Homeब्लॉग मध्‍यप्रदेश में विकास नहीं धर्म जाति के मुद्दे पर चुनाव की आहट

मध्‍यप्रदेश में विकास नहीं धर्म जाति के मुद्दे पर चुनाव की आहट

Published on

spot_img
उन्नीस माह की सरकार में कमलनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर सफल रहे या असफल यह चर्चा किया जाना अब ज्यादा जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि कांग्रेस के पास अपने वोटर को बताने के लिए वे कौन सी उपलब्धियां हैं,जिनके आधार पर वह नया जनादेश मांगेगी? एक बात तो तय है कि किसानों की कर्ज मुक्ति को कांग्रेस एक बार फिर बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने से पीछे नहीं हटेगी। यही वह मुद्दा था जिसके कारण पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पंद्रह साल के बाद सरकार में वापसी की थी।

सोनल भारद्वाज
वर्ष 2023 के आते ही चुनाव की दृष्टि से जो राज्य ध्यान में आते हैं उनमें मध्यप्रदेश भी एक है। मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण और दिलचस्प रहने वाले हैं। दिलचस्प इस मामले में हैं कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के पास सरकार में रहते हुए किए गए विकास कार्यो की लंबी सूची है। अब तक राज्य की राजनीति पूरी तरह से दो दलीय व्यवस्था पर चल रही है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। पिछले पांच साल के दौरान दोनों ही राजनीतिक दल सत्ता संभाल चुके हैं। राज्य की सत्ता में कांग्रेस सिर्फ उन्नीस माह ही सरकार में रही थी। कांग्रेस को जनादेश पांच साल के लिए मिला था। भले ही उसके पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। लेकिन,वोटर ने उसे सबसे ज्यादा सीटें देकर सबसे बड़ी पार्टी बनाया था। मामूली बाहरी समर्थन से सरकार आराम से चल रही थी। लेकिन,ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के दलबदल किए जाने के कारण रातों-रात भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन गई। बगैर किसी जनादेश के उसे सत्ता भी मिली। बाद में जनादेश हासिल कर पूरी तरह अपने पांव जमा लिए। उन्नीस माह की सरकार में कमलनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर सफल रहे या असफल यह चर्चा किया जाना अब ज्यादा जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि कांग्रेस के पास अपने वोटर को बताने के लिए वे कौन सी उपलब्धियां हैं,जिनके आधार पर वह नया जनादेश मांगेगी? एक बात तो तय है कि किसानों की कर्ज मुक्ति को कांग्रेस एक बार फिर बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने से पीछे नहीं हटेगी। यही वह मुद्दा था जिसके कारण पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पंद्रह साल के बाद सरकार में वापसी की थी। कांग्रेस पूरे पांच साल सरकार में रहती तो शायद उन सभी किसानों की कर्ज माफी हो जाती जिनके ऊपर दो लाख रुपए तक का कर्ज है। कमलनाथ सरकार ने अपने दो साल से भी कम के कार्यकाल में किसानों का सात हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया था। यह बात शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार विधानसभा के भीतर भी स्वीकार कर चुकी है। भारतीय जनता पार्टी के पास किसानों की कर्ज माफी के मुद्दे का क्या कोई तोड़ है? फिलहाल तो भाजपा इस मुद्दे के पास भी फटकती नहीं दिख रही है। कर्ज अदा न करने के कारण जो किसान डिफाल्टर हो चुके हैं,उनकी बात जरूर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं। डिफॉल्टर की ब्याज माफी और कर्ज मुक्ति में बड़ा अंतर है।
देश में हुए पिछले कुछ चुनावों में मुफ्त बिजली देने के वादे करते हुए भी राजनीतिक दल सामने आ रहे हैं। पंजाब में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की जीत में बड़ा योगदान मुफ्त बिजली के वादे का माना जा रहा है। मध्यप्रदेश पर भी अरविंद केजरीवाल की नजर है। वे यहं भी मुफ्त बिजली की बात कर सकते हैं। गुजरात में भी उन्होंने तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात कही थी,लेकिन वहां आम आदमी पार्टी दूसरा बड़ा राजनीतिक दल भी नहीं बन सकी। केजरीवाल पांच साल बाद कितने असरदार रहेंगे? कमलनाथ ने कांग्रेस की सरकार में सौ रुपए में सौ यूनिट बिजली देने की योजना शुरू की थी। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में दो सौ रुपए में सौ यूनिट बिजली देना शुरू की गई। यह तय है कि विधानसभा चुनाव में बिजली भी बड़ा मुद्दा बनने जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेबडी पॉलिटिक्स के खिलाफ हैं। यद्यपि केन्द्र सरकार ने मुफ्त खाद्यान्न की योजना को अगले एक साल के लिए और बढ़ा दिया। जाहिर है कि भाजपा हिन्दी पट्टी के राज्यों में मुफ्त राशन की योजना को बंद कर निचले तबके के वोटर की नाराजगी नहीं लेना चाहती। यह परंपरागत तौर पर कांग्रेस का वोटर रहा है। कांग्रेस ने गरीब की थाली को हमेशा ही चुनाव में मुद्दा बनाया है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में गरीबी की थाली ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराई थी। मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इसी साल चुनाव होना है। यहां की कांग्रेस सरकारें निचले तबके के वोटर को साधने के लिए कई योजनाएं पहले से ही चला रही है। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार की कई हितग्राही मूलक योजनाएं चल रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले शुरू की गई संबल योजना का कोई खास लाभ नहीं मिला था। पिछले चुनाव में भाजपा की हार में अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इस चुनाव में भाजपा का पूरा ध्यान आदिवासी वोटर पर है। अनुसूचित जाति वर्ग उसकी चिंता में शामिल नहीं है। प्रदेश भर में आदिवासी इलाकों में कई ऐसे धार्मिक आयोजन हो रहे हैं,जो कि देखने में गैर राजनीतिक लगते हैं लेकिन पीछे भाजपा नेताओं की सक्रिय भूमिका दिखाई देती है। भाजपा ने आदिवासियों के कई प्रतीक पिछले तीन साल में खड़े किए है। टंटया भील से लेकर शंकर शाह और रघुनाथ शाह तक के नाम पर कई आयोजन किए गए हैं। रानी कमलापति के जरिए गोंड आदिवासियों को साधने की कोशिश की गई है। लेकिन,वोटर में सकारात्मक बदलाव भाजपा को दिखाई नहीं दे रहा है। फिर भाजपा अपनी सरकार कैसे बचा पाएगी? यह बड़ा सवाल हर नेता के जहन में है। इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए ही भाजपा में लगातार बैठकों का दौर चल रहा है। मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के विधायकों से बात कर उन्हें क्षेत्र का फीडबैक दे रहे हैं। भाजपा इस बार अतिविश्वास में नहीं रहना चाहती। पिछली बार अतिविश्वास में रहने के कारण ही सत्ता हाथ से फिसल गई थी। पार्टी पूरे पांच साल विंध्य क्षेत्र पर ध्यान के्द्रिरत किए रही मगर ग्वालियर-चंबल हाथ से निकल गया। इस बार भाजपा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए सैकड़ों कार्यकर्ताओं को भी साधना है। वे इस चुनाव में पार्टी के साथ रहे तो आगे निपटने में आसानी रहेगी। चुनाव के वक्त किसी भी तरह का दलबदल पार्टियों को नुकसान पहुंचाता है।
जिस तरह का राजनीतिक वातावरण धार्मिक आधार पर निर्मित किए जाने की कोशिश की जा रही है,वह लोकतंत्र के लिए भले ही घातक हो लेकिन,भाजपा के लिए लाभ पहुंचाने वाली होती है। पठान फिल्म में दीपिका पादुकोण की ड्रेस में यदि धर्म तलाश किया जाएगा तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि चुनाव में विकास मुद्दा नहीं होगा। वैसे भी मध्यप्रदेश के हर जिले में इन दिनों फिजा धार्मिक आधार पर विभाजन की नजर आ रही है। कहीं मस्जिद का रास्ता विवाद का कारण बन रहा है तो कहीं मदरसे में पढ़ रहे हिन्दू बच्चे। आदिवासियों की घर वापसी के खबरें सुर्खियां बनी हुई हैं।
(लेखक आईएनएच न्यूज चैनल में पत्रकार एवं न्यूज एंकर हैं)

ताज़ा खबर

आपकी बात- कांग्रेस के पास है सरकार में वापसी का प्लान?

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से सरकार में वापसी करने के लिए कांग्रेस...

बहनों के जीवन में सामाजिक क्रांति का वाहक बनेगी “लाड़ली बहना योजना” – मुख्यमंत्री श्री चौहान

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज भोपाल के दुर्गा नगर में घर-घर जाकर पात्र...

कांग्रेस को हिन्दी पट्टी की चुनावी चुनौतियों से भी निपटना है

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम जन अपेक्षाओं के अनुरूप रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने...

संबंधित समाचार

आपकी बात- कांग्रेस के पास है सरकार में वापसी का प्लान?

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से सरकार में वापसी करने के लिए कांग्रेस...

बहनों के जीवन में सामाजिक क्रांति का वाहक बनेगी “लाड़ली बहना योजना” – मुख्यमंत्री श्री चौहान

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज भोपाल के दुर्गा नगर में घर-घर जाकर पात्र...

कांग्रेस को हिन्दी पट्टी की चुनावी चुनौतियों से भी निपटना है

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम जन अपेक्षाओं के अनुरूप रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने...