तीन दिन पहले भोपाल के हमीदिया अस्पताल के दवा स्टोर से 863 रेमडेसिविर इंजेक्शन के
चोरी होने की रिपोर्ट स्थानीय थाने में दर्ज कराई गई थी।
रेमडेसिविर इंजेक्शन। इसका नाम आज देश का हर व्यक्ति उस तरह ही जानता है,
जिस तरह सिरदर्द की दवा के रूप में डिस्प्रीन का नाम जानता है।
रिपोर्ट अस्पताल प्रशासन की ओर से दर्ज कराई गई थी।
अब अस्पताल प्रशासन का दावा है कि इंजेक्शन चोरी नहीं हुए थे। इंजेक्शन का रिकार्ड ठीक से नहीं रखा गया था।
इस ताजा खुलासे के बाद अस्पताल प्रशासन और पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई है।
माना यह जा रहा है कि सरकार बदनामी से बचने के लिए रिकार्ड अपडेट न होने की आड ले रही है।
जांच के दौरान पुलिस ने एक डायरी जब्त की थी,
जिसमें इंजेक्शन की मांग करने वाले डॉक्टर का नाम लिखा हुआ था।
बताया जाता है कि कतिपय मंत्री और आईएएस अफसरों ने अपने करीबियों के लिए
अस्पताल से इंजेक्शन मौखिक आदेश से इश्यू कराए थे। इंजेक्शन दिल्ली भेजे जाने का खुलासा भी पुलिस ने ही किया था।
भोपाल के सबसे बड़ा अस्पताल है हमीदिया
ऊँगली इजेक्शन चोरी होने की घटना सामने आने के बाद डिवीजनल कमिश्नर कवीन्द्र कियावत ने
डॉक्टर आईडी चौरसिया से अस्पताल अधीक्षक के पद का अतिरिक्त प्रभार वापस ले लिया।
डॉ.चौरसिया गांधी मेडिकल कॉलेज में सहायक प्राध्यापक न्यूरो सर्जरी के पद पर कार्यरत हैं।
चौरसिया के स्थान पर डॉ.लोकेन्द्र दवे को अस्पताल का अधीक्षक बनाया गया है। भोपाल का गांधी मेडिकल कॉलेज स्वशासी है।
इसके चेयरमेन डिवीजन कमिश्नर हैं। अस्पताल मेडिकल कॉलेज का ही हिस्सा है।
अस्पताल के स्टोर से रेमडेसिविर के गायब होने की एफआइआर रविवार को दर्ज कराई गई थी।
भोपाल में कोरोना संक्रमण की स्थिति बेहद गंभीर है।
पिछले एक सप्ताह से हर दिन सौ ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार श्मशान घाट और कब्रिस्तान में हो रहा है।
रेमडेसिविर को कोरोना मरीज के लिए जीवन रक्षक इंजेक्शन के तौर पर प्रचार मिला है।
इसके कारण हर गंभीर मरीज के परिजन इंजेक्शन के लिए यहां-वहां भटक रहे हैं।
हमीदिया अस्पताल को इंजेक्शन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल के कारण उपलब्ध हो सके।
इंजेक्शन देने में नहीं किया प्रक्रिया का पालन

इंजेक्शन चेारी होने की जांच भोपाल क्राइम ब्रांच कर रही है।
क्राइम ब्रांच ने दावा किया कि कथित तौर चोरी गए
इंजेकशन में चार सौ इंजेक्शन की जानकारी मिल गई है। गफलत रिकार्ड में इंट्री न करने के कारण हुई।
इस खुलासे से पहले पुलिस ने पूर्व अस्पताल अधीक्षक डॉ.चौरसिया से लंबी पूछताछ की और उनके बयान रिकार्ड पर लिए।
स्टोर की जिम्मेदारी डॉ. संजीव जयंत के पास है। संजीव जयंत की आशंका के आधार पर डिविजनल कमिश्नर ने
मामले की एफआईआर दर्ज कराए जाने के आदेश दिए थे।
दिलचस्प यह है कि पुलिस ने जब घटना स्थल का मुआयना किया था
तब मीडिया को बताया कि चोरी जाली काटकर हुई है।
सीसीटीव्ही फुटेज को भी पुलिस ने जांच में लिया है।
फुटेज में क्या दिखाई दिया,इस बात का खुलासा नहीं किया गया है।
अस्पताल प्रबंधन अथवा सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि
हमीदिया अस्पताल के स्टॉक में कुल कितने रेमडेसिविर इंजेक्शन आए थे। कितने इंजेक्शन मरीजों को लगाए गए।
पुलिस की प्रारंभिक जांच में यह दावा किया गया था कि अस्पताल के
डॉक्टरों ने जिन मरीजों के नाम इंजेक्शन लगाना बताए गए हैं,उसमें कई मर चुके हैं।
इंजेक्शन इष्यू करने के लिए सरकार की ओर से तय गाइड लाइन का पालन भी अस्पताल प्रबंधन ने नहीं किया।
इंजेक्शन को लेकर जब हायतौबा मची तो ग्यारह अप्रैल को
स्वास्थ्य विभाग ने इंजेकशन को लेकर एक गाइड लाइन जरी की।
इस गाइड लाइन के अनुसार डॉक्टर की अनुशंसा मंजूरी के लिए सिविल सर्जन के पास भेजा जाना थी।
सिविल सर्जन मरीज की रिपोर्ट देखकर इंजेक्शन के उपयोग की मंजूरी के लिए अधिकृत थे।
सभी सरकारी अस्पतालों को इंजेक्शन का रिकार्ड विधिवत रखने के लिए कहा गया था।
रेमडेसिविर इंजेक्शन चोरी: अस्पताल अधीक्षक बदलने से प्रवंधन पर उठी
क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गोपाल धाकड़ के कहते हैं कि
अब तक की जांच में यह साफ हो गया है कि इंजेक्शन का गलत वितरण किया गया।
पुलिस मामले की झ्ाूठी रिपोर्ट दर्ज कराने पर डॉ. संजीव जयंत पर एफआईआर करने पर विचार कर रही है।
सरकारी स्तर पर लगातार यह प्रचारित किया जा रहा था
कि रेमडेसिविर गंभीर कोरोना मरीज की जान बचा ले,यह जरूरी नहीं है।
स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि
दस प्रतिशत मरीजों पर ही इस दवा का असर देखा गया है।
रेमडेसिविर शोधात्मक औषधि है। मेडिकल की भाषा में कहा जाता है कि क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है।
मंत्रियों और अफसरों के कहने पर हुई इंजेक्शनों की बंदरबांट
देश में जिस तरह कोरोना की दूसरी लहर में जान बचाने को लेकर अफरा-तफरी मची हुई है,
उसमें रेमडेसिविर की मांग सबसे ज्यादा है।
जबकि भारत सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि
जो गंभीर रूप से प्रभावित नहीं है,उन पर इसका उपयोग न किया जाए। इसके बाद भी भोपाल में दवा ब्लैक में बिकी।
इंजेक्शन न मिलने के कारण कई परिवार हताशा और अवसाद में चले गए।
दूसरी और सबसे बड़े हमीदिया अस्पताल के प्रबंधन ने इंजेक्शन किसे दिए,इसका प्रमाणित रिकार्ड भी नहीं है।
क्राइम ब्रांच को अस्पताल प्रबंधन की ओर से बताया गया कि कुछ इंजेक्शन
स्टोर रूम रिकार्ड में चढ़े बगैर बाहर से ही अन्य सरकारी अस्पतालों को दे दिए गए।
अस्पताल प्रबंधन का यह दावा बेहद हास्यास्पद है।
जब स्टोर तक इंजेक्शन आया ही नहीं तो चोरी हेाने की आशंका किस आधार पर व्यक्त की गई।
स्टोर में आता तो स्टॉक रजिस्टर में चढ़ता।
मांग के अनुसार रिलीज किए जाने का रिकार्ड भी रखा जाता।
इंजेक्शन का हिसाब-किताब स्टोर कीपर की कच्ची डायरी में है।
डॉक्टर के वाट्सअप रिकार्ड में है। किसके कहने पर कितने इंजेक्शन स्टोर से निकले।
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री सचिवालय से लेकर भोपाल कलेक्ट्रेट के अधिकारियों के संदेश पर इंजेक्शन स्टोर से बाहर निकले।
जिन हाथों में यह इंजेक्शन दिए गए उन्होंने क्या किया कोई नहीं जानता।
कुछ प्रायवेट अस्पतालों को भी हमीदिया के स्टोर रूम से इंजेक्शन दिए गए हैं।
कई प्रभावशाली नाम सामने आने के बाद मामले को ठंडा किया जा रहा है।
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लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पावर गैलरी पत्रिका के मुख्य संपादक है. संपर्क- 9425014193