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पायरेसी एक ‘‘दीमक’’ की तरह भारतीय फिल्म उद्योग को खा रही है

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सरकार ने राज्यसभा में गुरुवार को कहा कि पायरेसी (piracy) एक ‘‘दीमक’’ की तरह भारतीय फिल्म उद्योग को खा रही है और इसको रोकने के लिए लाए गए चलचित्र (संशोधन) विधेयक (Cinematograph Amendment Bill) से उद्योग के हर सदस्य को लाभ मिलेगा और सिनेमा के माध्यम से भारत एक ‘‘साफ्ट पॉवर’’ की तरह तेजी से उभरेगा।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर (Information and Broadcasting Minister Anurag Thakur) ने उच्च सदन में यह बात चलचित्र (संशोधन) विधेयक 2023 को चर्चा के लिए रखते हुए कही। उन्होंने कहा कि चार दशकों में बहुत बदलाव आया है। उन्होंने कहा, ‘‘दर्शकों की संख्या भी बहुत बढ़ी है। भारतीय फिल्मों की साख भी बहुत बढ़ी है। आज विश्व में सबसे अधिक फिल्म बनाने वाला देश भारत है।’’

उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग ने इस साल आस्कर पुरस्कारों में भी अपनी पहचान बनायी है। उन्होंने कहा कि लघु वृत्तचित्र में भारत की ‘‘एलीफेंट विस्पर्स’’ और फिल्म ‘‘आरआरआर’’ ने पूरी दुनिया में अपनी धूम मचायी और भारत के लिए आस्कर पुरस्कार जीते। उन्होंने नारेबाजी कर रहे विपक्षी सदस्यों की ओर इशारा करते हुए कहा कि सरकार जब 40 साल बाद इतने महत्वपूर्ण संशोधन ले कर आयी है तो इनके (विपक्ष) रवैये को देखकर लगता है कि ये न तो फिल्म जगत के पक्ष में हैं और न ही भारत के ‘‘साफ्ट पॉवर’’ के रूप में उभरने के पक्ष में।

ठाकुर ने कहा कि यह विधेयक किसी फिल्म निर्माता या निर्देशक के पक्ष में ना होकर स्पॉट ब्वाय, स्टंट मैन से लेकर कोरियोग्राफर तक सिनेमा उद्योग से जुड़े हर व्यक्ति के हित में लाया गया है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में पायरेसी के खिलाफ प्रावधान किये गये हैं। उन्होंने कहा कि पायरेसी एक ऐसा दीमक है जो फिल्म जगत को खाये जा रही है और उनकी वर्षों की मेहनत और धन राशि को खत्म कर देती है। ठाकुर ने इस विधेयक को लाये जाने के तीन प्रमुख कारण बताये।

उन्होंने कहा कि इनमें पहला फिल्मों की अनधिकृत रिकार्डिंग के चलन पर रोक लगाना, दूसरा लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को सरल करना और तीसरा, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के जो विभिन्न निर्णय आये हैं उनके अनुरूप मूल कानून में संशोधन करना है। इससे पहले नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘‘मैं बिल के बारे में बात करना चाहता हूं और दिल के बारे में भी बोलना चाहता हूं।’’

इसके बाद उन्होंने जैसे ही मणिपुर का नाम लिया, सत्ता पक्ष के सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया। शोरगुल में उनकी बात सुनी नहीं जा सकी। विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए बीजू जनता दल के प्रशांत नंदा ने कहा कि वह पिछले पचास साल से फिल्म उद्योग से जुड़े हैं। उन्होंने फिल्में बनायी हैं और उन्होंने पायरेसी की समस्या का सामना किया है। नंदा जब अपनी बात रख रहे थे, उसी दौरान विपक्षी दलों के सदस्यों ने मणिपुर मुद्दे पर चर्चा कराये जाने और प्रधानमंत्री के बयान की मांग पर सदन से बहिर्गमन किया। उन्होंने कहा कि किसी भी हिंदी फिल्म को जिस दिन रिलीज किया जाता है, अगले दिन ही वह (पायरेसी के कारण) दुबई में दिखायी जाने लगती है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में पायरेसी के आरोप साबित होने पर तीन साल तक की सजा और दस लाख रूपये तक का जुर्माना प्रावधान किया गया है।

नंदा ने फिल्मों के वर्गीकरण के लिए विधेयक में नयी श्रेणियां बनाये जाने के प्रावधान का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यदि किसी फिल्म के बारे में सेंसर बोर्ड के निर्णय की समीक्षा की जाती है तो यह काम उन्हीं सदस्यों को नहीं दिया जाना चाहिए जिन्होंने इसका निर्णय किया था। उन्होंने कहा कि समीक्षा का काम बोर्ड के अन्य सदस्यों को दिया जाना चाहिए। नंदा ने कहा कि इस विधेयक के मामले में कुछ और विचार विमर्श किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज ओटीटी मंच पर दिखायी जाने वाली फिल्मों और धारावाहिकों के संवादों में गालियां दिखायी जा रही हैं।

उन्होंने कहा कि इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए इन्हें रोके जाने की आवश्यकता है। भारतीय जनता पार्टी के लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा फिल्म निर्माता देश है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के लिहाज से भारतीय फिल्म उद्योग ने काफी प्रगति की है और बड़े स्तर पर लोगों को रोजगार प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि आज भारतीय फिल्म उद्योग के लिए पायरेसी एक बहुत खतरा बन गया है और इससे अरबों रूपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।

उन्होंने कहा कि फिल्मों ने हिंदी भाषा और संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अन्नाद्रमुक के एम थंबीदुरई ने कहा कि पायरेसी भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। उन्होंने कहा कि भारत में कई ऐसी फिल्में बनायी गयीं जिनमें सामाजिक समस्याओं को लेकर संदेश दिये गये हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि फिल्म जगत की जरूरत के अनुसार भविष्य में भी इस विधेयक में संशोधन लाये जाने चाहिए।

भाजपा के राधामोहन दास अग्रवाल ने ‘‘अग्निपुरुष’’, ‘‘पीके’’, ‘‘काली’’, ‘‘ओएमजी’’, ‘‘अतरंगी रे’’ आदि फिल्मों का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ फिल्में हैं जो सेंसर बोर्ड के कारण समाज को परोसी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि फिल्मों में लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के खिलाफ सेंसर बोर्ड के नियमों में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। भाजपा की सोनल मान सिंह ने कहा कि नैतिकता को परिभाषित किए जाने की जरूरत है क्योंकि इस शब्द का अलग-अलग धर्म एवं संस्कृति में भिन्न अर्थ हैं।

उन्होंन ‘‘दो बीघा जमीन’’, ‘‘झनक झनक पायल बाजे’’, ‘‘जागृति’’ एवं ‘‘मदर इंडिया’’ जैसी फिल्मों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन फिल्मों की प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है। उन्होंने कहा कि फिल्मों में आदिवासियों का निरूपण बहुत ही आपत्तिजनक ढंग से होता रहा है। उन्होंने कहा कि फिल्मों का प्रमाणपत्र देते समय इस पक्ष के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए। वाईएसआर कांग्रेस के एस निरंजन रेड्डी ने कहा कि विधेयक में प्रमाणपत्र की अवधि को बढ़ाए जाने का कदम स्वागत योग्य है। उन्होंने विधेयक में पायरेसी विरोधी प्रावधानों को बहुत अच्छा प्रयास बताते हुए कहा कि यह ऐसा कदम है जो काफी पहले उठा लिया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि यदि पायरेसी पर लगाम लगायी जाती है तो भारतीय फिल्मों की ताकत बढ़ जाएगी और भारत की ‘‘साफ्ट पॉवर’’ बढ़ेगी।

भाजपा के पवित्र मार्गेरिटा ने विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए असम के फिल्म उद्योग की उपलब्धियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि किसी भी फिल्म के निर्माता के लिए ही नहीं फिल्म समुदाय के हर सदस्य के लिए पायरेसी कैंसर की तरह है। उन्होंने यह विधेयक लाने के लिए पूरे फिल्म उद्योग की तरफ से सरकार को बधाई दी। भाजपा के धनंजय भीमराव महाडिक ने कहा कि जिस प्रकार शिक्षा से हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है उसी प्रकार फिल्मों का भी हम पर और समाज पर प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कोल्हापुर की फिल्म हस्तियों द्वारा हिंदी और मराठी फिल्मों में दिये गये योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने सुझाव दिया कि क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों को केंद्र की ओर से सहयोग दिया जाना चाहिए। उन्होंने मांग की कि क्षेत्रीय फिल्मों के प्रदर्शन के लिए देश भर में थिएटर दिलाने में केंद्र सरकार को सहयोग करना चाहिए।

चलचित्र (संशोधन) विधेयक 2023 के कारण एवं उद्देश्य में कहा गया है कि इसके माध्यम से 1952 में लाये गये मूल कानून में संशोधन किया जाएगा। फिल्मों को अभी तक जो ‘‘यूए’’ प्रमाणपत्र दिया जाता है उसे तीन आयुवर्ग श्रेणियों यथा ‘‘यूए7 प्लस’’, ‘‘यूए13 प्लस’’ और ‘‘यूए16 प्लस’’ में रखने का विधेयक में प्रावधान है।

इसमें फिल्मों को वर्तमान दस वर्ष के स्थान पर हमेशा के लिए सेंसर प्रमाण पत्र देने, सिनेमा की अनधिकृत रिकार्डिंग एवं प्रदर्शन को रोकने और फिल्म प्रमाणन की प्रक्रिया को बेहतर बनाने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में फिल्म की पायरेसी के खिलाफ तीन लाख रूपये तक का जुर्माना और तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।

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