जौरा से टिकट के दावेदार ऐसे कई नेता हैं,जो उप चुनाव के लिए इस सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की पंसद का उम्मीदवार तय न करने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
जौरा सीट का उप चुनाव कांगे्रस विधायक बनबारी लाल शर्मा के निधन के कारण हो रहा है।
दशकों से इस सीट पर सिंधिया ही कांगे्रस उम्मीदवार का टिकट तय करते रहे हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब कांगे्रस पार्टी छोड़ी उसके पहले ही बनबारी लाल शर्मा का निधन हो गया था।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वे भी कांगे्रस पार्टी से इस्तीफा देकर सिंधिया के साथ भाजपा में चले जाते। भारतीय जनता पार्टी का हर बड़ा नेता इस सच को जानता है।
जौरा में ब्राह्मण चेहरा होगा असरकार,अनूप भी दावेदार
शर्मा का निधन 21 दिसंबर 2019 को हुआ था।

छह माह के भीतर रिक्त हुई सीट पर उप चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है।
24 मार्च से हुए लॉकडाउन के कारण चुनाव आयोग ने निर्वाचन प्रक्रिया को टाल दिया है।
भाजपा से इस सीट पर मुख्य दावेदारों में पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा भी हैं।
यद्यपि वे सीधे तौर टिकट की मांग नहीं कर रहे हैं।
ग्वालियर-चंबल अंचल में ब्राह्मण वोटों को साधने का फार्मूला लगाया जा रहा है।

जौरा में टिकट को लेकर दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों में सियासत चल रही है,
उसमें दोस्त और दुश्मन की पहचान आसान नहीं है।
ग्वालियर से विधायक, मंत्री और
मुरेना -श्योपुर सांसद रहे अनूप मिश्रा का नाम भाजपा के उनके समर्थक जौरा से जितना उछाल रहे है ।
उससे ज्यादा कांग्रेस के खेमे से उनका नाम हाथ छाप भाजपाई के तौर पर उछाला जा रहा है ।यह एक काल्पिनक अनुमान है
अनूप मिश्रा पार्टी छोड़ कर अगर कांग्रेस में जाते हैं तो वहां उनका गर्मजोशी से स्वागत तो होगा ? उन्हें टिकट भी हाथो हाथ मिल सकता है
अनूप मिश्रा के साथ जब भी इस तरह की चर्चाएं चलीं गलत निकलीं।
वे शायद ही उस पार्टी को छोड़ने का नैतिक आधार पर निर्णय ले पाएं
प्रिय मामा अटल बिहारी वाजपेयी का नाम जुड़ा है।
टिकट के लिए हर कांग्रेसी बता रहा कट्टर सिंधिया विरोधी
सिंधिया के भाजपाई हो जाने के बाद कांगे्रस में हर नेता टिकट पाने की उम्मीद लगाए बैठा है।

सिंधिया कोटे से भाजपा की टिकट के दावेदारों की इस सूची में पहला नाम कैलाश मित्तल का है।
जौरा के वैश्य समाज में इनका प्रमुख स्थान है
मित्तल खुद और उनकी पत्नी दोनों ही राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं।
इन्होंने पूरे जीवन कांग्रेस की राजनीति की है । इस इलाके की राजनीति सिंधिया के मन मुताबिक चलती देख इन्होंने भी खुद को कट्टर सिंधिया भक्त बनाया।
जौरा के अलावा वे सबलगढ़ से भी टिकट की दावेदारी करते रहे हैं। किसी भी एक सीट पर इनकी दावेदारी महाराज मान लें
इसके लिए पिछले कई सालों से ये तन मन धन से भगीरथ प्रयास में लगे रहे हैं।
वैश्य वर्ग बाहुल्य बाले कैलारस के जुड़ जाने से अपना दावा मजबूती से प्रस्तुत करते रहे हैं ।
वैश्य समाज से टिकट की मांग को किसी पार्टी ने कभी गम्भीरता से नही लिया
जबकि कई जगह उनके अच्छे खासे वोट हैं ।
कांगे्रस में मानवेन्द्र गांधी प्रमुख दावेदार: प्रदीप शर्मा भी कतार में
सिंधिया ने भी नही लिया नतीजे में कैलाश मित्तल प्रयास ही करते रहे गए अब जब सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन कर ली है तो मित्तल भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए है
यहां भी उन्होंने टिकट का अपना दावा प्रस्तुत कर दिया है ।
कैलाश मित्तल का दावा तो उचित है लेकिन उसका इस उप चुनाव में पूरा हो पाना मुश्किल है
सिंधिया चाह कर भी उनका नाम प्रस्तावित नही कर सकेंगे। उनको अभी अपने 3 लोगों को टिकट दिलाना है।
कहा जा रहा है कि भाजपा से उनके समझौते में जौरा सीट वैसे भी सिंधिया कोटे में नहीं जा रही।
कांगे्रस में भी सौ बीमार की स्थिति है। प्रमुख नाम मानवेन्द्र गांधी का है। वृन्दावन सिकरवार के बेटे हैं।
अपने पिता बृन्दावन सिंह सिकरबाार के साये में राजनीति करने बाले मानवेन्द्र के नाम के साथ उनकी राजपूत पहचान हैं।
गांधी उपनाम लिखा जाता है। गांधी उपनाम उनके शुभ चिंतकों ने दिया है।
ताकि वे एहसास ए कमतरी के शिकार होकर खुद को राजपूत बना सकें
लेकिन गांधी सरनेम ने ऐसा होने नही दिया ।
अब वे राजनीति में बहुत थोड़े पाए जाने बाले गांधी उप नाम धारियों में से एक हैं।
2018 में उनके पिता ने उनके लिए हाथी का टिकट खरीदा और सुमावली से उन्हें पहले चुनाव में उतार दिया।
उनके कज़िन सत्यपाल सिंह सिकरबार नीटू जो वहां से भाजपा के विधायक थे को अपनी दावेदारी तक छोड़नी पड़ी थी।
कांगे्रस के बड़े नेताओं से राजनीतिक और व्यवसायिक रिश्तों के कारण पंकज उपाध्याय का नाम चर्चा में हैं।
वे इंदौर से जौरा आए हैं। सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए।
स्वर्गीय बनबारी लाल शर्मा के पुत्र प्रदीप शर्मा भी कतार में हैं।
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