कार्तिक मास शुरू हो चुका है। इसे दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णवों के लिए यह महिना बेहद खास माना जाता है। इस पूरे माह में सुबह-शाम हरि नाम का दीपक जरूर लगाना चाहिए। संभव हो तो दामोदराष्टकम का पाठ भी कर सकते हैं।
स्कंद पुराण में लिखा है : ‘कार्तिक मास के समान कोई और मास नहीं हैं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है |’
दामोदराष्टकम्
दामोदराय नभसि तुलायां लोलया सह |
प्रदीपन्ते प्रयच्छामि नमो अनंताय वेधसे ||
(स्कंद पुराण)
कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान करने की बड़ी भारी महिमा है और ये स्नान तीर्थ स्नान के समान होता है l
जानिए व्यातिपात योग क्या है
व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है।
वाराह पुराण में ये बात आती है व्यतिपात योग की.

1 नवम्बर, रविवार को पूरा दिन व्यतीपात योग है।
देवताओं के गुरु बृहस्पति की धर्मपत्नी तारा पर चन्द्र देव की गलत नजर थी जिसके कारण सूर्य देव अप्रसन्न हुऐ नाराज हुऐ, उन्होनें चन्द्रदेव को समझाया पर चन्द्रदेव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया तो सूर्य देव को दुःख हुआ कि मैने इनको सही बात बताई फिर भी ध्यान नही दिया और सूर्यदेव को अपने गुरुदेव की याद आई कि कैसा गुरुदेव के लिये आदर प्रेम श्रद्धा होना चाहिये पर इसको इतना नही थोडा भूल रहा है ये, सूर्यदेव को गुरुदेव की याद आई और आँखों से आँसु बहे वो समय व्यतिपात योग कहलाता है। और उस समय किया हुआ जप, सुमिरन, पाठ, प्रायाणाम, गुरुदर्शन की खूब महिमा बताई है वाराह पुराण में।
1 नवम्बर 2020 रविवार को प्रातः 04:28 से 02 नवम्बर, सोमवार को प्रातः 05:19 तक
1 नवम्बर, रविवार को पूरा दिन व्यतीपात योग है।
आज का पंचांग
दिनांक 31 अक्टूबर 2020
दिन – शनिवार
विक्रम संवत – 2077 (गुजरात – 2076)
शक संवत – 1942
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – अश्विन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – पूर्णिमा रात्रि 08:18 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
नक्षत्र – अश्विनी शाम 05:58 तक तत्पश्चात भरणी
योग – सिद्धि 01 नवम्बर प्रातः 04:27 तक तत्पश्चात व्यतिपात
राहुकाल – सुबह 09:32 से सुबह 10:57 तक
सूर्योदय – 06:41
सूर्यास्त – 18:02
दिशाशूल – पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण – व्रत पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा (व्रत हेतु), नवान्न पूर्णिमा, कार्तिक स्नानारम्भ
विशेष – पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
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