सोनल भारद्वाज

राहुल गांधी अपने बारे में बनी धारणा को जनमानस में बदलने में काफी हद तक सफल रहे हैं। राहुल गांधी की पदयात्रा को सौ दिन से ज्यादा हो गए हैं। उनकी पदयात्रा राजस्थान से निकलकर हरियाणा में प्रवेश कर चुकी है। यात्रा के दौरान राहुल गांधी हर दिन नए उत्साह से भरे नजर आते हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव और दिल्ली महानगर पालिका में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त की चिंता राहुल गांधी के चेहरे पर उभरकर नहीं आई।
अपवाद रूवरूप भी कोई ऐसा मामला याद नहीं आता जिसके चलते अपनी पदयात्रा के दौरान राहुल गांधी ने अपने घुर विरोधियों को आलोचना का अवसर दिया हो? इससे उलट कई मौकों पर विरोधियों के स्वर में राहुल गांधी को लेकर किया जाना वाला उपहास गायब दिखाई पड़ा। यद्यपि उनकी बढ़ती दाढ़ी को लेकर सोशल मीडिया पर टीका टिप्पणी जरूर देखने को मिल जाती है। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कई ऐसी पोस्ट सामने आईं जिनमें राहुल गांधी की बढ़ी हुई दाढ़ी वाली तस्वीर के साथ सद्दाम हुसैन की तस्वीर लगाई गई थी। ऐसी तुलनात्मक तस्वीर लगाने वालों का मकसद भी स्पष्ट है। यह मकसद वोटों के ध्रुवीकरण का ही होता है। ध्रुवीकरण भी धर्म और मजहब के आधार पर करने का। ऐसा करने वालों की छुपी हुई मंशा चिंता के रूप में अपने वोट बैंक को बचाने की दिखाई देती है। राहुल गांधी की पदयात्रा से उनकी मुख्य विरोधी पार्टी भाजपा को वोटों का नुकसान हो रहा है कि नहीं इस बारे में अभी कोई दावा किया जाना उचित नहीं है। लेकिन,यह दावा जरूर किया जा सकता है कि राहुल गांधी अपने बारे में बनी धारणा को जनमानस में बदलने में काफी हद तक सफल रहे हैं। राहुल गांधी की पदयात्रा को सौ दिन से ज्यादा हो गए हैं। उनकी पदयात्रा राजस्थान से निकलकर हरियाणा में प्रवेश कर चुकी है। यात्रा के दौरान राहुल गांधी हर दिन नए उत्साह से भरे नजर आते हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव और दिल्ली महानगर पालिका में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त की चिंता राहुल गांधी के चेहरे पर उभरकर नहीं आई।
गुजरात के चुनाव में कांग्रेस को मिली पराजय को उसका प्रतिवद्ध वोटर हजम नहीं कर पा रहा। चुनाव परिणाम के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस ने गुजरात में पूरी तरह वॉक ओवर दिया था। आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस के इस रवैये का भरपूर फायदा उठाया है। गुजरात विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के कारण ही आम आदमी पार्टी क्षेत्रीय से राष्ट्रीय राजनीतिक दल का तमगा हासिल करने में सफल रही है। जिस वक्त गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम आए थे,तब राहुल गांधी राजस्थान में थे। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ही गुजरात चुनाव की जिम्मेदारी कांग्रेस आलाकमान की ओर से दी गई थी। राहुल गांधी ने व्यक्तिगत दिलचस्पी गुजरात चुनाव में नहीं ली थी। सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी उदासीन दिखीं। गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। कांग्रेस की आक्रामक रणनीति के कारण भारतीय जनता पार्टी तीन अंकों में भी सीटें हासिल नहीं कर पाई थी। इस बार कांग्रेस से गुजरात में बेहतर करने की उम्मीद उसका वोटर लगाए हुए था। आम आदमी पार्टी की मौजूदगी कांग्रेस की बढ़त को रोकने के लिए ही मानी जा रही थी। देश में जितने भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल दिखाई पड़ते हैं,सभी ने किसी न किसी रूप में कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाई है। कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा खतरा क्षेत्रीय दलों से दिखाई पड़ता है। राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा क्षेत्रीय दलों से कांग्रेस का वोट बैंक वापस ला पाती है यह देखना दिलचस्प होगा। अंतत: हर राजनीतिक यात्रा का उद्देश्य अपने वोट बैंक को बढ़ाने का होता है।
राहुल गांधी या उनकी कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में वह गलती नहीं की जो मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद की थी। हिमाचल प्रदेश में प्रतिभा सिंह के स्थान पर सुखविंदर सिंह सुक्खू के रूप में नए चेहरे को मौका दिया गया। अन्यथा वहां भी स्थिति मध्यप्रदेश अथवा राजस्थान जैसी हो सकती थी। सुक्खू के चयन में प्रियंका गांधी की भूमिका सामने आ रही है। प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश में काफी आक्रामक चुनाव प्रचार किया था। इसका लाभ कांग्रेस को मिला। फिर सवाल यही खड़ा होता है कि गुजरात में कांग्रेस आक्रामक क्यों नहीं रही? क्या गांधी परिवार की कोई रणनीति थी?
राहुल गांधी की यात्रा हरियाणा में है। लेकिन,राजस्थान के सवाल जहां के तहां खड़े हुए हैं। हरियाणा में विधानसभा के चुनाव अभी दूर हैं। लोकसभा चुनाव के साथ ही हरियाणा के चुनाव होना है। पंजाब में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के कारण बड़ा नुकसान हुआ है। हरियाणा में भी नुकसान का खतरा है। राहुल गांधी की यात्रा का अंतिम पड़ाव कश्मीर है। कश्मीर में चुनाव का इंतजार लगातार किया जा रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कश्मीर में कांग्रेस अपनी वापसी कर पाती है या नहीं यह अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन,इस यात्रा के कारण भाजपा का चिंतित होना स्वभाविक है। भाजपा नेता भले ही राहुल गांधी की यात्रा को फ्लॉप शो प्रचारित करते रहे हैं लेकिन,मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में जो जन समर्थन उसे हासिल हुआ उसने चिंता में भी डाला है। रोज सोशल मीडिया पर राहुल गांधी अलग-अलग लोगों के साथ तस्वीरों में दिखाई पड़ रहे हैं। कभी भी वे कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से बात करते दिखाई दे रहे हैं तो कहीं अलग-अलग जाति, धर्म के लोग राहुल गांधी के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा करते हैं। ये तस्वीर इस बात की ओर इशारा करती हैं कि राहुल गांधी ने वोटर के बीच अपनी पहुंच बढ़ाई और छवि को बदला है। कोरोना को लेकर जिस तरह केंद्र की सरकार सक्रिय हुई है,उसे भी कहीं न कहीं राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा से जोड़कर देखा जा रहा है। चीन के अलावा कई देशों में कोरोना काबू के बाहर है। देश में हालात अभी सामान्य हैं। सरकार का सचेत रहने और लोगों को सचेत करना स्वाभाविक है। देश के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने राहुल गांधी से यात्रा रोकने की अपील कर इस गंभीर मसले की गंभीरता को खत्म कर दिया है। भाजपा सरकार की अपील पर राहुल गांधी अपनी यात्रा को बीच में नहीं छोड़ेगें। वे कह चुके हैं कि वे कश्मीर तक जाएंगे।
