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कानून के ही नहीं नैतिकता के तराजू पर भी खरी हो प्रक्रिया

अपने पूरे सेवाकाल में प्रशासनिक अधिकारी खास तौर पर आईएएस अधिकारी कानून,कायदों का हवाला देकर सार्वजनिक हित और निजी हित के कामों में अड़ंगा लाए जाने पर बदनाम हो जाते हैं। यह सच है कि कोई भी व्यवस्था बगैर नियम,कानून के चल नहीं सकती। हर खेल के अपने नियम होते हैं। खिलाड़ी नियमों के पालन करने में कभी पीछे नहीं रहता। जो नियम तोड़ता है,उसे कई बार मैदान से भी बाहर होना पड़ता है। मैच  फिक्सिंग को भी उसी तरह देखना चाहिए जिस तरह हम सरकारी व्यवस्था में किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह को लाभ देने के लिए फिक्सिंग नियम बदलकर करते हैं। खेल में फिक्सिंग करने वाले जेल भी चले जाते हैं लेकिन, सरकार में ऐसा होता नहीं है। सरकार में नियम बदले जाने की फिक्सिंग जनहित के नाम पर की जाती है। लोकतंत्र में जनहित सर्वोपरि है। जनता अपनी सरकार चुनती है। ये बात और है कि कुछ जन प्रतिनिधि अपने आपको जनता का भाग्य विधाता मान लेते हैं। ऐसे प्रशासनिक अधिकारी भी होते हैं जो अपने आपको रॉबिनहुड के तौर पर जनता के बीच पेश करते हैं। लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को यदि अनदेखा किया जाता है तो सरकार फासीवादी मानी जाने लगती है। भारतीय संस्कृति में नियम,कानून से ज्यादा महत्व नैतिक मूल्यों को दिया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी महिला के विवाहत्तेर संबंधों को कानूनी दायरे में परिभाषित करने के बजाए नैतिकता से जोड्ुकर फैसला सुनाया है। सरकार और प्रशासन में भी नैतिक मूल्य, नियम,कानून से ऊपर होना चाहिए। लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। अफसरों का नैतिक पतन तेजी से हो रहा है। 

नैतिकता को आत्मा की आवाज से भी जोड़कर देखा जा सकता है। लाल बहादूर शास्त्री जब देश के रेल मंत्री थे, तो उन्होंने एक दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते ही पद से इस्तीफा दे दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी नैतिक मूल्यों को हमेशा महत्व दिया। सरकार बचाए रखने के लिए एक वोट की कमी थी। कोई भी दल समर्थन देने को तैयार नहीं था। संसद में बहुमत सिद्ध करना मुश्किल था। अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुमत के प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। शास्त्री और वाजपेयी की नैतिकता राजनीति में अप्रसांगिक हैं। कोई इसका उदाहरण पेश करने को तैयार नहीं है। वे लोग भी जो इनकी विचारधारा पर चलने की दुहाई सार्वजनिक मंचों पर देते हैं।  राजनीति में नैतिकता अब बची नहीं है। आज विपक्ष सरकार पर आरोप लगाता है तो जवाब में पुरानी सरकारों के कारनामें गिना दिए जाते हैं। अपनी कमीज को साफ दिखाने के लिए दूसरे की कमीज पर कीचड़ उछाल दिया जाता है। यहां बोफोर्स और राफेल को भी याद किया जा सकता है। संसद की कोई समिति यदि आरोप की जांच कर लेगी तो देश पर कोई संकट नहीं आ जाएगा। सांसद भी देश भक्त ही होता है। देश भक्ति सरकार से ज्यादा दूसरे लोगों में देखेने में मिल जाएगी। राजनीति के तौर तरीकों में बदलाव का असर पूरी व्यवस्था पर भी दिखाई दे रहा है। हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पांच सूचना आयुक्त नियुक्त किए हैं। कानून की नुक्ताचीनी कर सरकार इन नियुक्तियों को पूरी तरह से वैधानिक मान रही है। महामहिम से सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाने के बाद कागजी तौर ये नियुक्तियां सही ही मानी जाएंगीं। नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया कानूनी है। मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के अलावा सरकार का एक वरिष्ठ मंत्री चयन समिति का सदस्य होता है। कानून के हिसाब से तीसरा सदस्य मुख्यमंत्री द्वारा नामांकित सदस्य होता है। एक तरह से कठपुतली। चयन समिति में प्रतिपक्ष के नेता को शामिल करने का उद्देश्य सूचना के अधिकार की व्यवस्था को भरोसमंद बनाना रहा होगा। लेकिन, जो पांच सदस्य नियुक्त किए गए उनकी चयन समिति में प्रतिपक्ष के नेता अनुपस्थित थे। नेता प्रतिपक्ष आए नहीं या सरकार ने बुलाया नहीं। इस विषय पर भी तकनीकी विवाद कर अपने पक्ष को साफ और पारदर्शी बताया जा सकता है। स्टेट हैंगर पर होने वाली चयन समिति की बैठक औपचारिक बैठक नहीं होगी,यह दावे के साथ कहा जा सकता है। प्रतिपक्ष का नेता मंत्रिमंडल का सदस्य तो है नहीं जिससे कठपुतली बने रहने की अपेक्षा की जानी चाहिए। बैठक का स्थल भी गरिमा के अनुसार ही तय होता है। चयनित सूचना आयुक्त को नैतिकता और नियम दोनों ही बताने की जरूरत नहीं है। नियुक्ति किए जा रहे सदस्यों की गरिमा का ध्यान रखना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। 

सूचना आयुक्त का पद एक ऐसा पद है, जिस पर बैठने वाला व्यक्ति दबावों से मुक्त होना चाहिए। लेकिन, हिन्दी भाषी अधिकांश राज्यों में यह देखने में आ रहा है कि नौकरशाह रिटायरमेन्ट के बाद कुर्सी पाने के लिए नेताओं के पिछलग्गू बन जाते हैं।  मध्यप्रदेश में पिछले डेढ़ दशक में रिटायर हुए अधिकांश आईएएस अधिकारी सरकार से कोई न कोई काम लेकर बैठे हुए हैं। राकेश साहनी से लेकर न्टोनी डिसा तक हर अधिकारी को सरकार ने उपकृत किया। राकेश साहनी तो उन बिरले अधिकारियों में हैं जिन्हें एक के बाद एक पद, सरकार तश्तरी में रखकर दे रही है। राकेश साहनी को पहले विद्युत नियामक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष बना दिया गया। विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष पद के लिए जो योग्यता निर्धारित है, वो सरकार में बैठा हर आईएएस अधिकारी रखता है। आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए एक शर्त यह भी रहती है कि वह पद से हटने के बाद सरकार से अन्य कोई जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करेगा। ऐसी व्यवस्था भी नैतिकता को ही ध्यान में रखकर की गई हो गई होगी। अपेक्षा यह भी रही होगी कि कार्यकाल समाप्त होने के अंतिम दिनों में कोई ऐसा फैसला न करे जो कि किसी पक्ष विशेष को लाभ देने वाला हो?

 राकेश साहनी को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में नियुक्ति दी गई तो इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर हुई। साहनी के सम्मान को भी इस कार्यवाही से ठेस पहुंची होगी,ऐसा माना जा सकता है। देश में दो श्रेणी के लोगों को रिटायरमेन्ट के बाद भी काम करते रहने की संभावनाएं हैं। एक आईएएस अधिकारी और दूसरे मी लार्ड हैं। अधिकांश आयोग अथवा स्वशासी संस्थाओं में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अथवा रिटायर्ड जज सेवाएं देते देखे जा सकते हैं। कह सकते हैं कि सरकार उनके अनुभव को लाभ लेना चाहती है, इस कारण नियुक्ति की जाती है। वास्तविकता इससे उल्टा है। महत्वपूर्ण संस्थानों के गठन के समय ही यह तय कर लिया जाात है कि उपकृत किसी श्रेणी के व्यक्ति को करना है। प्रशासनिक सेवा, उच्च न्यायिक सेवा अथवा अन्य किसी सेवा के व्यक्ति को लाभ देना है। लोकसेवा अयोग में लंबे समय तक रिटायर्ड नौकरशाही अध्यक्ष बनते रहे हैं। मानव अधिकार आयोग अथवा लोकायुक्त जैसे संस्थानों में रिटायर्ड न्यायाधीश की नियुक्ति, काम के स्वरूप को देखकर तय की गई। मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी समान्यजन के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है। वहीं लोकायुक्त को भ्रष्ट आचरण निवारण अधिनियम के कानून के दायरे में प्रकरण को जांच कर गुण-दोष के आधार पर फैसला करना होता है। रिटायर्ड लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के पीछे जाहिर मंशा यह भी है कि वह निष्पक्ष होकर काम करे। उपकृत नहीं होंगे तो पक्षपात भी नहीं करेंगे। यदि किसी व्यक्ति को उपकार कर पद दिया जा रहा है तो वह अपनी जिम्मेदारी कभी भी ईमानदारी से नहीं निभा सकता है। रिटायरमेन्ट के बाद पद के पीछे भागने वाले अफसरों को ताकतवर भले ही माना जाता हो,पर सम्मान उतना नहीं बचता जितना कि नौकरी में था।

राहुल गाँधी ने कहा-प्रधानमंत्री की रक्षा के लिए राफेल का मुद्दा उठा रहे है

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद द्वारा राफेल मामले में किये ताज़ा खुलासे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने आज फिर आक्रामक तेवर दिखाते हुए कहा कि वे देश के पीएम की रक्षा के लिए यह मामला उठा रहे है। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति यह बयान इस बात की और इशारा करता है कि डील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मित्र अनिल अंबानी को मदद करने के लिए की थी। उल्लेखनीय है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने कहा था कि अनिल अंबानी की कंपनी का नाम पीएम की और से ही दिया गया था। ओलांद ने यह भी कहा था कि प्रधानमंत्री श्री मोदी जी की बात मानने के अलावा कोई बिकल्प नहीं था।

ओलांद के इस बयान पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले तेज़ कर दिए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान के बाद वे ये मुद्दा देश के प्रधानमंत्री की रक्षा के लिए उठा रहे है। राहुल गाँधी ने कहा कि डील सीधे पीएम मोदी ने की है और उन्हें इस बारें में अपना स्पष्टीकरण देश के सामने रखना चाहिए। राहुल गाँधी ने तीखे शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि देश के चौकीदार ने पैसे देश के जवान के जेब से निकालकर अपने उद्योगपति मित्र को तौफे के तौर पर दे दिए।

लाइव अपडेट्स

– 30 हज़ार करोड़ का ठेका अंबानी को मोदी जी ने दिया है : राहुल गाँधी

– पीएम मोदी ओलांद के जबाब पर सफाई दें : राहुल गाँधी

– राहुल गाँधी ने कहा कि किसको बचाने के लिए सरकार झूठ बोल रही है।

– देश के मन में बैठा है कि चौकीदार चोर है:राहुल गाँधी

राफेल और एस-400 मिसाइल से वायु सेना को मिलेगी ताकत : बी एस धनोआ

भारतीय वायु सेना को राफेल जैसे विमान और रूसी सुरक्षा प्रणाली एस-400 की जरूरत है।

राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर सरकार और विपक्ष में चल रही खींचतान बरकरार है। इसी बीच वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ ने बुधवार को एक सेमीनार में कहा कि भारत जिस तरह के ‘गंभीर खतरे’ का सामना कर रहा है उसे देखते हुए वायु सेना को राफेल जैसे विमान और रूसी सुरक्षा प्रणाली एस-400 की जरूरत है। दुनिया में केवल दो देश दक्षिण कोरिया तथा इजरायल ही अपने-अपने क्षेत्रों में भारत जैसे खतरे का सामना कर रहे हैं लेकिन इन दोनों ने ही अपनी वायु सेना को बेहद मजबूत बना लिया है। उन्होंने कहा कि देश में ही बना तेजस विमान उस कमी को पूरा नहीं कर सकता जिसका सामना वायु सेना कर रही है। इस कमी को पूरा करने के लिए राफेल जैसे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस विमान की जरूरत है।

एस-400 मिसाइल

दूसरे देश निरंतर बढ़ा रहे है अपनी ताकत

उन्होंने कहा कि समय की जरूरत है कि भारतीय वायु सेना को पडोसी देशों की ताकत को देखते हुए मजबूत बनाया जाना चाहिए। पाकिस्तान और चीन की हवाई ताकत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय वायु सेना को 42 स्क्वैड्रन की जरूरत है लेकिन उसके पास केवल 31 स्क्वैड्रन हैं। पाकिस्तान निरंतर अपनी ताकत बढा रहा है और उसके पास लड़ाकू विमानों के 20 से अधिक स्क्वैड्रन हैं जिनमें उन्नत एफ-16 भी हैं और वह चीन से बडी संख्या में जे-17 विमान हासिल कर रहा है। चीन के पास 1700 से ज्यादा लड़ाकू विमान हैं जिनमें 800 चौथी नयी पीढी के लडाकू विमान हैं। एयर चीफ मार्शल धनोआ ने आगे कहा कि यदि भारत के पास लडाकू विमानों के 42 स्क्वैड्रन भी हो जाते हैं तो भी वह दोनों की ताकत का मुकाबला नहीं कर सकता। हालांकि वायु सेना इससे पहले कई बार कह चुकी है कि वह एक साथ दो मोर्चों पर आपात स्थिति से निपटने में सक्षम है।

वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ

कांग्रेस राफेल सौदे में लगा रही है अनियमितताओं का आरोप

फ्रांस से राफेल विमानों के केवल दो स्क्वैड्रन खरीदे जाने पर उन्होंने कहा कि यह वायु सेना की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए है और इससे पहले भी विमानों के दो स्क्वैड्रन खरीदे गये हैं। इस संदर्भ में उन्होंने रूस से मिग-29 विमानों के दो स्क्वैड्रन तथा फ्रांस से मिराज लडाकू विमानों के दो स्क्वैड्रन खरीदे जाने का उल्लेख किया। मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा फ्रांसिसी कंपनी डसाल्ट एवियेशन से 126 राफेल विमानों की खरीद के सौदे को रद्द कर सीधे फ्रांस सरकार से उडने की हालत में तैयार 36 विमानों की खरीद का सौदा किया है। कांग्रेस इस सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए कह रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सौदे में अपने एक उद्योगपति मित्र को फायदा पहुंचाया है।

राफेल लड़ाकू विमान

राफेल से वायु सेना को मिलेगी ताकत

राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर सरकार और विपक्ष में चल रही खींचतान के बीच वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ ने कहा है कि राफेल विमान से वायु सेना की ताकत बढ़ेगी और इससे उसकी तात्कालिक जरूरत भी पूरी होगी। वायु सेना प्रमुख ने आज यहां एक सेमिनार में कहा कि राफेल और एस 400 मिसाइल प्रणाली से वायु सेना की ताकत बढ़ेगी। इससे विमानों की कम ही रही संख्या का असर कम किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर पहले भी आपात खरीद की गई है। सरकारों के बीच के सौदे जल्दी पूरे होते हैं और सेनाओं को उपकरण जल्दी मिलते हैं। उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने फ्रांस सरकार से 36 राफेल विमान की खरीद का सौदा किया है। कांग्रेस इसमे अनियमिताओं का आरोप लगाते हुए सरकार को घेरने में लगी है।

प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने राफेल सौदे में लोकसभा को गुमराह किया:कांग्रेस

कांग्रेस ने फ्रांस से खरीदे गए राफेल लड़ाकू विमान की कीमत का खुलासा नहीं करने पर सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर निशाना साधा। कांग्रेस ने बीजेपी पर लोकसभा को गुमराह करने का आरोप लगाया और उनके खिलाफ विशेषाधिकार का हनन प्रस्ताव लाने का संकेत दिया। पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी और पार्टी के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि,भारत के लोगों को गुमराह और भ्रम में डालकर प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने संसद में झूठ बोला है। राफले विमान की वाणिज्यिक लागत का खुलासा करने से फ्रांसीसी सरकार के साथ किसी भी गुप्त समझौते का न तो उल्लंघन होगा और न ही इससे कोई भी गुप्त जानकारी प्रकट होगी।”

राफेल सौदे में गोपनीयता के प्रावधान का हवाला देने वाले सरकार के दावे को खारिज करते हुए एंटनी ने कहा कि भारत-फ्रांस सरकारों के बीच 2008 में हुए करार में यह कहीं नहीं है कि रक्षा सौदे से जुड़ी व्यावसायिक खरीदारी की कीमत का खुलासा नहीं किया जा सकता। एंटनी ने कहा कि ,समझौते का दायरा केवल प्लेटफार्म की क्षमता व युद्ध में इसके प्रदर्शन और रणनीति से संबंधित हथियारों के सामरिक व तकनीकी विवरण तक फैला हुआ है और इसमें वाणिज्यिक विवरण व लागत शामिल नहीं है। यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने देश को गुमराह किया है।”

कांग्रेस ने कहा कि कानून विशेषज्ञों के साथ इस बारे में बातचीत की गई है और लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़े एक-दो दिन में मोदी और सीतारमण के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने पर फैसला करेंगे। एंटनी और शर्मा ने लोकसभा में 20 जुलाई को राजग सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान चर्चा के संदर्भ में कहा कि ‘प्रधानमंत्री राफेल सौदे में राष्ट्रीयता की आड़ के पीछे छुप रहे हैं’ और सच यह है कि ‘मोदी सरकार राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करने की दोषी है।’

उन्होंने दावा किया कि संप्रग सरकार के दौरान 2012 में 36 राफेल विमानों के लिए 18,940 करोड़ रुपये की अंतर्राष्ट्रीय बोली लगाई गई थी जबकि मोदी सरकार ने इतने ही विमानों को 60,145 करोड़ रुपये में खरीदा है। उन्होंने भाजपा से अतिरिक्त 41 हजार करोड़ रुपये के भुगतान के बारे में बताने को कहा। उन्होंने दावे के साथ कहा कि कानून के तहत सरकार संसद की लोक लेखा समिति, रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति और नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (सीएजी) को पूरी जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य है।

अविश्वास प्रस्ताव:राहुल का मोदी पर राफेल का आरोप,कहा-गड़बड़ी में भागीदार है

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने उनसे कहा है कि राफेल जेट विमान पर भारत के साथ उनका कोई भी गोपनीय समझौता नहीं हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बारे में देश से झूठ बोला है।

राहुल ने लोकसभा में सत्ता पक्ष पर जोरदार हमला बोला,कहा कि “मैंने व्यक्तिगत तौर पर फ्रांस के राष्ट्रपति से मुलाकात की और उनसे पूछा कि क्या भारत के साथ कोई गोपनीय समझौता हुआ है। उन्होंने मुझसे कहा कि ऐसा कोई भी गोपनीय समझौता दोनों देश के बीच नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा कहना में कोई हिचक नहीं है और मैं ऐसा देश को बता सकता हूं। राहुल ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में प्रति विमान की कीमत 520 करोड़ रुपये थी लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस गए और कुछ ‘जादुई’ शक्ति के साथ प्रति विमान की कीमत 1600 करोड़ रुपये हो गई।

उन्होंने कहा,”रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण यहां है। उन्होंने कहा था कि वह मूल्य के बारे में बताएंगी लेकिन उसके बाद उन्होंने स्पष्ट तौर पर बताया कि वह ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि फ्रांस और भारत सरकार के बीच गोपनीय समझौता हुआ है। राहुल ने कहा,”प्रधानमंत्री ने देश से झूठ बोला। प्रधानमंत्री के दबाव में सीतारमण ने देश को झूठ बोला। उन्हें अवश्य ही देश को बताना चाहिए। प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को अवश्य ही देश को बताना चाहिए।”

कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा राफेल समझौते के बारे में बोलने के वक्त सत्ता पक्ष के सांसदों ने शोरगुल के साथ उनके बयान का विरोध किया।