पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक बार फिर छह साल के लिए तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष चुन ली गईं हैं। तृणमूल कांग्रेस में ममता के सामने कोई चुनौती भी नहीं है। पार्टी का गठन ममता बनर्जी ने ही कांग्रेस से अलग होकर किया था। वे पार्टी की स्थापना के दिन से ही इसकी अध्यक्ष हैं। कोलकाता में आज हुए चुनाव में दस राज्यों के लगभग चार हजार प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ममता को अध्यक्ष चुना गया। ममता ने कहा कि कार्यकर्त्ता ही रहना चाहतीं थी।
पहली चुनौती स्थानीय चुनाव
ममता बनर्जी के सामने पार्टी के भीतर कोई चुनौती नहीं है। पार्टी में वे उसी तरह लोकप्रिय हैं जिस तरह तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक नेता जयललिता थीं। ममता के सामने मुलायम सिंह यादव के समान स्थितियां भी आने की संभावना नहीं है। ममता बनर्जी के सामने पहली चुनौती वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव की है। ममता देश की चुनिंदा नेताओं में एक है, जिनके राज्य में नरेन्द्र मोदी की लहर बेअसर रही है। नीतिश कुमार और अरविन्द केजरीवाल भी इसी सूची में शामिल हैं। पंचायत चुनाव के परिणाम से तय होगा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी पश्चिम बंगाल में अपनी हार का बदला ले पाएंगे या नहीं। ममता बनर्जी के कारण ही वाम दलों के पैर पश्चिम बंगाल में उखड़ रहे हैं।
साबित की क्षमता और निर्णयशक्ति
ममता बनर्जी एक ऐसी महिला है जिन्होंने ने बंगाल से 34 साल के मजबूत साम्यवादी सरकार को उखाड़ फेंका। वे एक लौह महिला हैं और अपने भड़काऊ राजनीति से लेकर पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री बनने के सफ़र में उन्होंने अपने राज्य का राजनैतिक इतिहास फिर से लिखकर अपनी क्षमता और निर्णयशक्ति साबित कर दी है। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सार्वजनिक रैलियो को संबोधित करना और धरना करना ये ममता की ताकत थी। सिंगूर और नंदीग्राम में जबरन ज़मीन हथियाने पर उन्होंने विरोध किया था जिससे पश्चिम बंगाल की जनता में वे काफी लोकप्रिय बन गई। सफ़ेद, साधारण सूती साड़ी और सूती झोला उन्हें अन्य नेताओं से अलग करता है। अपने उत्साहपूर्ण भाषणों से वे लोगो को प्रोत्साहित करती हैं जिसके वजह से पश्चिम बंगाल की जनता में वे काफी लोकप्रिय हैं। अपने प्रभावशाली भाषण में टैगोर और अन्य कविओं के उचित उद्धरण सुनाकर उन्होंने सामान्य जन मानस को अपनी तरफ आकर्षित किया।