पितृपक्ष में तीन वृक्ष, तीन पशु और तीन जलचरबदल सकते हैं आपकी किस्मत
पितृलोक धर्मशास्त्रों अनुसार चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है।
दूसरी ओर अग्निहोत्र कर्म से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं।
पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है। तीसरी ओर कुछ पितर हमारे वरुणदेव का आश्रय लेते हैं और वरुणदेव जल के देवता हैं।
अत: पितरों की स्थिति जल में भी बताई गई है।
यह है वह तीन वृक्ष जिन से पितृपक्ष में आएगी जीवन में शुभता
पीपल का वृक्ष :- पीपल का वृक्ष बहुत पवित्र है। एक ओर इसमें जहां विष्णु का निवास है
वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना या इसे लगाना विशेष शुभ होता
बरगद का वृक्ष :- बरगद के वृक्ष में साक्षात शिव निवास करते हैं। अ
गर ऐसा लगता है कि पितरों की मुक्ति नहीं हुई है तो बरगद के नीचे बैठकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
बेल का वृक्ष :- यदि पितृपक्ष में शिवजी को अत्यंत प्रिय बेल का वृक्ष लगाया जाय तो अतृप्त आत्मा को शान्ति मिलती है।
अमावस्या के दिन शिव जी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा अशोक, तुलसी, शमी और केल के वृक्ष की भी पूजा करना चाहिए।
ये तीन पक्षी पहुंचा सकते हैं आकाश की बुलंदी पर
कौआ :- कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है।
पितृपक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है।
इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
हंस :- पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं।
यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है।
कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है।
हो सकता है कि आपके पितरों ने भी पुण्य कर्म किए हों।
गरुड़ :- भगवान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गुरुढ़ पुराण है जिसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग नरक, पितृलोक आदि का उल्लेख मिलता है।
पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ का आश्रय लेते हैं पितर।
इसके अलावा क्रोंच या सारस का नाम भी लिया जाता है।
ये तीन पशु होंगे कल्याण में सहायक
कुत्ता :– कुत्ते को यम का दूत माना जाता है।
कहते हैं कि इसे ईधर माध्यम की वस्तुएं भी नजर आती है।
दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं और ईथर माध्यम (सूक्ष्म जगत) की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है।
कुत्ते को भैरव महाराज का सेवक माना जाता है।
कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं
और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं।
कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।
गाय :- जिस तरह गया में सभी देवी और देवताओं का निवास है उसी तरह गाय में सभी देवी और देवताओं का निवास बताया गया है।
दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है।
गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
हाथी :- हाथी को हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का साक्षात रूप माना गया है।
यह इंद्र का वाहन भी है। हाथी को पूर्वजों का प्रतीक भी माना गया है।
जिस दिन किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है।
हाथियों को अपने पूर्वजों की स्मृतियां रहती हैं। अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजा विधि व्रत रखा जाता है।
सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं।
इसके अलावा वराह, बैल और चींटियों का यहां उल्लेख किया जा सकता है।
जो चींटी को आटा देते हैं और छोटी-छोटी चिड़ियों को चावल देते हैं, वे वैकुंठ जाते हैं।
पितृपक्ष में तीन जलचर लगा सकते हैं जीवन की नैया पार
मछली :- भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाती के अस्त्वि को जल प्रलय से बचाया था।
जब श्राद्ध पक्ष में चावल के लड्डू बनाए जाते हैं तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
कछुआ :- भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर ही देव और असुरों के लिए मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थापित किया था।
हिन्दू धर्म में कछुआ बहुत ही पवित्र उभयचर जंतु है जो जल की सभी गतिविधियों को जानता है।
नाग :- भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है,
यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।
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