धनतेरस पर मां लक्ष्मी की प्रतिमा खरीदते समय ध्यान रखें कि
मां खड़ी हुई मुद्रा में न हो। इस तरह की प्रतिमा से घर में धन नहीं रुकता है।
हमेशा मां लक्ष्मी की आसन पर बैठी हई प्रतिमा खरीदना शुभ रहता है।
लक्ष्मी जी की ज्यादातर प्रतिमाओं में उनके हाथे से धन वर्षा होती है।
लेकिन ध्यान रखें की लक्ष्मी जी के हाथ से सिक्के भूमि पर न गिर रहे हों।
ऐसी प्रतिमा खरीदना चाहिए जिसमें सिक्के किसी पात्र में गिर रहे हो। इससे घर में धन-धान्य भरा रहता है

दिवाली के दिन मां महा लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन तो किया ही जाता है। लेकिन ध्यान रखें कि इनके साथ ही घर के कुलदेवी-देवता का पूजन भी पूरे विधि-विधान के साथ करना चाहिए।
कौड़ियां मां महालक्ष्मी की प्रिय हैं इसलिए पूजा में पीले रंग की कौड़िया रखना न भूलें।
पूजा के बाद इन कौड़ियों को किसी लाल या पीले रंग के कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख दें। माना जाता है कि धन प्राप्ति के लिए यह बहुत ही अचूक उपाय है। अगर आपका धन कहीं पर अटका हुआ है तो वह मिलने के भी शीघ्र योग बनते हैं।
हल्दी को शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा में कुछ हल्दी की गांठे अवश्य रखें। पूजा संपन्न होने के बाद उन गांठों को किसी कपड़े में लपेटकर धन स्थान पर रख दें। इससे घर में बरकत आएगी
शनिदेव की वक्र दृष्टि

शनिदेव की वक्र दृष्टि के कारण भी व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।अगर आप भी इसी कारण परेशान हैं तो दिवाली का समय आपके लिए बहुत उत्तम रहेगा।अमावस्या तिथि को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है ,
इसलिए अगले दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करने के पश्चात पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करें और देर रात्रि के समय दीपक भी अवश्य प्रज्वलित करें।
लेकिन दीपक जलाने के बाद चुपचाप बिना पीछे मुड़े वापस आ जाएं। इससे आपकी शनि संबंधित सभी परेशानियों का अंत हो जाएगा।
रमा एकादशी
11 नवम्बर 2020 बुधवार को प्रातः 03:22 से रात्रि 12:40 तक एकादशी है ।
विशेष – 11 नवम्बर, बुधवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।

रमा एकादशी व्रत बड़े – बड़े पापों को हरनेवाला, चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाला है |
गोवत्स द्वादशी कार्तिक मास (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अश्विन मास) की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहते हैं ।
इस दिन यानी 12 नवम्बर 2020 गुरुवार को दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े सहित स्नान कराकर वस्त्र ओढाना चाहिये, गले में पुष्पमाला पहनाना , सींग मढ़ना, चन्दन का तिलक करना तथा ताम्बे के पात्र में सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, तिल, और जल का मिश्रण बनाकर ।

निम्न मंत्र से गौ के चरणों का प्रक्षालन करना चाहिये ।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते ।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नमः ॥
(समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न देवताओं तथा दानवों द्वारा नमस्कृत, सर्वदेवस्वरूपिणी माता तुम्हे बार बार नमस्कार है।)
पूजा के बाद गौ को उड़द के बड़े खिलाकर यह प्रार्थना करनी चाहिए-
“सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता ।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ॥
ततः सर्वमये देवि
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरू नन्दिनी ॥
हे जगदम्बे हे स्वर्गवसिनी देवी हे सर्वदेवमयि मेरे द्वारा अर्पित इस ग्रास का भक्षण करो ।
हे समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत माता, नन्दिनी मेरा मनोरथ पूर्ण करो।
इसके बाद रात्रि में इष्ट , ब्राम्हण , गौ तथा अपने घर के वृद्धजनों की आरती उतारनी चाहिए।
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