शहरों को केपटाउन बनने से बचाने के लिए जल प्रबंधन होगा जरुरी

देश की लगभग आधी आबादी यानी 60 करोड़ लोगों को पानी की गंभीर किल्लत झेलनी पड़ रही है। जबकि 75 प्रतिशत आबादी को पीने के पानी के लिए दूर दूर तक जाना पड़ता है। ऐसे में अगर यह पानी की समस्या भविस्य में भी बनी रही तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा पूरा देश केपटाउन बन जायेगा। नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गयी है। इसमें बताया गया है कि गाँवों में 84 प्रतिशत आबादी जलापूर्ति से वंचित है। जो पानी उपलब्ध है उसमें भी 70 प्रतिशत प्रदूषित है। वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में भारत 120वें स्थान पर है।

आयोग ने जल प्रबंधन के क्षेत्र में राज्यों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिए उनकी रैंकिंग जारी की है। नदी विकास, जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी और नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत तथा उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने ‘समेकित जल प्रबंधन सूचकांक’ नामक यह रिपोर्ट जारी की है। श्री गडकरी ने कहा कि देश की सबसे बड़ी समस्या पानी की है। इसके लिए उन्होंने खराब जल प्रबंधन को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा “मैं कहता हूँ पानी की कमी नहीं है, पानी के नियोजन की कमी है। राज्यों के बीच जल विवाद सुलझाना, पानी की बचत करना और बेहतर जल प्रबंधन कुछ ऐसे काम हैं जिनसे कृषि आमदनी बढ़ सकती है और गाँव छोड़कर शहर आये लोग वापस गाँव की ओर लौट सकते हैं।”

श्री गडकरी ने बताया कि इस मामले में गुजरात पहले स्थान पर है। इसके बाद क्रमश: मध्य प्रदेश, आँध्र प्रदेश, त्रिपुरा, हरियाणा और महाराष्ट्र का स्थान रहा है। रिपोर्ट वर्ष 2015-16 और 2016-17 के आँकड़ों पर तैयार की गयी है। उन्होंने कहा कि चिरस्थायी संवहनीय कृषि का राज्यों का विकास में बड़ा योगदान होता है और इसके लिए पानी का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है।

कुमार ने कहा कि देश में पानी की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले 70 साल में इस पर ध्यान नहीं दिया गया। हर साल इतनी बारिश होती है, बाढ़ आती है कि हमने कभी सोचा ही नहीं कि कभी पानी की समस्या भी हो सकती है। लेकिन, अब स्थिति ऐसी हो गई है कि इस विषय को गंभीरता से लेना होगा। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने शहरों को केपटाउन नहीं बनाना चाहते तो अभी से जल प्रबंधन शुरू करना होगा।

शुद्ध पेयजल के लिए एक हजार करोड़ रुपये का बजट
देश में पेयजल की किल्लत को देखते हुए केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम एवं स्वजल योजना पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने इस मौके पर देश के 115 जिलों में सात सौ करोड़ रुपये की लागत से स्वजल योजना की भी घोषणा की। उन्होंने देश में 2000 जल परीक्षण प्रयोगशालाओं का आधुनिकीकरण कार्यक्रम शुरू किये जाने की भी जानकारी दी। इसके लिए एक हजार करोड़ रुपये इस वित्त वर्ष में खर्च किये जाएंगे।

इस सम्मेलन में 13 राज्यों के पेयजल एवं स्वच्छता कार्यक्रम की प्रभारी मंत्री और केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रमेश जिगा जिनागी भी मौजूद थे।
सुश्री उमा भारती ने कहा कि राष्ट्रीय जल गुणवत्ता सबमिशन के तहत देश की 27554 आर्सेनिक एवं फ्लोराइड युक्त बस्तियों में लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए चालू वित्त वर्ष में एक हजार करोड़ रुपये का बजट बनाया गया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम में और सुधार लाने तथा स्वजल योजना के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है।

स्वजल योजना के लिए देश के 115 जिलों को चिह्नित किया गया है और इस योजना पर फ्लैग्जी फंड के तहत सात सौ करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे। इस योजना में गांव में पाइप से पेयजल को घर-घर पहंचाया जाएगा और इस कार्यक्रम को सौर ऊर्जा से संचालित किया जाएगा। इस योजना में स्वजल इकाइयों के रखरखाव और संचालन के लिए सैकड़ों ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया जाएगा।

सम्मेलन में स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता सचिव परमेश्वर अय्यर ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत उठाये गये कदमों की भी जानकारी दी और इसकी चुनौतियों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा हो। सम्मेलन में बिहार, असम, गुजरात, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र समेत 13 राज्यों के स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के प्रभारी मंत्रियों ने भाग लिया।

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