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कांग्रेस की चिंता दलित वोटर,बसपा के मैदान में होने से किसे नुकसान?

दिनेश गुप्ता
बहुजन समाज पार्टी लोकसभा में बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसका ऐलान भी कर दिया है। बसपा चुनाव मैदान में होगी तो इससे नुकसान कांग्रेस को होगा या भारतीय जनता पार्टी को ? यह एक ऐसा सवाल जिसका जवाब हर सीट पर अलग होगा। खासकर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद। हाल ही में संपन्न विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली है।उसका वोट प्रतिशत भी घट गया है। पिछले चुनाव में उसके दो विधायक चुने गए थे। राम बाई और संजीव सिंह कुशवाहा। संजीव सिंह कुशवाहा की राजनीति जहां दम वहां हम की रही। जब तक कांग्रेस की सरकार रही तब तक राम बाई और संजीव कुशवाहा दोनों ही कमलनाथ की सरकार को समर्थन देते रहे। सरकार जाने के बाद संजीव कुशवाहा भारतीय जनता पार्टी के साथ हो गए। चुनाव की घोषणा से पहले वे भाजपा में शामिल हुए लेकिन,टिकट नहीं मिली। वापस बसपा में जाना पड़ा। बसपा ने टिकट भी दी लेकिन,संजीव कुशवाहा चुनाव नहीं जीत पाए। बसपा की राजनीति इसी तरह की रही है। सुमावली में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला तो बसपा ने कुलदीप सिंह सिकरवार को टिकट दे दी।

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कहने का आशय यह है कि बसपा का नेतृत्व अपने जनाधार का उपयोग निजी हितों के लिए करता आया है। शायद यही कारण है कि फूल सिंह बरैया को बसपा छोड़ना पड़ी। बसपा की मजबूती के लिए उन्होंने बहुत काम किया था। बसपा से जनाधार वाले जाटव नेताओं के चले जाने के कारण लगातार उसकी स्थिति कमजोर होती जा रही है। मध्यप्रदेश में नब्बे के दशक में बसपा का जनाधार तेजी से बढ़ा था। 1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा को दो सीटें मिलीं थीं। मध्यप्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था। कुल चालीस लोकसभा की सीटें  थीं। इससे पहले हुए 1993 के विधानसभा चुनाव में बसपा को ने ग्यारह सीटों पर सफलता दर्ज कराई थी।  विंध्य में बसपा का असर सबसे ज्यादा था। अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता सतना में तीसरे नंबर पर आ गए थे। रीवा में महारानी प्रवीण कुमारी चुनाव हार गईं थीं। बसपा का वोट सामान्य सीटों पर ज्यादा असर डालता है। 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 143, कांग्रेस ने 71 और बसपा ने सात सीटें जीती थीं। तब बीजेपी का वोट शेयर 37 प्रतिशत और कांग्रेस का 32 प्रतिशत था। बसपा ने 9 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। साल 2018 के चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी को 1 करोड़ 56 लाख 43 हजार  623 वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 696 वोट मिले थे. बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी बसपा ही थी। पार्टी राज्य में कुल मतों में से 19 लाख 11 हजार 642 वोट यानी 5.1 फीसदी वोट मिले थे।
 2019 में बसपा ने सपा के साथ मिलकर लड़ा लोकसभा चुनाव
मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने लोकसभा का पिछला चुनाव गठबंधन बनाकर लड़ा था। लेकिन,दोनों ही दलों कोई सफलता नहीं मिल पाई थी। इस बार बसपा किसी भी तरह का गठबंधन नहीं बना रही है। यह माना जा रहा है कि वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए ही वह मैदान में रहेगी। पिछले लोकसभा चुनाव का अनुभव यही है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सपा से ज्यादा नुकसान बसपा के कारण हुआ। बसपा-सपा ने बालाघाट लोकसभा की सीट पर चुनाव उत्तर प्रदेश के कैराना की तर्ज पर लड़ा था।  कंकर मुंजारे उम्मीदवार थे। वे नए फार्मूले में अपना पुराना वोट भी नहीं बचा पाए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में मुरैना की सीट ऐसी थी,जिस पर करतार सिंह भड़ाना की मौजूदगी से भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव जीत गए थे। बसपा को लोकसभा चुनाव में 2.4 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है दलित वोट
भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 82 सीटों में से 50 पर जीत हासिल की है, जो 2018 के चुनाव से 17 सीट ज्यादा है। भाजपा ने राज्य में एससी और एसटी समुदायों के बीच अपना आधार बढ़ाया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के वोटों के कारण ही बनी थी। ग्वालियर में हुआ वर्ग संघर्ष दलित वोटों को कांग्रेस के पक्ष में ले आया था।  अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 35 सीटें 33 जिलों के तहत आती हैं। इनमें से दो जिले सागर और उज्जैन में अनुसूचित जाति के लिए दो-दो सीटें सुरक्षित हैं।
बसपा की रणनीति से किसे लाभ?
बहुजन समाज पार्टी ने मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों को तीन अलग-अलग जोन बांटा है। तीनों जोन के लिए अलग-अलग प्रभारी हैं। इनमें मुख्य प्रदेश प्रभारी रामजी गौतम, प्रदेश प्रभारी मुकेश अहिरवार और प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल शामिल हैं। तीनों ही प्रभारी प्रदेश की सभी 29 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। बसपा ने जोन बनाए हैं वे ग्वालियर-मध्य क्षेत्र, रीवा-जबलपुर और मालवा-निमाड़-मध्य क्षेत्र-2 शामिल हैं।
रीवा-जबलपुर जोन में खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट और छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को शामिल किया गया है. जबकि ग्वालियर-मध्य क्षेत्र में मुरैना, भिंड ग्वालियर, गुना, राजगढ़, दमोह, बैतूल और होशंगाबाद शामिल हैं. इसी तरह मालवा-निमाड-मध्य क्षेत्र-2 में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, खरगोन, खंडवा, धार, भोपाल और विदिशा शामिल हैं।
सपा में भी है हलचल
समाजवादी पार्टी इस बार बहुजन समाज पार्टी के साथ नहीं है। वह भाजपा के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा है। इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच टकराव के हालात देखे गए थे। इसकी वजह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ थे। कमलनाथ यदि अखिलेश-वखिलेश का बयान नहीं देते तो शायद कांग्रेस-सपा के बीच दोस्ताना मुकाबला हो सकता था। कमलनाथ ने बयान दिया तो अखिलेश यादव ने अपनी गतिविधियां मध्यप्रदेश में बढ़ा दी। मध्यप्रदेश में सपा को वोट और सीट भले ही नहीं मिले लेकिन,अखिलेश यादव के अपमान के कारण यादव वोट जरूर भाजपा के साथ चले गए। यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा था।

चुनाव नतीजों के बाद इस तरह की बात सामने आ रही है कि कमलनाथ की दिलचस्पी सरकार बनाने में थी ही नहीं। लोकसभा चुनाव में क्या सपा-कांग्रेस के बीच कोई तालमेल हो पाएगा? यह बड़ा सवाल है। इसका जवाब अब तक इसलिए सामने नहीं है क्योंकि इंडिया गठबंधन की ओर से अब तक बंटवारे को लेकर अधिकृत तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। समाजवादी पार्टी अपनी तैयारी कर रही है। मध्यप्रदेश में एक बार फिर वह बालाघाट की सीट पर जोर लगा सकती है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया है। पार्टी के सभी जिलाध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्षों समेत 10 लोकसभा प्रभारियों को भी तत्काल प्रभाव से पद से हटा दिया है।
भाजपा में विद्यार्थी परिषद का दबदबा

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वाले हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई बड़े नेता इसी पृष्ठभूमि के हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का बैकग्राउंड भी विद्यार्थी परिषद का ही है। कह सकते हैं कि सत्ता और संगठन में विद्यार्थी परिषद की पकड़ है। पार्टी में जो पदाधिकारी नियुक्त किए जा रहे हैं उनकी पृष्ठभूमि भी कहीं न कहीं विद्यार्थी परिषद की ही सामने आ रही है। हाल ही में मऊगंज जिला भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए राजेन्द्र मिश्रा विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आए हैं। मऊगंज उन चार जिलों में है जहां भाजपा ने अलग संगठनात्मक इकाई गठित की है। मैहर में मैहर भाजपा की कमान कमलेश सुहाने को सौंपी है। सुहाने सतना भाजपा संगठन में महामंत्री और कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। सितना से अलग हो कर मैहर के जिला बनने के बाद भाजपा संगठन का भी सतना से अलग होना तय था। सुहाने को यह जिम्मेदारी मिलने की संभावना भी प्रबल थी। हालांकि अमर पाटन विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत रामनगर के भाजपा नेता और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अरुण द्विवेदी के प्रयास भी चर्चा में थे। मैहर भाजपा को नया मुखिया मिलने के बाद अब यहां जल्दी ही कार्यकारिणी की भी घोषणा की उम्मीद जताई जा रही है।

मायावती मध्य प्रदेश चुनाव में पांच दिन करेंगी धुआंधार प्रचार

Mayawati will campaign heavily for five days in Madhya Pradesh elections
Mayawati will campaign heavily for five days in Madhya Pradesh elections

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती छह नवंबर से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार में जुटेंगी और पांच दिनों में नौ चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगी।
पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल ने बताया कि बसपा प्रमुख छह से आठ नवंबर के बीच हर रोज दो चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगी जबकि वह दस नवंबर को दतिया (सेवड़) और 14 नवंबर को भिंड,मुरैना में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल तैयार करेंगी।

भारत को युद्ध पर अपने स्टैंड पर रहना चाहिए मजबूत: मायावती

India should remain strong in its stand on war: Mayawati
India should remain strong in its stand on war: Mayawati

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने आज कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन युद्ध पर कहा था कि आज का युग युद्ध का नहीं है। अब गाजा में चल रहे युद्ध पर देश को अपने इसी स्टैंड पर मजबूती से रहना चाहिए ।

सुश्री मायावती ने आज किये ट्वीट में कहा “ यूक्रेन युद्ध को लेकर जब मोदीजी ने कहा था कि आज का युग युद्ध का नहीं है तो पश्चिमी नेताओं ने उनकी खूब प्रशंसा की । अब गाजा युद्ध को लेकर भी भारत को अपने स्टैंड पर मजबूती से खड़ा रहने की जरूरत है, जो सबको अनुभव हो।”

उन्होंने कहा “ युद्ध दुनिया में कहीं भी हो, आज के ग्लाेबल वर्ल्ड में अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुड़ी हैं। यूक्रेन युद्ध लगातार जारी है और पूरी दुनिया इससे प्रभावित है। इसलिए विश्व में कहीं भी नया युद्ध मानवता के लिए कितना विनाशकारी होगा यह अंदाजा लगाना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं।”

बसपा प्रमुख ने कहा “ भारत अपनी आजादी से ही विश्व में शांति, सौहार्द और स्वतंत्रता के लिए तथा नस्लवाद आदि के विरूद्ध अतिसक्रिय रहा है। जिसकी प्रेरणा और शक्ति उसे उसके समतामूलक एवं मानवतावादी संविधान से मिली है। दुनिया में भारत की यह पहचान बनी रहनी चाहिए।

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बसपा ने घोषित किए 26 प्रत्याशी, विधायक रामबाई को दोबारा मौका

BSP declared 26 candidates, MLA Rambai gets second chance
BSP declared 26 candidates, MLA Rambai gets second chance

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही चुनावी ताल ठोकते हुए बहुजन समाज पार्टी ने भी अपने पार्टी प्रत्याशियों की तीसरी सूची जारी करते हुए 26 प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है।

पार्टी की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार अध्यक्ष मायावती के निर्देशों पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल ने इन प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया है। पार्टी ने दमोह जिले की पथरिया से विधायक राम बाई को इस बार फिर इसी सीट से मौका दिया है।

इसके साथ ही भोपाल की गोविंदपुरा सीट से उमादेवी वर्मा को अवसर दिया है। जबलपुर की सिहोरा सीट से सुभाष मरकाम प्रत्याशी बनाए गए हैं।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की कल ही घोषणा हुई है। कल ही भाजपा ने भी प्रत्याशियों की अपनी चौथी सूची जारी की है।

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आरक्षण नहीं बल्कि प्रलोभन देने वाला है बिल: मायावती

महिला आरक्षण विधेयक को लेकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर लोगों को भ्रमित करने का आरोप लगाते हुये बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने कहा कि यह बिल महिलाओं को आरक्षण देने के इरादे से नहीं लाया गया है बल्कि आगामी चुनाव से पहले महिलाओं को प्रलोभन देने के लिए लाया गया है।

सुश्री मायावती ने बुधवार को एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा कि महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष में उनकी पार्टी शुरु से है और महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने वाले इस बिल के तत्काल प्रभाव से लागू करने की वकालत करती है मगर सरकार का यह कहना है कि बिल के पारित होने के बाद इसे तुरंत लागू नहीं किया जायेगा।

उन्होने कहा कि इस बिल के मुताबिक आने वाले 15-16 सालों में देश में महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। इस बिल के पास होने के बाद इसे तुरंत लागू नहीं किया जा सकेगा। सबसे पहले देश में जनगणना कराई जाएगी और इसके बाद सीटों का परिसीमन किया जाएगा।

बसपा सुप्रीमो ने कहा कि जनगणना में काफी समय लगता है। इसके बाद ही यह बिल लागू होगा। इससे साफ है कि यह बिल महिलाओं को आरक्षण देने के इरादे से नहीं लाया गया है बल्कि आगामी चुनाव से पहले महिलाओं को प्रलोभन देने के लिए लाया गया है।

लोकसभा चुनाव में भी किसी दल से गठबंधन कर चुनाव नहीं लड़ेगी बसपा

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति से किनारा करने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा का चुनावभी अकेले लड़ने का एलान कर दिया है  ।
मायावती ने कहा कि पार्टी अपने अनुभव के आधार पर यह निर्णय ले रही है। गठबंधन की राजनीति में बसपा का अनुभव अच्छा नहीं रहा। मायावती ने कहा कि  दूसरी पार्टियां हमारे उम्मीदवार के पक्ष में वोट ट्रांसफर करने की न तो नीयत रखते हैं और न क्षमता। इससे पार्टी के लोगों का मनोबल प्रभावित होता है और इस कड़वी हकीकत को नजरअंदाज कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।
बसपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को साफ कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव पार्टी अकेले अपने दम पर लड़ेगी और इसी के तहत उन्होंने संगठन को खर्चीले तामझाम और नुमाइशी कार्यक्रमों से दूर रहते हुए जन जन तक जुड़कर काम करने का निर्देश दिये हैं। इस संबंध में यहां उन्होंने प्रदेश के वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों, प्रभारियों और अन्य जिम्मेदार लोगों के साथ बैठक कर पिछली बैठक में दिये गये निर्देशों की रिपोर्ट ली। बैठक में गहन चिंतन के बाद स्पष्ट हुई कमियों पर प्रभावी नियंत्रण करते हुए पूरे तन मन धन से लोकसभा चुनाव में जुटने का आह्वान किया। उन्होंने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव के ठीक बाद लोकसभा चुनाव की अपेक्षित घोषणा को देखते हुए पार्टी उम्मीदवारों के चयन को लेकर खासी सावधानी बरतने के निर्देश दिये।
उन्होंने कहा कि जहां तक चुनावी माहौल का सवाल है तो सभी तरफ से यही फीडबैक है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की संकीर्ण जातिवादी और सांप्रदायिक नीतियों के कारण पूरी जनता त्रस्त है और इसी कारण भाजपा का जनाधार कमजोर हो गया है और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। इस कारण उत्तर प्रदेश का चुनाव एकतरफा न होकर  काफी दिलचस्प तथा देश की राजनीति को एक नयी करवट देने वाला साबित होगा।
बसपा सुप्रीमो ने कहा कि जबरदस्त महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, द्वेषपूर्ण राजनीति और देश में बिगड़ते माहौल से आमजन पूरी तरह से त्रस्त है। भाजपा की तरह ही कांग्रेस की भी कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। कुल मिलाकर एक ओर सत्ता तथा विपक्षी दलों का गठबंधन लोकसभा चुनाव में जीत के अपने अपने दावे ठोक रहे हैं लेकिन दोनों के ही दावे सत्ता में बने रहने के बावजूद खोखले साबित हुए हैं। दोनों की ही नीतियों और कार्यशैलियों से देश के गरीब, पिछड़े,दलित और मजदूर और एक तरह से सर्वजन का हित तो कम ,अहित अधिक हुआ है।
न्होंने कहा कि बसपा समाज से भी वर्गों को जोड़कर आगे बढ़ाने का प्रयास करती है जबकि वह तोड़कर कमजोर करने की संकीर्ण राजनीति में ही अधिकतर व्यस्त रहते हैं इसलिए इनसे सुरक्षित दूरी बनाना ही बेहतर है। बसपा सुप्रीमो ने पार्टी में कुछ जरूरी बदलाव करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश विशाल और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य है इसी कारण यहां राजनीतिक हालात तेजी से बदलते हैं। इसी कारण पार्टी में कुछ बदलाव अच्छे चुनावी परिणाम हासिल करने की नीयत से लगातार करने होते हैं, इसलिए जो जिम्मेदारी दी जाती है उसे कम न आंके और पार्टी के हित को सर्वोपरि मानकर पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभायें।

बहुजन समाज पार्टी ने मध्यप्रदेश की सात विधानसभा सीट पर उम्मीदवार तय किए

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बहुजन समाज पार्टी ने मध्य प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है जिन 7 सीटों पर नाम की घोषणा की गई है। उनमें सिर्फ एक सीट रैगांव अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।रैगांव से देवराज अहिरवार को पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल के लेटर हेड पर जारी की गई सूची में दिमनी से बलवीर सिंह दंडोतिया, निवाड़ी से अवधेश प्रताप सिंह राठौड़, राजनगर से रामराजा पाठक, रामपुर बघेलान से मणिराज सिंह पटेल, सिरमौर से विष्णु देव पांडे और पंकज सिंह को सिमरिया से उम्मीदवार बनाया गया है।

मायावती का परिवार वाद चार राज्यों में दम दिखा पाएगा

mayabati and aakash aanand
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कांशीराम द्वारा स्थापित की गई बहुजन समाज पार्टी मायावती की पारिवारिक पार्टी बनती जा रही है। मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को चार राज्यों के चुनाव की जिम्मेदारी देकर यह साफ संदेश दिया है कि वे भी परिवार की राजनीति से अपनी खोई जमीन पाना चाहती हैं। आकाश आनंद को मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जा रहा है।

आकाश आनंद लंदन से एमबीए हैं। मायावती के भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। एक समय आनंद कुमार की स्थिति पार्टी में नंबर दो की हुआ करती थी। वे पार्टी के उपाध्यक्ष थे। मायावती ने उन्हें कथित मतभेद के चलते पद से हटा दिया था। आकाश आनंद वर्ष 2017 से बसपा में सक्रिय हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वे पार्टी के स्टार प्रचारक थे। आकाश आनंद पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद पर हैं। पार्टी की सोशल मीडिया पर उपस्थिति के पीछे भी आकाश आनंद ही बताए जाते हैं।

बसपा की स्थापना स्वर्गीय कांशीराम ने वर्ष 1984 में की थी। इससे पहले पार्टी डीएस-4 के नाम से सक्रिय थी। कांशीराम ने दलित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के माध्यम से अपनी पैठ इस वर्ग में काफी मजबूत की थी। मजबूरन मध्यप्रदेश में कांग्रेस को वर्ष 1998 में अपने वोट बैंक को बचाने के लिए दलित एजेंडा लागू करना पड़ा था। इसके बावजूद वर्ष 2003 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस अपनी सरकार नहीं बचा पाई थी।
मध्यप्रदेश में वर्ष 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 11-11 सीटें हासिल कर ली थीं. लेकिन अब प्रदेश में बसपा की महज दो सीटें ही हैं. हालांकि साल के अंतिम महीनों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर बसपा फिर से जनाधार जुटाने का प्रयास कर रही है।
चुनाव से पहले राज्य में दलबदल का जो दौर चल रहा है उससे बसपा भी अछूती नहीं है। पिछले दिनों मनगवां की पूर्व विधायक शीला त्यागी ने कांग्रेस की सदस्यता ली तो मुरैना जिले में कांग्रेस नेता पूर्व विधाक बलबीर दंडोतिया बसपा में शामिल हो गए।
राज्य में बसपा के वोटों में भी लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। बसपा को वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में जहां 7.26 प्रतिशत वोट मिले थे तो 2018 में यह घटकर 5.1 प्रतिशत रह गए हैं। बसपा के कमजोर होने से कांग्रेस मजबूत हुई थी। कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में ग्वालियर-चंबल की 34 सीटों में 27 सीटों पर परचम लहराया था।
बसपा ने ग्वालियर-चंबल में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए एक वोट-एक नोट अभियान चलाया था। इसके परिणामों से पार्टी को खोया वोट लौटने की उम्मीद बंधी है।
राज्य में इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने महिला वोटर को केन्द्र में रखकर अपनी रणनीति बनाई है। भाजपा सरकार की लाडली बहना योजना के जवाब में कांग्रेस ने नारी सम्मान योजना की घोषणा की है। बसपा ने हर जिले में एक महिला उम्मीदवार देने का वादा किया है।
आकाश आनंद को मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़,राजस्थान और तेलंगाना की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विपक्षी गठबंधन की कोशिशों के बीच आकाश आनंद को दी गई जिम्मेदारी सीटों के तालमेल के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

दिमनी विधानसभा उप चुनाव: दल-दल परिक्रमा

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दिमनी विधानसभा के उप चुनाव में यदि तोमर वोटों का विभाजन नहीं हुआ तो भाजपा को जीतने के लिए जमीन-आसमान एक करना होगा।

भाजपा उम्मीदवार गिर्राज दंडोतिया का भविष्य इस चुनाव से जुड़ा हुआ है।

कांगे्रस उम्मीदवार रवीन्द्र सिंह तोमर के लिए भी इस चुनाव के परिणाम निर्णायक मोड पर खड़ा करने वाले होंगे।

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भाजपा का दलित चेहरा मुंशीलाल थे दिमनी की पहचान

मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा सीट की पहचान भाजपा के मुंशीलाल के नाम से होती रही है।

वर्ष 2008 से पहले दिमनी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी।

मुंशीलाल आरक्षित वर्ग का चेहरा था। परिसीमन के बाद आरक्षित ब्राहण-ठाकुर की राजनीति में पिछड़ता जा रहा है।

तोमरों की राजनीति के लिए भी यह सीट काफी अहम मानी जाती रही है।

ग्वालियर-चंबल अंचल में तोमरों का चेहरा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर हैं।

कोई और अब तक उन्हें चुनौती नहीं दे सका है। उप चुनाव में कांगे्रस ने रवीन्द्र तोमर भिडोसा को अपना उम्मीदवार बनाया है।

तीसरा चुनाव हर हाल में जीतना चाहते हैं कांगे्रस उम्मीदवार

उप चुनाव की चुनौती 
मध्यप्रदेश मे विधानसभा उप चुनाव 

रवीन्द्र तोमर ने 2008 का विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी से लड़ा था।

के वल 256 वोटों से पराजित हो गए।

2013 का विधानसभा चुनाव कांगे्रस से लड़ा।

ग्यारह सौ वोट से हार गए। भाजपा से भी टिकट लेने की कोशिश उन्होंने की थी।

लेकिन,नरेन्द्र सिंह तोमर के कारण संभव नहीं हो सका। इस सीट पर सबसे अधिक 65 हजार क्षत्रिय मतदाता हैं।

ऐसे में भाजपा के गिर्राज दंडोतिया लिए मुकाबला कड़ा होगा।

दंडोतिया,शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में कृषि राज्य मंत्री हैं।

दंडोतिया ने पिछला चुनाव कांगे्रस की टिकट पर जीता था। अब भाजपा उम्मीदवार हैं

क्या कृषि मंत्री हार का मिथक टूटेगा

गिर्राज दंडोतिया
गिर्राज दंडोतिया bjp,dimni

दंडोतिया का कृषि राज्य मंत्री होना रवीन्द्र तोमर अपने लिए शुभ संकेत मान रहे हैं।

तोमर कहते हैं कि पिछले जितने भी कृषि मंत्री हुए वे उसके बाद चुनाव नहीं जीत सके।

दिमनी को मंत्रिमंडल में जगह तीन दशक बाद मिली है।

इस क्षेत्र में उम्मीदवार की हार जीत अनुसूचित जाति वर्ग के वोटों पर निर्भर है।

इस वर्ग के 32 हजार वोट हैं। ठाकुर-ब्राहण के अलावा अन्य वर्ग के तीस हजार से अधिक वोटर हैं।

दंडोतिया को पिछड़ा वर्ग के वोटों से भी उम्मीद है।

अनारक्षित श्रेणी में आते ही उभरे जातिगत समीकरण

दिमनी विधानसभा में तोमर राजपूतों का बाहुल्य है।

रियासत के दौर में इनके 52,120 और 84 गाँव बंटे हुए थे,

जिन्हें बावन- बीसा सौ- चौरासी के नाम से जाना जाता था।

विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण होने के बाद ये गाँव

अम्बाह, दिमनी, व गोहद विधानसभा का हिस्सा हो गये। अम्बाह व गोहद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है।

दिमनी भी चालीस साल आरक्षित सीट रही. इसलिए तोमर राजपूतों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद

इस समुदाय के लोगों को चालीस साल प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिला।

ठाकुर मतदाताओं में भी तब विभाजन देखने को मिलता है

जब एक ही जाति के दो या अधिक उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर जाते हैं।

दिमनी के मैदान में ब्राहण एक राजपूत अनेक

दिमनी विधानसभा के पिछले तीन चुनाव में कभी भी एक से अधिक ब्राहण चेहरें मैदान में नहीं दिखे

लेकिन, तीनों ही चुनावों में दो राजपूत उम्मीदवारों ने एक दूसरे के विरुद्ध ताल ठोकी है।

इसका फायदा ब्राह्मण उम्मीदवार को 2013 और 2018 के चुनावों में मिला है और उन्होंने जीत दर्ज की है।
परंपरागत रूप से राजपूत और ब्राह्मण अपनी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देते हैं,

लेकिन कुछ राजपूत मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार से नाराजगी के चलते अन्य जगह भी वोट कर देते हैं।

ब्राह्मण मतदाताओं में ऐसा देखने को नहीं मिलता है। वे मतदान में अपनी जाति फैक्टर को ही प्राथमिकता देते हैं¯

साधन संपन्न है कांगे्रस उम्मीदवार

दिमनी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रविंद्र सिंह तोमर के पास 2 करोड़ से अधिक की नकदी, बैंक बैलेंस, चल-अचल संपत्ति है।

वहीं एक पिस्टल व बीएलडब्ल्यू जैसी लग्जरी गाड़ी भी है।
दिमनी से ही लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे जयंत सिंह तोमर के पास 25 हजार नकद,

बैंक खाते में 25 हजार डिपॉजिट है।

वहीं उनके पास धनसुला स्थित गांव में 19.18 लाख रुपए कीमत की पुश्तैनी जमीन है।

उनकी पत्नी के पास 10 हजार नकद, 12 हजार 200 रुपए की बैंक डिपॉजिटि, 2.35 लाख रुपए कीमत का 5 तोला सोने व 15 हजार कीमत के 250 ग्राम चांदी के गहने हैं।

उनकी पत्नी के पास 2 लाख 84 हजार 328 रुपए की धरोहर व पूंजी है।

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मध्यप्रदेश विधानसभा उप चुनाव :दलित फैक्टर से किसे मिलेगा लाभ

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ग्यारह आरक्षित सीटों पर भी है उप चुनाव

मध्यप्रदेश में 28 सीटों के लिए विधानसभा के उप चुनाव हो रहे हैं।

यह उप चुनाव आम चुनाव से भी ज्यादा महत्व वाले हैं।

इन उप चुनानों में शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के अलावा बसपा प्रमुख मायावती का भविष्य भी तय होना है।

मायावती ने हर सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन,दलित वोट बैंक उनके साथ रहता है कि नहीं यह देखना बेहद दिलचस्प है।

मध्यप्रदेश में 28 सीटों के लिए विधानसभा के उप चुनाव हो रहे हैं।

यह उप चुनाव आम चुनाव से भी ज्यादा महत्व वाले हैं।

इन उप चुनानों में शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के अलावा बसपा प्रमुख मायावती का भविष्य भी तय होना है।

मायावती ने हर सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन,दलित वोट बैंक उनके साथ रहता है कि नहीं यह देखना बेहद दिलचस्प है।
मध्यप्रदेश में शायद यह पहला मौका है,जब एक साथ ग्यारह आरक्षित सीटों पर भी उप चुनाव है।

इनमें नौ अनुसूचित जाति और दो जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट हैं।

अनुसूचित जाति की जिन सीटों पर उप चुनाव हो रहा है,उनमें छह ग्वालियर-चंबल की हैं।

जबकि जनजाति के लिए आरक्षित एक सीट विंध्य और दूसरी निमाड क्षेत्र की है।

यह तथ्य बेहद दिलचस्प है कि मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जिन विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था,उनमें आठ अनुसूचित जाति वर्ग के थे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया का अनुसूचित वर्ग में है प्रभाव

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अनुसूचित जाति वर्ग के जिन कांगे्रस विधायकों ने इस्तीफे दिए थे,वे

सर्वश्री प्रभुराम चौधरी,तुलसी सिलावट,इमरती देवी,कमलेश जाटव,रणवीर जाटव,रक्षा पिरोनिया जसमंत जाटव तथा जसपाल सिंह जज्जी हैं।

तुलसी सिलावट और प्रभुराम चौधरी को छोड़कर शेष छह ग्वालियर-चंबल अंचल के हैं।

सभी उप चुनाव के मैदान में एक बार फिर अपना भाग्य आजमा रहे हैं।

दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर अलग-अलग जातियां निर्णायक हैं।

विधानसभा के आम चुनाव में आरक्षित वर्ग की सीटों पर भाजपा को निराशा हाथ लगी थी।

ग्वालियर-चंबल अंचल में विधानसभा की कुल 34 सीटें हैं।

मध्यप्रदेश विधानसभा
मध्यप्रदेश विधानसभा

वर्ष 2018 में कांगे्रस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी।

इस अंचल में पिछड़ जाने के कारण ही भाजपा लगातार चौथी बार सरकार नहीं बना सकी थी।

लेकिन,22 विधायकों के कांगे्रस छोड़ने के कारण शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे हैं।

ग्वालियर-चंबल अंचल के पंद्रह विधायकों ने सिंधिया के साथ कांगे्रस छोड़ी थी।

एक सीट जौरा पर उप चुनाव कांगे्रस विधायक बनबारी लाल शर्मा के निधन के कारण हो रहा है।

अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट आगर में भी उप चुनाव भाजपा विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन के कारण हो रहा है।

आगर विधानसभा सीट मालवा अंचल की है। इस अंचल में बसपा का प्रभाव नहीं है।

मध्यप्रदेश विधानसभा में तेजी से घट रहा है बसपा का प्रभाव


मध्यप्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ दो सीटें ही मिल पाईं थीं।

एक सीट चंबल अंचल के भिंड जिले की थी। दूसरी सीट बुंदेलखंड क्षेत्र के दमोह जिले की थी।

इस सीट पर चुनाव जीतने वाले विधायक संजीव कुशवाह एवं राम बाई हैं।

मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार को बसपा के इन दोनों विधायकों ने समर्थन भी दिया था।

जबकि बसपा प्रमुख मायावती कांगे्रस से लगातार दूरी बनाए रखने का प्रदर्शन कर रही हैं।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा बसपा विधायकों को कांगे्रस में शामिल कराए जाने के बाद मायावती नाराज भी बताई गईं।

मध्यप्रदेश में जब सत्ता परिवर्तन के आसार बने तो बसपा के दोनों विधायक भाजपा के पक्ष में खड़े हो गए।

राज्य में बसपा के प्रतिबद्ध वोट में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है,लेकिन यह वोट ज्यादा से ज्यादा विधायक नहीं चुन पा रहा है।

माना यह जाता है कि बसपा के कारण कांगे्रस को नुकसान होता है। भाजपा ज्यादा सीट जीत  जाती है।

मध्यप्रदेश में बसपा का वोटर ग्वालियर-चंबल के अलावा विंध्य एवं बुंदेलखंड इलाके में भी है।

इन तीनों अंचल की सीमाएं उत्तरप्रदेश से लगी हुई हैं।

आम चुनाव में विंध्य क्षेत्र में बसपा के हाथ खाली रहे थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा को पांच प्रतिशत अर्थात कुल 19 लाख 11 हजार 642 वोट मिले थे।

मध्यप्रदेश में बसपा के वोट प्रतिशत में मामूली गिरावट

मध्यप्रदेश का विभाजन नवंबर 2000 में हुआ था।

छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बन जाने के साथ ही बसपा कमजोर पड़ने लगी थी।

वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांगे्रस सरकार के खिलाफ माहौल था।

भाजपा को एतिहासिक जीत मिली।

समाजवादी पार्टी को पहली बार आठ सीटों पर सफलता मिली।

लेकिन, बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ दो सीटों पर ही सफलता मिली।

वोट का प्रतिशत 7.26 था। कुल वोट 18लाख 52 हजार 528 थे।

2008 का विधानसभा चुनाव नए परिसीमन से हुआ था। इस चुनाव में बसपा 7 सीटें हासिल करने में सफल हुई थी।

इनमें चार ग्वालियर-चंबल अंचल की थीं। 8.97 प्रतिशत वोट मिले। कुल वोटों की संख्या 22 लाख 62 हजार 119 थी।

इस चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व वाली भारतीय जनशक्ति पार्टी 5 सीटें जीती थी।

कांगे्रस को 71 सीटें मिली थीं।

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। 2013 के पिवधानसभा चुनाव में बसपा को 6.29 प्रतिशत कुल 21 लाख 28 हजार 333 वोट मिले थे।

मध्यप्रदेश में उम्मीदवार के व्यक्तिगत वोट से बचती है बसपा की साख


बहुजन समाज पार्टी की ताकत उसके वे उम्मीदवार हैं जो अन्य दलों से बगावत कर बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ते हैं।

मध्यप्रदेश विधानसभा में में समान्य वर्ग की सीटों पर ही बसपा के उम्मीदवार ज्यादा सफल होते हैंं।

अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर उप जाति के समीकरण वोटों का विभाजन कर देते हैं।

आरक्षित सीट पर अनारक्षित वर्ग निर्णायक होता है। इस चुनाव में कांगे्रस ने जाति,उप जाति का संतुलन बनाने की कोशिश उम्मीदवारों के जरिए की है।

कांगे्रस छोड़कर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों से कांगे्रस को कुछ नुकसान जरूर होगा।

लेकिन,आरक्षित वर्ग के वोटर की लड़ाई बहुजन समाज पार्टी से दिखाई दे रही है।

उप चुनाव में बसपा,कांगे्रस को नुकसान पहुंचाने के लिए मैदान में है।

मध्यप्रदेश विधानसभा में भाजपा के लिए चुनौती सामान्य सीटों पर दलित वर्ग के वोटर को अपने पक्ष में करने की है।

आम चुनाव से पहले अप्रैल 2018 में ग्वालियर-चंबल अंचल में हुए दलित आंदोलन के कारण ही भाजपा को नुकसान हुआ था।

मध्यप्रदेश विधानसभा में फिलहाल स्थितियों में ज्यादा बदलाव नजर नहीं आ रहा है।

भाजपा,दलितों को लुभाने की कोिाशश कर रही है।

हाथरस की घटना का लाभ लेना चाहती है कांगे्रस

मध्यप्रदेश में विधानसभा उप चुनाव में हाथरस की धटना कांगे्रस के लिए संजीवनी का काम कर सकती है।

भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कांगे्रस की इस रणनीति को विफल करने की कोशिश कर रहे हैं।

हाथरस की घटना पर चल रहे विवाद के बीच ही नरसिंहपुर जिले में बलात्कार की शिकार एक महिला द्वारा आत्महत्या कर ली गई।

पीडित महिल दलित वर्ग से थी। पुलिस ने घटना की रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी।

एफआईआर न लिखने के आरोप में दो पुलिस वालों को तत्काल गिरफ्तार भी किया गया।

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