6 अक्टूबर को एकता परिषद के दिल्ली मार्च में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिस्सा लिया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इस मंच तक पहुंचने के लिए अपने एक विधायक रामनिवास रावत की सीट बदलना पड़ रही है। रामनिवास रावत मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक हैं। वे पिछले 28 साल से इस क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे हैं। रामनिवास रावत का निर्वाचन क्षेत्र श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा सीट है। श्योपुर जिला राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। श्योपुर जिले में सहरिया आदिवासी वोट निर्णायक माने जाते हैं। इस आदिवासी वोट बैंक पर एकता परिषद का गहरा प्रभाव है। आदिवासी उसे ही वोट देते हैं जिसे देने का निर्णय एकता परिषद के नेता करते हैं।

आदिवासी वोट कांग्रेस को दिलाने के बदले में एकता परिषद के नेताओं ने विजयपुर की सीट उनके उम्मीदवार को देने की मांग राहुल गांधी के समक्ष रखी थी। राहुल गांधी ने इस मांग को तत्काल मंजूर भी कर लिया। बताया जाता है कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को कहा था कि रामनिवास रावत को किसी ओर सीट पर चुनाव लड़ने के लिए भेज दिया जाए। रामनिवास रावत को दो विकल्प कमलनाथ की ओर से दिए गए थे। पहला श्योपुर और दूसरा सबलगढ़ विधानसभा सीट का विकल्प दिया गया था। सबलगढ़ सीट मुरैना जिले में आती है। बताया जाता है कि रामनिवास रावत ने पहले श्योपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया था। लेकिन, कांग्रेस नेता तुलसीनारायण मीणा के बसपा में शामिल होने के बाद उन्होंने अपना ध्यान सबलगढ़ पर केंद्रित कर दिया है।

सबलगढ़ मुरैना जिले में आता है। यह क्षेत्र रावत बाहुल्य क्षेत्र है। पिछले चुनाव में इस सीट पर भाजपा के मेहरबान सिंह रावत चुनाव जीते थे। मेहरबान सिंह रावत की टिकट कटने की चर्चाएं भी भाजपा में चल रहीं हैं। रामनिवास रावत को यदि कांग्रेस सबलगढ़ से उम्मीदवार बनाती है तो भाजपा को मजबूरी में मेहरबान सिंह रावत को उम्मीदवार बनाना होगा। रामनिवास रावत की सीट विजयपुर से जिला पंचायत के सदस्य गोपाल भास्कर का नाम कांग्रेस के टिकट के लिए एकता परिषद ने कांग्रेस अध्यक्ष को सुझाया है।

रामनिवास रावत कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हैं। वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष भी हैं। श्री रावत ने वर्ष 1990 में विजयपुर से पहली बार चुनाव लड़ा था। वे वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। पिछले दो चुनाव से उनकी जीत का अंतर लगातार कम हो रहा है। इसकी वजह एकता परिषद का झुकाव भाजपा की ओर रहा है। एकता परिषद पिछले दो चुनाव से इस क्षेत्र में भाजपा का समर्थन करती आ रही है। कोलारस विधानसभा के उप चुनाव के दौरान एकता परिषद और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया करीब आए थे। राहुल गांधी की एकता परिषद के नेताओं से मुलाकात में भी सिंधिया की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही थी।
