मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन के निधन के बाद राजकीय शोक की घोषणा कर दी गई है। टंडन अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए पिछले माह से ही लखनऊ में थे। टंडन ने केवल एक बार ही राज्य की विधानसभा के सत्र को संबोधित किया है। वे राज्यपाल की हैसियत से अपना अभिभाषण देने के लिए मार्च में विधानसभा गए थे। राज्यपाल टंडन ने राज्य की राजनीतिक स्थिति के कारण अपना पूरा अभिभाषण भी नहीं पढ़ा था। शुरू और आखिरी की कुछ लाइनें पढ़ी थीं। इसके बाद राज्यपाल टंडन ने सभी विधायकों से अपेक्षा की थी कि वे संविधान के द्वारा निर्देशित परंपराओं और नियमों का पालन करें। टंडन ने इस अपेक्षा को सदन के समक्ष अपनी सलाह के रूप में रखा था।
पिछले साल जुलाई में ही मध्यप्रदेश के राज्यपाल बने थे टंडन
लालजी टंडन ने पिछले साल 29 जुलाई को राज्य के राज्यपाल पद का कार्यभार संभाला था। 12 अप्रैल 1935 को जन्मे टंडन का राज्यपाल के तौर बिहार से मध्यप्रदेश ट्रांसफर किया गया था। स्वर्गीय टंडन से पूर्व आनंदी बेन पटेल राज्य की राज्यपाल थीं। केन्द्र सरकार ने आनंदी बेन पटेल को उत्तरप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया था। टंडन ने अपनी बीमारी के कारण अवकाश लिया तो केन्द्र सरकार ने आनंदी बेन पटेल को ही मध्यप्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा था। टंडन मध्यप्रदेश में राज्यपाल के तौर पर एक वर्ष भी पूरा नहीं कर पाए। 21 जुलाई की सुबह लखनऊ में उनका निधन हो गया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लालजी टंडन के निधन का अपूर्णिय क्षति बताया। मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में राज्यपाल टंडन को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि भी दी गई।
लालजी टंडन पर अभिभाषण न पढ़ने के लिए था दबाव
मार्च का महिना मध्यप्रदेश की राजनीति के लिए बेहद अहम रहा था। इस माह में कांगे्रस के 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। ये इस्तीफे यदि तत्काल स्वीकार कर लिए जाते तो कमलनाथ सरकार विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले ही अल्पमत में आ जाती। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति नियम,प्रक्रिया का हवाला देकर इस्तीफों को स्वीकार नहीं कर रहे थे। विधानसभा का बजट सत्र 16 मार्च से शुरू होना था। विधायकों ने इस्तीफे 10 मार्च को दिए थे। इसी दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांगे्रस छोड़ दी थी। लालजी टंडन पर इस बात को लेकर भी दबाव था कि वे विधानसभा में अभिभाषण देने के लिए न जाएं। ऐसा कोई संवैधानिक प्रावधान टंडन को नहीं मिला जिस के आधार पर वे विधानसभा में सरकार का अभिभाषण पढ़ने से इंकार कर दें। यद्यपि बाद में कांगे्रस ने राज्यपाल के अभिभाषण पढ़ने को अपनी बड़ी जीत बताया और कहा कि सरकार पूर्ण बहुमत में है।
संवैधानिक मर्यादा में हुआ राज्यपाल और मुख्यमंत्री का टकराव
टंडन ने अभिभाषण पढ़ने की अपनी संवैधानिक बाध्यता को पूरा करने के बाद सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश की जो स्थिति है,उसमें जिसका-जिसका अपना दायित्व है,वह शांतिपूर्ण तरीके से निष्ठापूर्वक और संविधान के द्वारा निर्देशित परंपराओं के अलावा नियमों का भी पालन करें, ताकि मध्यप्रदेश का जो गौरव हैलोकतांत्रिक परंपराएं हैं उनकी रक्षा हो सके। टंडन ने अंत में कहा कि मैने आपको यह सलाह देने के लिए कहा है। राज्यपाल द्वारा दी गई किसी सलाह मानने अथवा न मानने का अधिकार विधानसभा का होता है। राज्यपाल टंडन और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तक्ष्ता पलट की राजनीति में अपने आपको बेहद संयमित रखा7 कोई आरोप-प्रत्यारोप ऐसा नहीं हुआ,जो मर्यादा का उल्लंघन करता हो।
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लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पावर गैलरी पत्रिका के मुख्य संपादक है. संपर्क- 9425014193