इस बात में कोई संदेह बचा नहीं है कि विपक्षी गठबंधन बनने से सत्ताधारी दल भाजपा नीत गठबंधन एनडीए कुछ असहज महसूस कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के लिए विपक्षी एकता होना ही बड़ी बात है। विपक्षी गठबंधन इंडिया की तीन बैठकों से निकले एकता के स्वर का शोर इतना ज्यादा था कि भारतीय जनता पार्टी को भी अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आश्चर्य यह है कि घबराहट विपक्षी दलों के गठबंधन के नाम को लेकर भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गठबंधन को घमड़िया गठबंधन का नाम दिया है। इसे विपक्षी एकता की की पहली सफलता माना जाना चाहिए। विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया के तौर पर स्थापित हो गया है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह चुनाव में वोटों का विभाजन किस तरह से रोकती है।
चुनावी रणनीति को लेकर भारतीय जनता पार्टी में पहली बार भ्रम देखने को मिला है। इंडिया गठबंधन से लोगों का ध्यान हटाने के लिए एनडीए अपने घटक दलों की बैठक भी कर चुका है। एनडीए में कुछ राजनीतिक दल ऐसे भी हैं जिनका कोई सांसद ही नहीं है। प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी के दस साल पूरे करने वाले हैं। लोकसभा का पिछला चुनाव सर्जिकल स्ट्राइक के कारण ऐतिहासिक परिणाम देने वाला था।
पिछले पांच साल में देश के भीतर लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। खासतौर पर धर्म को लेकर। अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यक की कथित एकजुटता इंडिया को भारत बनाने का आधार हो सकती है। देश में आज शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां चर्चा महंगाई या बेरोजगारी पर हो रही हो? अधिकांश घरों में चर्चा का विषय अतीत है। खासतौर पर मुगल शासक। अतीत में मुगलों की सोच धर्मांतरण को लेकर जो भी रही हो वह आज का चुनावी मुद्दा कैसे बन सकता है,यह भारतीय जनता पार्टी ने कर दिखाया है। इंडिया के स्थान पर देश को भारत के पक्षधरों का ज्ञान भी भाजपा के लिए चुनावी लाभ वाला साबित हो सकता है।
उत्तर भारत में भारतीय जनता पार्टी को इस मुद्दे के चलते ही चुनाव में जीत को लेकर कोई बड़ा खतरा दिखाई नहीं दे रहा है। उत्तरप्रदेश को छोड़कर अन्य सभी हिंदी भाषी राज्यों में उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से होता है। अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस को नुकसान करते हैं। इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी उठा रही है। मौजूदा राजनीतिक माहौल में कांग्रेस की प्राथमिकता भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल करना है। यही कारण है कि वो सहयोगी दलों को अपने हिस्से की सीटें भी देने को तैयार नजर आती है।
यह उसी स्थिति में संभव है जबकि सहयोगी दल का उम्मीदवार सौ प्रतिशत जीतने वाला हो। वोटों के जिस गणित पर इंडिया गठबंधन चल रहा है,उसे सीटों के गणित से अपने पक्ष में करना बेहद मुश्किल है। इंडिया गठबंधन के अधिकांश दल राज्य की राजनीति के मुद्दों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इसका नुकसान सिर्फ कांग्रेस को होता है। मसलन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन का बयान भी इस श्रेणी में आता है। तलिनाडु में हिन्दू आबादी 87 प्रतिशत से अधिक है। इसके बाद भी उदयनिधि स्टालिन का बयान सनातन धर्म के खिलाफ आता है। जबकि राज्य में ईसाई आबादी छह प्रतिशत के से कुछ ज्यादा है।
मुस्लिम आबादी भी पांच प्रतिशत से कुछ अधिक है। स्टालिन शायद अपने ग्यारह प्रतिशत वोट को बचाना चाहते हैं। जबकि कांग्रेस की चिंता हिंदी राज्य की दो सौ से अधिक लोकसभा की सीटें हैं। इनमें 83 सीटों वाले पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव आने वाले दो माह के भीतर हैं। ये राज्य मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ राजस्थान,मिजोरम और तेलंगाना हैं। भारतीय जनता पार्टी इन राज्यों में स्टालिन के बयान का उपयोग कांग्रेस के खिलाफ कर रही है। इस बात की संभावना बहुत ज्यादा दिखाई नहीं देती कि संसद के विशेष सत्र में कुछ चौंकाने वाला प्रस्ताव सरकार की ओर से आ सकते हंै।
वैसे देखा जाए तो समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी इसी तरह सुर्खियों में आया था जिस तरह एक राष्ट्र,एक चुनाव का मुद्दा चर्चा में है। इंडिया गठबंधन 67 प्रतिशत के जिस वोटों के गठित पर चल रही है उसमें समान नागरिक संहिता, एक देश,एक चुनाव से भी कोई बड़ा फर्क नहीं आने वाला है। देश का नाम बदले जाने के मुद्दे पर सरकार आधिकारिक बयान खंडन वाला है। इसके बाद भी इस बदलाव से होने वाले लाभ-हानि का गणित लगाया जा रहा है।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्म द्वारा जी 20 के आमंत्रण पत्र में रिपब्लिक ऑफ भारत लिखने को सामान्य घटना के तौर पर नहीं देखा जा सकता। खासतौर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान के बाद कि हमें देश का नाम लेते समय भारत शब्द का उपयोग बढ़ाना चाहिए। भाषा के अनुवाद के सिद्धांतों में भारत का नाम इंडिया नहीं किया जा सकता। इंडिया एक व्यापक पहचान वाला नाम है। इस नाम की उपयोगिता भारत नाम की उपयोगिता से कम नहीं है।
बोलचाल की भाषा में देश के भीतर आज भी लोग इंडिया की सरकार नहीं कहते हैं। लिखने में भी भारत सरकार लिखा जाता है। देश के राष्ट्रपति के नाम से जो भी आदेश हिंदी में जारी होते हैं उनमें भी भी लिखा होता है- भारत के राष्ट्रपति की ओर से। सरकार नाम को लेकर कोई नया प्रयोग करने के बजाए सिर्फ मामूली प्रशासनिक निर्देश से भी यह सुनिश्चित कर सकती है अंग्रेजी में इंडियन गवरमेंट लिखने या कहने के बजाए गवरमेंट ऑफ भारत का उपयोग बढ़ाया जाए। इससे संघ प्रमुख की बात का मान भी रह जाएगा। वैसे हमारे देश का संविधान भी भारत के संविधान के नाम से ही जाना जाता है।
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लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पावर गैलरी पत्रिका के मुख्य संपादक है. संपर्क- 9425014193