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208 किलोमीटर दूर बैठकर जांच करेगा जैन आयोग

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दिनेश गुप्ता
मंदसौर की पिपल्या मंडी में 6 जून को हुए गोलीकांड की जांच के लिए राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने रिटायर्ड जज जेके जैन की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किए जाने की अधिसूचना जारी कर दी है। जैन आयोग का मुख्यालय इंदौर रखा गया है। इंदौर से मंदसौर की दूरी लगभग 208 किलोमीटर है। जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन और चश्मदीदों को अपना पक्ष रखने के लिए मंदसौर से इंदौर आना होगा। सड़क मार्ग से मंदसौर से इंदौर आने में साढ़े तीन घंटे का समय लगता है। जांच आयोग को तीन माह में अपनी रिपोर्ट देना है। मध्यप्रदेश में जांच आयोग के काम करने की जो गति और सरकार का रवैया है, उसे देखकर नहीं लगता की जांच तीन माह में पूरी हो जाएगी। जांच आयोग की जो अधिसूचना राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी की गई है, उसमें पांच किसानों की मौत को ही जांच के दायरे में रखा गया है। जबकि मंदसौर की हिंसा में सात लोग मरे हैं। पांच लोग गोली से मरे और दो अन्य व्यक्तियों की मौत पुलिस की पिटाई अथवा अन्य कारणों से हुई है। सरकार ने इन दो मौतों को जांच की परिधि से बाहर रखा है। जांच के लिए कुल पांच बिंदु तय किए गए हैं। पांचवें बिन्दु में आयोग को जांच को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। आयोग की मर्जी पर है कि वह आवश्यक समझे तो इस अधिकार उपयोग कर सकता है। जांच के बिंदु निम्नानुसार हैं। (1) उपरोक्त घटना किन परिस्थितियों में घटी? (2) क्या पुलिस द्वारा जो बल प्रयोग किया गया, वह घटना-स्थल की परिस्थितियों को देखते हुए उपयुक्त था या नहीं? यदि नहीं तो इसके लिये दोषी कौन है? (तीन) क्या जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन ने तत्समय निर्मित परिस्थितियों और घटनाओं के लिये पर्याप्त एवं सामयिक कदम उठाये थे? (चार) भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इस संबंध में यथोचित सुझाव, और (पाँच) ऐसे अन्य विषय, जो जाँच के अधीन मामले में आवश्यक या अनुषांगिक हो।

कलेक्टर ने कहा कि एक करोड़ का मुआवजा देना मेरे अधिकार में नहीं

मंदसौर में जिस दिन गोली चली उस दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बारह घंटे के भीतर ही तीन बार मुआवजे की अलग-अलग रकम का एलान किया था। पहले पांच लाख,फिर दस लाख और अंत में एक करोड़ रूपए का मुआवजा और पीड़ित परिजनों के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। घोषणा के एक सप्ताह बाद भी सरकार यह तय नहीं कर पाई है कि पीड़ितों के परिजनों को मुआवजे का भुगतान किस मद से किया जाए। इस तरह की घटनाओं में मुआवजा देने के कोई नियम नहीं होते हैं। मुख्यमंत्री अपने विवेक अनुसार राहत राशि की घोषणा करते है। किसानों और ओला, पाला और अतिवृष्टि के आकस्मिक निधि से भुगतान किया जाता है। उसकी भी अधिकतम सीमा चार लाख रूपए पर ठहर जाती है। मंदसौर के कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव ने सरकार को लिखे पत्र में साफ कहा कि उनके पास इतनी बड़ी राशि मुआवजे के तौर पर देने का अधिकार नहीं है। कलेक्टर के पत्र के बाद सरकार इस उधेड़बुन में है कि मुआवजे की राशि का भुगतान किस मद में किया जाए? आगजनी और हिंसा आदि की घटनाओं में मुआवजा देने के लिए नियम अलग हैं। प्रदेश में पहला ऐसा मौका है जबकि पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों को एक करोड़ रूपए का मुआवजा देने की घोषणा सरकार ने की है।

जांच में बेदाग निकालने के लिए ग्रह शांति कराने में लगे हैं पूर्व कलेक्टर

गोलीकांड के दिन मंदसौर में पदस्थ कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह पुलिस अधीक्षक ओपी त्रिपाठी को सरकार ने घटना के दो दिन बाद तबादला कर दिया था। दोनों अधिकारी इन दिनों अवकाश चल रहे हैं। जांच आयोग के घटना की अधिसूचना जारी होने के साथ ही इन दोनों अधिकारियों के कैरियर पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गया है। जांच के बिंदु इन दोनों अधिकारियों की भूमिका के ईदगिर्द तय किए गए हैं। स्वतंत्र कुमार सिंह पहले ही कह चुके हें कि गोली चलाने का आदेश उनके द्वारा नहीं दिया गया। फायरिंग के वक्त कलेक्टर और एसपी दोनों ही मौके पर मौजूद नहीं थे। कहा जा रहा कि गोली चलाने का आदेश थाना प्रभारी द्वारा दिया गया था। सीआरपीसी में थाना प्रभारी फायरिंग का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। फायरिंग का आदेश सिर्फ एसडीएम ही दे सकते हैं। घटना के वक्त एसडीएम कहां थे, यह भी अब तक सामने नहीं आ सका है। जांच आयोग के समक्ष पुलिस और प्रशासन को अपनी-अपनी स्थिति के बारे में साक्ष्य सहित तथ्य रखने होंगे। स्वतंत्र कुमार सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2007 बैच के अधिकारी हैं। वे अपना कैरियर बचाने के लिए तांत्रिकों और पंडितों की शरण में हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित अंगरेश्वर महादेव मंदिर में भात पूजन कराया। पूजा करने वाले पंडित मनीष उपाध्याय ने बताया कि भात पूजन से न्यायिक मामलों में सफलता मिलती है।

मध्यप्रदेश में जांच आयोग का गठन सरकार अपनी ठाल बनाने के लिए करती है

मध्यप्रदेश में पिछले ड़ेढ दशक में एक दर्जन से अधिक जांच आयोग का गठन सरकार कर चुकी है। आखिरी जांच आयोग वर्ष 2015 में पेटलावद के विस्फोट की घटना को लेकर बनाया गया था। घटना में 79 लोग मारे गए थे। जांच आयोग तथ्यों का पता लगा रहा है, यह कह कर सरकार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही से बचती रही है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय से जुड़े पेंशन घोटालों को सरकार ने जांच आयोग का गठन कर ही ठंडे बस्ते में डाल रखा है। विजयवर्गीय आयोग की रिपोर्ट को लंबित रखे जाने से ही नाराज बताए जा रहे हैं। जांच आयोग के अध्यक्ष को प्रतिमाह 80 हजार वेतन, इसके अलावा सचिव, दो क्लर्क, एक स्टेनो, एक कम्प्यूटर ऑपरेटर, ड्राइवर के वेतन। इसके अलावा यात्रा भत्ता, खाने पीने का खर्च, दो कम्प्यूटर, स्टेशनरी, पूरा दफ्तर का सामान, दो गाड़ियां का खर्च। इस तरह एक महीने कम से कम 4 से 5 लाख खर्च आता है। इस तरह एक आयोग पर साल भर में 50 से 60 लाख खर्च होते हैं।

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