मोहनदास करमचंद गांधी।महात्मा गांधी का पूरा नाम यही था। महात्मा गांधी एक व्यक्ति नहीं थे पूरी विचारधारा थे। इस विचारधारा के कुछ अंश आज भी विभिन्न राजनीतिक दलों में यदाकदा जोर मारते दिखाई देते हैं।देश महात्मा गांधी द्वारा दिखाई गई राह पर चल रहा है यह इस आधार पर प्रमाणित किया गया कि कांग्रेस पार्टी को जनता सत्ता सौंप रही थी। जनता का मोह कांग्रेस से भंग होता हुआ दिखाई दिया है। महात्मा गांधी की विचारधारा क्या थी? क्या महात्मा गांधी की विचारधारा में धार्मिक असहिष्णुता कोई जगह थी ?

गांधी की विचारधारा में व्यक्ति का स्थान क्या था? व्यक्ति और परिवारवाद को महात्मा गांधी कितना स्थान देते थे? कांग्रेस की प्रासंगिकता आजादी के बाद कितनी बची? इसके बारे में अलग-अलग नजरिए भी सामने आते हैं। कॉन्ग्रेस गांधी की विचारधारा को शायद ठीक से समझ नहीं पाई और अपना नहीं पाई। महात्मा गांधी के नाम पर राजनीति वह लोग करते दिखाई देते हैं जिनका वास्ता प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर परगांधी की सोच से मेल नहीं खाता। भारतीय मुद्रा हो या शहरों कस्बों के बाजार हर जगह महात्मा गांधी का नाम देखने, सुनने को मिल जाता है।

कुछ नहीं होगा तो गांधी की एक छोटी सी मूर्ति जरूर लगी मिल जाएगी। गांधीवादी स्वमेव धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं। वह भले ही भूतों के तुष्टिकरण की राजनीति करें ! गांधीजी की पहचान उनका चश्मा है ।उनकी लाठी है।लेकिन, मौजूदा दौर के राजनेताओं की आंखों पर जो चश्मा लगा है उसमें वह व्यक्ति शायद लुप्त हो गया है। जिसको लेकर महात्मा गांधी चिंता करते नहीं थकते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन भी व्यक्ति के केंद्र में हैं।

अंतिम पंक्ति का व्यक्ति। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अभी तक देश के महानगरों नगरों, कस्बों और गांवों की सड़कों पर अपने नाम को अंकित नहीं कराया है। ना हीं चौराहे- चौराहे पर उनकी मूर्तियां दिखाई दे रही है। रेलवे स्टेशन को उनकी विचारधारा के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जा सकता है?
राजनीतिक दल सत्ता में अपनी विचारधारा के कारण ही आते हैं। जब एक विचारधारा पराजित होती है तब दूसरी विचारधारा का परचम सत्ता के शीर्ष पर लहराता है। एकात्म मानववाद, सत्ताधारी दल का नीति वाक्य माना जा सकता है। यद्यपि सरकार की नीतियों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद कम नजर आता है। पूंजीवाद ज्यादा नजर आता है। शासन संचालन के महत्वपूर्ण तत्वों में नौकरशाही की भूमिका काफी निर्णायक होती है।
हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों से भी ज्यादा। जनहित की प्रारंभिक नीतियां नौकरशाहों के नजरिए पर आधारित होती हैं? यह नजरिया क्या आम आदमी का नजरिया होता है या फिर औद्योगिक घरानों की जरूरतों के अनुसार?
नियम- कायदे, नीतियां बनाई और संशोधित की जाती हैं। न्यायपालिका की भूमिका पर कई तरह के विचार विमर्श होते रहते हैं। आमजन न्यायपालिका को अपने हित चिंतक की तौर पर नहीं देखता है। शायद इसकी वजह न्याय में बिलंब और महंगा न्याय होना हो सकता है। सांसद -विधायक चुने जरूर जनता के द्वारा दिए जाते हैं, लेकिन जनता की अहमियत केवल चुनाव के वक्त ही देखने को मिलती है।
दीनदयाल पथ नाम का एक कॉलम पावर गैलरी के पाठकों के लिए जल्द शुरू कर रहे हैं। इसमें सरकार की रीति- नीति के बारे में विश्लेषण विवेचना यथा.संभाव तो होगी ही,साथी पावर गैलरी( सत्ता के गलियारे) के ताकतवर लोग के बारे में सूचनाएं और उनकी गतिविधियों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। कॉलम जल्दी ही शुरू किया जा रहा है। थोड़ा इंतजार कीजिए ।
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