाव पक्ष के वकीलों ने बार-बार कोर्ट में बुलवाया। एक गवाह को 104 बार बुलाया गया।
आसाराम की तरफ से लड़की पर अपमानजनक आरोप लगाए गए। ये तक कहा गया कि मानसिक बीमारी के चलते लड़की की पुरुषों से अकेले मिलने की
इच्छा होती है। फिर भी 27 दिन की लगातार जिरह के दौरान पीड़ित लड़की अपने बयान पर कायम रही। उसने 94 पन्नों में अपना बयान दर्ज कराया।
आसाराम के वकीलों ने पीड़िता को बालिग साबित करने की हर मुमकिन कोशिश की। लेकिन उम्र पर संदेह की कोई जायज वजह नहीं मिली।
जांच अधिकारी ने भी 60 दिन तक हर धारा पर ठोस जवाब दिए। 204 पन्नों में बयान दर्ज हुए।
वह वजह, जिनके चलते दोष साबित हुआ
1) जहां लाखों लोगों की आस्था जुड़ी होती है, उसका अपराध ज्यादा गंभीर माना जाता है।
2) जिसके संरक्षण में नाबालिग रहता है, वही उसका शोषण करे तो और भी संगीन है।
 सज़ा ज़रूर मिलेगी 
1.  पॉक्सो एक्ट 2012 में नाबालिग की उम्र 16 से 18 हो गई, पीड़िता 17वें साल में थी।
2. द क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट 2013 में दुष्कर्म की परिभाषा बदल गई, इसलिए    376 लगी।
3. धाराएं ऐसी हैं कि कम से कम 10 साल की सजा तो होगी ही, उम्रकैद के भी    प्रावधान।
4. गुजरात जेल में ट्रांसफर होगा,वहां ट्रायल पेंडिंग होने से बाहर आने की उम्मीद कम।