सुपरफास्ट ट्रेनों के नाम पर यात्रियों से वसूल किए जाने वाले अधिभार पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने गंभीर आपत्ति प्रकट की है। संसद के दोनों सदनों में पेश की गई रिपोर्ट में कैग ने तकनीकी भाषा में ही रेल मंत्रालय द्वारा यात्रियों के साथ की जा रही लूट को उजागर किया है। कैग का मानना है कि ट्रेन लेट है तो अधिभार वापस किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे में मौजूदा नियमों में एसी कोच में वातानुकूलन की सुविधा फेल होने पर किराये में शामिल प्रभार को वापस करने का प्रावधान है। प्रावधान के तहत तहत एसी और गैर एसी किराये के अंतर को यात्री को लौटाया जाता है लेकिन, यात्रिओं को सुपरफास्ट सेवा प्रदान नहीं किये जाने पर सुपरफास्ट अधिभार को वापस करने का कोई प्रावधान नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार रेलवे बोर्ड को सुपरफास्ट अधिभार की अनियमित वसूली पर पुनर्विचार के लिये पत्र लिखा गया है लेकिन रेलवे बोर्ड ने इस पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।
ट्रेन को कैसे माना जाता है सुपरफास्ट
रेलवे के नियम के अनुसार ब्रॅाड गेज लाइन पर यदि ट्रेन की औसत गति 55 किलोमीटर प्रतिघंटा तथा मीटरगेज लाइन पर 45 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक है तो उसे सुपरफास्ट गाड़ी का दर्जा दिया जाता है तथा उसमें यात्रा करने पर प्रतियात्री 15 से लेकर 75 रुपये का सुपरफास्ट अधिभार लिया जाता है। कैग ने उत्तर मध्य रेलवे की 36 में से 11 एवं दक्षिण मध्य रेलवे की 70 में से 10 सुपरफास्ट ट्रेनों के परिचालन की जांच करने पर पाया कि ये 21 ट्रेन आरंभिक स्टेशनों से 13.48 प्रतिशत और गंतव्य स्टेशन पर 95.17 प्रतिशत दिन देरी से पहुंचीं। रिपोर्ट में पाया गया कि ये सुपरफास्ट टे्रन 16804 दिनों में से 5599 दिन देरी से चलीं । 3000 दिनों में इन ट्रेनों ने 55 किलोमीटर प्रतिघंटा की औसत गति से चलने के मानदंड को पूरा नहीं किया।
देरी से चलने वाली ट्रेन में शताब्दी भी
कैग की रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता से आगरा कैंट 12319 एक्सप्रेस गाड़ी 95 प्रतिशत तथा 12404 जयपुर- इलाहाबाद एक्सप्रेस गाड़ी 68 प्रतिशत बार गंतव्य पर देरी से पहुंची। इसी प्रकार 12034 शताब्दी एक्सप्रेस गंतव्य पर 25 प्रतिशत दिन देरी से पहुंची। कैग ने पाया कि उक्त ट्रेन से सुपरफास्ट गाड़ी के मानदंड का पालन नहीं करने वाले दिनों में यात्रियों से 11.17 करोड़ रुपये सुपरफास्ट अधिभार के रूप में वसूले गये।
रेलवे में नहीं है ई-निविदा प्रणाली
कैग ने विद्युतीकरण के लिए प्रक्रिया, कार्यो को सौंपने व उसे पूरा करने में हुए विलंब के लिए रेलवे को जमकर लताड़ लगाई है। सीएजी ने कहा है कि निविदा की प्रक्रिया में समय को कम करने के लिए रेलवे ने ई-निविदा प्रणाली को नहीं अपनाया। रिपोर्ट में सीएजी ने कहा है कि विस्तृत जांच के लिए उसने पूरी हो चुकी 14 परियोजनाओं, 15 जारी परियोजनाओं तथा सात नई परियोजनाओं का ऑडिट किया। अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने कहा, रेलवे के एक अनुभाग में विद्युतीकरण करना है या नहीं, इसके लिए समय बचाने के उद्देश्य की पूर्ति नहीं की जा रही है, क्योंकि प्रस्तावों की प्रक्रिया तथा संक्षिप्त अनुमान में विलंब किया जा रहा है। 24 परियोजनाओं के लिए 59 महीने का वक्त लगने का अनुमान लगाया गया है। केंद्रीय ऑडिटर ने कहा, कारेपल्ली-भद्राचलम, शकूरबस्ती-रोहतक, झांसी-कानपुर, बरौनी-कटिहार-गुवाहाटी तथा गुनातकाल-कल्लूर की तुलना में परियोजनाओं में भिन्नता 40 फीसदी से अधिक है।” सीएजी के मुताबिक, सेंट्रल ऑर्गजनाइजेशन फॉर रेलवेज इलेक्ट्रीफिकेशन (सीओआरई) की 17 परियोजनाओं के संदर्भ में 337 दिन तथा रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) की छह परियोजनाओं के संदर्भ में 202 दिनों का विलंब किया गया।”