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चुनाव आयोग ने टाले सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव

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चुनाव आयोग का फैसला कोरोना काल मे लोकसभा और विधानसभा के लिए चुनाव नही होंगे । आयोग ने कानून मंत्रालय को भेजा दिया है । सर्टिफिकेट चुनाव आयोग द्वारा विधि मंत्रालय को भेजे गए प्रस्ताव का असर मध्यप्रदेश विधानसभा की रिक्त 26 सीटों पर भी पड़ेगा। आयोग आगर मालवा और जौरा विधानसभा उप सीट के उप चुनाव दो माह पहले ही टाल चुका था। मध्यप्रदेश में कुल 26 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं,जहां कि सीटें खाली हैं।

क्या बिहार में भी टाल जाएंगे विधानसभा के आम चुनाव

चुनाव आयोग को नवंबर से पहले बिहार में विधानसभा के आम चुनाव कराना है। देश में जिस तेजी के साथ कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है,उसे देखकर लगता नहीं कि अगले दो माह में स्थिति नियंत्रण में आ पाएगी। समय पर विधानसभा का गठन हो जाए,इसके लिए चुनाव आयोग को मतदान की तारीखों का एलान सितंबर अंत तक हर हाल में करना होगा। अन्यथा स्थितियां राष्ट्रपति शासन की बन जाएंगीं।

उप चुनाव छह माह में कराने की बाध्‍यता?

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के भाग 9 में धारा 150 राज्य विधान सभाओं में हुई आकस्मिक रिक्तियों के संबंध में हैं। आकस्मिक रिक्ति निधन अथवा त्यागपत्र के कारण होती है। अधिनियम की धारा 151 मैं रिक्तियों को भरने के लिए समय सीमा का प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान धारा 151(क) में है। रिक्त स्थानों को भरे जाने के लिए प्रक्रिया छह के भीतर पूरी करना होता है। लेकिन,उन मामलों में यह समय-सीमा लागू नहीं होती,जब संसद अथवा विधानसभा का कार्यकाल एक वर्ष से भी कम बचा हो। उस स्थिति में भी समय अविध से छूट दी गई है,जब ऐसी स्थितियां निर्मित हो गईं हों कि निर्वाचन प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती तो चुनाव आयोग, केन्द्र सरकार से परामर्श कर उन कारणें का उल्लेख कर प्रमाणित करता है कि उप चुनाव कराया जाना संभव नहीं है।

खतरे में पड़ सकता है सिलावट और राजपूत का मंत्री पद

मध्यप्रदेश में सत्ता पलट का नाटकीय घटनाक्रम मार्च में हुआ था। 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी। कांगे्रस पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफें के कारण कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांगे्रस सरकार का पतन हो गया था। कांगे्रस के जिन 22 विधायकों ने पार्टी छोड़कर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था,उनमें तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत भी हैं। इन दोनों को 21 अप्रैल को मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई थी। संवैधनिक प्रावधानों के तहत इन दोनों को छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना है। यदि 20 अक्टूबर तक सदस्य नहीं चुने जाते तो इन्हें मंत्री पद छोड़ना होगा।

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