सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से फ्रांस के साथ हुई राफेल एयरक्राफ्ट डील पर जवाब मांगा। केंद्र से पूछा कि सरकार ने कैसे राफेल डील की, इसके बारे में पूरी जानकारी 29 अक्टूबर तक सीलबंद लिफाफे में दी जाए। इस संबंध में एक जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इस पर अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोेगोई की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मामले में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला किया है।

खंडपीठ ने कहा कि वह इस समय केन्द्र सरकार को कोई नोटिस जारी नहीं कर रही है। इस याचिका में फ्रांस की कंपनी दसाल्ट द्वारा रिलायंस को दिए गए ठेके की जानकारी भी मांगी गई है। गौरतलब है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर कांग्रेस भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है।

कांग्रेस का कहना है कि केन्द्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार 1670 करोड़ रुपये प्रति राफेल की दर से इन विमानाें को खरीद रही है, जबकि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में इनकी कीमत 526 करोड़ रुपये प्रति विमान निर्धारित की गई थी।
मोदी के कहने पर रिलायंस को साझेदार बनाया
राफेल सौदे पर कांग्रेस लगातार केंद्र सरकार को घेर रही है। पिछले कई दिनों से कांग्रेस और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार में हुए राफेल सौदे पर सवाल उठाया है।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद का जो सौदा किया है, उसका मूल्य पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में विमानों की दर को लेकर जो सहमति बनी थी उसकी तुलना में बहुत अधिक है। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने यह भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौदे को बदलवाया और एचएएल से ठेका लेकर रिलायंस डिफेंस को दिया गया।
