सैनिटरी नैपकिंस पर जीएसटी लगाए जाने का लहू का लगान हैशटेग से हो रहे विरोध में मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी की महिला विधायक भी शामिल हो गई हैं। पार्टी लाइन की परवाह किए बगैर इन महिला विधायकों ने वित्त मंत्री अरूण जेटली को पत्र लिखकर निर्णय की समीक्षा करने का आग्रह किया है। विरोध की पहल सागर जिले की विधायक पारूल साहू ने की है। पारूल साहू कई मौकों पर भाजपा की नीतियों का विरोध कर चुकी हैं। उन्होंने विधानसभा का अगला चुनाव न लड़ने की भी घोषणा की है। पिछले दिनों उन्होंने कडप्पा ने बाहुबलि क्यों मारा इस सवाल का जवाब अपनी फेसबुक वॉल पर यह लिखकर दिया था कि लोकप्रिय होना बापू सेहत के लिए हानिकारक है। सेनिटरी नैपकिंस पर जीएसटी के मामले में पारूल साहू ने कहा कि सैनिटरी नैपकिंस आज भी ऐसी चीज बनी हुई है, जिसे देश की 80 फीसदी महिलाएं अफोर्ड नहीं कर पातीं। ऐसे से में इनके और महंगे होने से महिलाओं तक इनकी पहुंच और मुश्किल हो जाएगी। इस मुद्दे पर पार्टी लाइन से इतर सोचे जाने की जरुरत है, ये कोई विलासिता का सामान नहीं, बल्कि एक आम महिला की आवश्यकता है।
ऊषा ठाकुर ने कहा कि निर्णय विरोधाभाषी है.
सैनिटरी नैपकिन जीएसटी के 12 फीसदी स्लैब के दायरे में रखा गया है । देश भर में इसका विरोध हो रहा है। इसे लेकर कई गैर सरकारी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए सोशल मीडिया पर लहू का लगान हैशटैग से अभियान भी चलाया था। मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी की एक अन्य महिला विधायक ऊषा ठाकुर ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार महिलाओं और किशोरियों के बीच सेनिटरी नैपकिंस प्रयोग करने का प्रचार कर रही है। इस पर जीएसटी लगाने से बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वे सेनिटरी नैपकिंस को जीएसटी के दायरे बाहर करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार दोनों से ही आग्रह करेंगी। देवास की भाजपा विधायक गायत्री राजे पवार ने भी कहा कि हालांकि केंद्र सरकार ने जीएसटी में लाई गई वस्तुओं को काफी विचार करने के बाद इसमें शामिल किया है, लेकिन कर के दायरे में से सैनिटरी नैपकिंस अगर बाहर कर दिए जाएं तो महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित होगा।
आदिवासी क्षेत्र की महिलाएं की पहुंच से दूर होगा
प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिले बालाघाट से आने वाली कांग्रेस विधायक हिना कांवरे ने कहा कि सैनिटरी नैपकिन जैसी चीजें महिलाओं को मुफ्त में बांटी जानी चाहिए, ऐसे में इस पर और कर लगाया जाना महिलाओं के स्वास्थ्य से खेलने जैसा होगा। सुश्री कांवरे ने कहा कि आदिवासी इलाकों में इस फैसले का और असर होगा। कई आदिवासी महिलाएं भी अब सस्ते सैनिटरी नैपकिंस की ओर रुख कर रही हैं, ऐसे में इनके महंगे होने से महिलाएं अफोर्ड नहीं कर पाएंगी।
