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इंदौर में मोतियाबिंद के 11 मरीजों की आंखों की रोशनी गई, अस्पताल का लायसेंस निरस्त

इंफेक्शन की आशंका, आठ अगस्त को शिविर में किया गया था 15 लोगों का ऑपरेशन

स्वास्थ्य मंत्री ने चेन्नई से बुलाया डॉ. रमण को, पीड़ितों को 50-50 हजार रुपए की मदद की घोषणा

वर्ष 2010 में 20 लोगों की आंखों की रोशनी जाने से सबक न लेने वाले इंदौर के आई हॉस्पिटल में एक बार फिर 11 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई है। 15 मरीजों का ऑपरेशन आठ अगस्त को नेत्र शिविर लगाकर किया गया था। इसके बाद कुछ न दिखाई देने पर डॉक्टरों ने कुछ मरीजों का फिर से ऑपरेशन किया, लेकिन अब 11 मरीज ऐसे हैं, जिन्हें ऑपरेशन किए गए आंख से कुछ दिख नहीं रहा है। इधर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने जानकारी दी है कि सरकार की पहली प्राथमिकता मरीजों की आंखों की रोशनी वापस लाना है। इसके लिए चेन्नई से आंखों के विशेषज्ञ डॉक्टर रमण को बुलाया गया है। इस मामले की जांच के लिए सात सदस्यीय समिति गठित कर दी गई है।


प्रदेश के उच्च शिक्षा एवं खेल मंत्री जीतू पटवारी ने बताया कि पीड़ितों के लिए सरकार ने 50-50 हजार रुपए सहायता राशि की घोषणा की है। मामले की जांच की जा रही है। जो कोई दोषी होगा, उस पर कार्रवाई की जाएगी। इधर डॉक्टरों का कहना हैं कि ऑपरेशन के बाद मरीजों की आंख में जो दवा डाली गई, शायद उसके चलते मरीजों की आंख में इफेंक्शन हुआ है। इस मामले का खुलासा होते ही स्वास्थ्य विभाग ने अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर को सील कर दिया है। 2010 में इसी अस्पताल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद करीब 20 लोगों की आंख की रोशनी चल गई थी। हादसे के बाद भी अस्पताल ने घटना से कोई सबक नहीं लिया।

धार में नीना का पत्ता कटेगा या रंजना से हाथ जोड़ेगी पार्टी,शेखावत से भी है नाराजगी

भारतीय जनता पार्टी का राष्टीय संगठन यह जानने की कोशिश कर रहा है कि नीना वर्मा और रंजना बघेल का टिकट काटने पर चुनाव परिणामों पर कोई विपरीत असर तो नहीं पड़ेगा। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मध्यप्रदेश के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे इन दिनों मालवा-निमाड़ अंचल की नौ सीटों पर कार्यकर्त्ताओं से आमने-सामने चर्चा कर राजनीतिक हालात समझने की कोशिश कर रहे हैं। मंदसौर पुलिस फायरिंग की घटना के बाद से मालवा-निमाड़ अंचल में भारतीय जनता पार्टी को भारी नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इस इलाके के नगरीय निकाय के चुनाव परिणाम भी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ गए थे।

धार जिले में पार्टी की गुटबाजी बनी है मुसीबत – विनय सहस्त्रकुद्धे ने धार जिले के कार्यकर्त्ताओं से वन-अू-वन चर्चा कर यह जानने की कोशिश की कि रंजना बघेल और नीना वर्मा के बीच तनातनी किस बात को लेकर रहती है। रंजना बघेल मनावर से विधायक हैं और नीना वर्मा धार से चुनी गईं थीं। नीना वर्मा भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की पत्नी हैं। रंजना बघेल शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में 2013 से पहले तक मंत्री हुआ करतीं थीं। 2013 के बाद नीना वर्मा और रंजना बघेल में से किसी को मंत्री बनाने के लिए चयन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को करना था। मुख्यमंत्री ने पांच साल तक दोनों को ही मौका नहीं दिया।

नीना वर्मा सिर्फ ग्यारह हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीतीं थीं। जबकि रंजना बघेल सोलह सौ से अधिक वोटों से चुनाव जीतीं थीं। पार्टी जिले में गुटबाजी पर काबू करने के लिए विवादास्पद विधायकों का टिकट काटने की तैयारी कर रही है। जिले की दोनों महिला नेत्रियां इस दायरे में आ रहीं हैं। दोनों महिला नेत्रियों के बीच की तनातनी मंत्रिमंडल में जगह पाने को लेकर ही रहती है। धार जिले में विधानसभा की कुल सात सीटें हैं। सरदारपुर में भाजपा मात्र 529 वोटों से चुनाव जीत पाई थी। विनय सहस्त्रबुद्धे से पार्टी कार्यकर्त्ताओं ने जिला भाजपा अध्यक्ष डा.राज बर्फा के रवैये को लेकर शिकायत भी की।

कार्यकर्त्ताओं का कहना था कि नगरीय निकाय के चुनाव में उम्मीदवारों का नाम तय करने से पहले डा. बर्फा ने पार्टी के किसी भी स्थानीय नेताओं को भरोसे में नहीं लिया। इसके कारण चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गए। सहस्त्रबुद्धे ने पूर्व सांसद छतर सिंह दरबार को चर्चा में उनसे मनावर से विधानसभा चुनाव लड़ने के बारे में भी पूछा। बदनाबर के भाजपा कार्यकर्त्ताओं ने स्थानीय उम्मीदवार को टिकट देने की मांग भी सहस्त्रबुद्धे के सामने रखी। बदनावर से भंवर सिंह शेखावत विधायक हैं। उनका घर इंदौर में है। शेखावत ने पिछला चुनाव 9812 वोटों से जीता था। जिले की पांच सीटें अभी भाजपा के पास हैं। धरमपुरी की सीट भाजपा ने 7573 वोटों से जीती थी।

रहते हैं इंदौर में और टिकट के लिए नज़र दूसरे जिलों की सीट पर

मालवा एवं निमाड की लगभग आधा दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर टिकट के लिए इंदौर में रहने वाले नेताओं की नजर रहती है। नेता भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही दलों के हैं। जिन सीटों पर इंदौरी नेताओं की नजर रहती हैं वे सोनकच्छ,अलोट,बडवाह,महेश्वर,भोजपुर हैं। कांग्रेस में सोनकच्छ से टिकट के दावेदार पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा हैं। वर्मा इस सीट से लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं। उनका घर और स्थायी पता इंदौर का है।

सोनकच्छ अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सुरक्षित सीट है। वर्मा देवास-शाजापुर की लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं। सोनकच्छ से विधायक राजेन्द्र वर्मा भी इंदौर में ही रहते हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। इंदौर में ही रहने वाले नगर निगम के पूर्व महापौर एवं मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष कृष्ण मुरारी मोघे खरगोन जिले की बडवाह सीट से टिकट मांग रहे हैं। मोघे खरगोन से सांसद रह चुके हैं।

इंदौर में ही रहने वाले कांग्रेस नेता एवं पूर्ण सांसद प्रेमचंद्र गुड्डू आलोट से टिकट मांग रहे हैं। आलोट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सुरक्षित सीट है। गुड्डू पहले भी यहां से विधायक रह चुके हैं। महेश्वर के भाजपा विधायक रमेश मेव भी इंदौर में रहते हैँ। महेश्वर भी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट है।

मालवा-निमाड़ की इन आरक्षित सीटों पर बाहरी व्यक्तियों के उम्मीदवार बनाए जाने के पीछे पार्टियों की अपनी मजबूरी है। इन क्षेत्रों में स्थानीय नेतृत्व का अभाव बड़ी समस्या है। इंदौर में ही रहने वाले शिवराज सिंह चौहान के संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा रायसेन जिले के भोजपुर से चुनाव लड़ते हैं।

मध्यप्रदेश बनेगा भारत का स्टार्ट-अप हब,युवा उद्यमियों को नीति आयोग के सीईओ ने दिए सुझाव

ऑर्डिनरी पीपुल-एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी ड्रीम्स” की टैग लाइन पर आयोजित स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव का उद्घाटन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। इसके साथ ही उन्होंने स्मार्ट सिटी ऑफिस में लगाई प्रदर्शनी का भी उद़्घाटन किया। इसमें स्टार्ट अप कंपनियों के फाउंडर के साथ-साथ इन्वेस्टर्स, वेंचर कैपिटलिस्ट और पॉलिसी मेकर्स को आमंत्रित किया गया है। कॉन्क्लेव में युवा उद्यमियों को एक मंच मिलेगा,जहां वे अपने प्रोडक्ट और विचार पर बात रखेंगे। पहला सेशन शुरू हो चुका है, जिसमें नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत युवा उद्यमियों को टिप्स दे रहे हैं।

मध्यप्रदेश को भारत के स्टार्ट-अप हब बनाना

मध्य प्रदेश को भारत का स्टार्टअप हब के रूप में स्थापित करने के लिये कॉन्क्लेव में स्थापित उद्यमियों के साथ प्रदेश और अन्य राज्यों के युवा उद्यमियों को अपने विचार, नवाचार और उत्पादों के विषय में बताने और प्रदर्शित करने का मंच प्राप्त होगा। कॉन्क्लेव में कम्पनियों के फाउण्डर के साथ-साथ इन्वेस्टर्स, वेंचर केपीटिलिस्ट्स और पॉलिसी मेकर्स को आमंत्रित किया गया है। इनके अनुभवों का लाभ प्रदेश के युवा नव उद्यमियों को प्राप्त हो सकेगा।

सभी प्रमुख कॉलेजों में होगा कॉन्क्लेव का प्रसारण

स्टार्ट अप कंपनियों के सीईओं की कानक्लेव का प्रसारण प्रदेश के सभी प्रमुख कॉलेजों में किया जाएगा। चार सत्रों में होने वाली इस कॉन्क्लेव को मुख्य सचिव बीपी सिंह और नीति आयोग के सीईओं अमिताभ कांत के साथ विभिन्न स्टार्ट अप्स के सीईओं और फाउंडर संबोधित करेंगे। कॉन्क्लेव में आईआईएम, इंदौर, आईआईआईटी, ग्वालियर, उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज, एसजीएसआईटीएस, इंदौर, ज्ञान गंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड टेक्नालॉजी, जबलपुर, सागर यूनिवर्सिटी के छात्र और नव उद्यमी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कॉन्क्लेव में भाग लेने आये पैनलिस्ट से चर्चा कर सकेंगे।

भारतरत्न से सम्मानित लता मंगेशकर के जन्मदिन पर राष्ट्रपति सहित पीएम ने दी बधाई

भारतरत्न से सम्मानित स्वर-कोकिला लता मंगेशकर की गिनती अनमोल गायिकाओं में है। उनकी मधुर आवाज के दीवाने पूरी दुनिया में हैं। संगीत की मलिका कहलाने वाली लता मंगेशकर को कई उपाधियों से नवाजा जा चुका है। 28 सितंबर यानी आज लता मंगेशकर के जन्म की 89वीं वर्षगांठ है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिग्गज गायिका लता मंगेशकर को जन्मदिन की बधाई देते हुए उनके दीर्घायु जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की।

राष्ट्रपति ने ट्वीट कर कहा, ‘लता मंगेशकर को जन्मदिन और दीर्घायु व स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएं, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। उम्मीद करता हूं कि उनकी मधुर आवाज आगामी कई वर्षो तक दुयिनाभर के लाखों लोगों को मोहित करती रहेगी।’

लता मंगेशकर को ‘लता दीदी’ कहते हुए प्रधानमंत्री ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी। मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘लता दीदी आपके जन्मदिन पर आपको शुभकामनाएं। कई दशकों आपके असाधारण काम ने करोड़ों भारतीयों को प्रेरित किया है। आप हमेशा हमारे देश के विकास को लेकर जुनूनी रही हैं। आप अच्छे स्वास्थ्य के साथ दीर्घायु जीवन व्यतीत करें।

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को एक मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में हुआ। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मीं लता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी हैं। लता का पहला नाम ‘हेमा’ था, मगर जन्म के पांच साल बाद माता-पिता ने इनका नाम ‘लता’ रख दिया था। लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी हैं। मीना, आशा, उषा तथा हृदयनाथ उनसे छोटे हैं। उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे।

लता मंगेशकर का नाम सुनते ही हम सभी के कानों में मीठी-मधुर आवाज शहद-सी घुलने लगती है। आठ दशक से भी अधिक समय से हिन्दुस्तान की आवाज बनीं लता ने 30 से ज्यादा भाषाओं में हजारों फिल्मी और गैर-फिल्मी गानों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। लता ही एकमात्र ऐसी जीवित शख्सियत हैं, जिनके नाम पर पुरस्कार दिए जाते हैं।

व्यापमं घोटाला: कमलनाथ और कपिल सिब्बल पहुंचे भोपाल कोर्ट,आज होगी पैरवी

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की ओर से व्यापमं घोटाले में जिला अदालत में दायर किए गए मामले की पैरवी करने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल भोपाल अदालत पहुंच गए हैं। दिग्विजय सिंह ने इसी महीने 19 सितंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और इंदौर क्राइम ब्रांच के अफसर समेत 18 लोगों को आरोपित किया है। उन्होंने दावा किया है कि उनके पास इनकी संलिप्तता के सभी प्रमाण हैं। इसी मामले की आज सुनवाई होनी है।

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भोपाल की स्पेशल कोर्ट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सहित 18 अन्य लोगों के खिलाफ 27000 पन्नों की याचिका दाखिल की है। व्हिसिल ब्लोअर प्रशांत पांडेय के अनुसार दिग्विजय सिंह ने पहले यह केस सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था उसके बाद अब यह केस जिला कोर्ट में भी दायर किया है। इस मामले में दिग्विजय ने आरोप लगाए हैं कि इंदौर थाने में एक्सेल सीट से छेड़छाड़ की गई है और उनके पास इसके पर्याप्त सबूत हैं।

क्या था मामला?

मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने काफी पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शिवराज सिंह पर व्यापमं घोटाले में शामिल होने और इंदौर थाने में व्यापम से जुड़ी एक्सेल शीट में छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए थे। मामले में दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाए थे कि व्यापमं के सिस्टम एनालिस्ट नितिम महेंद्र के कंप्यूटर से जब्त की गई हार्ड डिस्क से तैयार की गई एक्सल सीट में छेड़छाड़ की गई है। हालांकि उस समय उन्होंने आरोप लगाए कि जहां जहां शिवराज से जुड़े नाम थे वहां वहां उमा भारती का नाम डाल दिया गया।

LIVE : पीएम मोदी ने कहा-मैं हमेशा से खुद को बोहरा समाज के करीब महसूस करता हूं

दाऊदी बोहरा समुदाय के धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन से भेंट के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंदौर पहुंच चुके हैं।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह सहित कई भाजपा नेताओं ने पीएम का स्वागत किया।

लाइव अपडेट्स

–  इंदौर में प्रधानमंत्री दाउदी बोहरा समाज के बीच दाउदी बोहरा समाज के धर्म गुरू से मिलने पहुंचे हैं।
– राज्य में दो माह बाद विधानसभा के चुनाव होना है
– इंदौर,उज्जैन एवं बुरहानपुर में दाउदी बोहरा समाज काफी संख्या में है
– मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषणा में जब प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया का सबसे लोकप्रिय् नेता कहा तो समुदाय के लोगों ने करतल ध्वनि से इसका समर्थन किया।
– बोहरा समाज की मस्जिद में हो रहा है कार्यक्रम
– सैयद्दाना  मुफद्दल सैफुद्दीन हैं समाज के धर्मगुरू
पीएम ने बोहरा समाज को संबोधित करते हुए कहा कि यहां मुझे आमंत्रित करने के लिए यहां मौजूद मेरे परिवारजनों को मैं शुक्रिया अदा करता हूं। इस पर वहां मौजूद लोगों ने जोर से अपनी खुशी जाहिर की।
– यहां आना उनके लिए प्रेरणादायी है:मोदी
– बोहरा समाज का आभारी हूँ: मोदी
– पीएम ने कहा कि मेरा भी बोहरा समुदाय के साथ रिश्ता है। मैं हमेशा से खुद को आपके करीब महसूस करता हूं।
– पीएम ने कहा कि आपका स्नेह मुझपर हमेशा बरकरार रहा है। मेरे दरवाजे भी इस परिवार के लिए हमेशा खुले हुए हैं। गुजरात में शायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां बोहरा समाज का व्यापारी प्रतिनिधि न मिले।
– पीएम ने अपनी योजना आयुष्मान भारत पर कहा कि पहली बार स्वास्थ्य को लेकर सरकार इतनी गंभीर हुई है। हम अमेरिका और यूरोप से भी ज्यादा बड़े स्तर पर इस स्वास्थ्य सेवा को लागू कर रहे हैं।
– पीएम ने कहा कि बोहरा समाज पोषण और स्वास्थ्य को लेकर हमेशा जागरूक रहा है। कम्यूनिटी किचन के जरिए आप ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि समाज का कोई आदमी भूखा न सोए।
– मुझे बताया गया है कि आपके प्रयासों से हजारों लोगों को अपना घर मिल चुका है। इसके अलावा शिक्षा और स्किल्ड क्षेत्रों में आपके प्रयास सरकार की मदद कर रहे हैं।
– पीएम ने घोषणा की कि ‘कल यानी 15 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक देश में स्वच्छता ही सेवा कार्यक्रम शुरू होगा। मैं समाज के अभिन्न अंगों को लोगों के साथ कल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करूंगा और हम सब स्वच्छता का काम करेंगे. हम देश दुनिया को स्वच्छता के लिए प्रोत्साहित करेंगे। मैं बोहरा समाज को भी इस अभियान के लिए आमंत्रित करने आया हूं। ‘
– पीएम ने कहा कि इंदौर तो स्वच्छता का सिरमौर बन चुका है। मैं यहां की राज्य सरकार और सीएम को, जनता को, विभिन्न कॉरोपोरेशन को बधाई देता हूं। मुझे बताया गया है कि अशरा मुबारक के इस प्रोग्राम को पर्यावरण मित्र बनाने की कोशिश की गई है। यहां प्लास्टिक बैग बैन किया गया है। यहां वेस्ट मटीरियल से फर्टिलाइजर बनाए जा रहे हैं।
– पीएम ने जीएसटी, मेक इन इंडिया की भी तारीफ की और कहा कि भारत निवेशकों का प्रिय बन गया है। भारत दुनियाभर की इकोनॉमी में सबसे तेज आगे बढ़ रहा है।

– पीएम ने अपने संबोधन को खत्म करते हुए कहा कि मुझे ये अवसर देने के लिए मैं बोहरा समाज को धन्यवाद करता हूं।

हवाई सुविधाओं के बहाने सियासी उड़ान भरने की कोशिश

भोपाल में हवाई सुविधाएं काफी कम हैं। इस बात से इंकार कोई नहीं करता। विमानन कंपनियां लोड न होने की बात करती हैं और उद्योगपतियों की शिकायत है कि भोपाल में एयर कनेक्टेविटी कम है, इस कारण निवेश नहीं आता। सरकारी अफसर भी इस बात को महसूस करते हैं कि भोपाल से देश की राजधानी दिल्ली का किराया कुछ ज्यादा है। दिल्ली और जयपुर के किराए से दुगना। दिल्ली और जयपुर के बीच की दूरी भी कम है। संभवत: इस कारण किराया भी कम है। वैसे भी पर्यटकों को लुभाने में मध्यप्रदेश से ज्यादा राजस्थान की सरकार को सफल कहा जा सकता है। पर्यटन के लिहाज से समृद्ध तो मध्यप्रदेश भी है लेकिन, पर्यटकों को हम लुभा नहीं पाए हैं। विमान सेवाओें की कमी का विवाद मुर्गी और अंडे के विवाद जैसा ही है। विमान कंपनियों की अपनी समस्या है और उद्योगपतियों की अपनी मजबूरियां। माधवराव सिंधिया जब देश के विमानन मंत्री बने थे, तब उन्होंने भोपाल से कई नई उड़ाने शुरू की थीं। उनके हटने के कुछ माह बाद ही ये विमान सेवाएं बंद हो गईं। किसी राज्य अथवा शहर में हवाई सेवाएं उपलब्ध कराने की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार की बनती है। केन्द्र और राज्य दोनों की ही सरकारों में राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखना चाहिए। जिस तरह वोट बैंक को बढ़ाने के लिए सरकार राजनीतिक निर्णय करती हैं, उसी तरह हवाई सेवाओं के विस्तार के लिए निर्णय लेना होता है। एयर इंडिया अभी भी केन्द्र सरकार के नियंत्रण में ही है। यदि कुछ रूट पर यात्रियों की संख्या कम है तो इससे होने वाले घाटे को सिर्फ सरकारी कंपनी ही वहन कर सकती है। सरकारी कंपनी का संचालन जनता के टैक्स से ही होता है। सरकारी कंपनी घाटे के बाद भी सेवाएं दे रही है तो निजी कंपनी भी प्रतिस्पर्धा के आधार पर अपनी जगह बनाने की कोशिश करती हैं। भोपाल में हवाई सेवाओं की कमी की बड़ी वजह राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव है।
मध्यप्रदेश हर लिहाज से समृद्ध है। जरूरत है तो ऐसे नौकरशाहों की है जो राज्य के लोगों के हितों के प्रति प्रतिबद्ध हो। वर्तमान नौकरशाही प्रदेश के लोगों के प्रति कम नेताओं के प्रति ज्यादा जवाबदेह हो गई है। राज्य की नौकरशाही को हवा में भी करतब दिखाने की कला हासिल है। भोपाल में हवाई सेवाओं के विस्तार के नाम पर सरकारी खजाने को लुटाने की कवायद फिर से शुरू हो गई है। नौकरशाही राजनीतिक स्तर पर नीतिगत फैसला कराने से पहले यह आकलन कर लेती है कि उसे नफा-नुकसान कितना है। मुख्यमंत्री को तो प्रचार के लिए पोस्टर बॉय की तरह उपयोग किया जाता है। यह बताने के लिए कि राज्य के लोंगो के हितों के लिए फैसला लिया है। राज्य में एयर कनेक्टीविटी के मामले में भी कुछ इसी तरह की कहानी सामने आती है। चाहे वह हवाई पट्टियों को लीज पर देने का मामला हो या फिर हवाई सेवाओं के विस्तार का। हर फैसले से लाभ में सिर्फ नौकरशाही रही। राज्य का हर छोटा-बड़ा नौकरशाह इस तथ्य को जानता है कि राज्य की हवाई पट्टियों को लीज पर देने का फैसला सिर्फ एक ताकतवर अफसर के पुत्र के भविष्य की खातिर लिया गया था। अब भी यदि सरकार भोपाल की हवाई सेवाओं के लिए चिंतित दिख रही है तो इसकी वजह भी सर्वोच्च नौकरशाही ही है। इससे पहले सरकार ने एयर होस्टेज, फ्लाइट स्टीवर्ड से लेकर पायलट तक की ट्रेनिंग के लिए छात्रवृतियां देने का फैसला कर चुकी है। राज्य में कुल 51 जिले हैं, इनमें से तीस जिलों में हवाई पट्टी अथवा विमानतल हैं। दमोह, शहडोल और नागदा में सार्वजनिक संगठन अथवा निजी क्षेत्र की हवाई पट्टियां हैं। दमोह में डायमंड सीमेंट शहडोल में ओरियंट पेपर मिल तथा नागदा में ग्रेसिम मिल की अपनी हवाई पट्टी है। इस बात का यहां उल्लेख करने की वजह यह है कि यदि उद्योगपति को  अपनी सुविधा के लिए हवाई पट्टी चाहिए तो वह उसका निर्माण स्वयं के खर्च पर करा लेता है। इंदौर में सबसे ज्यादा विमान सेवा उपलब्ध है। इसके बाद भी अनिल अंबानी ने रक्षा उत्पादन के लिए अपना कारखाना वहां नहीं लगाया। कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) उद्योगपतियों का संगठन है। इस संगठन में राकेश भारती मित्तल और उदय कोटक जैसे पदाधिकारी हैं। ये चार्टड प्लेन लेकर कभी भी कहीं भी जा सकते हैं। संगठन का उद्देश्य केवल अपने हितों तक ही सीमित रहता है। लगभग सभी राज्य सरकारों की उद्योग नीतियां तैयार कराने में इसी तरह के संगठनों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहती है। सीआईआई के सहयोग से ही मध्यप्रदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट जैसे आयोजन हुए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विदेश यात्राओं में भी इस संगठन की उपस्थिति उल्लेखनीय रहती है। सीआईआई यदि कोई प्रस्ताव सरकार को देता है तो उसे न कहना आसान नहीं है। बात जब जनहित को आधार बनाकर कही गई हो तो मानना सरकार की मजबूरी हो जाता है।
इंदौर के अलावा प्रदेश के अन्य किसी भी बड़े शहर की हवाई सेवाओं को संतोषजनक भी नहीं माना जा सकता। ग्वालियर वालों को जिस तरह मुंबई जाने में समस्या होती है, उसी तरह जबलपुर वालों को दिल्ली जाना तकलीफदेह होता है। विमान सेवाओं के अभाव से अकेला भोपाल ही नहीं जूझ रहा है। बेंगलूरू और भोपाल की दूरी इतनी ज्यादा है कि ट्रेन का सफर ऊबाऊ लगने लगता है। विमान कंपनियों की प्रतिस्पर्धा किसी से छुपी हुई नहीं है। तीन-चार साल पुरानी बात है। उड़ान का नया शेड्यूल जारी हुआ तो एयर इंडिया की भोपाल-दिल्ली उड़ान का टाइम बदल दिया गया। कारण यह था कि पुराने शेड्यूल के कारण जेट एयरवेज को नुकसान हो रहा था। दोपहर की एक उड़ान भी एयर इंडिया ने शुरू की वह भी बाद में बंद करना पड़ी। दिल्ली से भोपाल तक की एयर इंडिया की फ्लाइट का समय ऐसा है, जिसमें ज्यादातर लोग भोपाल एक्सप्रेस से सफर करना बेहतर मानते हैं। सीआईआई और एयरपोर्ट ऑथारटी ऑफ इंडिया के अलावा विमान कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ जो बैठक मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह द्वारा बुलाई गई थी,उसमें सरकार इंसेटिव देने के लिए ज्यादा उतावली दिख रही थी। विमान कंपनियों को इंसेटिव देने का मतलब होता है कि घाटे की पूर्ति करना। यह भी कह सकते हैं कि वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना। नौकरशाहों की मंशा यदि साफ होती तो बैठक में ही एविएशन फ्यूल की दरें घटाने और पार्किंग चार्ज कम करने के बारे में ठोस  पहल हो गई होती। विमान कंपनी के लोगों को सरकार के सामने शर्त नहीं रखना पड़ती। न ही मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह को यह उल्लेख करना पड़ता कि उनके बेटे को बेंगलूरू से भोपाल आने में कितनी दिक्कत होती है। सरकार सेवाएं बढ़ाने के लिए इंसेटिव देने के लिए भी उतावली दिखाई नहीं देती।
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बन जाने के बाद भोपाल से किसी भी जिले में अधिकतक सात से आठ घंटे में पहुंचा जा सकता है। सरकारी आंकड़े भले ही यह दावा करें कि प्रति व्यक्ति  सालाना आय बढ़ गई है लेकिन अभी भी बहुसंख्यक लोग हवाई सफर करने की स्थिति में नहीं है। अस्सी के दशक में भोपाल से रायुपर की दूरी को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने वायुदूत की विमान सेवा शुरू की थी। वायु सेवा ऐसी थी कि हवा में ही विमान का दरवाजा खुल जाता था। कम समय में ही सेवा को बंद करना पड़ा। दिग्विजय सिंह की सरकार में अर्चना एयरवेज को राज्य के भीतर सेवाएं देने का अनुबंध किया गया। सरकार इंसेटिव के तौर पर आठ सीटों का खर्च रोज उठाती थी। लगभग दो दशक पहले कई करोड़ रुपए गंवाने के बाद सरकार ने अनुबंध समाप्त कर दिया। भोपाल के लोगों ने इस सुविधा का उपयोग नहीं किया। मौजूदा सरकार ने भी वेंचूरा कंपनी से अनुबंध किया था। रोज तीन से पांच खाली सीटों का किराया सरकार देती थी। जल्द ही वेंचूरा को भी अपनी सेवाएं बंद करना पड़ी। कारण राज्य के भीतर की ही यात्राओं का किराया इतना था कि लोग इस पैसे से दूसरे बड़े शहरों तक चले जाएं। अब चुनाव नजदीक है तो फिर एक बार विमान सेवा बढ़ाए जाने की बात होने लगी है। वैसे चुनाव में विमान की जरूरत सभी को पड़ती है। इंसेटिव देने के पीछे राजनीतिक कारण ढूंढने वाले कम नहीं हैं।
दिनेश गुप्ता

केंद्रीय मंत्री गहलोत ने हवा में उड़ा दिया लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का सुझाव

इंदौर की सांसद सुमित्रा महाजन लोकसभा की अध्यक्ष हैं। सदन में अति सामान्य सदस्य की बिसात क्या प्रधानमंत्री भी लोकसभा अध्यक्ष के आदेश की अवहेलना नहीं करते हैं? आमतौर पर सदन में लोकसभा अध्यक्ष सत्ताधारी दल को बचाने की कोशिश करते हैं। लोकसभा अध्यक्ष का पद भी सत्ताधारी दल के पास ही होता है। दलीय प्रतिबद्धता के कारण भी लोकसभा अध्यक्ष अपनी सरकार का बचाव करते रहते हैं। लोकसभा अध्यक्ष एक सांसद भी हैं। इस कारण उनकी जिम्मेदारी जनता के प्रति भी होती है।

सामान्यतया सुमित्रा महाजन सरकार की नीति और नीयत पर कभी कोई सवाल खड़े नहीं करती हैं। इंदौर में दिव्यांगों को ट्राई साइकिल वितरित किए जाने के कार्यक्रम में उन्होंने हितग्राहियों की भावना को जब मंच से व्यक्त किया तो सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के मंत्री थावरचंद गहलोत और उनके अधिकारियों को लगा कि लोकसभा अध्यक्ष नीति पर प्रश्नचिंह लगा रही हैं। थावरचंद गहलोत मध्य प्रदेश के ही हैं और राज्यसभा सदस्य भी हैं। सुमित्रा महाजन के सुझावों पर गहलोत ने मंच से तो कुछ नहीं कहा लेकिन बाद में उन्होंने भारत सरकार की नीति को सही बताते हुए महाजन की जानकारी पर ही प्रश्नचिंह लगा दिया है।

सुमित्रा महाजन का सुझाव था कि दिव्यांगों को बैटरी वाली ट्राई साइकिल देने के बजाय पेट्रोल डीजल से चलने वाली ट्राई साईकिल दी जानी चाहिए। उन्होंने यह बात दिव्यांगों के अनुभव के आधार पर कहीं थी। दिव्यांगों का अनुभव यह है कि बैटरी वाली ट्राई साइकिल में मेंटेनेंस ज्यादा होता है। गहलोत का तर्क है कि बैटरी को चार्ज किए जाने के बाद ट्राई साइकिल 60 से 65 किलोमीटर चल सकती है इसलिए पेट्रोल डीजल की ट्राई साइकिल देने का कोई औचित्य नहीं है।

मदमस्त व्यवस्था और प्रशासन का राजनीतिकरण

लाल किले से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने व्यवस्था में आए बदलाव को लेकर जब हाथी का जिक्र किया तो एक साथ कई मुहावरे और कहावतें जहन में आ गईं। हाथी जब मदमस्त होता है तो वह कितनी तबाही मचा सकता है यह कल्पना करना भी मुश्किल भरा है। दिखाने और करने के विरोधाभासी कामों को बताने के लिए हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और की कहावत का सहारा लिया जाता है।  सफ़ेद हाथी एक मुहावरा है। जिसका प्रयोग एक ऐसी बहुमूल्य वस्तु के लिए किया जाता है जिसका मालिक न तो उससे छुटकारा पा सकता है और जिसकी लागत (विशेष रूप से रखरखाव की लागत) का अनुपात उसकी उपयोगिता या उसके मूल्य से अधिक होता है। सही मायने में यदि सफेद हाथी के मुहावरे को साकार रुप में देखना है तो देश की नौकरशाही को देख कर सफेद हाथी के रखरखाव पर होने वाले खर्चे का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। देश की नौकरशाही अब जनता के प्रति इतनी जवाबदेह नहीं रही जितनी की आजादी के बाद 50 सालों तक देखी जाती रही। अब नौकरशाही मदमस्त हाथी की तरह भी दिखाई देती है। कई राज्यों में नौकरशाही का सकारात्मक चेहरा भी समय-समय पर सामने आता है। ऐसी नौकरशाही जो राजनीतिक दबाव में प्रशासनिक निर्णय नहीं लेती है। उन्हें जनता की अदालत में ले जाती है। देश में अधिकारों का यदि किसी ने सबसे ज्यादा दुरूपयोग किया है तो उसमें नौकरशाही पहले नंबर पर देखी जाती है। देश के किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि मैं इतना साहस नहीं होता कि वह गलत आदेश अथवा किसी भाई भतीजे को गलत तरीके से लाभान्वित करा सके। नौकरशाही के सहयोग के बिना कोई भी कार्य किया जाना इस देश की संवैधानिक व्यवस्था में संभव नहीं है। देश प्रदेश में पिछले कुछ माह से भ्रष्टाचार के जिन मामलों की गूंज हो रही है उन्हें यदि बारीकी से देखा और समझा जाए तो यह तथ्य स्वत: सामने आ जाएगा कि घोटालों को दबाने में रूचि नेताओं की ज्यादा होती है या अधिकारियों की? मध्य प्रदेश में पिछले एक दशक में कई बड़े घोटाले उजागर हुए लेकिन उन घोटालों से सरकार ने कोई सबक सीखा हो और व्यवस्था में कसावट लाते हुए बड़े परिवर्तन किए हो ऐसा दिखाई नहीं देता है? मध्यप्रदेश में इस दशक का सबसे चर्चित घोटाला व्यापमं परीक्षा का घोटाला था। इस घोटाले के कारण सरकार को खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कई तरह के आरोप और तनाव का सामना करना पड़ा। घोटाला 5 साल पहले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उजागर हुआ था। चुनाव पर घोटाले का राजनीतिक असर ना पड़े, इसके लिए बड़ी चतुराई से मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित कर पर्दा डाल दिया गया था। मामले में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी हुइंर् और लोग जेल गए। सिस्टम में बैठे लोग इस तरह का घोटाला भी कर सकते हैं यह लोगों की कल्पना से परे था। राज्य की पुलिस द्वारा लंबी जांच पड़ताल की बाद में मामला आगे की जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई में व्यापमं का अध्याय लगभग समाप्त हो गया है। अधिकांश मामलों में सीबीआई अदालत में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। निचली अदालत मामलों में सुनवाई कर निर्णय भी कर रही है। लोगों के सामने यह सवाल अनुत्तरित ही है कि घोटाले की कड़ी जिन नेताओं और अफसरों से जुड़ी हुई थी आखिर उनके मामले सीबीआई जांच में सामने क्यों नहीं आए ? सीबीआई के बारे में सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यह पिंजरे में बंद तोते की तरह है। रिमोट कंट्रोल सीधे प्रधानमंत्री के पास होता है व्यापमं के मामले में 2014 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार ने इस कारण दिलचस्पी नहीं ली क्योंकि वह राज्य और संघ के झगड़े में नहीं पड़ना चाहते थे। राज्य सरकार भी मामले की जांच सीबीआई से नहीं कराना चाहती थी। जब मामला सीबीआई को गया तब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आ चुकी थी। लिहाजा जांच की दिशा वही रही जो तोते को क्लीन चिट का पाठ रटाने वाले चाहते थे। हाल ही में यह तथ्य उजागर हुआ कि ग्वालियर में मेडिकल की परीक्षा से जुड़े व्यापमं घोटाले के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज जलाए जा चुके हैं। लेकिन किसी के लिए भी यह सूचना गंभीर और चौकाने वाली नहीं है। जाहिर है कि व्यापम घोटाले को लोगों ने भुला दिया है? व्यापम की तरह मध्यप्रदेश में ऐसे अनेक घोटाले हुए हैं जिनकी जांच पांच-पांच साल के बाद भी खत्म नहीं हुई है। इनमें छात्रवृत्ति घोटाला भी एक है। गैर सरकारी संगठनों दिए जाने वाले अनुदान में होने वाले पक्षपात को कभी भी घोटालों के रूप में नहीं देखा गया। हाल ही में भोपाल में एक गैर सरकारी संगठन के संचालक द्वारा मूक बधिर लड़कियों का शोषण किए जाने का मामला उजागर हुआ है ।यह मामला इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करता है कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपनी भूमिका को सिर्फ कमीशन लेने तक सीमित कर रखा है। यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें किसी गैर सरकारी संगठन के संचालक ने लड़कियों का शोषण किया हो। लगभग 2 साल पहले इसी तरह का मामला शिवपुरी में भी उजागर हुआ था। क्योंकि मामला राजधानी भोपाल का नहीं था इस कारण सरकार ने भी उतनी सक्रियता नहीं दिखाई जितनी अब दिखा रही है। शिवपुरी की घटना से यदि सबक ले लिया होता तो भोपाल में यह शर्मनाक चेहरा सामने नहीं आता। दरअसल गैर सरकारी संगठनों के जनक ही नौकरशाह हैं। नौकरशाहों ने ही गैर सरकारी संगठनों को बेहतर सेवाएं देने के लिए अनुदान आधारित व्यवस्था की शुरुआत की। देश प्रदेश में ऐसे अनेक नौकरशाह हैं जिनके गैर सरकारी संगठन सरकार से अनुदान पा रहे हैं। आचरण नियमों के अनुसार नौकरशाह ऐसे किसी गैर सरकारी संगठन से नहीं जुड़ सकते हैं जिन्हें सरकार से सीधे कोई लाभ प्राप्त होता है। इस प्रावधान के बाद भी कई नौकरशाहों की पत्नियां अथवा पति गैर सरकारी संगठन संचालित कर रहे हैं। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वन में इनकी मदद भी विभिन्न स्तरों पर ली जाती है। सरकार ने कभी भी गैर सरकारी संगठनों को दिए जाने वाले अनुदान की नीति की समीक्षा नहीं की है
 देश में जनता घोटाले सुनने और उनको दफ़न होता देखने की शादी हो चुकी है। 80 के दशक में उजागर हुए बोफोर्स घोटाले की गूंज कई साल सुनाई देती रही। सत्ता परिवर्तन के साथ इस घोटाले की जांच का काम कभी तेज और कभी धीमा हो जाता था। इन दिनों राफेल घोटाला चर्चा में है। राफेल घोटाले का जिक्र यहां मध्य प्रदेश के संदर्भ में किया जा रहा है। 2014 में इंदौर में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में पहली बार रक्षा क्षेत्र के उत्पादनों के लिए एसईजेड बनाने का निर्णय लिया गया था। देश के जाने माने उद्योगपति अनिल अंबानी रक्षा क्षेत्र में निवेश के लिए उतावले थे। सरकार ने उनके लिए 200 एकड़ जमीन आरक्षित कर दी। यह कहा गया कि फ्रांस की कंपनी से अनिल अंबानी ग्रुप का समझौता हो चुका है। भारत में ही सेना के लिए रक्षा सामग्री का उत्पादन करेंगे। सरकार ने उनका लगभग 3 साल इंतजार किया लेकिन, एक पैसे का निवेश भी अनिल अंबानी ग्रुप द्वारा नहीं किया गया। मजबूरी में सरकार को जमीन का उपयोग अन्य कार्य के लिए करने का फैसला लेना पड़ा। अनिल अंबानी को जमीन देने के लिए सरकार ने कई तरह की नीति और नियमों में परिवर्तन भी किया। सरकार में पिछले कुछ सालों से यह देखने में आया है कि यदि किसी व्यक्ति विशेष को कोई लाभ देना हो तो नियमों में संशोधन उसके अनुरूप कर दिया जाएं। नौकरशाह इस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जबकि, उन्हें यह पता होता है कि इस निर्णय से राज्य को अथवा उसके लोगों को वास्तविक रूप में लाभ मिलेगा या नहीं? नौकरशाहों का यह रवैया जनता पर आर्थिक दबाव बढ़ाता है और वे सफेद हाथी की तरह दिखाई देते हैं। जनता के टैक्स से मिलने वाले वेतन का हक भी वे अदा नहीं करते हैं। घोटाले नौकरशाहों की आदत बनता जा रहा है और घोटाले की नियति ही दफना होना है।
दिनेश गुप्ता