उच्चतम न्यायालय ने ‘आधार’ कानून को संसद में ‘धन’ विधेयक के रूप में पारित कराये जाने के औचित्य पर 2 मई को सवाल खड़े किये।
केंद्र सरकार की ओर से एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि आधार कानून पारित किये जाने का एक मात्र उद्देश्य सही लाभार्थियों तक सब्सिडी का लाभ पहुंचाना है।
इस पर संविधान पीठ ने आधार कानून की धारा 57 का जिक्र किया, जिसके तहत आधार कार्ड को न केवल सरकार बल्कि किसी कॉरपोरेट या व्यक्ति द्वारा पहचान दस्तावेज के रूप में इस्तेमाल करने की बात की गयी है।
श्री वेणुगोपाल ने कहा कि इस कानून के कई अलग-अलग प्रावधान हो सकते हैं, लेकिन इसकी व्यापकता के मद्देनजर आधार कानून संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक की परिभाषा के दायरे में आता है।
एटर्नी जनरल ने आधार कानून की धारा सात, 24 और 25 का उल्लेख करते हुए कहा कि ये धाराएं संचित निधि से सीधे तौर पर जुड़ी हैं।
संविधान पीठ आधार की अनिवार्यता से संबंधित याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य जयराम रमेश की याचिका भी शामिल है, जिन्होंने आधार कानून को मनी बिल के रूप में पारित कराये जाने को चुनौती दी है।
गौरतलब है कि 11 मार्च 2016 को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आधार विधेयक को धन विधेयक करार देते हुए इसे निचले सदन से पारित करा दिया था और बाद में इसे राज्यसभा भेज दिया गया था। ऊपरी सदन ने 16 मार्च 2016 को कुछ संशोधनों के साथ विधेयक निचले सदन को भेज दिया था। लोकसभा ने ऊपरी सदन के संशोधनों को खारिज करते हुए इसे धन विधेयक के रूप में पारित कर दिया।