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आदिवासियों की जमीन बेचे जाने के मामलों की जांच करने की तैयारी

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आदिवासियों की जमीन सामान्य वर्ग को बेचे जाने की अनुमति दिए जाने के मामला उजागर होने के बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार पूरे प्रदेश में इस तरह की अनुमतियों की जांच कराने पर विचार कर रही है। राज्य की लोकायुक्त संस्था ने तीन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ आदिवासियों की जमीन गलत ढंग से सामान्य वर्ग को बेचे जाने के मामले में आपराधिक प्रकरण दर्ज किया है।
यह पहली बार है कि आदिवासियों की जमीन सामान्य वर्ग को बेचे जाने का मामले का खुलासा हुआ है। जमीन बेचे जाने की अनुमति दिए जाने की शिकायत राज्य के लगभग हर जिले से आ रहीं थीं। ग्वालियर और जबलपुर संभाग अंतर्गत आने वाले जिलों में जमीन बेचे जाने की मंजूरी दिए जाने के मामले सबसे ज्यादा हैं। कुछ साल पहले सरकार ने सागर संभाग में इस तरह के मामले सामने आने के बाद एक आईएएस अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की थी। लोकायुक्त ने जिन तीन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की हैं वे दीपक सिंह,ओपी श्रीवास्तव और बसंत कुर्रे हैं। दीपक सिंह ग्वालियर संभाग के कमिश्नर हैं। ओपी श्रीवास्तव आबकारी कमिश्नर हैं। बसंत कुर्रे मंत्रालय में पदस्थ हैं। दीपक सिंह और ओपी श्रीवास्तव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसे वाले अफसर माने जाते हैं। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले लोकायुक्त द्वारा आपराधिक प्रकरण दर्ज होने के बाद विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के मामले में लगातार विपक्ष पर हमलावर हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार के तीन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज होने से विपक्ष को सरकार को घेरने के लिए एक नया मुद्दा मिल गया।
विपक्ष लगातार आदिवासी के शोषण और अत्याचार का मुद्दा लगातार उठा रहा है। हाल ही में सीधी में भाजपा कार्यकत्र्ता द्वारा एक आदिवासी के ऊपर पेशाब करने की घटना से सरकार बचाव की मुद्रा में है। विपक्ष से मुद्दा छिनने के लिए ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित आदिवासी को भोपाल मुख्यमंत्री निवास बुलाकर उसके पैर धुलाए और माफी मांगी। लेकिन,मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। अब आदिवासियों की जमीन नियमों के विपरीत  सामान्य वर्ग बेचने की अनुमति दिए जाने का मामला सामने आने से विपक्ष के हाथ नया मुद्दा लग गया है।
लोकायुक्त द्वारा दर्ज किए गए मामले में आरोप है कि जबलपुर में अलग-अलग समय एडीएम रहते हुए इन अधिकारियों ने आदिवासियों की जमीन बेचने की नियम विरुद्ध अनुमति दी थी। पुलिस ने 23 मार्च को प्रकरण दर्ज कर लिया था, लेकिन मामला बड़े अधिकारियों से जुड़ा होने के कारण किसी को भनक नहीं लगने दी। अब अधिकारियों को बयान देने के लिए नोटिस जारी हुए तो प्रकरण चर्चा में आया।

मामला वर्ष 2007 से 2012 के बीच जबलपुर के कुंडम क्षेत्र का है। भू-राजस्व संहिता के नियम के अंतर्गत आदिवासियों को जमीन बेचने की अनुमति देने का अधिकार जिला कलेक्टर को है।
बताया जाता है कि कलेक्टर ने इस मामले में अपने अधिकार एडीएम को स्थानांतरित कर दिए थे। विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त जबलपुर की जांच के बाद प्रकरण दर्ज किया गया  है।

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