Home Tags कोर्ट से जुडी बड़ी ख़बरें पढ़ें सबसे पहले

Tag: कोर्ट से जुडी बड़ी ख़बरें पढ़ें सबसे पहले

प्रदेश कार्यालय में विराजे भगवान श्री गणेश
मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष ने की पूजा-अर्चना

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय पं.दीनदयाल परिसर के सामने स्थित नए कार्यालय परिसर में गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई।

मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद श्री विष्णुदत्त शर्मा ने विधि विधान से पूजा-अर्चना के साथ भगवान गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की।

पार्टी के नए कार्यालय परिसर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापना के उपरांत आरती एवं प्रसाद वितरण किया गया।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री विष्णुदत्त शर्मा ने प्रदेशवासियों एवं पार्टी कार्यकर्ताओं को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भगवान गणेश सभी का मंगल करें

प्रदेशवासियों के जीवन में सुख समृद्धि लाएं।इस अवसर पर प्रदेश शासन के मंत्री श्री ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह, प्रदेश महामंत्री श्री भगवानदास सबनानी, श्री सरदेंदू तिवारी, प्रदेश कार्यालय मंत्री डॉ. राघवेन्द्र शर्मा, प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री लोकेन्द्र पाराशर, किसान मोर्चा के अध्यक्ष श्री दर्शन सिंह चौधरी, पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष श्री नारायण सिंह कुशवाह,

प्रदेश प्रवक्ता सुश्री नेहा बग्गा,

सोशल मीडिया विभाग

के प्रदेश संयोजक श्री अभिषेक शर्मा, आईटी विभाग के

प्रदेश संयोजक श्री अमन शुक्ला, मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष श्री आशुतोष तिवारी, मध्यप्रदेश रोजगार एवं कौशल विकास बोर्ड के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र शर्मा, श्री किशन सूर्यवंशी,

श्री विकास विरानी, श्री विकास बोंद्रिया, श्री राहुल राजपूत, श्री सतीष विश्वकर्मा, श्री जगदीश यादव, श्री राजेन्द्र गुप्ता, श्री सुनील पाण्डे, श्री राजेश हिंगोरानी,

श्री लीलेन्द्र मारण, श्री अजय पाटीदार, श्री राकेश शर्मा, श्रीमती वंदना पटेल, श्री सुनील चौहान, श्री प्रयागराज रघुवंशी, श्री गीत धीर, श्रीमती ममता मीणा सहित कार्यालय परिवार के सदस्य उपस्थित रहे।

केंद्र सरकार बताये कैसे हुई राफेल सौदे पर डील,बंद लिफाफे में माँगा जवाब : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से फ्रांस के साथ हुई राफेल एयरक्राफ्ट डील पर जवाब मांगा। केंद्र से पूछा कि सरकार ने कैसे राफेल डील की, इसके बारे में पूरी जानकारी 29 अक्टूबर तक सीलबंद लिफाफे में दी जाए। इस संबंध में एक जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इस पर अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोेगोई की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मामले में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला किया है।

खंडपीठ ने कहा कि वह इस समय केन्द्र सरकार को कोई नोटिस जारी नहीं कर रही है। इस याचिका में फ्रांस की कंपनी दसाल्ट द्वारा रिलायंस को दिए गए ठेके की जानकारी भी मांगी गई है। गौरतलब है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर कांग्रेस भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है।

कांग्रेस का कहना है कि केन्द्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार 1670 करोड़ रुपये प्रति राफेल की दर से इन विमानाें को खरीद रही है, जबकि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में इनकी कीमत 526 करोड़ रुपये प्रति विमान निर्धारित की गई थी।

मोदी के कहने पर रिलायंस को साझेदार बनाया

राफेल सौदे पर कांग्रेस लगातार केंद्र सरकार को घेर रही है। पिछले कई दिनों से कांग्रेस और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार में हुए राफेल सौदे पर सवाल उठाया है।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद का जो सौदा किया है, उसका मूल्य पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में विमानों की दर को लेकर जो सहमति बनी थी उसकी तुलना में बहुत अधिक है। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने यह भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौदे को बदलवाया और एचएएल से ठेका लेकर रिलायंस डिफेंस को दिया गया।

फर्ज़ी वोटर मामले में कमलनाथ की याचिका की सुनवाई 27 सितम्बर तक टली

सुप्रीम कोर्ट फर्ज़ी वोटर मामले में कमलनाथ की याचिका पर 27 सितंबर को सुनवाई करेगा। कमलनाथ ने मध्यप्रदेश की वोटर लिस्ट में बड़ी संख्या में फर्ज़ी वोटर होने की बात कही थी। कमलनाथ की उस याचिका पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया था।

अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि वो कांग्रेस और उसके नेताओं के बताए तरीकों के अनुसार देश में चुनाव कराने के लिए बाध्य नहीं है। आयोग ने ये भी कहा था कि कांग्रेस एक खास अंदाज में चुनाव कराने के दिशा-निर्देश जारी न करवाए, क्योंकि चुनाव आयोग पहले से ही कानूनी प्रावधान के तहत चुनाव कराता है। आयोग का कहना है कांग्रेस की याचिका आधारहीन है और इसलिए सुप्रीम कोर्ट कमलनाथ की याचिका खारिज करे।

सलमान खान को मिली राहत,बिना किसी अनुमति के जा पाएंगे विदेश

जोधपुर कोर्ट ने काला ह‍िरण मामले में सलमान खान को आदेश द‍िया था कि उन्‍हें विदेश जाने से पहले अनुमति लेनी होगी। अदालत ने गुरुवार को सलमान खान को राहत देते हुए उन्हें हर बार विदेश यात्रा पर जाने से पहले अनुमति लेने से मुक्त कर दिया है। सलमान खान के वकील एच.एम. सारस्वत ने कहा, “अब सलमान खान को विदेश जाने के लिए हर बार न्यायालय की अनुमति नहीं मांगनी पड़ेगी।”

सारस्वत का कहना है कि सलमान को विदेश जाने में राहत तो मिली है लेकिन, उन्हें यात्रा के समय की अवधि, तारीख, गंतव्य स्थल, रुकने का स्थान, यात्रा कार्यक्रम की जानकारी अदालत को देनी होगी। बचाव पक्ष ने सत्र अदालत में ऐसी ही एक याचिका दायर कर जमानत की शर्तो के उस आदेश को बदलने की मांग की थी। जिसके अनुसार खान को विदेश जाने के लिए हर बार अदालत की अनुमति मांगनी पड़ती है। सारस्वत ने कहा, हमने यह प्रार्थनापत्र वापस ले लिया था और गुरुवार को एक नया प्रार्थना पत्र दिया जिसे न्यायाधीश चंद्र कुमार सोंगारा ने स्वीकार कर लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने फन्ने खां की रिलीज पर रोक से किया इंकार

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को अभिनेता अनिल कपूर और एश्वर्या राय बच्चन अभिनीत फिल्म ‘फन्ने खां’ की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की दो सदस्यीय पीठ ने निर्माता वासु भगनानी की याचिका को खारिज कर दिया है। भगनानी ने इस फिल्म के तीन अगस्त को रिलीज होने के खिलाफ अपील की थी, जिसमें राजकुमार राव भी अहम भूमिका में हैं।

राइट्स को लेकर उठा है विवाद

निर्माता भगनानी ने आरोप लगाया कि फिल्म के भारत में वितरण अधिकार उनकी कंपनी पूजा एंटरटेनमेंट एंड फिल्म्स को दिए गए थे। पूजा फिल्म्स ने कहा कि वह वितरण के मुख्य अधिकार की मालिक है और इस मामले में सह-निर्माता क्रिएज एंटरटेनमेंट के साथ उन्होंने दिसम्बर, 2017 में समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए थे।

इसमें पूजा फिल्म्स का दावा है कि फिल्म का एकमात्र वितरण अधिकार उसे दिया गया था और इसके लिए उसने 10 करोड़ रुपये में से 8.50 करोड़ रुपये की राशि भी दी थी। फिल्म की रिलीज के एक सप्ताह पहले बाकी के पैसे देने थे। हालांकि, दूसरों के साथ चर्चा के बाद इन अधिकारों को सह-निर्माता के साथ बांट लिया गया था।इस मामले दो अन्य याचिकाएं दिल्ली और बॉम्बे उच्च न्यायालय के पास पहले से ही लंबित हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब ‘फन्ने खां’ शुक्रवार को ही रिलीज होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने जंतर-मंतर पर लगी रोक हटाई,शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोगो का मौलिक अधिकार

उच्चतम न्यायालय में सोमवार को न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने जंतर-मंतर, बोट क्लब तथा अन्य जगहों पर धरना और प्रदर्शन पर लगी रोक को हटाने का आदेश दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि धरना और प्रदर्शन पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती। बोट क्लब और जंतर-मंतर पर प्रदर्शनों से रोक हटाई जाये। इसी के साथ न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को नये दिशा-निर्देश बनाने को कहा है।

जंतर-मंतर पर कब लगी थी रोक
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने अक्टूबर 2017 को जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन पर रोक लगायी थी। दिल्ली पुलिस ने भी मध्य दिल्ली में हमेशा के लिए धारा 144 लागू कर दी थी। एनजीटी के आदेश के बाद पिछले साल 10 अक्टूबर से ही जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन पर पुलिस ने रोक लगा दी थी। एनजीटी ने जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन पर रोक लगाते हुए कहा था कि गाय संरक्षण को आधार बनाकर गोवंश और बैलगाड़ी लाने से इस इलाके में रह रहे नागिरकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जंतर- मंतर प्रदर्शन स्थल न होकर प्रदर्शनकारियों के लिए जंग के मैदान में तब्दील हो गया है। इसके अलावा इलाके में प्रदर्शनकारियों के गंदगी फैलाने का स्थायी स्थल बन गया है।

मजदूर संगठनों ने दी एनजीटी के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती

मजदूर, किसान, कर्मचारी संगठन और अन्य संगठनों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर एनजीटी के आदेश को चुनौती दी थी और मध्य दिल्ली में शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन करने की इजाजत देने की मांग की थी। याचिकाओं में कहा गया था कि धरना-प्रदर्शनों पर रोक से लोगों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।

स्वराज इंडिया के अनुपम ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को लोकतंत्र और नागरिकों की जीत बताते हुए कहा कि जंतर- मंतर ने दशकों से हमारे लोकतंत्र के सेफ्टी वाल्व की तरह काम किया है। जब कोई साथ न दे तो देश के कोने-कोने से शोषित, पीड़ित, वंचित नागरिकों और समूहों ने न्याय की आस में यहीं आकर अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए राजधानी में स्थल का होना अतिआवश्यक है लेकिन 10 महीनों से इस अधिकार को छीन लिया गया था। अनुपम ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के रोक हटा लेने के बाद जंतर-मंतर और बोट क्लब और दिल्ली के अन्य इलाकों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो सकेंगे।

ताजमहल एफिल टॉवर से है ज्यादा खूबसूरत,विदेशी मुद्रा समस्या का कर सकता है समाधान

उच्चतम न्यायालय ने आगरा के ऐतिहासिक ताज महल को संरक्षित करने के केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकारों के तरीकों पर गहरी नाखुशी जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने ताज महल के रखरखाव को लेकर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा, ” ताज महल एफिल टॉवर से ज्यादा खूबसूरत है और यह देश की विदेशी मुद्रा संबंधी समस्या का समाधन कर सकता है लेकिन उसकी वर्तमान स्थिति और दशा दयनीय है। इसका संरक्षण, सुरक्षा और रखरखाव जिस तरीके से किया जा रहा है उससे ताज महल की दशा बिगड़ती जा रही है।”

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली खंड पीठ ने ताज महल के उचित रखरखाव संबंधी एक याचिका पर सुनवाई की और कहा कि-या तो हम ताज महल को बंद कर दें अथवा आप उसे ढहा दीजिए या फिर उसकी उचित देखरेख कीजिए। न्यायालय ने कहा, ” एफिल टॉवर काे देखने आठ करोड़ लोग देखने जाते हैं। हमारा ताज महल उससे ज्यादा खूबसूरत है। यदि आप इसकी उचित देखरेख करें तो आपकी विदेशी मुद्रा की समस्या का समाधान हो सकता है। ”

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि वह ताज महल को संरक्षित और सुरक्षित करने से संबंधित दृष्टि पत्र प्रस्तुत करे। न्यायालय ने केन्द्र सरकार से भी कहा कि वह इस संबंध में अपना विवरण पेश करे। न्यायालय ने ताज ट्रेपेजियम जोन के अध्यक्ष से कहा कि वह जोन में औद्योगिक इकाइयों के विस्तार पर रोक लगाने के उसके आदेश के उल्लंघन के बारे में जानकारी दें। इस मामले में 31 जुलाई से नियमित सुनवाई होगी।

गौरतलब है कि मई में न्यायालय ने कहा था कि ताजमहल पीला पड़ रहा है और अब वह प्रदूषण के कारण भूरा और हरा हो रहा है। मुगल बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल की याद में सत्रहवीं शताब्दी में बनाया गया ताज महल दुनिया के सात अजूबों में शामिल है। इसे देखने के लिए दुनिया भर से लाखों लोग प्रतिवर्ष आगरा जाते हैं। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है।

समलैंगिकता: केंद्र ने धारा 377 मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ा

समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया जाए या नहीं, केंद्र सरकार ने यह फैसला पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया है। आईपीसी की धारा 377 को हटाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई जारी रही। इसमें केंद्र की तरफ से एडीशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र इस मामले को अदालत के विवेक पर छोड़ती है। इस संबंध में सरकार की तरफ से एक हलफनामा भी पेश किया गया।

इससे पहले मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि समलैंगिकता सिर्फ यौन संबंधों की ओर झुकाव का मसला है। इसका लैंगिकता से कोई लेना-देना नहीं है। आईपीसी की धारा 377 में दो समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से शारीरिक संबंधों को अपराध माना गया है और सजा का प्रावधान है। दायर याचिकाओं में इसे चुनौती दी गई है।

बुधवार को केस की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा, “समलैंगिकता से किसी शख्स के भविष्य और तरक्की पर असर नहीं पड़ता। ऐसे लोगों ने आईआईटी और प्रशासनिक सेवाओं जैसी कई बड़ी परीक्षाएं पास की हैं। लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों को कोर्ट, संविधान और देश की ओर से सुरक्षा मिलनी चाहिए। धारा 377 एलजीबीटी समाज के बराबरी के अधिकार को खत्म करती है।”

क्या है समलैंगिकता का मामला :

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जुलाई, 2009 को वयस्कों के बीच समलैंगिकता को वैध करार देते हुए उसे अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की बात कही थी। फैसले में कहा था कि 149 साल पुराने कानून ने इसे अपराध बना दिया था जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिक संबंधों को गैरकानूनी करार दिया। फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। इसे भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद क्यूरेटिव पिटीशन (एक तरह की पुर्नविचार याचिका जिसे आमतौर पर जज अपने चेंबर में ही सुनते हैं) दायर की गईं। इनमें आईआईटी के 20 पूर्व और मौजूदा छात्रों ने दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला बहाल करने की मांग की गई है।

5 जजों की बेंच को जनवरी में सौंपा गया था मामला:

सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को समलैंगिकता मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा हैं। नाज फाउंडेशन और कई प्रतिष्ठित लोगों द्वारा दायर याचिकाओं में भी 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे लोग जो अपनी पसंद से जिंदगी जीना चाहते हैं, उन्हें कभी भी डर की स्थिति में नहीं रहना चाहिए। स्वभाव का कोई निश्चित मापदंड नहीं है। नैतिकता उम्र के साथ बदलती है। सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, “ये सामान्य बात नहीं है। हम इस पर खुशी नहीं मना सकते। ये हिंदुत्व के खिलाफ है। अगर ये ठीक हो सकता है तो हमें मेडिकल शोध पर खर्च करना चाहिए। सरकार को इस मामले की सुनवाई के लिए 7 या 9 जजों की बेंच बनानी चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्मियों की पुनर्विचार याचिका खारिज की, दोषियों की फांसी की सजा बरकरार

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 4 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। दोषियों की ओर से दायर की गई पुनर्विचार याचिका कोर्ट ने सोमवार को खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा है। चार में से तीन दोषियों मुकेश सिंह (29), पवन गुप्ता (22) और विनय शर्मा (23) ने सजा के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह (31) ने याचिका दायर नहीं की।

क्या है 16 दिसंबर 2012 का मामला

16 दिसंबर 2012 की रात चलती बस में दोषियों ने दक्षिण दिल्ली के एक इलाके में पीड़िता से दुष्कर्म किया था और उसे बुरी तरह जख्मी करने के बाद सड़क पर फेंक दिया था। सिंगापुर में इलाज के दौरान निर्भया की 29 दिसंबर 2012 को मौत हो गई थी। इस दुष्कर्म मामले में दोषियों की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2017 को मुहर लगा दी थी। तिहाड़ जेल में बंद एक आरोपी राम सिंह ने कथित रूप से 11 मार्च 2013 को आत्महत्या कर ली थी। दुष्कर्मियों में एक नाबालिग भी था। उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने दोषी करार दिया था। वह 3 साल की सजा काटकर बाहर आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिए फैसले में घटना को नृशंस और क्रूर बताया था। ये भी कहा था कि घटना से सदमे की सुनामी आ सकती है जो सभ्य समाज को खत्म कर देगी।

ताजमहल दुनिया के 7 अजूबों में से एक, मस्जिद में नहीं कर सकते नमाज अदा:सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ताजमहल परिसर में मौजूद मस्जिद में नमाज अदा करने से इनकार कर दिया। जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की खंडपीठ ने कहा कि ताजमहल दुनिया के 7 अजूबों में से एक है। लिहाजा लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए कि वहां नमाज न पढ़ी जाए। इसके अलावा भी अन्य कई मस्जिद है,लोग वहां जाकर नमाज पढ़ सकते हैं। 24 जनवरी 2018 को आगरा के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) ने एक ऑर्डर दिया था,जिसमें उन्होंने कहा था कि जो लोग आगरा के निवासी नहीं हैं, उन्हें ताजमहल परिसर में स्थित मस्जिद में सुरक्षा कारणों से जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

इस फैसले के खिलाफ ताजमहल मस्जिद प्रबंधक समिति के अध्यक्ष इब्राहीम हुसैन जैदी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जैदी ने कोर्ट से कहा था कि आगरा में पूरे साल कई पर्यटक आते हैं, लिहाजा एडीएम का ताजमहल परिसर में बनी मस्जिद में नमाज अदा करने पर रोक का फैसला अवैध है।