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भारत के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 71 सांसदों ने राज्यसभा के उपसभापति वेंकैया नायडू को महाभियोग का प्रस्ताव भेजा।

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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के मामले पर कांग्रेस बंटी नजर आ रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट वकील सलमान खुर्शीद ने 20 अप्रैल 2018 को कहा कि वे इस फैसले में शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले या उसके नजरिए से असहमत होने की वजह से इसे बिना सोचे-समझे नहीं लाया जा सकता है। उधर, महाभियोग प्रस्ताव पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर नहीं होने पर कांग्रेस ने कहा कि हमने उनसे अप्रोच ही नहीं किया था। बता दें कि कांग्रेस ने 20 अप्रैल 2018 को 7 दलों के साथ राज्यसभा के उपसभापति वेंकैया नायडू को चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस सौंपा है।

महाभियोग गंभीर मुद्दा, इसे सोच समझकर लाना चाहिए                      

सलमान खुर्शीद ने कहा महाभियोग प्रस्ताव काफी गंभीर मुद्दा है। सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के फैसले या उसके नजरिए से असहमत होने की वजह से इसे बिना सोचे-समझे नहीं लाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वे इस प्रस्ताव से जुड़े नहीं हैं और ना ही उन्हें दूसरी पार्टियों से हुई चर्चा की कोई जानकारी है। इसलिए इस मुद्दे पर टिप्पणी करना ठीक नहीं है। ये दुख का विषय है, जिसका देश को सामना करना पड़ रहा है। देश में और भी बड़ी समस्याएं हैं, जिनका हम सामना करते तो उम्मीद बढ़ती। अलग-अलग संस्थाओं का टकराव देश के लिए कैसा है, अब इस पर जनता विचार करेगी।

-चीफ जस्टिस के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव पर डॉ. मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर नहीं होने और उनके इसके विरोध में होने के सवाल पर कपिल सिब्बल ने कहा, “यह खबरें पूरी तरह गलत हैं। यह बहुत ही गंभीर मामला है। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। कोई फैसला लेता है तो बड़ी गंभीरता के साथ लेता है। क्योंकि संविधान की बात हो रही है। एक संस्थान की बात हो रही है। हमने जानकर डॉ मनमोहन सिंह को इसमें शामिल नहीं किया। वे पूर्व प्रधानमंत्री हैं।”
-मनमोहन सिंह महाभियोग प्रस्ताव लाने के फेवर में नहीं हैं। यही वजह है कि उन्होंने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए। बता दें कि 64 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं।यह प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों की सहमति की जरूरत होती है।

मुख्य न्यायधीश पर लगे 5 आरोप :
1 प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट केस मुख्य न्यायधीश से सम्बंधित लोगो को गैरकानूनी लाभ दिया।
2 मुख्य न्यायधीश ने आचार संहिता के सिद्धांत को ताक पर रखा, केस की     सुनवाई में खुद मौज़ूद रहे।
3 मुख्य न्यायधीश ने पहले से तैयार नोट फर्जीवाड़ा का डेटा बदलकर आदेश में जुड़वाया।
4 गलत हलफनामा देकर ज़मीन पर कब्ज़ा किया ,अलॉटमेंट रद्द होने पर भी वापस नहीं की ज़मीन।
5 तय नतीजे पाने के लिए जजों का मनमाना चयन किया ,मर्यादा का ध्यान नहीं रखा।

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