dinesh gupta
राहुल गांधी, (Rahul Gandhi) ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के सक्रिय राजनीति में आने की कहानी में कई सामनताएं हैं। राहुल गांधी कांगे्रस पार्टी की जिस राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं,उसमें हर शीर्ष पद उनके लिए सुरक्षित है। राुहल गांधी,कांगे्रस के नेताओं के लिए भाग्य विधाता से कम नहीं हैं। भले ही वे शीर्ष पद पर रहें अथवा न रहें। पद स्वीकार करना अथवा न करने का उनका अधिकार भी सुरक्षित है। लेकिन,ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के साथ ऐसा नहीं है। राजनीति के ये दोनों चमकदार चेहरे भी अपने-अपने पिता की तरह कांगे्रस(Congress) की आतंरिक राजनीति से प्रताड़ित रहे हैं। सिंधिया और पायलट की उम्र आज लगभग उतनी ही जितनी उम्र में दिग्विजय सिंह और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। दिग्विजय सिंह 46 साल में मुख्यमंत्री बने और गहलोत 47 साल में इस पद आए। लेकिन, इससे पहले पार्टी ने इन दोनों नेताओं को लगातार किसी न किसी महत्वपूर्ण पद पर बैठाकर रखा।
रणदीप सुरजेवाला ने बताया था कि पायलट को दिया उम्र से ज्यादा

राजस्थान (Rajasthan) के राजनीतिक संकट को हल करने के लिए कांगे्रस पार्टी ने अजय माकन (Ajay Makan) और रणदीप सुरजेवाला (Randeep Surjewala) को पर्यवेक्षक के तौर पर जयपुर भेजा था। इनके साथ प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे (Avinash Pandey) भी थे। रणदीप सुरजेवाला (Randeep Surjewala) ने जयपुर जाकर एक नई बहस खड़ी कर दी। यह बहस कांगे्रस पार्टी में नेताओं को दिए जाने वाले पदों को लेकर है। सुरजेवाला ने कहा कि कांगे्रस पार्टी ने सचिन पायलट (Sachin Pilot) को कम समय में ज्यादा पद दिए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और सचिन पायलट दोनों की ही राजनीति में इंट्री दुर्घाटनावश मानी जाती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया और सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की मौत दुर्घटना में हुई थी। माधवराव सिंधिया (Madhav Raj Scindia) का हवाई दुर्घटना में और राजेश पायलट (Rajesh Pilot) का सड़क दुर्घटना में निधन हुआ था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता के परंपरागत निर्वाचन क्षेत्र से वर्ष 2002 में लोकसभा का उप चुनाव लड़ा था। सचिन पायलट (Sachin Pilot) 2002 में विदेश से लौटने के बाद कांगे्रस में शामिल हुए। उनके पिता का निधन वर्ष 2000 में हुआ था। पायलट 2004 में पहली बार दौसा से लोकसभा के लिए चुने गए। सिंधिया दूसरी बार लोकसभा में चुनकर पहुंचे थे। दोनों को अपने पिता की राजनीतिक विरासत के कारण कांगे्रस पार्टी ने यह मौका दिया था। कांगे्रस इन सुनिश्चित जीत वाली सीटों को गंवाना नहीं चाहती थी। दूसरी और राहुल गांधी ने भी लोकसभा का पहला चुनाव 2004 में ही लड़ा था। राहुल गांधी और सचिन पायलट का लोकसभा में प्रवेश एक साथ ही हुआ।
तीन साल में महासचिव और तेरह साल में सर्वेसर्वा बन गए राहुल
Rahul Gandhi
2004 के लोकसभा चुनाव से राहलु गांधी (Rahul Gandhi) को भी यह नहीं पता था कि उन्हें चुनाव लड़ना है। कांगे्रस की कमान प्रियंका गांधी को सौंपी जाएगी,यह संभावनाएं ज्यादा प्रकट की जाती थीं। राहुल गांधी प्रबंधन गुरू माइकल पोर्टर की कंपनी मॉनीटर गु्रप के साथ काम करते थे। इसके बावजूद राहुल गांधी का राजनीतिक प्रबंधन सबसे कमजोर साबित हुआ है। जनाधार वाले नेता लगातार पार्टी को छोड़ रहे हैं। राहुल गांधी 2007 में पार्टी के महासचिव बन गए थे। उनके पास युवक कांगे्रस और छात्र संगठन की जिम्मेदारी थी। इन दोनों संगठनों में चुनाव कराने का जो प्रयोग राहुल गांधी ने किया,उससे राज्यों में नेतृत्व उभर कर सामने नहीं पाया। राहुल गांधी, दिसंबर 2017 में कांगे्रस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। पार्टी के इस शीर्ष पद पर पहुंचने में उन्हें तेरह साल का समय लगा। सत्रह साल की राजनीति में सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष ही बन सके। मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी को कांगे्रस के आला नेताओं ने सचिन पायलट की महत्वाकांक्षा करार दिया। प्रिया दत्त ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया कि महत्वाकांक्षी होना कोई गलत नहीं है।
डेढ़ दशक में ही ताकतवर नेता बन गए थे दिग्विजय और गहलोत

ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) अपने पिता माधवराव सिंधिया (Madhav Raj Scindia) की तरह की कांगे्रस की गुटबाजी के शिकार बन गए। माधवराव सिंधिया का विरोध अर्जुन सिंह के अलावा दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और कमलनाथ (Kamalnath) ने किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की राह में रोड़ा भी दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ही बने। दिग्विजय सिंह 1971 में सक्रिय राजनीति में आए और राघोगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष बने थे। महज छह साल की राजनीति में उन्हें विधायक का टिकट मिल गया। नौ साल बाद वे अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में कृषि राज्य मंत्री बन गए। युवक कांगे्रस के महासचिव रहे। इंदिरा गांधी के हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में राजगढ़ से सांसद निर्वाचित हुए। 1985 में मध्यप्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष बना दिए गए। मात्र चौदह साल की सक्रिय राजनीति में उन्हें प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष का पद मिल गया था। वे फरवरी 88 तक इस पद पर रहे। 1989 का लोकसभा चुनाव वे हार गए थे। लेकिन, 91 में जीत गए। फरवरी 1992 में वे दूसरी बार प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष बन गए। 1993 में राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई। कुल 22 साल का समय राज्य के इस शीर्ष पद तक पहुंचने में लगा। दस साल मुख्यमंत्री रहने के बाद पार्टी में महासचिव बनाए गए। राज्यसभा जाने का मौका भी मिला।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot) का जन्म 1951 का है। वे 1974 से 1979 तक कुल पांच साल भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद से ही लगातार वे किसी न किसी पद पर बने हुए हैं। पांच बार लोकसभा का टिकट मिला। पहली बार 1980 में लोकसभा के लिए चुने गए। पहली ही बार में वे केन्द्र में उप मंत्री भी बन गए। लगभग 18 साल लोकसभा सदस्य रहे। 1985 में पहली बार प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष बन गए। उस वक्त गहलोत की उम्र चौंतीस साल थी। एनएसयूआई से प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष पद तक पहुंचने में उन्हें सिर्फ ग्यारह साल का समय लगा। उनकी उम्र 34 साल थी। पायलट 36 साल की उम्र में कांगे्रस के प्रदेशाध्यक्ष बने । एनएसयूआई अध्यक्ष पद से हटने के मात्र छह साल में ही गहलोत पीसीसी अध्यक्ष बन गए। गहलोत तीन बार प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष बनाए गए। गहलोत पहली बार वर्ष 1998 में राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए थे। बीस साल की राजनीति में वे इस पद तक पहुंच गए थे। गहलोत 29 साल की उम्र सांसद बने। 31 साल की उम्र में केन्द्रीय मंत्री बन गए। पायलट 32 साल की उम्र में केन्द्र में मंत्री बने। जबकि पायलट 26 साल की उम्र में और ज्योतिरादित्य सिंधिया 31 साल की उम्र में पहली बार सांसद निर्वाचित हुए। सिंधिया को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह 36 साल की उम्र में मिली।

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