सीहोर की मेघा परमार ने किया मध्यप्रदेश का नाम रोशन , माउंट एवरेस्ट पर फहराया तिरंगा

मध्यप्रदेश के सीहोर की रहने वाली मेघा माउंट एवरेस्ट फतेह करने के मिशन पर थी। मेघा ने 24 मई को सुबह 10.45 बजे एवरेस्ट पर झंडा फहराया था। एवरेस्ट पर पहुंचकर मेघा ने वहां प्रदेश की मिट्टी की छाप भी छोड़ी। मेघा ने एवरेस्ट के धरातल पर सीहोर से लाए गए पत्थरों से MP भी उकेरा।

एवरेस्ट फतेह पर क्या कहा मेघा ने ?
एवरेस्ट फतेह करने पर मेघा ने कहा कि ‘मैं आज बहुत खुश हूं। मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सपना पूरा हुआ है। मैंने बेस कैंप से कैंप नंबर 4 तक का सफर 18 मई को ही पूरा कर लिया था। 7600 मीटर की ऊंचाई और -15 से 20 डिग्री के बीच तापमान था। वातावरण में ऑक्सीजन लेवल कम हो गया तो शेरपा ने मेरे मास्क से ऑक्सीजन सिलेंडर जोड़ा। लेकिन इसे लगाने के बाद मैं 10 मीटर ही चली कि मेरा दम घुटने लगा, क्योंकि मुझे मास्क से ऑक्सीजन लेने की आदत नहीं थी। शेरपा ने देखा और दौड़कर मेरा मास्क लगा दिया और वो मुझे वापस बेस कैंप ले आए’।

जब लगा कि नहीं होगा सपना पूरा
19 मई को सुबह कैंप नंबर 4 के आगे वातावरण में आॅक्सीजन लेवल शून्य होने और मेरे मास्क नहीं लगाने की जिद से परेशान होकर डॉक्टर्स ने एवरेस्ट समिट की अनुमति देने से मना कर दिया। मेरा सपना टूटने लगा। पर, मेरी जिद अटल थी। शाम को शेरपा और डॉक्टर्स ने कैंप से शिखर तक आॅक्सीजन मास्क लगाकर रखने की शर्त के साथ मुझे आगे बढ़ने की अनुमति दी।


पीछे मुड़ना नहीं सीखा
20 मई को सुबह डॉक्टर्स ने मेरी जांच की और शिखर के सफर के लिए मुझे फिट घोषित किया। शेरपा ने मुझे 10 से 15 मीटर की चढ़ाई के बाद ऑक्सीजन सिलेंडर बंद कर खुले वातावरण में सांस लेने की प्रैक्टिस कराई। इससे फायदा हुआ। पहले मास्क लगाने पर होने वाली घुटन बंद हो गई। सिलेंडर से आॅक्सीजन लेने के लिए शरीर तैयार हो गया। तय शेड्यूल के मुताबिक 20 मई की रात कैंप नंबर 2 में रेस्ट करना था। लेकिन, सपना पूरा होने के जोश और उत्साह के कारण 21 मई की सुबह कैंप नंबर 3 का सफर कंप्लीट कर लिया। आगे रास्ता कठिन था, थकान भी काफी हो गई थी। इसे कम करने कैंप नंबर 3 में करीब 8 घंटे रेस्ट किया। लेकिन, पीछे मुड़कर नहीं देखा।

3 किमी का सफर 15 घंटे में पूरा हुआ
22 मई की रात 8 बजे कैंप 4 से एवरेस्ट को छूने का सफर शुरू किया। यह कैंप 7900 मीटर की ऊंचाई पर है, जहां शिखर की ऊंचाई महज 948 मीटर बची थी। लेकिन, बर्फी की सीधी चट्‌टानों पर बने करीब 3 किमी लंबे रास्ते को पूरा करने में 15 घंटे लग गए। कैंप 4 से अभी 100 मीटर ही आगे बढ़े थे, तभी दोबारा सांस लेने में तकलीफ होने लगी। तत्काल पीठ पर बैग में रखे आॅक्सीजन सिलेंडर को ऑन किया और मास्क से आॅक्सीजन लेना शुरू किया। इसके बाद 884 मीटर की पूरी चढ़ाई आॅक्सीजन सिलेंडर के सहारे सुबह 10.45 बजे पूरी की।

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