मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले से जुड़े आरोपियों की कड़ी मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग से जुड़ी होने का मामला उजागर होने के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर विपक्ष के आरोपों से घिरते जा रहे हैं। विपक्ष के आरोपों के जवाब में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वे गलती कर सकते हैं, लेकिन बेईमानी नहीं। मुख्यमंत्री ने यह सफाई विपक्ष के आरोपों के जवाब में दी है। मुख्यमंत्री चौहान की यह सफाई उन्हें पाक-साफ करने के लिए पर्याप्त नहीं मानी जा सकती है। व्यापमं के घोटाले में मुख्यमंत्री चौहान की सरकार कई तरह के आपराधिक षडयंत्र में शामिल दिखाई दे रही है। बड़ा षडयंत्र तो मामले जांच के लिए सीबीआई को न देने का है। व्यापमं घोटाले के आरोपी जगदीश सागर के पास से एसटीएफ द्वारा जब्त की गई डायरी यह गवाही दे रही थी कि आरोपियों ने मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग में भी मिलीभगत कर परीक्षा पास कराई है।
सीबीआई ने कहा कि वो आरटीआई कानून से बाहर है,नहीं दी जानकारी
व्यापमं घोटाले के आरोपी जगदीश सागर की डायरी में उन लोगों के नाम थे, जिनका विभिन्न परीक्षाओं में चयन कराने की पेशगी अथवा एडवांस रकम उसके द्वारा ली गई थी। इस डायरी में कोड वर्ड में उम्मीदवार के नाम के आगे रिफरेंस भी लिखा था। रिफरेंश के तौर पर मामा और व्हीआईपी जैसे शब्दों का उपयोग किया गया था। लोकसेवा आयोग में जिम्मेदार पद पर सेवा दे चुके एक आईएएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आयोग में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के पास जो सिफारिशें आती थीं,उनके नाम गोपनीय शाखा के अधिकारियों को भेज दिए जाते थे। गोपनीय शाखा रिजल्ट तैयार करने वाली कंप्यूटर कंपनी को यह नाम दे देती थी।
मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग के पूर्व सचिव एवं सागर के डिवीजनल कमिश्नर मनोहर दुबे ने कहा कि एसटीएफ ने जिनके नाम जांच रिपोर्ट में लिखे थे,उन उम्मीदवारों को हमने परीक्षा के अगले चरणों से बाहर कर दिया था। बाद में कुछ लोग कोर्ट आर्डर से इंटरव्यू में शामिल हुए थे। पीएससी परीक्षा का यह घोटाला वर्ष 2012 की परीक्षा का है। एसटीएफ की जांच के बाद पीएससी ने परीक्षा के अलग-अलग चरणों में 23 उम्मीदवारों को लीक पर्चो से लाभ मिलने की बात मानी थी। एसटीएफ की जांच के आधार पर दो साल पहले ही एक अभ्यर्थी ने सीबीआई को लिखित शिकायत कर पीएससी मामले में जांच की मांग की थी। बाद में सीबीआई ने आरटीआई से खुद को अलग बताते हुए अभ्यर्थी को किसी तरह की जानकारी देने से मना कर दिया। जांच लंबित होने के बाद भी डेढ़ साल बाद पीएससी ने रिजल्ट घोषित कर दिया।
पुलिस ने 2014 में पीएससी के आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी की परीक्षा के पर्चे लीक करने का मामला भी पकड़ा था। गिरोह के सदस्यों ने कबूला था कि उन्होंने पीएससी-2012 की प्री व मेंस के पर्चे भी लीक किए थे। राज्यसेवा परीक्षा के कुल सात पर्चे, जिनमें सामान्य अध्ययन के दो, हिंदी का एक, लोक प्रशासन के दो व समाजशास्त्र के दो पर्चे लीक करने की बात गिरोह के सदस्यों ने एसटीएफ के सामने कबूली थी।
सीबीआई ने एफआईआर दर्ज करने से किया था इनकार
सितंबर 2014 में स्पेशल कोर्ट में पेश किये गए चालान में एसटीएफ के जांच अधिकारी शैलेन्द्र सिंह जादौन ने यह स्वीकार किया कि वर्ष 2012 की पीएससी परीक्षा के जो पर्चे लीक हुए थे,वे प्रश्नपत्र से मेल खा रहे थे। एसटीएफ की जांच के आधार पर मुकेश राणे नामक एक कैंडिडेट ने सीबीआई में आवेदन देकर एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच करने का आग्रह किया था। यह वाकया दो साल पहले का है। सीबीआई के पास जाने की वजह उसके द्वारा जारी व्यापमं की जांच थी।
सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर व्यापमं घोटाले की जांच कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट का आदेश व्यापमं से जुड़े सभी मामले सीबीआई को सौंपने के थे। लेकिन, शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने कुछ चुनिंदा मामले जांच के लिए ट्रास्फर किए। इनमें वे मामले नहीं थे, जिनमें मुख्यमंत्री के परिजन अथवा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोगों पर गलत तरीके से नियुक्ति अथवा चयन कराने का आरोप लग रहा था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केके मिश्रा ने कहा कि जांच में क्लीन चिट मिले बगैर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकारी खर्च पर मेरे खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज करा दिया।
सागर की डायरी में दर्ज मामा क्या शिवराज सिंह चौहान हैं
शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2006 से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। व्यापमं का घोटाला अगस्त 2013 में उजागर हुआ था। राज्य में लाडली लक्ष्मी योजना लागू होने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने जनता के बीच अपनी ब्रांडिग मामा के तौर पर करना शुरू कर दिया था। लाडली लक्ष्मी योजना वर्ष 2007 में लागू की गई थी। वर्ष 2013 तक शिवराज सिंह चौहान मामा ब्रांड के तौर पर स्थापित हो गए थे। इसका लाभ उन्हें वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भी मिला था। जगदीश सागर पैसे लेकर व्यापमं और पीएससी की परीक्षाओं में सिलेक्शन कराता था।
डायरी में मामा कोड वर्ड लिखा होना कई शंकाओं को जन्म देता है। यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीएससी में सिलेक्शन कराने के लिए जगदीश सागर को नहीं कहा होगा? यह सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है कि पीएससी के पदाधिकारियों को की गईं सिफारिशों का ब्यौरा भी जगदीश सागर अपने रिकार्ड में रखता होगा? सागर की डायरी में दर्ज ब्यौरे से पता चला है कि उसने व्यापम ही नहीं मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग से राज्य सेवा का अफसर बनवाने के लिये भी सौदे किए थे। उसने 6 पदों के लिए 95 लाख में सौदे किए थे।
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ कहते हैं कि , ‘एमपी-पीएससी में फर्जीवाड़े के मामले 5 साल पहले भी सामने आए थे। अब मुख्य आरोपी की डायरी के जो तथ्य सामने आए हैं वे बहुत गंभीर हैं। पूरा प्रदेश जानता है कि मामा कौन है। इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए ताकि सच सामने आ सके।
व्यापमं में गिरफ्तार हो चुकें हैं कई रसूखदार
एसटीएफ के बाद सीबीआई ने भी जगदीश सागर को व्यापमं घोटाले का मुख्य आरोपी मान लिया। सागर को मुख्य आरोपी बनाए जाने के बाद भी सीबीआई ने उसके पास से बरामद हुए कागजातों की जांच पड़ताल नहीं की । सागर से बरामद हुई डायरी कुल सत्तर पन्ने की है। सत्तर पन्ने की यह डायरी इस घोटाले के पूरे रहस्य से पर्दा उठा सकती थी। एसटीएफ सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नियंत्रण में काम करती है। वर्तमान में एसटीएफ प्रमुख एसडब्ल्यू नकवी हैं। उन्हें यह जिम्मेदारी कुछ माह पूर्व ही दी गई है। इससे पूर्व एसके शाही एसटीएफ चीफ थे।
व्यापमं मामले में राज्य के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा कई माह जेल में रह चुके हैं। तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ भी एफआईआर की गई थी। मध्यप्रदेश के कई निजी मेडिकल कॉलेज के मालिक और उनके अधिकारी भी जेल भेजे गए थे। डॉक्टर सागर को इस घोटाले का मास्टरमाइंड माना गया है, वह अभी भी जेल में ही है। जांच एजेंसियां मुख्य रूप से पीएमटी और प्री-पीजी परीक्षा तक ही केंद्रित रहीं। पीएससी के मामलों में डायरी में कुछ सौदों के साथ कन्फर्म जैसे शब्द का भी उपयोग हुआ है। एक आबकारी इंस्पेक्टर पद के लिए 10 लाख में हुई डील में इसका उपयोग है, जिसमें पांच लाख रुपए एडवांस लेने की बात लिखी है। एक डील जो 18 लाख में अनारक्षित वर्ग के आवेदक के लिए हुई है, उसमें पद का जिक्र तो नहीं है लेकिन वीआईपी और मामाजी जैसे शब्द लिखे हुए हैं।
व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी डॉ. जगदीश सागर ने एमपी पीएससी के माध्यम से डिप्टी कलेक्टर, मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ), वाणिज्यिक कर अधिकारी (सीटीओ), आबकारी निरीक्षक बनवाने के भी सौदे किए थे। उसने छह सौदे 95 लाख में किए। डिप्टी कलेक्टर के लिए 20 लाख रु. में डील और 10 लाख एडवांस लेने की बात लिखी है। सीईओ और सीटीओ के लिए 15 लाख का उल्लेख है। इनके लिए आवेदक से आठ लाख लेना लिखा हैै। हर सौदे में 25 हजार रुपए नॉन रिफंडेबल के रूप में लेने का उल्लेख है। डायरी में आवेदक, उसके पिता का नाम, पता, शहर, मोबाइल नंबर भी लिखा है। आवेदक लड़का है या लड़की? वह किस कैटेगरी से है, यह भी लिखा है। इसी हिसाब से डॉ. सागर डील राशि तय करता था।