जन्माष्टमी मनाए जाने को लेकर विद्धानों का अलग-अलग मत है। कुछ विद्धान 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने को उपयुक्त मान रहे हैं। इसकी वजह 11 अगस्त को अष्टमी तिथि की रात्रि मिलना है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में ही हुआ था। उदया तिथि को मानने वाले 12 अगस्त को श्री कृष्ण अष्टमी मना सकते हैं। यद्यपि इस दिन अर्धरात्रि में अष्टमी तिथि नहीं रहेगी।
चार रात्रियाँ विशेष पुण्य प्रदान करनेवाली हैं
हिन्दू वेद-पुराणों में चार रात्रि बेहद महत्वपूर्ण मानी गईं हैं।
इस दिन किए गए व्रत,जप-तप का कई गुना लाभ मिलता है।
जन्माष्टमी की रात्रि भी इनमें एक है। अन्य तीन रात्रि दिवाली, महाशिवरात्रि की रात और होली की हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है।
इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है।
जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।
जन्माष्टमी को खास बनाने के लिए यह जानना जरूरी है

भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम को पीतांबरधारी भी है। पीले वस्त्रों को धारण करने वाले। पीले वस्त्र भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय हैं।
जन्माष्टमी पर पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज दान करने से भगवान श्रीकृष्ण व माता लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं।
जन्माष्टमी की रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें तो जीवन में सुख-समृद्धि आने के योग बन जाते हैं।
शाम के समय तुलसी को गाय के घी का दीपक लगाएं
ऊं वासुदेवाय नम: मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें।
जन्माष्टमी का व्रत क्यों होता है खास
भगवान श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर जी को कहते हैं : 20 करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत है।
धर्मराज ने सावित्री कहा : जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है वह 100 जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इसमें संशय नहीं कि व्रत करने वाला प्राणी दीर्घकाल तक वैकुण्ठलोक में आनन्द भोगता है।
फिर उत्तम योनि में जन्म लेने पर उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है-यह निश्चित है।
अग्निपुराण में इस व्रत के बारे में कहा गया है कि जन्माष्टमी तिथि को उपवास करने से मनुष्य कई जन्मों के किये हुए पापों से मुक्त हो जाता है।
अतएव भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिए।
यह व्रत भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला हैं।
किसी विशेष कारणवश अगर कोई जन्माष्टमी व्रत रखने में समर्थ नहीं तो किसी एक ब्राह्मण को भरपेट भोजन हाथ से खिलाएं।
अगर वह भी संभव नहीं तो ब्राह्मण को इतनी दक्षिणा दें की वो 2 समय भरपेट भोजन कर सके।
अगर वह भी संभव नहीं तो गायत्री मंत्र का 1000 बार जप करे। (शिवपुराण, कोटिरूद्र संहिता अ. 37)
विस्तृत के लिए देखें- https://powergallery.in/
