देश की आर्थिक तस्वीर निराश करने वाली, उद्योग, कृषि सहित कई क्षेत्रों में हालत खराब होने के संकेत
विकास और मजबूत अर्थव्यवस्था के दावे कर रही मोदी सरकार ने ऐसे आंकड़े जारी किए हैं, जिससे कारोबारियों, युवाओं, किसानों और महिलाओं की नींद उड़ी हुई है। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी अब सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। यानी 6 साल में सबसे नीचे 5 फीसदी पर पहुंच चुकी है। हालांकि अनुमान 5.8 फीसदी का था। ये गिरावट हर क्षेत्र में देखी जा रही है। 2014 में मोदी के सत्ता संभालने पर जीडीपी 6.4 फीसदी थी, जो 2015-16 में 8 प्रतिशत हो गई थी। 2016-17 में ये बढ़कर 8.2 फीसदी हुई, लेकिन 8 नवंबर 2016 को लागू नोटबंदी के बाद ये एक फीसदी गिरकर वित्तीय वर्ष 2017-18 में 7.2 प्रतिशत रह गई। इसके बाद 1 जुलाई 2017 को मोदी सरकार ने देश में जीएसटी कानून लागू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में जीडीपी गिरकर 6.8 प्रतिशत तक पहुंच गई। इधर कृषि क्षेत्र भी सबसे बुरे दौर में है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में कृषि विकास दर 6.3 फीसदी थी, जो 2017-18 में घटकर 5 फीसदी हो गई और अब तो ये 2.9 प्रतिशत हो चुकी है। औद्योगिक क्षेत्र भी मंदी की चपेट में है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में औद्योगिक क्षेत्र में 7.7 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई थी, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 में घटकर 5.9 फीसदी रह गई। इसके बाद 2018-19 में ये 6.9 फीसदी दर्ज की गई। सर्विस सेक्टर का ग्राफ भी नीचे जा रहा है। इसमें 2016-17 में वृद्धि 8.4 फीसदी रही, जो 2017-18 में घटकर 8.1 फीसदी हो गई। 2018-19 में सर्विस सेक्टर की वृद्धि दर लुढ़कते हुए 7.5 फीसदी पर अटक गई।
मंदी से जुड़े ये आंकड़े बताते हैं कि जीडीपी को मजबूती देने वाले हर क्षेत्र में हालात गड़बड़ हैं। इससे स्पष्ट है कि जीडीपी गिरने से प्रति व्यक्ति आय घट जाएगी, सालाना आर्थिक वृद्धि में कमी से आपकी कमाई घटेगी। इससे उपभोग क्षमता घटेगी। रोजगार के मौके घटने लगेंगे। हालांकि अमीरों को ज्यादा परेशानी नहीं होगी, बल्कि गरीबों पर ज्यादा बोझ बढ़ेगा।
