मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में चेहरा असरदार रहेगा या मुद्दा?

Will face or issue be effective in Madhya Pradesh assembly elections?

rahul gandhi V/S amit saha
rahul gandhi V/S amit saha

सोनल भारद्वाज

sonal Bhardwaj
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल के बाद कांग्रेस ने सरकार में वापसी की थी। तमाम दावों और दवाबों के बावजूद राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें पांच साल पूरे करने जा रही हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर सत्ता वापस हासिल की थी। राहुल गांधी को यह भरोसा है कि मध्यप्रदेश का वोटर इसका जवाब जरूर देगा। कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार में वापस आएगी।

भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह पिछले दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के दौरे पर गए थे। वहां उन्होंने साफ तौर पर यह बात कही कि भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। अमित शाह का बयान चौंकाने वाला इस लिए नहीं है क्योंकि पार्टी ने गुजरात विधानसभा का चुनाव जिस आक्रामकता से लड़ा था,वह भाजपा की वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी की ओर ही इशारा कर रहा था। अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी कांग्रेस भी कर रही है। लेकिन,कांग्रेस का कोई भी नेता इस बात को खुलकर कह नहीं रहा। बस अकेले कमलनाथ ने ही कहा कि लोकसभा के अगले चुनाव में राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद का चेहरा होंगे। दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के विश्राम के दौरान जब मध्यप्रदेश के इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साफ होने की बात कर रहे हैं तो वे भी अप्रत्यक्ष तौर 2024 के लोकसभा चुनाव की ओर ही इशारा कर रहे होते हैं। राहुल गांधी और अमित शाह के बयान में एक बात समान है। दोनों ही राजनेता अपनी विरोधी पार्टी वाले राज्य की कमजोरी उजागर करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस के कथित ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले से छत्तीसगढ़ को नुकसान हुआ या नहीं इसे छत्तीसगढ़िया बेहतर जानता है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव कांग्रेस लड़ेगी,यह पिछले साल ही साफ हो गया था। लेकिन,मध्यप्रदेश में भाजपा की ओर चुनाव का नेतृत्व कोई नया चेहरा करेगा यह अभी भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान से बेहतर कोई दूसरा चेहरा मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के पद के लिए नहीं है। सत्ता विरोधी वोट विपक्ष को मिलने के खतरे के बाद भी पार्टी मध्यप्रदेश के बारे में निर्णय नहीं कर रही है। निर्णय सामने नहीं है इसका मतलब यह भी होता है कि पार्टी नेतृत्व परिवर्तन पर विचार भी नहीं कर रही है। अन्यथा गुजरात और उत्तराखंड की तरह मध्यप्रदेश में नया चेहरा सामने आ जाता। शिवराज सिंह चौहान की जनता से सीधे संवाद की जो शैली है वह किसी और नेता में देखने को नहीं मिलती। लोकसभा चुनाव से पहले जिन आठ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना है उनमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी शामिल है। राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होना है। पिछले विधानसभा के चुनाव में इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी थी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल के बाद कांग्रेस ने सरकार में वापसी की थी। तमाम दावों और दवाबों के बावजूद राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें पांच साल पूरे करने जा रही हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर सत्ता वापस हासिल की थी। राहुल गांधी को यह भरोसा है कि मध्यप्रदेश का वोटर इसका जवाब जरूर देगा। कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार में वापस आएगी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कितना कमाल दिखा पाएगी यह अनुमान लगाने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले जिन 8 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल संभाग में भी कांग्रेस लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। पुलवामा इफेक्ट चुनाव पर हावी दिखाई दिया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ही भाजपा का चेहरा रहेंगे। इसमें कोई विवाद और बदलाव की गुंजाइश भी नहीं है। मुद्दा राम मंदिर का दिखाई दे रहा है। गृह मंत्री अमित शाह घोषणा कर चुके हैं। कि अगले साल पहली जनवरी को राम मंदिर का लोकार्पण किया जाएगा। यह मुद्दा विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में कसौटी पर हो सकता है? इसके साथ ही भाजपा का स्थानीय नेतृत्व और चुनावी चेहरा भी बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। चेहरे के साथ-साथ चुनावी मुद्दा भी बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों ने मुद्दे तय करना शुरू कर दिए हैं। पुरानी पेंशन योजना की बहाली इनमें से एक है। लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखा जाए तो मध्यप्रदेश का चुनावी मुद्दा 2024 के लोकसभा के चुनाव की दशा भी तय कर सकता है। मध्यप्रदेश हिन्दीभाषी राज्यों के केंद्र में है। यहां धर्म के आधार पर विभाजन और वोटों का ध्रुवीकरण बड़ी आसानी से देखने को मिलता है। खासकर निमाड-मालवा के इलाके में। महाकौशल,बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल संभाग में उस तरह का विभाजन देखने को नहीं मिलता है। विंध्य के नतीजे कई बार चौंकाने वाले होते हैं। कमलनाथ ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा हैं,इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन,मैदानी स्तर पर उनकी टीम,रणनीति और मुद्दे दिखाई नहीं दे रहे। वैसे कमलनाथ की रणनीति पार्टी के परंपरागत वोटर को संभालने की रहती है। युवा वोटरों में कोई आकर्षण कांग्रेस पैदा नहीं कर पा रही  है। पिछले चुनाव में सिंधिया के कारण युवा कांग्रेस की ओर आ गए थे। पार्टी के दूसरे नेता कमलनाथ की चुनावी रणनीति के साथ कदमताल नहीं कर पा रहे हैं। प्रतिपक्ष के नेता डॉ.गोविंद सिंह के सीडी वाले बयान से सियासत गरम जरूर हुई है,लेकिन यह मुद्दा ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है। भाजपा भर इस मुद्दे को कमजोर करने की कोशिश लगातार कर रही है। लेकिन,कतिपय नेताओं के बयान आग में घी का काम कर रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह का नेता प्रतिपक्ष के बारे में दिया गया बयान भी इनमें से एक है। साध्वी प्रज्ञा सिंह की पृष्ठभूमि ऐसी है,जिसमें विचारधारा से जुड़ा बड़ा वर्ग साथ खड़ा दिखाई देता है। लेकिन,राजनीतिक तौर पर उनके बयान पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले ही होते हैं। जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बयानों से शिवराज सिंह चौहान की सरकार संकट में फंसती है,उसी तरह प्रज्ञा सिंह के बयान भी रहते हैं। सामान्यत:सीडी का मामला सेक्स स्कैंडल से जुड़ा हुआ ही रहता है। इस तरह के मामले नेताओं की सार्वजनिक छवि को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन,दुर्भाग्य यह है कि इस तरह के मामलों में पर्दा डालने की कोशिश राजनीतिक दल और उसके नेता करते दिखाई देते हैं। नेताओं को एक-दूसरे पर आरोप लगाने के बजाए जनता के बीच मामले को उजागर करना चाहिए। इससे नेता अपने नैतिक आचरण को लेकर सजग और संजीदा रहेंगे।

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