अंबाह विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित विधानसभा सीट है।
2018 के आम चुनाव में इस सीट पर कांगे्रस उम्मीदवार के तौर पर कमलेश जाटव ने जीत दर्ज कराई थी।
निर्दलीय उम्मीदवार नेहा किन्नर दूसरे नंबर पर रहीं थीं।
नेहा किन्नर उप चुनाव में भी कूद पड़ी हैं। इस कारण बहुकोणीय मुकाबले के आसार बन रहे हैं।
कांगे्रस भाजपा के अलावा बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में है।
कमलेश जाटव को भाजपाई ही स्वीकार नहीं कर पा रहे
उप चुनाव में कूद-कूदकर कमलेश जाटव का विरोध करने वाले भाजपाई भी बहुत हैं।
कमलेश जाटव मार्च में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे।
हर सुरक्षित विधानसभा सीट पर सवर्ण वोट निर्णायक बन जाते हैं।
उम्मीदवार की उप जाति भी अहम भूमिेका अदा करती है।
कांगे्रस ने जाटव के मुकाबले में सत्यप्रकाश सखवार को मैदान में उतार है।
सखवार जन्मजात कांगे्रसी नहीं हैं।
दल बदलकर कांगे्रसी हुए हैं। वे बसपा से विधायक रह चुके हैं।
कांगे्रस सखवार के जरिए बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।

आरक्षित वर्ग के बीच भी जाति-उपजाति की लड़ाई
अंबाह सीट पर अनुसूचित जाति वर्ग की दो जातियों में बंटा है। सखवार और जाटव ।
आमतौर पर राजनीतिक दल उम्मीदवार भी इन्हीं जातियों के लोगों को टिकट देते हैं।
सखवार और जाटव में दो खेमे दिखाई पडते हैं। यहां माहौर और वाल्मीकि जाति के लोग भी है
लेकिन उनकी तादाद सखबार और जाटवों से कम है।
अम्बाह विधानसभा में पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की तादाद तो अच्छी खासी है
लेकिन यह उपजातियों में बंटे हैं जैसे राठौर, बघेल, गुर्जर आदि।
इस बिखराव के कारण पिछड़ा वर्ग की प्रत्येक उपजाति का अपना स्वतंत्र मत है
जिसके कारण इनके वोट बंटते रहते हैं।
अम्बाह विधानसभा सीट पर सामान्य वर्ग में तोमर राजपूत बाहुल्य है।
यही कारण है कि जब भाजपाईयों ने कमलेश जाटव की कमियां गिनाईं
केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को कहना पडा कि कमलेश नहीं सुनेगा तो मैं लोगों की बात सुनूंगा।
यहां। ब्राह्मण मतदाताओं की भी यहाँ अच्छी खासी तादाद है

यहां के युवाओं के लिये रोजगार की बड़ी समस्या है.
जिनके पास जमीन और आय के अन्य साधन नहीं है उनको बाहर का रुख करना पड़ता है।
मनरेगा जैसी योजनाओं में भी मशीनों का उपयोग बढने से रोजगार का संकट और गहराने लगा है।
अंबाह क्षेत्र की अधिकतर आबादी गांवों से आती है
जबकि आबादी का एक हिस्सा अम्बाह कस्बे में भी निवास करता है।
लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की कमी हैं।
अम्बाह जैसे कस्बे में जहाँ अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय, जनपद पंचायत कार्यालय और नगर पालिका है
वहां भी स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा ऐसा है कि
गंभीर मरीजों को मुरैना या ग्वालियर रैफर कर दिया जाता है ।
अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को वर्ष 2000 में जो जमीन सरकार ने दी थी,
उसका कब्जा उन्हें आज तक नहीं मिला है। कांगे्रस इस मुद्दे को हर चुनाव में उछालती है।

सखवार का सामान्य वर्ग से चलता है टकराव
कांग्रेस में अंबाह व दिमनी विस में प्रत्याशी घोषित होने के बाद
कांग्रेस के ही कार्यकर्ता विरोध में उतर आए हैं।
प्रत्याशी सत्यप्रकाश सखवार के खिलाफ कांग्रेस की ही यूथ विंग ने पुतला दहन किया।
सत्यप्रकाश सखवार का विरोध कर रहे युवाओं का कहना था
कि सत्यप्रकाश सखवार ने बसपा में रहते हुए सामान्य वर्ग के खिलाफ हरिजन एक्ट की कायमी कराईं।
कई स्थानीय कांग्रेसियों ने उनकी वजह से जेल की हवा खाई
और आज कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें ही प्रत्याशी घोषित कर दिया।
बसपा छोड़कर आए इन बाहरी प्रत्याशियों की वजह से कांग्रेस हार जाएगी।
नेहा किन्नर नंबर दो से एक पर पहुंचने की कोशिश
नेहा के मैदान में उतरने से इस बार भी पिछले चुनाव की तरह मुकाबला रोचक हो सकता है,
क्योंकि वह भाजपा, कांग्रेस एवं बसपा को इस सीट पर कड़ी टक्कर दे सकती हैं।
नेहा का संबंध बेड़िया समाज से है।
यहां इस वर्ग के मतदाता ज्यादा संख्या में हैं। वह इलाके में ह्यनेहा किन्नर के नाम से मशहूर हैं।
नवंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भी
उन्होंने अंबाह विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और दूसरे स्थान पर रही थीं।
तब वह कांग्रेस के उम्मीदवार कमलेश जाटव से मात्र 7,547 मतों से पराजित हुई थीं
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