सोनल भारद्वाज

अतीत में कांग्रेस ने कई गलतियां की हैं। सबसे बड़ी गलती तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आकलन करने में हुई है। गोधरा में हुई हिंसा के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मामले में कांग्रेस ने जो रणनीति अपनाई थी,वह आज भी उसके गले में फंसी हुई है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की पदयात्रा करनी पड़ी। इसके बावजूद वह अपनी गलती सुधारती दिखाई नहीं दे रही। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने यात्रा के समापन से पहले जिस तरह पुलवामा और सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में सबूत मांगे वह इस बात की ओर इशारा करने के लिए काफी है कि कांगे्रस ने अपनी अतीत की गलतियों से सबक नहीं लिया है। अन्यथा सर्जिकल स्ट्राइक का अध्याय फिर नहीं खोला जाता। यद्यपि कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह के बयान से पूरी तरह किनारा कर लिया है। लेकिन, जो नुकसान होना चाहिए वह हो गया। दिग्विजय सिंह का भी और कांग्रेस का भी।
दिग्विजय सिंह के बयान सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को लाभ पहुंचाते हैं। मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पिछले बीस साल से सिर्फ दिग्विजय सिंह के नाम का उपयोग चुनाव जीतने के लिए करती आ रही है। दिग्विजय सिंह खुद भी यह जानते हैं और मानते हैं कि उनके बयान से कांग्रेस के वोट कटते हैं। फिर भी वे कुछ ऐसा बोल जाते हैं,जिससे भाजपा नेताओं के चेहरे की चमक बढ़ जाती है। इस साल जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना है उनमें मध्यप्रदेश और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा की कोशिश धर्म के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की होगी। वैसे मध्यप्रदेश में पिछली बार कांग्रेस की सरकार बनाने में दिग्विजय सिंह की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी पंगत में जो संगत जमी थी उससे कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी नहीं उभर पाई थी। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की चिंता भी दिग्विजय सिंह से ही जुड़ी हुई है। चिंता का विषय वो वोटर हैं जो पहली बार विधानसभा के चुनाव में वोट डालने वाले हैं। इस वोटर ने दिग्विजय सिंह का शासन नहीं देखा है। सड़क,बिजली की स्थिति नहीं देखी है। इस वोटर ने राज्य में सिर्फ दो ही मुख्यमंत्री देखे हैं शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ। कमलनाथ की सरकार पूरा कार्यकाल किए बगैर ही चली गई। पंद्रह महीने के इस कार्यकाल पर शिवराज सिंह चौहान कई तरह के सवाल पूछ रहे हैं। सवाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी पूछ रहे हैं। मुख्यमंत्री के सवालों पर लोगों का हैरान होना स्वभाविक है। वैसे भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीति करने का तरीका अलहदा ही है। मंच के हिसाब से वे अपनी राजनीतिक भूमिका तय करते हैं। बहनों के भाई,मामा,श्रवण कुमार,नायक और न जाने कितने रूपों में शिवराज सिंह चौहान को उनके प्रशंसकों ने देखा है। लेकिन,विपक्षी दल से पंद्रह माह की सरकार के जवाब मांगने की उनकी इस रणनीति से सरकार और पार्टी से होने वाले सवाल राजनीतिक लाभ देंगे यह जरूरी नहीं है। कई सवाल भाजपा के भीतर भी उठ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कई बार की चर्चा के बाद शराब विरोधी अपनी मुहिम को विराम नहीं दिया है। भाजपा के आला नेता भी उमा भारती से बात कर उन्हें शांत रहने के लिए नहीं कह पा रहे हैं। उमा भारती की मुहिम भी किसी भी तरह से भाजपा को चुनाव में लाभ पहुंचाने वाली दिखाई नहीं देती। वैसे भी वे कह चुकी हैं लोधी समाज को सिर्फ इस आधार पर भाजपा को वोट नहीं देना चाहिए कि मैं उस दल में हूं? बहरहाल भाजपा के पास शिवराज सिंह चौहान का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन,संगठन में बदलाव के पक्षधर और दावेदार नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। पार्टी अध्यक्ष वीडी शर्मा भी शायद अब यह जान चुके हैं कि उन्हें शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के तौर पर पेश करने वाले लोगों ने ही प्रभात झा को भी विकल्प बनाने की कोशिश की थी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से चुनावी हवा को अपने पक्ष में बनाने में लगे हुए हैं। गरीबों को जमीन का हक देने के बाद उन्हें एक बार फिर बड़ा दांव महिला वोटरों पर खेला है। महिला वोटरों को लुभाने के लिए लाडली बहना नाम से एक नई योजना का ऐलान शिवराज सिंह चौहान की ओर से किया गया है। योजना के तहत महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपए नगद दिए जाएंगे। दक्षिण भारत में इस तरह की लो लुभावनी योजनाएं चुनाव के समय सामने आती हैं। उनका क्रियान्वयन भी किया जाता है। शिवराज सिंह चौहान की नीयत भी योजना के क्रियान्वयन की है। अभी सहरिया आदिवासी महिलाओं को हर माह उनके खाते में एक हजार रुपए सरकार दे रही है। बेसहारा और कल्याणी योजना में भी नगद राशि दी जा रही है। कांग्रेस के पास इस तरह की योजनाओं की कोई काट अभी दिखाई नहीं दी है। वैसे भी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इस तरह की योजनाओं को लेकर बहुत उत्साहित नजर नहीं आते। पंद्रह माह की उनकी सरकार ने शिवराज सिंह चौहान सरकार की अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन रोक दिया था। कांग्रेस पार्टी यह मानकर चल रही है कि वोटर शिवराज सिंह चौहान को पांचवी बार राज्य का मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहता? यह आकलन दूसरे लोगों का भी हो सकता है। लेकिन भाजपा अब चुनावी राजनीति में महारत हासिल कर चुकी है। जबकि कांग्रेस पार्टी में चुनावी राजनीति को समझने वाले लोग अब नजर नहीं आते। दिग्विजय सिंह समर्थकों के लिहाज से मजबूत नेता हैं। उनकी बात भी पार्टी का एक बड़ा वर्ग मानता है। लेकिन,समस्या उनके बोलों की है जो हंगामा खड़ा कर देते हैं। Sonal.kaushal14@gmail.com