दिनेश गुप्ता
बहुजन समाज पार्टी लोकसभा में बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसका ऐलान भी कर दिया है। बसपा चुनाव मैदान में होगी तो इससे नुकसान कांग्रेस को होगा या भारतीय जनता पार्टी को ? यह एक ऐसा सवाल जिसका जवाब हर सीट पर अलग होगा। खासकर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद। हाल ही में संपन्न विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली है।उसका वोट प्रतिशत भी घट गया है। पिछले चुनाव में उसके दो विधायक चुने गए थे। राम बाई और संजीव सिंह कुशवाहा। संजीव सिंह कुशवाहा की राजनीति जहां दम वहां हम की रही। जब तक कांग्रेस की सरकार रही तब तक राम बाई और संजीव कुशवाहा दोनों ही कमलनाथ की सरकार को समर्थन देते रहे। सरकार जाने के बाद संजीव कुशवाहा भारतीय जनता पार्टी के साथ हो गए। चुनाव की घोषणा से पहले वे भाजपा में शामिल हुए लेकिन,टिकट नहीं मिली। वापस बसपा में जाना पड़ा। बसपा ने टिकट भी दी लेकिन,संजीव कुशवाहा चुनाव नहीं जीत पाए। बसपा की राजनीति इसी तरह की रही है। सुमावली में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला तो बसपा ने कुलदीप सिंह सिकरवार को टिकट दे दी।
कहने का आशय यह है कि बसपा का नेतृत्व अपने जनाधार का उपयोग निजी हितों के लिए करता आया है। शायद यही कारण है कि फूल सिंह बरैया को बसपा छोड़ना पड़ी। बसपा की मजबूती के लिए उन्होंने बहुत काम किया था। बसपा से जनाधार वाले जाटव नेताओं के चले जाने के कारण लगातार उसकी स्थिति कमजोर होती जा रही है। मध्यप्रदेश में नब्बे के दशक में बसपा का जनाधार तेजी से बढ़ा था। 1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा को दो सीटें मिलीं थीं। मध्यप्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था। कुल चालीस लोकसभा की सीटें थीं। इससे पहले हुए 1993 के विधानसभा चुनाव में बसपा को ने ग्यारह सीटों पर सफलता दर्ज कराई थी। विंध्य में बसपा का असर सबसे ज्यादा था। अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता सतना में तीसरे नंबर पर आ गए थे। रीवा में महारानी प्रवीण कुमारी चुनाव हार गईं थीं। बसपा का वोट सामान्य सीटों पर ज्यादा असर डालता है। 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 143, कांग्रेस ने 71 और बसपा ने सात सीटें जीती थीं। तब बीजेपी का वोट शेयर 37 प्रतिशत और कांग्रेस का 32 प्रतिशत था। बसपा ने 9 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। साल 2018 के चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी को 1 करोड़ 56 लाख 43 हजार 623 वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 696 वोट मिले थे. बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी बसपा ही थी। पार्टी राज्य में कुल मतों में से 19 लाख 11 हजार 642 वोट यानी 5.1 फीसदी वोट मिले थे।
2019 में बसपा ने सपा के साथ मिलकर लड़ा लोकसभा चुनाव
मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने लोकसभा का पिछला चुनाव गठबंधन बनाकर लड़ा था। लेकिन,दोनों ही दलों कोई सफलता नहीं मिल पाई थी। इस बार बसपा किसी भी तरह का गठबंधन नहीं बना रही है। यह माना जा रहा है कि वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए ही वह मैदान में रहेगी। पिछले लोकसभा चुनाव का अनुभव यही है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सपा से ज्यादा नुकसान बसपा के कारण हुआ। बसपा-सपा ने बालाघाट लोकसभा की सीट पर चुनाव उत्तर प्रदेश के कैराना की तर्ज पर लड़ा था। कंकर मुंजारे उम्मीदवार थे। वे नए फार्मूले में अपना पुराना वोट भी नहीं बचा पाए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में मुरैना की सीट ऐसी थी,जिस पर करतार सिंह भड़ाना की मौजूदगी से भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव जीत गए थे। बसपा को लोकसभा चुनाव में 2.4 प्रतिशत वोट ही मिले थे।
कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है दलित वोट
भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 82 सीटों में से 50 पर जीत हासिल की है, जो 2018 के चुनाव से 17 सीट ज्यादा है। भाजपा ने राज्य में एससी और एसटी समुदायों के बीच अपना आधार बढ़ाया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के वोटों के कारण ही बनी थी। ग्वालियर में हुआ वर्ग संघर्ष दलित वोटों को कांग्रेस के पक्ष में ले आया था। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 35 सीटें 33 जिलों के तहत आती हैं। इनमें से दो जिले सागर और उज्जैन में अनुसूचित जाति के लिए दो-दो सीटें सुरक्षित हैं।
बसपा की रणनीति से किसे लाभ?
बहुजन समाज पार्टी ने मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों को तीन अलग-अलग जोन बांटा है। तीनों जोन के लिए अलग-अलग प्रभारी हैं। इनमें मुख्य प्रदेश प्रभारी रामजी गौतम, प्रदेश प्रभारी मुकेश अहिरवार और प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल शामिल हैं। तीनों ही प्रभारी प्रदेश की सभी 29 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। बसपा ने जोन बनाए हैं वे ग्वालियर-मध्य क्षेत्र, रीवा-जबलपुर और मालवा-निमाड़-मध्य क्षेत्र-2 शामिल हैं।
रीवा-जबलपुर जोन में खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट और छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को शामिल किया गया है. जबकि ग्वालियर-मध्य क्षेत्र में मुरैना, भिंड ग्वालियर, गुना, राजगढ़, दमोह, बैतूल और होशंगाबाद शामिल हैं. इसी तरह मालवा-निमाड-मध्य क्षेत्र-2 में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, खरगोन, खंडवा, धार, भोपाल और विदिशा शामिल हैं।
सपा में भी है हलचल
समाजवादी पार्टी इस बार बहुजन समाज पार्टी के साथ नहीं है। वह भाजपा के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा है। इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच टकराव के हालात देखे गए थे। इसकी वजह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ थे। कमलनाथ यदि अखिलेश-वखिलेश का बयान नहीं देते तो शायद कांग्रेस-सपा के बीच दोस्ताना मुकाबला हो सकता था। कमलनाथ ने बयान दिया तो अखिलेश यादव ने अपनी गतिविधियां मध्यप्रदेश में बढ़ा दी। मध्यप्रदेश में सपा को वोट और सीट भले ही नहीं मिले लेकिन,अखिलेश यादव के अपमान के कारण यादव वोट जरूर भाजपा के साथ चले गए। यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा था।
चुनाव नतीजों के बाद इस तरह की बात सामने आ रही है कि कमलनाथ की दिलचस्पी सरकार बनाने में थी ही नहीं। लोकसभा चुनाव में क्या सपा-कांग्रेस के बीच कोई तालमेल हो पाएगा? यह बड़ा सवाल है। इसका जवाब अब तक इसलिए सामने नहीं है क्योंकि इंडिया गठबंधन की ओर से अब तक बंटवारे को लेकर अधिकृत तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। समाजवादी पार्टी अपनी तैयारी कर रही है। मध्यप्रदेश में एक बार फिर वह बालाघाट की सीट पर जोर लगा सकती है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया है। पार्टी के सभी जिलाध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्षों समेत 10 लोकसभा प्रभारियों को भी तत्काल प्रभाव से पद से हटा दिया है।
भाजपा में विद्यार्थी परिषद का दबदबा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वाले हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई बड़े नेता इसी पृष्ठभूमि के हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का बैकग्राउंड भी विद्यार्थी परिषद का ही है। कह सकते हैं कि सत्ता और संगठन में विद्यार्थी परिषद की पकड़ है। पार्टी में जो पदाधिकारी नियुक्त किए जा रहे हैं उनकी पृष्ठभूमि भी कहीं न कहीं विद्यार्थी परिषद की ही सामने आ रही है। हाल ही में मऊगंज जिला भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए राजेन्द्र मिश्रा विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आए हैं। मऊगंज उन चार जिलों में है जहां भाजपा ने अलग संगठनात्मक इकाई गठित की है। मैहर में मैहर भाजपा की कमान कमलेश सुहाने को सौंपी है। सुहाने सतना भाजपा संगठन में महामंत्री और कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। सितना से अलग हो कर मैहर के जिला बनने के बाद भाजपा संगठन का भी सतना से अलग होना तय था। सुहाने को यह जिम्मेदारी मिलने की संभावना भी प्रबल थी। हालांकि अमर पाटन विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत रामनगर के भाजपा नेता और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अरुण द्विवेदी के प्रयास भी चर्चा में थे। मैहर भाजपा को नया मुखिया मिलने के बाद अब यहां जल्दी ही कार्यकारिणी की भी घोषणा की उम्मीद जताई जा रही है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पावर गैलरी पत्रिका के मुख्य संपादक है. संपर्क- 9425014193